शिक्षाशास्त्र / Education

परीक्षा का अर्थ | परीक्षाओं की उपयोगिता या महत्त्व | परीक्षा के उद्देश्य | परीक्षा के कार्य | परीक्षा के प्रकार

परीक्षा का अर्थ | परीक्षाओं की उपयोगिता या महत्त्व | परीक्षा के उद्देश्य | परीक्षा के कार्य | परीक्षा के प्रकार | Meaning of exam in Hindi | Usefulness or importance of examinations in Hindi | Objectives of the Examination in Hindi | Exam Tasks in Hindi | Types of Exams in Hindi

परीक्षा का अर्थ

परीक्षा अंग्रेजी भाषा के Examination शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। साधारणत: बोलचाल की भाषा में परीक्षा में तात्पर्य विद्यार्थियों के कार्यों का व्यवस्थित रूप से जाँच करना है। अतः छात्रों का विविध क्षेत्रों में मूल्यांकन ही परीक्षा है। परीक्षा विद्यालय के कार्यक्रम की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इसके द्वारा विद्यालय के कार्यो एवं छात्रों को विभिन्न दशाओं में सफलता एवं असफलता का पता लगाया जा सकता है। इसके द्वारा विद्यालय की असफलता के क्षेत्रों का भी ज्ञान हो जाता है। परीक्षाओं के द्वारा हम यह जान लेते हैं कि हमने अपने उद्देश्यों की पूर्ति किस सीमा तक कर ली है। इसके द्वारा शिक्षक अपनी शिक्षण पद्धति का भी मूल्यांकन कर लेते हैं। शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है इसमें प्रगति का मूल्यांकन करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि परीक्षाओं के उचित मूल्यों  को स्वाकार किया जाये और उनकी उचित ढंग से व्यवस्था की जाये तो निश्चित रूप से परीक्षाओं  के मूल्यों को भूलकर परीक्षाओं को शिक्षा का साधन न मानकर उन्हें शिक्षा का उद्देश्य मान रखा है जिसके कारण आधुनिक शिक्षा प्रणाली में अनेक दोषों का समावेश हो गया है। अतः यह दूषित शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली आलोचना से अछूतो नहीं है।

आधुनिक परीक्षा प्रणाली की आलोचना करते हुए डॉ० एफ० डब्ल्यू० नागवुड ने स्पष्ट किया है कि “आधुनिक परीक्षा प्रणाली ऐसी है कि इसमें सुधार नहीं हो सकता. इसे तो समाप्त ही कर देना चाहिये।”

डॉ० जाकिर हुसैन ने ठीक इसी बात को स्पष्ट करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है, “हमारे देश की प्रचलित परीक्षा प्रणाली शिक्षा के लिए अभिशाप सिद्ध हुई है। परीक्षाओं को उनकी उपयोगिताओं से अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करके हमारी दूषित शिक्षा पद्धति को अधिक निम्नतर बना दिया गया है।”

डॉ० राजेन्द्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) ने 30 नवम्बर 1958 को अपने भाषण में यह स्पष्ट किया था कि, “परीक्षा पास करने के बाद विद्यार्थी अपने को नये युग की माँगों का सामना करने में असमर्थ पाते हैं।”

आधुनिक युग में परीक्षा का उद्देश्य रटने शक्ति की सफलता के द्वारा परीक्षा की सफलता है। इस प्रकार शिक्षालयों, शिक्षकों एवं शिक्षार्थियों के उद्देश्यों में निरन्तर परिवर्तन होता जा रहा है। शिक्षालय, परीक्षाफल को बढ़ाकर अपनी प्रतिष्ठा बढ़ा रहे हैं। शिक्षक कुछ अनुमानित प्रश्नों के माध्यम में अपना वाझ उतार रहे हैं और शिक्षार्थी इने-गिने प्रश्नों के माध्यम से सफलता पा रहे हैं। परन्तु यह दोष शिक्षक और विद्यार्थी का नहीं है। वास्तविक दोष तो उरा शिक्षा प्रणाली का है जो उन्हें ऐसा करने के लिए बाध्य करती है।

परीक्षाओं की उपयोगिता या महत्त्व

(Utility or Importance of Examination)

आदि काल से लेकर आज तक शिक्षा में परीक्षा का प्रचलन चलता आया है। अतः जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये परीक्षा एक आवश्यक अंग बन गया है। हमारे जीवन का प्रत्येक अंग परीक्षाओं से युक्त हैं, क्योंकि परीक्षा से ही हमारी सफलता एवं असफलता का मापन होता है। अतः परीक्षा व्यापक रूप से हमारी क्रियाओं का अभिन्न अंग है। परीक्षाओं के इस महत्त्व के कारण हो उनकी इतनी अधिक उपयोगिता है।

  1. परीक्षा के द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों, शिक्षण विधियों आदि की साक्षरता का ज्ञान होता है।
  2. शिक्षक को अपने शिक्षण का मूल्यांकन करने और उसमें सुधार करने का शुभ अवसर प्राप्त होता है।
  3. विद्यार्थी के कार्यों को जाँच करने में पर्याप्त सहायता मिलती है।
  4. विद्यार्थियों की विशेष योग्यताओं का पता लगाने में सहायता मिलती है।
  5. अभिभावकों का सहयोग प्राप्त करने एवं विभिन्न शिक्षण में स्तरीय समानता लाने में परीक्षा का होना अत्यन्त आवश्यक है।
  6. परीक्षाओं के द्वारा विद्यार्थियों को अधिक परिश्रम करने के लिये प्रोत्साहन मिलता है।
  7. परीक्षाओं के द्वारा हमें विभिन्न शिक्षण संस्थाओं के शिक्षण में स्तरीय समानता लाने में सहायता मिलता है।
  8. परीक्षाओं के द्वारा समाज शिक्षालयों के कार्यों का निरीक्षण कर सकता है।

