चीफ की दावत सन्दर्भः- प्रसंग- व्याख्या | भीष्मसाहनी – चीफ की दावत
चीफ की दावत सन्दर्भः– प्रसंग- व्याख्या | भीष्मसाहनी – चीफ की दावत
चीफ की दावत
- आखिर पाँच बजते-बजते तैयारी मुकम्मल होने लगी। कुर्सियाँ, मेज, तिपाइयाँ नैपकिन, फूल बरामदे में पहुँच गये। ड्रिंक का इन्तजाम बैठक में कर दिया गया। अब घर का फालतू सामान आलमारियों के पीछे और पलंगों के नीचे छुपाया जाने लगा। तभी शामनाथ के सामने सहसा एक अड़चन खड़ी हो गयी – माँ का क्या होगा?
सन्दर्भ- गद्य अवतरण नयी कहानी के विशिष्ट ख्यातिलब्ध कहानीकार भीष्म साहनी द्वारा लिखित ‘चीफ की दावत’ कहानी से अनुकूलित है। भीष्म साहनी सगरीय जीवन, मध्यवर्गीय परिवार और उसकी वैयक्तिक पारिवारिक समस्यायें, टूटते-जुड़ते रिश्ते आदि को अपनी कहानियों में बड़ी सफलता के साथ रेखांकित करते हैं। ‘चीफ की दावत’ कहानी में उन्होंने पहली बार पारिवारिक बिखराव के क्रूर सत्यों को अपनी पूर्ण तीव्रता के साथ अभिव्यक्त किया है।
व्याख्या- प्रस्तुत अवतरण में मिस्टर शामनाथ के घर पर चीफ की दावत का आयोजन था तरह-तरह से तैयारियां की जा रही थीं। सारे घर को नये सिरे से सुसज्जित बनाया जा रहा था। आखिर शाम के पाँच बजते-बजते दावत की सारी तैयारियों को अन्जाम दे दिया गया। कुर्सियाँ, मेज, तिपाइयाँ, करीने से यथा स्थान रखे गये। नैपकिन, फल इत्यादि भी बरामदे में पहुँच गये। ड्रिंक का इंतजाम बैठक खाने में कर दिया गया। अब घर का फालतू सामान आलमारियों के पीछे और पलंगों के नीचे छुपाया जाने लगा। फालतू चीजों को छुपाना भी एक बड़ा कार्य था। तभी मिस्टर शामनाथ के सामने अचानक एक समस्या आ जाती है कि फालतू सामान माँ का क्या होगा। माँ को भी छुपाने की उसे अनिवार्यता महसूस होने लगी। माँ भी आज के परिवेश में फालतू सामान के तरह ही हो गयी है।
- “मगर कोठरी में बैठने की देर थी कि आँखों से छल-छल आँसू बहने लगे। दुपट्टे से बार-बार उन्हें पोंछती, पर वे बार-बार उमड़ आते, जैसे बरसों का बाँध तोड़कर उमड़ आये हों। माँ ने बहुतेरा दिल को समझाया, हाथ जोड़े, भगवान का नाम लिया, बेटे की चिरायु होने की प्रार्थना की, बार-बार आँखे बन्द की, मगर आँसू बरसात के पानी की तरह थमने में ही न आते थे।”
सप्रसंग व्याख्या – व्यायेय पंक्तियाँ ‘चीफ की दावत’ नामक कहानी से ली गयी है। जिसके लेखक ‘श्री भीष्मसाहनी जी’ हैं। इन पंक्तियों में एक बूढ़ी माँ अपने पुत्र की तरक्की के लिए फुलकारी बनाने को तैयार हो जाती है तथा अपने मन में उसके लिए भगवान से प्रार्थना करती है कि हे भगवान् ! मेरे पुत्र को दीर्घायु प्रदान कीजिए।
मुख्य अतिथि के चले जाने के बाद बूढ़ी माँ मन-ही-मन बहुत दुखी होने लगी कि कहीं उसके रूप, आकार तथा गन्दी बातों से प्रधान अधिकारी क्रोधित तो नहीं हो गया? वे अपनी कोठरी में यही सोचकर जा ही रही थी कि उनके नेत्रों से आँसुओं की धार बह निकली। उनके आँसू मानो कहीं जलाशय से आ रहे थे जो थमने का नाम ही नहीं लेते थे। वे बार-बार पोछती लेकिन उनका क्रम बन्द ही नहीं होता था। बूढ़ी माँ ने अपने मन को काबू में लाना चाहा, बहुत समझाया, परन्तु वे चुप होने का नाम नहीं लेते थे, समझाने पर आँसू पुनः उमड़ आते थे। उन्होंने भगवान् का नाम लेना प्रारम्भ किया, अपनी आँखे बन्द करके पुत्र के चिरायु होने की प्रार्थना करने लगी, पर उनके आँसू बन्द होने को नहीं प्रतीत हो रहे थे। उन्हें इस बात का भय हमेशा सताता रहा कि कहीं उसकी बातों से उसके बेटे को आघात न पहुंचे।
- साहब बड़ी रुचि से फुलकारी देखने लगे। पुरानी फुलकारी थी, जगह-जगह से उसके तागे टूट रहे थे और कपड़ा फटने लगा था। साहब की रुचि देखकर शामनाथ बोले- यह फटी हुई हैं, साहब मैं आपको नयी बनवा दूंगा। माँ बना देंगी। क्यों, माँ, साहब को फुलकारी बहुत पसन्द हैं, इन्हें एक ऐसी ही फुलकारी बना दोगी न?
