भारत में शिक्षा का भूमण्डलीकरण किस प्रकार गति प्राप्त कर रहा है? | भूमण्डलीकरण क्या है?

भारत में शिक्षा का भूमण्डलीकरण किस प्रकार गति प्राप्त कर रहा है? | भूमण्डलीकरण क्या है?
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वर्तमान भूमण्डलीकरण का वैचारिक आधार बाजार रूढ़िवाद या नव उदारवाद है। अर्थत् वह इस मान्यता को लेकर चलता है कि अर्थव्यवस्था की सभी प्रक्रियाओं का संचालन और नियमन बाजार की शक्तियों पर छोड़ देना चाहिए और राज्य को अर्थव्यवस्था में कम से कम हस्तक्षेप करना चाहिए।
भूमण्डलीकरण का शाब्दिक अर्थ है किसी विचार, क्रिया अथवा वस्तु को पूरे विश्व में प्रचारित एवं प्रसारित करना। इस प्रक्रिया के लिए हिन्दी में एक दूसरे शब्द –वैश्वीकरण का भी प्रयोग किया जाता है। उसके भी शाब्दिक अर्थ यही है-पूरे विश्व में प्रचारित एवं प्रसारित करना। परनतु वर्तमान सन्दर्भ में इसका अर्थ इससे कुछ भिन्न है और कुछ अधिक व्यापक है। आज से कुछ वर्ष तक इस शब्द का प्रयोग केवल व्यापार के क्षेत्र में किया जाता था। तब भूमण्डलीकरण का अर्थ था संसार के विभिन्न देशों द्वारा एक-दूसरे को अपने क्षेत्रों में व्यापार करने की स्वीकृति देना, एक-दूसरे को अपने क्षेत्रों में उद्योग लगाने, उत्पादन करने और वस्तुओं के क्रय-विक्रय की स्वीकृति देना परन्तु वर्तमान में इसका क्षेत्र अति व्यापक हो गया है।
वर्तमान में यातायात के साधनों और दूर संचार प्रौद्योगिकी के बिकास से संसार के सभी देश एक-दूसरे के अति निकट आ गए हैं और सब एक-दूसरे के विकास से प्रभावित हो रहे हैं। अब प्रायः सभी देश जीवन के प्रत्येक क्षेत्र-सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी आदि में एक-दूसरे से आदान-प्रदान कर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकास करना चाहते हैं। वर्तमान में वैश्वीकरण की प्रकिया अर्थव्यवस्था को ही एकीकृत नहीं करती, यह संस्कृति एवं प्रौद्योगिकी आदि को भी एकीकृत करती है। नाईट के शब्दों में निम्नलिखित रूप में परिभाषित कर सकते हैं-
भूमण्डलीकरण का अर्थ तकनीकी, वित्त, व्यापार, ज्ञान मूल्यों तथा विचारों के सीमा पार बढ़ते प्रवाह से है।
परन्तु सीमा पार बढ़ते प्रवाह से न तो राष्ट्रों के अन्तर्सम्न्धों का बोध होता है और न आदान-प्रदान का बोध होता है। हमारी दृष्टि से इसे निम्नलिखित रूप में परिभाषित करना चाहिए-
वर्तमान में भूमण्डलीकरण से तात्पर्य संसार के विभिन्न देशों द्वारा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र-सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक एवं तकनीक आदि में अन्तर्सम्बन्ध स्थापित कर एक-दूसरे से इनका आदान-प्रदान करने की प्रक्रिया से है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में शिक्षा का भूमण्डलीकरण-
शिक्षा के भूमण्डलीकरण से तात्पर्य केवल संसार के विभिन्न देशों में एक-दूसरे से शैक्षिक विचारों के आदान-प्रदान और एक- दूसरे देश में जाकर शिक्षा प्राप्त करने से ही नहीं होता अपितु एक-दूसरे देश में अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने से भी होता है। वर्तमान में हमारे देश में ऐसी अनेक शिक्षा संस्थाएं हैं जो विदेशी शिक्षा संस्थाओं (बोर्ड एवं विश्वविद्यालयों) से मान्यता प्राप्त एवं सम्बद्ध हैं, उन्हीं के पाठ्यक्रम चलती हैं, वे ही इनमें पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की