ब्रिटेन में मुक्त विश्वविद्यालय | विवृत विश्वविद्यालय में शिक्षण-विधि | विवृत विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम | विवृत विश्वविद्यालय का महत्त्व
ब्रिटेन में मुक्त विश्वविद्यालय | विवृत विश्वविद्यालय में शिक्षण-विधि | विवृत विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम | विवृत विश्वविद्यालय का महत्त्व
ब्रिटेन में मुक्त विश्वविद्यालय
ग्रेट ब्रिटेन के शिक्षाशास्त्रियों ने इच्छुक प्रौढ़ों हेतु विश्वविद्यालयीय शिक्षा देने के लिए विवृत विश्वविद्यालयों की परम्परा प्रारम्भ की। इस परम्परा का प्रारम्भ अन्य विकसित तथा विकासशील देशों में भी किया गया है।
फरवरी, 1966 में एक श्वेत पेपर प्रकाशित करके विवृत विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार व्यक्त किया गया। इसके उद्देश्यों और कार्यक्रमों की व्याख्या हेतु सर पीटर वीनाब्लेस की अध्यक्षता में के, आनिड्रा कमेटी गठित की गई। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने का प्रत्येक नागरिक को अधिकार है।
विवृत विश्वविद्यालय का स्वरूप-
विवृत विश्वविद्यालय नील गगन के नीचे चारों ओर बिना सीमा के फैला रहता है। इसका न कोई निश्चित भौगोलिक क्षेत्र है और न सीमा। इसलिए इसे विवृत (खुला हुआ) कहा गया है। अध्यापको के स्थान पर इस विश्वविद्यालय में श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री, श्रव्य-उपकरण, रूडियो, टेपरिकार्डर तथा दूरदर्शन आदि होते हैं। यदा-कदा स्थानीय शिक्षक समूहों की सहायता से भी शिक्षण की कुछ व्यवस्था की जाती है। इस पीटर वीनाब्लेस की अध्यक्षता में गठित नियोजन समिति के अनुसार रेडियो विवृत विश्वविद्यालय का सबसे अधिक प्रभावशाली साधन है। रेडियो के माध्यम से विभिन्न विश्वविद्यालयों के सयोग्य अध्यापकों द्वारा यदा-कदा विविध विषयों पर भाषण प्रसारित किये जाते हैं। उनके व्याख्यान टेपरिकार्ड किये जाते हैं तथा टेलीविजन द्वारा उन्हें भाषण देते हुए दूर-दूर तक दिखाया और सुनाया जाता है, अर्थात् टेलीविजन द्वारा उनके शिक्षण को दूर-दूर तक फैलाया जाता है। इस प्रकार श्रोता और दर्शक विद्वान अध्यापको के ज्ञान और अनुभव का लाभ उठाते हैं। विवृत विश्वविद्यालय की शिक्षण-व्यवस्था में लखन-कार्य को भी महत्त्व दिया गया है। पत्राचार द्वारा विद्यार्थियों को पाठ और निर्देश भेजे जाते हैं। तदनुसार विद्यार्थीगण अपना लिखित कार्य विश्वविद्यालय कार्यालय में जाँच के लिए लिए भेजते हैं। विवृत विश्वविद्या के विशेषज्ञ और शिक्षक द्वारा उस कार्य का मूल्यांकन करके अपनी टिप्पणी के साथ विद्यार्थियों को केन्द्र पर बुलाकर कुछ महत्त्वपूर्ण बातें शिक्षण के रूप में समझाई जाती हैं।
विवृत विश्वविद्यालय में शिक्षण-विधि –
विवृत विश्वविद्यालय में किसी एक शिक्षण-विधि पर निर्भर नहीं रहा जाता है। इनमें बहुत-सी शिक्षण तकनीकियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं। इनमें से कुछ प्रधान तकनीकियों का हम यहाँ उल्लेख कर रहे हैं-
- रेडियो द्वारा प्रसार-सेवाएँ।
- टेपरिकार्डर द्वारा विशेषज्ञों के भाषण का प्रसार करना ।
- टेलीविजन द्वारा विशेषज्ञों के अध्यापन का प्रसार करना।
- पत्राचार द्वारा पाठ और निर्देश भेजना तथा इनके आधार पर प्राप्त कार्यों का मूल्याकन करना।
- अंशकालीन अध्यान की जब तब व्यवस्था करना।
- अभियोजित पुस्तकें तैयार करके विद्यार्थियों में वितरित करना।
- कभी-कभी कक्षा शिक्षण तथा सामूहिक विचार-विमर्श का आयोजन करना।
- सम्पर्क कक्षाएँ का आयोजन करना। इन कक्षाओं में निर्दिष्ट पाठ्यक्रम पर विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं।
- खुले पुस्तकालयों, कर्मशालाओं तथा प्रयोगशालाओं का आयोजन करना।