परीक्षा के उद्देश्य

परीक्षा क्यों ली जाती है? यदि इस प्रश्न का उत्तर हम दे देवें तो उससे हमें परीक्षा के उद्देश्य ज्ञात होते हैं। परीक्षा का अर्थ जाँच है, इसलिए निश्चय है कि परीक्षा जाँच के लिए ली जाती है। अतः स्पष्ट हो गया कि परीक्षा का प्रमुख उद्देश्य निम्न है।

(अ) छात्र की योग्यता की जाँच करना है। इससे यह मालूम किया जाता है कि छात्र ने जो परिश्रम किया उससे उसकी योग्यता का विकास किस सीमा तक हुआ है। छात्रों में अनुभव एवं  ज्ञान की मात्रा कितनी है यह जाँचना परीक्षा का उद्देश्य होता है।

(ब) परीक्षा का दूसरा उद्देश्य सफलता के आधार पर कक्षोन्नति देना है। इससे छात्रों को आगे बढ़ने का संकेत मिलता है। इस प्रकार से छात्र को प्रोत्साहन दिया जाता है कि वह अपनी योग्यता को बढ़ावे तथा ऊपर और आगे बढ़े। परीक्षा के कारण ही छात्र सजग एवं सक्रिय हो उठता है।

(स) परीक्षा का तीसरा उद्देश्य छात्रों का वर्गीकरण करना तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए चुनाव करना होता है। परीक्षा से छात्र की वास्तविक स्थिति मालूम होती है और इस प्रकार से उनको कई वर्गों में बाँटा जाता है जो सफलता के आधार पर होता है। इसी के आधार पर उनकी विशेष रुचि एवं अभिक्षमता की जाँच भी होती है और इसकी सहायता से छात्रों को विभिन्न कार्य क्षेत्र या व्यवसाय के लिए चुना भी जाता है। अस्तु परीक्षा का एक यह भी उद्देश्य कहा जाता है।

(द) परीक्षा का चौथा उद्देश्य जीवन में निश्चित लक्ष्यों की ओर ले जाना है। जिस प्रकार शिक्षा जीवन है उसी प्रकार से परीक्षा का भी सम्बन्ध जीवन से होता है और इस कारण परीक्षा का एक उद्देश्य छात्रों को उनके द्वारा निश्चित जीवन के लक्ष्यों की ओर ले जाना होता है। इसी कारण छात्र उस दिशा में प्रयत्न करता रहता है।

(य) परीक्षा का पाँचवा उद्देश्य व्यक्ति का मानसिक एवं व्यावसायिक विकास करना है। व्यक्ति हरेक परीक्षा की तैयारी करता है। इस कारण उसकी मानसिक शक्तियों का विकास होता है। किसी भी व्यवसाय में लगे हुए लोगों की सामयिक परीक्षाएँ होती रहती हैं जिसके फलस्वरूप उनको पदोन्नति होती है तथा वेतन वृद्धि भी होती हैं। फलस्वरूप उनका व्यावसायिक विकास भी होता है। (Departmental) परीक्षाएं ऐसी ही होती हैं।

परीक्षा के कार्य

परीक्षा एक शैक्षिक साधन है जिसके द्वारा कई कार्य किए जाते हैं। वे कार्य निम्नलिखित कहे जा सकते हैं-

(क) विद्यार्थियों के द्वारा अर्जित ज्ञान-कुशलता की पात्रा की जाँच करना और मालूम करना ।

(ख) छात्रों के जीवन में क्या काम करना चाहिए इसके लिए मार्ग प्रदर्शन करने का कार्य करना।

(ग) विद्यार्थियों को सक्रिय प्रतिस्पर्धाशील परिश्रमी बनाना और उनमें अच्छी आदतें डालना।

(घ) छात्रों को अपने आप अपनी योग्यता जानकर आगे बढ़ाने में सहायता देना।

(ङ) अध्यापकों को शिक्षणविधि जाँचने, सुधारने एवं प्रयोग करने में प्रेरणा देना।

(च) शिक्षण के मानदण्डों को निर्धारित करने में अध्यापकों को सहायता करना।

(छ) अध्यापकों द्वारा पाठ्यक्रम में संशोधन, परिवर्तन आदि करने में सहायता देना।

(ज) शिक्षा व्यवस्था एवं परीक्षा प्रणाली को छात्रों की योग्यता तथा आवश्यकता के अनुकूल ठीक करना।

(झ) विभिन्न प्रकार के छात्रों की कमी दूर करने में निदान का कार्य करना तथा भविष्य कथनी करना ।

(ञ) माता-पिता तथा समाज के हित में कार्य करना और उनके बालकों के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्रदान करना।

परीक्षा के प्रकार

परीक्षा शिक्षा का एक आवश्यक अंग है और इसी कारण प्राचीन काल से आज तक किसी न किसी प्रकार की परीक्षा का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में सभी देशों में होता चल’ पा रहा है। आधुनिक समय में हमारे सामने दो प्रकार की परीक्षा पाई जाती है- (1) परम्परागत प्रणाली की निबंधात्मक परीक्षा, (2) नवीन प्रणाली की वस्तुनिष्ठ परीक्षा समयविधि के अनुसार अब हमारे सामने (अ) वार्षिक परीक्षा तथा (ब) सिमेस्टर परीक्षा तथा (स) टाइमेस्टर परीक्षा हो रही है। इनके बारे में कुछ विस्तार से विचार करना जरूरी है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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