परीक्षा लेते हैं और वे ही इन्हें प्रमाणपत्र एवं उपाधियाँ देते हैं और वे प्रमाण पत्र एवं उपधियाँ हमारे देश में मान्य हैं। दूसरी ओर हमारे देश के भी अनेक शिक्षा संस्थाओं (बोर्ड एवं विश्वविद्यालयों) से मान्यता प्राप्त एवं सम्बद्ध शिक्षण संस्थाएँ दूसरे देशों में चल रही हैं और उनके प्रमाण पत्र एवं उपाधिरयाँ वहाँ मान्य हैं। इन्द्रा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) के केनद्र तो अब कई देशों में स्थापित हो गए हैं।
कुछ वर्ष पहले एक तथ्य प्रकाश में आया था कि भारत में कई ऐसे विदेशी विश्वविद्यालयों ने यहाँ अपने शैक्षिक केन्द्र स्थापित कर रखे हैं जिन्हें उनके अपने ही देश में मान्यता प्राप्त नहीं हैं और वे बहाँ छात्र-छात्रां से मोटी धनराशि वसूल कर रहे हैं। तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन मन्त्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने इस पर नियन्त्रण करने की बात भी कही थी परन्तु स्थिति यह है कि इन संस्थानों का जाल पूरे भारत में फैलता जा रहा है।
भारतीय सरकार ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में 50 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति दे दी हैं। इससे विदेशी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के लिए भारत में सरकारी और मान्यता प्राप्त निजी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी में अपने परिसर खोलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इस निर्णय के पीछे सरकार की दलील है कि भारत से प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 30 हजार छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाते हैं और वहाँ के विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेते हैं और वर्तमान में विदेशों में पढ़ने वाले भारतीय छात्र-छात्राओं को लगभग 4 अरब डॉलर प्रतिवर्ष खर्च करने होते हैं, भारत में उन विश्वविद्यालयों के परिसर स्थापित होने से भारत से विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में भी कमी आएगी और वहाँ इन्हें जो प्रतिवर्ष व्यय करना हाता है उसमें भी कमी आएगी। एक लाभ यह और होगा कि जो छात्र-छात्राएँ किसी कारण विदेशों में जाकर इन विश्वविद्यालयों की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते, वे अब इनकी शिक्षा भारत में ही प्राप्त कर सकेगें। परन्तु अपने गले यह दलील पूरी तरह नहीं उतरती। आखिर विदेशी विश्वविद्यालयां की उपाधि के प्रति इतना आकर्षण क्यों । क्या हमारे देश के कोई भी विश्वविद्यालय उस स्तर की उच्च शिक्षा की व्यवस्था नंहीं कर सकते। हमें इस बौद्धिक दासता से मुक्त होने की आवश्यकता हैं। परन्तु वर्तमान में यह हमारे देश के लिए अनिवार्य है। अतः इसके गुण-दोषों पर विचार करने के बाद ही इसे सावधानी के साथ स्वीकार करना चाहिए।
स्पष्ट है कि भारत में भूमण्डलीकरण शिक्षा के साथ-साथ उद्योग जगत को भी प्रभावित किया है। भारतीय उद्योग बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करने के स्थान पर उनक सामने हथियार डाल रहे हैं और उद्योगों को उन्हें बेच रहे हैं। यह प्रक्रिया देश के लिए हानिकारक ही साबित हो रहे हैं। अब तक देश में लगभग 5 लाख इकाइयाँ बन्द हो चुकी है जिनसे 25 लाख व्यक्ति बेरोजगार हो गए हैं।
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