उपर्युक्त विधियों के आधार पर दिवृत विद्यालय अपने कार्यक्रम को प्रौढ़ों के लिए उपयोगी बनाने की चेष्टा करता है। इन विधियों द्वारा शिक्षित विद्यार्थी नियमित विद्यार्थियों के साथ ही किसी निश्चित विश्वविद्यालय की परीक्षा में बैठता है। उत्तीर्ण हो जाने पर उसे भी नियमित विद्यार्थी के समान ही प्रमाण-पत्र दिया जाता है।
विवृत विश्वविद्यालय का पाठ्यक्रम-
ग्रेट ब्रिटेन के विश्वविद्यालय में पास- “(Pass) और ऑनर्स (Honous) दोनों प्रकार के पाठ्यक्रम होते हैं। एक सत्र के लिए निर्धारित क्रेडिट्स (Credits) को पूरा कर लेने पर विद्यार्थी को उत्तीर्ण माना जाता है। सामान्य पास कोर्स में छः क्रेडिट्स तथा ऑनर्स कोर्स में किसी विद्यार्थी को आठ क्रॉडिट्स करने होते हैं। चार वर्ष की शिक्षा अवधि होती है। क्रेडिट्स आधारभूत (Basic) पाठ्यक्रम पर आधारित होते हैं। यह आधारभूत पाठ्यक्रम अथवा क्रेडिट्स पूरा कर लेने पर विद्यार्थी को विश्वविद्यालय से प्रमाण-पत्र प्राप्त हो जाता है। आधारभूत पाठ्यक्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रधान शाखाएँ आती हैं-
- गणित।।
- सामान्य विज्ञान।
- सामान्य सामाजिक विज्ञान, जिससे समाज के सामान्य स्वरूप को समझा जा सके।
- साहित्य और संस्कृति।
उपर्युक्त चार शाखाएँ डिग्री पाठ्यक्रम के अनुसार निर्धारित की गई हैं। इन उप- शाखाओं का सामान्य ज्ञान डिग्री पाठ्यक्रम – में दिया जाता है। डिग्री पाठ्यक्रम के बाद उप- शाखाएँ और अधिक विस्तृत कर दी जाती है। तब विद्यार्थी किसी भी उप-शाखा का विशिष्ट ज्ञानार्जन हेतु अध्ययन कर सकता है। उदाहरणार्थ- कोई विद्यार्थी सामान्य विज्ञान के अध्ययन के बाद, भोतिक शा्त्र, इलेक्ट्रानिक्स, एस्ट्रानॉमी तथा एक्सरे आदि का गहन अध्ययन कर सकता है।
विवृत विश्वविद्यालयों का प्रशासन-
1969 में सरकार घोषणा-पत्र के आधार पर ग्रेट ब्रिटेन के अन्य विश्वविद्यालयों की तरह विवृत विश्वविद्यालयों की स्थापना की गई। ये स्वायत्तशासी (Autonmous) होते हैं। इनमें अंशकालीन अध्यापन हेतु अंशकालीन अध्यापक नियुक्त किये जाते हैं। एक कुलपति के अतिरिक्त अग्रलिखित अधिकारियों की भी प्रशासन हेतु नियुक्ति की जाती है-
- अध्ययन, गृह-शिक्षण तथा पत्राचार सेवा हेतु निर्देशक।
- स्थानीय केन्द्रों और शिक्षण-सेवाओं द्वारा अध्ययन के लिए निदेशक।
ये उपर्युक्त दोनों निदेशक अपने-अपने विशिष्ट क्षेत्र में विशेषज्ञों की नियुक्ति करते हैं। तथा उनके द्वारा पाठ लिखाते हैं और पुस्तकें तैयार कराते हैं, व्याख्यान दिलात हैं, प्रदर्शन-कार्य नियोजित करते हैं, कार्य का निरीक्षण तथा मूल्यांकन कराते हैं। ये विशेषज्ञ राडिया तथा टेलीविजन आदि का प्रौढ़-शिक्षा के लिए समुचित प्रयोग करते हैं। इन सभी सेवाओं के सहायतार्थ बहुत से शिक्षक राज्य शिक्षा महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों, तकनीकी महाविद्यालयों और पॉलिटेकनिकों से अंशकालीन सेवाओं के आधार पर लिये जाते हैं। इन सेवाओं के लिए निर्धारित पारिश्रमिक भी उन्हें दिया जाता है।
विवृत विश्वविद्यालय का महत्त्व-
जैसाकि कहा गया है, विवृत विश्वविद्यालय उन प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए बहुत ही उपयोगी है जो किसी कारणवश सामान्य विश्वविद्यालयों में नाम लिखाकर शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते। विवृत विश्वविद्यालय ने अपने परिधि और स्वरूप को इतना परिष्कृत कर लिया है कि अब ये बौद्धिक और व्यावसायिक दोनों प्रकार की शिक्षा प्रौढ़ों को देने में सक्षम हो रहे है। ऐसे विश्वविद्यालयों का वयस्कों के लिए बड़ा ही महत्त्व है।
भारत में विवृत विश्वविद्यालय के रूप में हिमाचल विश्वविद्यालय (शिमला) का एक अनुभाग कई वर्षों से कार्य कर रहा है। दिल्ली, पंजाब, इन्दिरा गाँधी खुला विश्वविद्यालय और राजस्थान विश्वविद्यालय तथा देश के अनेक अन्य विश्वविद्यालय इस ओर अग्रसर हुए हैं। वस्तुतः ऐसे विश्वविद्यालयों को समुचित प्रोत्साहन मिलना चाहिए।
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