सन्दर्भ- उपरोक्त
व्याख्या – लेखक भीष्म साहनी ने प्रस्तुत अवतरण में एक पुत्र की स्वार्थपरता और यथार्थवादी मानसिकता का अंकन किया है। मिस्टर शामनाथ के घर पर आयोजित चीफ साहब की पार्टी बहुत ही खुशनुमा माहौल में चल रही थी तभी दस्तकारी एवं फुलकारी को साहब बड़ी ही रुचि से देखने लगे। पुरानी फुलकारी थी, कई जगहों से उसके तागे टूट रहे थे और कपड़ा फटने लगा था। साहब की रुचि देखकर शामनाथ बोले कि वह फटी हुई फुलकारी है, साहब मैं आपको नयी बनवा दूंगा। चीफ साहब पंजाब के गाँवों को दस्तकारी फुलकारी के रुप में देखकर बहुत प्रसत्र होते हैं। शामनाथ को लगता है कि साहब की प्रसन्नता एवं खुशी के लिए माँ दूसरा बना देगी। उसे अपनी बूढ़ी माँ की आँखों एवं शरीर की समर्थता का जरा भी ख्याल नहीं आता। साहब की चापलूसी करता हुआ वह माँ से ऐसी ही दूसरी फुलकारी बनाने के लिए कहता है। मां से कोई उत्तर देते नहीं बनता क्योंकि उसे की नाराजगी का भय सताता है। चीफ की दावत और उसके मूल कारण तरक्की के लालच में अफसरशाही पर भी व्यंग किया गया है। निराधार माँ का वात्सल्य प्रदर्शन अमेरिकी अधिकारी चीफ साहब का मेजबान की माँ का आदर करके विदेशी महानता दिखाना, मिस्टर शामनाथ का अन्तर्विरोधी रूप और स्वार्थलिप्सा आदि का दिग्दर्शन करना भी प्रस्तुत कहानी का प्रमुख उद्देश्य रहा है।
- “बरामदे में पहुंचते ही शामनाथ सहसा ठिठक गये। जो दृश्य उन्होंने देखा, उससे उनकी टाँगे लड़खड़ा गयीं और क्षण भर में सारा नशा हिरन होने लगा। बरामदे में ऐन कोठरी के बाहर माँ अपनी कुर्सी पर ज्यों-की-त्यों बैठी थीं मगर दोनों पाँव कुर्सी की सीट पर रखे हुए और फिर दायें से बायें और बायें से दायें झूल रहा था और मुँह में से लगातार गहरे खर्राटों की आवाजें आ रही थीं। जब सिर कुछ देर के लिए टेढ़ा होकर एक तरफ को थम जाता, तो खर्राटे और भी गहरे हो उठते।”
सप्रसंग व्याख्या – व्याख्येय पंक्तियाँ ‘चीफ की दावत’ नामक कहानी से ली गयी है, जिसके लेखक श्री भीष्म साहनी हैं। मिस्टर शामनाथ की पत्नी बूढ़ी विधवा माँ को पड़ोसिन के यहाँ रहने की सलाह देती हैं, लेकिन शामनाथ इस बात को इनकार कर देते हैं तथा उन्हें अपने ही घर रहने को कहते हैं।
