भारत में भूमि सुधार की समस्याओं का वर्णन

भारत में भूमि सुधार की समस्याओं का वर्णन | Describe the problems of land reforms in India in Hindi

भारत में भूमि सुधार की समस्याओं का वर्णन | Describe the problems of land reforms in India in Hindi

भारत में भूमि सुधार की समस्याओं का वर्णन

कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गये परन्तु इसकी समस्या यथावत् बनी रही। इसके पीछे विद्यमान उत्तरदायी कारक निम्नवत हैं-

भारत में भूमि सुधार की समस्याएँ अत्यन्त जटिल है। जिसमें सुधार हेतु सरकार द्वारा

(1) भारत में भूमि सुधार कार्यक्रमों का प्रभावशाली रूप में क्रियान्वयन न होना।

(2) भूमि सुधार कानून का अत्यन्त पचीदा और जटिल होना। बड़े-बड़े जमींदारों ने इन कानूनों की खामियाँ निकालकर बचने के रास्ते अपना लिये हैं।

(3) भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारित की गई है परन्तु इससे बचने के लिए अनियमित व गैर-कानूनी हस्तान्तरण किये गये हैं।

(4) बड़े जमींदारों ने इन कानूनों की अवहेलना में अपनी राजनीतिक शक्ति का दुरुपयोग किया है।

(5) प्रशासनिक भ्रष्टाचार के कारण भूमि सम्बन्धी अभिलेखों में परिवर्तन किये गये हैं।

(6) भूमि सुधार अधिनियमों की अलग-अलग राज्यों में भिन्नता।

(7) भूमि सम्बन्धी प्रलेखों का अपूर्ण होना।

(8) भूमि सुधार कानूनों का धीमा क्रियान्वयन।

(9) सहकारी कृषि समितियों का जाली होना। धनी व्यक्ति इन जाली समितियों की आड़ में विकास कार्यक्रमों के लिए प्रदान की जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठाते हैं।

(10) चकबन्दी सहकारी खेती एवं साख समितियों में समन्वय का अभाव है। भूमिहीन कृषकों को भूमि दे दी गई परन्तु उनकी वित्तीय कठिनाइयाँ दूर नहीं की गई।

अतः नवीन रिकॉर्ड तैयार कर, नये कृषकों को भूमि देने पर उनकी वित्तीय कठिनाइयाँ दूर की जायें तथा कृषकों का संगठन स्थापित होना आवश्यक है।

भूस्वामित्व का रिकॉर्ड-

कुछ राज्यों में तो रिकॉर्ड अद्यतन है, शेष राज्यों में अध्ययन किया जा रहा है। इस बात की भी व्यवस्था की जा रही है कि इन रिकॉर्ड में जमीन के लिए नाम के साथ ही बटाईदारों, काश्तकारों और अन्य खेतिहरों का भी उल्लेख हो ।

एक यू.एन. रिपोर्ट के अनुसार भूमि सुधार के लिए जितने अधिक अधिनियम भारत में हाल ही मगये हैं बनाये ही उतने कहीं नहीं बने और ये लाखों करोड़ों किसानों को प्रभावित करते हैं। प्रो. दन्तेवाला ने भी भूमि सुधार सम्बन्धी कदमों को उचित दिशा में दिशा में उठाये गये कदम बताये हैं। लेकिन इनके कार्यान्वयन की गति व परिणाम संतोषजनक नहीं हैं।

प्रमुख कमियाँ निम्न प्रकार रही हैं-

(1) भूमि सुधारों के प्रभावी कार्यान्वयन का अभाव रहा है, क्योंकि (i) सम्बन्धित कानून पेचीदे रहे हैं और उनमें सदैव छिद्र खोज लिये गये हैं; (ii) बड़े-बड़े जमींदार व भू-स्वामियों ने अपने राजनैतिक प्रभावों का दुरुपयोग किया, तथा (iii) प्रशासनिक मशीनरी में व्यापक भ्रष्टाचार रहा है।

(2) भूमि सुधारों के कार्यान्वयन की गति भी धीमी रही है। इससे निहित स्वाथों के व्यवहार में भूमि सुधार कानूनों को अवहेलना का पर्याप्त अवसर मिला।

(3) भूमि सुधार कार्यक्रम विभिन्न राज्यों में विभिन्न हैं, जिससे उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर संचालित करना कठिन होता है।

(4) भूमि सुधार आँकड़े और प्रलेख पूर्णता से प्राप्त नहीं हैं, जिससे स्वामित्व का निश्चय करने में कठिनाई होती है।

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