भारत में इण्टरनेट का विकास

भारत में इण्टरनेट का विकास | डिस्ट्रीब्यूटिड कम्प्यूटिंग से आशय | ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य

भारत में इण्टरनेट का विकास | डिस्ट्रीब्यूटिड कम्प्यूटिंग से आशय | ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य | Development of Internet in India in Hindi | What is meant by distributed computing in Hindi | operating system functions in Hindi

भारत में इण्टरनेट का विकास

(Development of Internet of India)

भारत में इण्टरनेट का प्रारम्भ 15 अगस्त, 1985 को विदेश संचार निगम लिमिटेड (BSNL) ने किया था। उस समय देश के चार प्रमुख महानगरों दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई को इण्टरनेट से जोड़ा गया था। भारत में इण्टरनेट सेवा पर BSNL का एकाधिकार बना हुआ था। यदि अन्य देशों की ओर देखें तो हमें ज्ञात होगा कि अमेरिका में चार हजार, जापान में एक हजार पाँच सौ से अधिक एवं हांगकांग में पैंसठ संवाददाता हैं।

BSNL ने इण्टरनेट सेवा के लिए जो शुल्क निर्धारित किया था, वह अन्य देशों की अपेक्षा बहुत अधिक था। परन्तु अब यह शुल्क सौ घण्टों के लिए लगभग रु.1,000/-नियत किया गया है। अतः अनुमान लगाया जा रहा है कि अब भारत में भी इण्टरनेट के प्रयोगकर्ताओं की संख्या में वृद्धि होगी। इण्टरनेट को केवल मुनाफा कमाने के लिए जरिए के रूप में न देखकर मानव विकास, आर्थिक प्रगति और स्वास्थ्य प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने के उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए। इतना ही नहीं, आज internet प्रयोग करने वालों की संख्या दिन-व-दिन बढ़ती जा रही है।

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डिस्ट्रीब्यूटिड कम्प्यूटिंग से आशय

डिस्ट्रीब्यूटिड कम्प्यूटिंग से अभिप्राय है कि कम्प्यूटिंग का एक स्थान पर न होकर एक साथ अनेक स्थानों पर होना। डिस्ट्रीब्यूटिड कम्प्यूटिंग एक नेटवर्क का गुण (feature) है। एक ऐसा नेटवर्क जिसमें अनेक स्वचालित कम्प्यूटर हों तथा प्रत्येक कम्प्यूटर अपने आप में पूरी तरह अपने डाटा को प्रोसेस करने की प्रोसेसिंग क्षमता रखता हो अर्थात् उसके पास अपना CPU हो। डिस्ट्रीब्यूटिड कम्प्यूटिंग में उपयोगकर्ता (User) पूरी तरह से इस बात से अनभिज्ञ होता है कि उसका डाटा या सूचना नेटवर्क पर कहाँ प्रोसेस हो रहा है; वह केवल अपनी सूचना को प्राप्त करने या अपने काम को करने में ही विश्वास रखता है। उसे कौन CPU प्रोसेस कर रहा है, कैसे कर रहा है, इससे नहीं।

डिस्ट्रीब्यूटिंग कम्प्यूटिंग में एक गुण उसकी पारदर्शिता भी है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह कह सकते हैं कि यहाँ हम कई प्रोसेसरों का उपयोग कर रहे हैं, यह उपयोगकर्ता को नहीं दिखाता। वह पूरे तंत्र को एक आभासी एकल-प्रोसेसर के रूप में देखता है, न कि प्रोसेसरों के ग्रुप के रूप में। यहाँ उपयोगकर्ता, तंत्र से केवल इस प्रकार जुड़ा होता है कि वह अपने प्रोग्रामों या फाइलों को प्रोसेस कर सके और यह सबके लिए, उपलब्ध Operating System के जरिए स्वतः तथा अन्य तरीके का रूप है। इसमें उपये कर्त्ता केवल इतना ही चाहता है कि उसे अपनी माँगी सूचना सही फॉर्मेट, सही समय पर प्राप्त हो जाये। वह यह जानने से ज्यादा मतलब नहीं रखता कि वह नेटवर्क पर क्यों रखी गई हैं या प्रोसेस की जा रही है। वह केवल अपने माँगें गये। डाटा को प्राप्त करने से मतलब रहता है।

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ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य (Functions of Operating System)—

ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य कार्य निम्न हैं—

  1. प्रोसेसर का प्रबंधन (Management of Processor)- सी.पी.यू. या प्रोसेसर द्वारा प्रोग्रामों का प्रक्रियायन किया जाता है। प्रोसेसिंग हेतु एक प्रोग्राम को अनेक भागों में बाँटा जाता है। ये भाग प्रोसेसर कहलाते हैं। प्रोसेसर प्रबंध के तहत हर प्रोसेस के प्रबंध का निर्णय लिया जाता है। मल्टीप्रोसेसिंग तथा मल्टीप्रोग्रामिंग में इसका ज्यादा प्रयोग किया जाता है। किस प्रोग्राम को प्रतीक्षा करवायी जाये और किसे सी.पी.यू. को आवंटित किया जाये इसका निर्णय सिड्यूलर करता है। सिड्यूलर ऑपरेटिंग सिस्टम का भाग होता है। यह C.P.U. की प्रोसेसिंग क्षमता में वृद्धि करने के लिये उपयोग में लाया जाता है।
  2. जॉब का प्रबंधन (Management of Job) — जॉब के प्रबंधन में ऑपरेटिंग सिस्टम यूजर के प्रोग्राम को रीड करता है और यह ज्ञात करता है कि इस प्रोग्राम के क्रियान्वयन हेतु कम्प्यूटर को किन संसाधनों की जरूरत पड़ेगी व कौन-कौन से संसाधन इस समय उपस्थित है। यह प्रोग्राम के क्रियान्वयन हेतु शेड्यूलिंग का कार्य करता है और इस कार्य का पूर्ण क्रियान्वयन होने तक उसकी निगरानी भी रखता है। यह एक्जीक्यूशन के बाद संसाधनों को मेमोरी से मुक्त करने का कार्य भी करता है।
  3. डाटा और प्रोग्राम फाइल का प्रबंधन (Management of Data and Programme File)— ऑपरेटिंग सिस्टम डाटा व प्रोग्राम-फाइल्स के प्रबंधन की सुविधा भी देता है। यह पृथक्-पृथक डाटा तथा प्रोग्राम-फाइल्स को, पृथक्-पृथक् स्टोर कर, उनको परस्पर मिश्रित होने से बचाने का कार्य करता है और जरूरत के अनुसार वांछित फाइलों के प्रयोग की सुविधा भी प्रदान करता है।
  4. इनपुट तथा आउटपुट का प्रबंधन (Management of Input and Output)- इनपुट तथा आउटपुट के प्रबंधन में, ऑपरेटिंग यह ध्यान रखता है कि प्रोग्राम को किस समय किस इनपुट डिवाइस द्वारा प्राप्त करता है और किस समय आउटपुट डिवाइस को आउटपुट देना है। इसके तहत ही समस्त इनपुट/आउटपुट ऑपरेशंस का नियंत्रण होता है।
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