चीफ के बरामदे में आने से पहले ही शामनाथ वहाँ का चित्र देखकर ठिठक जाते हैं तथा क्रोध से पागल हो जाते हैं। उन्होंने अपनी माँ का वहाँ पर जो रूप, जो आकार देखा, उसे देखकर उनकी आँखे लाल-पीली होने लगीं। उनकी बूढ़ी विधवा अशिक्षित माँ कुर्सी पर अपने दोनों पैरों को ऊपर करके बैठी थी तथा उनका सिर बायें से दायें लुढ़क रहा था। वे गहन निद्रा में थीं। लगातार खर्राटों की आवाज आ रही थी। जब बुढ़िया का सिर एक तरफ हो जाता तो साने की आवाज अर्थात् खर्राटे और तेज सुनाई देने लगते। कुछ समय पश्चात् जब उनकी निद्रा टूटती तो उन्हें झटका लगता और सिर इधर-उधर घूमने लगता। माँ का आँचल सिर से नीचे गिर गया था तथा उनका अर्द्धगंजा सिर इधर-उधर लुढ़क रहा था। अधपके बाल अस्त-व्यस्त हो रहे थे। उनका यह दृश्य देखकर शामनाथ को इतना गुस्सा आया कि उन्हें कोठरी में ढकेल दें, लेकिन चीफ तथा मेहमान साथ में होने के कारण वे ऐसा कोई भी कार्य नहीं किये।
- सात बजते-बजते माँ का ………वहीं बैठी रही।
सप्रसंग व्याख्या – व्याख्येय पंक्तियाँ ‘चीफ की दावत’ नामक कहानी से ली गयी हैं, जिसके लेखक श्री भीष्म साहनी जी हैं। मिस्टर शामनाथ अपनी कम्पनी के प्रधान अधिकारी को दावत देते हैं और अपनी बूढ़ी, अशिक्षित विधवा माता को दूर रखने की योजना बनाते हैं और उनसे ठीक ढंग से रहने को कहते हैं।
शाम के समय जब घड़ी की सुइयाँ सात बजाने लगी तो मिस्टर शामनाथ की माँ का हृदय भय के आतंक से कांपने लगा, क्योंकि वह पूर्ण रूप से जानती थी कि कहीं अधिकारी का सम्पर्क उससे ही न हो जाय। वह सोच रही है कि यदि चीफ साहब हमारे सामने एकाएक आ जायेंगे तो वे अंगरेजी में बात करेंगे और मैं हिन्दी भी ठीक ढंग से नहीं बोल पाती। उस बूढ़ी विधवा माँ का मन बार-बार स्वयं ही कुढ़ रहा था, मानो उसके ऊपर कोई वन गिर गया हो। उसका मन यहीं कहता था कि वह पिछवाड़े स्थित अपनी विधवा सहेली के घर चली जाय लेकिन अपने पुत्र की आज्ञा का उल्लंघन करना नहीं चाहती थी। मिस्टर शामनाथ की पत्नी भी यही कहती हैं कि उसे पास के सहेली विधवा के घर भेज दिया जाय, लेकिन शामनाथ इस व्यवस्था को निरस्त कर देते हैं। बुढ़िया माँ का मन अन्त में यही कहने लगा कि उसे यहीं कुर्सी पर बैठना चाहिए तथा वह अपनी टाँगों को लटकाये कुर्सी पर बैठ गयी।
- “ओ मम्मी! तुमने तो आज रंग ला दिया।……….. साहब तुमसे इतना खुश हुआ कि क्या कहूँ? ओ अम्मी! ओ अम्मी!
