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भावात्मक एकता का अर्थ | भावात्मक एकता के स्तर | भावात्मक एकता के विकास में शिक्षा के कार्य | राष्ट्रीय एकता भावात्मक एकता के सम्बन्ध

भावात्मक एकता का अर्थ

भावात्मक एकता का अर्थ | भावात्मक एकता के स्तर | भावात्मक एकता के विकास में शिक्षा के कार्य | राष्ट्रीय एकता भावात्मक एकता के सम्बन्ध

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भावात्मक एकता का अर्थ

भावात्मक एकता का लक्ष्य राष्ट्रीय एकता है इसलिए राष्ट्रीय एकता और भावात्मक एकता को लगभग एक ही अर्थ में प्रस्तुत कर दिया जाता है। राष्ट्रीय एकता बहुत कुछ राष्ट्रीयता के विकास से सम्बन्धित है। व्यक्तियों के भावात्मक संसार के आधार पर ही राष्ट्र का निर्माण होता है। यदि हम भाषा, जाति, सम्प्रदाय के आधार पर ही प्रेम, सहानुभूति, क्रोध, संवेगों का विकास करेंगे तो हमारा राष्ट्र भी उसी प्रकार जाति, भाषा आदि के आधार पर छिन्न- भिन्न होगा। व्यक्ति और समाज में पारस्परिक विरोध नहीं है। यदि व्यक्ति के संवे्गों का उचित मार्गन्तरीकरण और शोध होगा तो निसन्देह वह राष्ट्र से प्रेम करेगा और राष्ट्र तथा समाज का विकास होगा, भावात्मक एकता का नकारात्मक अर्थ विघटनकारी तत्वों से घृणा करना और राष्ट्र को फूट से बचाना है। इसका सकारात्मक अर्थ राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयत्न करना है। सम्पूर्ण राष्ट्र के लोगों में देश प्रेम पैदा करना तथा राष्ट्र प्रेम की भावना उत्पन्न करना है।

भावात्मक एकता के स्तर-

भावात्मक एकता के चार स्तर होते हैं। पहले स्तर पर लोग एक दूसरे के साथ रहना प्रारम्भ करते हैं। इस स्तर पर लोगों में अकिले की अपेक्षा समूह समुदाय या राष्ट्र में रहने की आदत होती है। दूसरे स्तर पर लोग एक-दूसरे के पास रहते हैं। एक दूसरे को अच्छी तरह से जानना शुरू करते हैं। तीसरा स्तर रागात्मक सम्बन्ध का है। हम इस स्तर पर दूसरों की प्रथाओं में रुचि लेने लगते हैं। इस स्तर पर दूसरे की परम्पराओं से घृणा समाप्त हो जाती है लोग शान्तिपूर्वक रहते हैं। चौथे स्तर पर सभी लोग जो एक दूसरे के पास रहते हैं एक दूसरे की परम्पराओं, रीतिरयों एवं मान्यताओं को अपना समझने लगते हैं और उन सभी से प्रभावित होते हैं और उसमें रुचि लेते हैं।

भावात्मक एकता के विकास में शिक्षा के कार्य-

राष्ट्रीयं विकास एवं राष्ट्रीय एकता के लिए भावात्मक एकता परम आवश्यक है। विकास देश के विभिन्न धमों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं का देश है। देश के नागरिक अपने-अपने धर्म, रीति, रिवाज, भाषा आदि को दूसरे से महान एवं उत्तम समझते हैं, और उन पर गर्व करते हैं यद्यपि उनका गर्व करना स्वाभाविक है, परन्तु इस संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण परस्पर मनमुटाव एवं लड़ाई, झगड़े हो जाते हैं। शिक्षा ऐसी स्थिति में हमारी रक्षा करती है और एकता को बनाये रखती है। शिक्षा संकीर्ण विचारों के दोषों से हमें मुक्त करती है, और हमारा ध्यान उस राष्ट्रीय सम्पत्ति की ओर ले जाती है जिसमें सबकी आस्था है जो हमें एकता के सूत्र में बाँधती है। इसके अतिरिक्त शिक्षा हमारे निम्न कोटि के संवेगों का प्रशिक्षण करती है जिनकी राष्ट्रीय एकता एवं भावात्मक एकता की दृष्टि से महत्ता होती है। स्पष्ट है कि भावात्मक एकता को शिक्षा द्वारा ही विकसित किया जा सकता है। शिक्षा का पाठ्यक्रम बालक के संवेगों विचारों एवं दृष्टिकोण को उचित दिशा में विकसित करके भावात्मक एकता के विकास में सहायक होती है।

राष्ट्रीय एकता भावात्मक एकता के सम्बन्ध-

राष्ट्रीय एकता का सामान्य अर्थ है देश के विभिन्न धर्मों, जातियों तथा भाषाओं के व्यक्तियों में देश के कल्याण के लिए देश-प्रेम एवं देश-भक्ति की भावनाओं में एकता। देश में निवास करने वाले देशवासियों की आन्तरिक तथा भावात्मक एकता को राष्ट्रीय एकता कहते हैं। राष्ट्रीय एकता ऐसा भाव अथवा शक्ति है जो देशवासियों को अपने व्यक्तिगत हितों को त्याग कर राष्ट्र कल्याण के लिए प्रेरित करती है। राष्ट्र के समस्त निवासियों में “हम’ की भावना का विकास ही राष्ट्रीय एकता है। जब किसी राष्ट्र के व्यक्ति किसी भी आधार पर भावात्मक एकता का अनुभव करें तथा राष्ट्रीय हित के सम्मुख निजी हितों को त्यागने में बिल्कुल संकोच न करें तो इस भाव को हम राष्ट्रीय एकता की संज्ञा देते हैं। राष्ट्र की प्रगति और राष्ट्रीय अस्मिता के लिए भावात्मक एकता अत्यन्त महत्वपूर्ण है। भारतीय प्रजातंत्र की रक्षा के लिए देश के नागरिकों में सभी तरह की विभिन्नताओं से ऊपर उठकर भावात्मक एकता का हाना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। भावात्मक एकता से तात्पर्य है सभी भेदों को भुलाकर विचारों और भावनाओं की एकता। राष्ट्र की विभिन्न जातियों, धर्मों तथा समूहों के लोगों के आपसी भेद-भावों को मिटाकर सभी को भावात्मक रूप से समन्वित करते हुए एकता के सूत्र में बाँधना ही भावात्मक एकता है। भावात्मक रूपं से राष्ट्र से जुड़े नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि अपने हिता की अपेक्षा राष्ट्र की आवश्यकताओं, आदरशों एवं आकांक्षाओं को सर्वोपरि समझेंगे।

इस प्रकार बिना भावात्मक एकता के स्थापित हुए राष्ट्रीय एकता देश के नागरिकों में वेद्यमान नहीं हो सकती। राष्ट्रीय एकता तथा भावात्मक एकता एक-दूसरे के पूरक हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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