माँ की छोटी सी काया सिमटकर बेटे के आलिंगन में छिप गयी। माँ की आँखों में फिर आँसू आ गये। उन्हें पोंछती हुई धीरे से बोली- बेटा तुम मुझे हरिद्वार भेज दो। मैं कब से कह रही हूँ।”
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्य अवतरण हमारी पाठ्य पुस्तक डॉ0 श्रीकृष्ण लाल द्वारा सम्पादित ‘हिन्दी कहानियाँ में संकलित कहानी ‘ची की दावत’ से अवतरित किया गया है, जिसके लेखक श्री भीष्म साहनी जी हैं। इस कहानी में पुत्र की स्वार्थपरता के माध्यम से आधुनिक युगीन समस्याओं पर प्रकाश डाला गया है।
व्याख्या – मि0 शामनाथ अपनी पदोन्नति के लिए अपने चीफ साहब को घर पर भोजन के लिए सपत्नीक आमंत्रित करते हैं, किन्तु अपनी बूढ़ी को साहब के सामने नहीं पड़ने देना चाहते।क्षकिन्तु जब साह ब बरामदे में माँ से मिलते हैं और उनका गाना सुनकर, उनकी पुरानी फुलकारी को देखकर प्रसन्नता व्यक्त करते हैं तो स्वार्थी शामनाथ को अपनी पदोन्नति नजर आने लगती है। वह अपनी मां से मिलने के लिए कोठरी का दरवाजा खटखटाते हैं तथा दरवाजा खुलने पर माँ को आलिंगन में लेकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं, कि मम्मी तुमने तो आज रंग ला दिया। साहब तुमसे बहुत खुश हैं। माँ छोटी-सी काया सिमटकर बेटे के आलिंगन में समा गई। बेटे की स्वार्थपरता देखकर उसकी आँखों में आँसू आ गये। इस कहानी में लेखक ने यथार्थ-ढंग से माता पुत्र के व्यवहार को प्रस्तुत किया है। माँ के आँसू पुत्र का स्वार्थमय प्रेम देखकर ढलक पड़े। वह शामनाथ से आँसू पोछती हुई बोली कि बेटा तुम मुझे हरिद्वार भेज दो। किन्तु शामनाथ यह सुनकर क्रुद्ध हो उठता है।
- एक कामयाब पार्टी वह है, जिसमें ड्रिंक कामयाबी से चल जाय। शामनाथ की पार्टी सफलता के शिखर चूमने लगी। वार्तालाप उसीरौ में बह रहा था, जिस रौ में गिलास भरे जा रहे थे। कहीं कोई रुकावट न थी, कोई अड़चन न थी। साहब को ह्विस्की पसन्द आयी थी। मेमसाहब को पर्दे पसन्द आये थे, सोफा कवर का डिजाइन पसन्द आया था, कमरे की सजावट पसन्द आयी थी। इससे बढ़कर क्या चाहिए। साहब तो ड्रिंक दूसरे दौर में ही चुटकुले और कहानियाँ कहने लग गये थे। दफ्तर में जितना रौब रखते थे, यहाँ पर उतने ही दोस्त-परवर हो रहे थे और उनकी स्त्री काला गाउन पहने, गले में सफेद मोतियों का हार, सेंट और पाउडर की महक से ओत-प्रोत, कमरे में बैठी सभी देसी स्त्रियों की आराधना का केन्द्र बनी हुई थी। बात-बार पर हँसती, बात-बात पर सिर हिलाती और शामनाथ की स्त्री से तो ऐसे बातें कर रही थी, जैसे उनकी पुरानी सहेली हो।
सन्दर्भ – उपर्युक्त ।
व्याख्या – प्रस्तुत अवतरण में लेखक भीष्म साहनी ने महानगरीय परिवेश एवं उसके मानसिकता का चित्रण किया है। आधुनिकता की आड़ में व्यक्ति अपने स्वार्थों की पूर्ति कर रहा है। वातावरण का बहुत ही यथार्थ अंकन करते हुए लेखक ने लिखा है कि आज के युग में कामयाब पार्टी वह है जिसमें ड्रिंक कामयाबी से चल जाये। शामनाथ की पार्टी सफलता के शिखर चूमने लगी। पार्टी में बातचीत और वार्तालाप भी उसी रौ में वह रहा था, जिस रौ में गिलास भरे जा रहे थे। कहीं कोई रूकावट न थी, कोई अड़चन न थी। साहब को हिस्की पसन्द आयी थी। मेमसाहब को घर की सजावट तथा पर्दे पसंद आयी थी, सोफा, कवर का डिजाइन पसन्द आया था, कमरे की सजावट पसन्द आयी थी, इससे बढ़कर क्या चाहिए। ड्रिंक आज आधुनिक समाज का फैशन है। साहब तो ड्रिंक के दूसरे दौर में ही चुटकुले और कहानियाँ कहने लग गये थे। दफ्तर में जितना रौब रखते थे, यहाँ पर उतने ही दोस्त-परवर हो रहे थे। चीफ यहाँ पर पार्टी के दौरान बहुत ही खुलकर आत्मीय भाव से बातचीत कर रहे थे। उनकी पत्नी का व्यवहार भी अत्यन्त खुशनुमा और आत्मीय था।
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