समाज शास्‍त्र / Sociology

जेंडर का अर्थ | जेंडर पर संक्षिप्त लेख लिखिए | Meaning of gender in hindi | Write a short note on gender in hindi

जेंडर का अर्थ | जेंडर पर संक्षिप्त लेख लिखिए | Meaning of gender in hindi | Write a short note on gender in hindi

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जेडर का अर्थ-

जेंडर का अर्थ स्त्री या पुरुष होने की अवस्था से है अर्थात् नारीत्व या पुरुषत्व की अवस्थिति और सामाजिक संदर्भ में इसका अर्थ पुरुषों एवं महिलाओं के बीच के सामाजिक अंतरों से है। लड़के/लड़कियां समाज में अपनी वृद्धि के साथ इन अंतरों को सीखते हैं और जो एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति से भिन्न होते हैं। स्त्री और पुरुषों की पहचान उनके आसपास के सामाजिक वातावरण के कारण अलग होती है, क्योंकि समाज शिशु के जन्म के समय से ही लड़के-लड़की से अलग तरह की उम्मीद (आशा) लगाना प्रारम्भ कर देता है।

अतः जेडर भूमिकाएं काफी कम उम्र में ही अपना स्वरूप कायम कर लेती है। हर संस्कृति का पुरुषों और महिलाओं का मूल्यांकन करने और उन्हें भूमिकाएं व जिम्मेदारियां सौंपने का तरीका अलग-अलग होता है। जेंडर का अर्थ, स्त्री और पुरुषों की सामाजिक, सांस्कृतिक परिभाषा और इनके बीच का फर्क बताने के लिए समाज की भाषा से है। जैडर की सोच उन भूमिकाओं, अभिवृत्तियों व मूल्यों के इर्द-गिर्द घूमती है जिन्हें समाज स्त्री और पुरुषों के लिए सही मानकर उन पर थोपता है।

जेंडर ऐसी सामाजिक अवधारणा है जो लोगों को पुरुषतत्व एवं नारीत्व की रूढ़िवादी परिभाषाओं से बांधती है,और हम क्या सोचते हैं, कैसा महसूर करते हैं और किन बातों को मानते हैं, इन पर भी अवधारणा का असर होता है। आप पुरुष हैं या महिला यह इस बात पर असर डालती है कि लोग आपको कैसे देखते हैं जिसके आधार पर समाज आप से यह आशा करता है कि आपको कैसा व्यवहारा करना चाहिए। जेंडर का अर्थ व सम्बन्ध महिलाओं और पुरुषों की पारिवारिक स्थिति से है। जेंडर कोई स्थायी सोच नहीं है यह तो सामाजिक अवधारणा है और सामान्यतया वर्ग, आयु और धर्म जैसे कारकों द्वारा भी यह प्रभावित होती है। “पुरुषतत्व” और नारीत्व क्या है इनकी परिभाषाएं संस्कृतियों में समय के साथ बदल सकती हैं और बदलती भी हैं।

जेंडर व्यक्तित्व विशेषताओं, अभिवृत्तियों, अनुभूतियों, मूल्यों, व्यवहारों एवं गतिविधियों के सम्पूर्ण प्रभाव क्षेत्र के रूप में देखा जा सकता है, जिन्हें समाज विभेदन (Discrimination) के आधार पर स्त्री/पुरुषों को सौंपता है। यह एक ऐसी सामाजिक अवधारणा है जो विभिन्न समाजों में और विभिन्न काल में बदलती रही है। व्यापक (Comprehensive) रूप में, इनकी पहचान और ऐसी संस्था के रूप में इसकी पहचान जो हमारे जीवन के हर पहलू को संरचित करती है। क्योंकि परिवार कार्यस्थल (Work place) सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में इनकी पहचान और ऐसी संस्था के रूप में (इसंकी पहचान) जो हमारी स्वास्थ्य देखभाल पद्धति, राज्य एवं साथ ही साथ लैंगिकता, भाषा एवं संस्कृति अर्थात् हर जगह इसका वर्चस्व कायम रहता है। शक्ति संबंधों (Power Relations) को दर्शाने का यह मूल तरीका है। प्रत्येक संस्कृति अपनी जेंडर भूमिकाओं के ताने-बाने से बंधी होती है और जो ऐसी मौजूदा व्यवस्था से लाभ उठाते हैं वे इसमें परिवर्तन लाने या यहां तक कि ऐसी व्यवस्था को स्पष्ट करने पर गहरा एतराज जतात हैं। सामाजिक संस्था या वैयक्तिक दृष्टिकोण के रूप में जेंडर के बहुत से घटक हैं। सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जेंडर को सामाजिक स्थिति, श्रम वितरण, नातेदारी, पारिवारिक अधिकार एवं (जिम्मेदारियों), यौन आलेख, व्यक्तित्व, (मनुष्य के महसूस एवं व्यवहार करने का तरीका) सामाजिक नियंत्रण, विचारधारा एवं कल्पना की दृष्टि से देखा जाता है।

जेंडर सम्बन्धी विचारों को अच्छे या बुरे व्यवहारों एवं मूल्यों में अनूदित किया जाता है जो आगे चलकर हमारी जीवन शैलियों का रूप ले लेते हैं। ऐसे व्यवहार एवं मूल्य इस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते हैं। इस तरीके से जेंडर और जेंडर के बारे में हमारे व्यवहार एवं सोचने के तरीके का हमारे व्यक्तित्व पर गहरा असर पड़ता है और हम वही बन जाते हैं जो हमें बनाया जाता हैं। जेंडर भूमिकाओं का विचार जैसे लड़के-लड़कियां और स्त्री-पुरुषों को कैसा व्यवहार करना चाहिए, अर्थात् इस बात का हमारे यौन सम्बन्धों सहित हमारे सभी सम्बन्धों पर असर पड़ता है। जेंडर भूमिकाओं का असर उस स्थिति में पड़ता है जब युवा लोग यौन सम्बन्ध बनाते हैं और किसके साथ बनाते हैं और ऐसा करते समय वे स्वयं को एच.आई.वी. समेत यौन संचरित संक्रमणों एवं गर्भधारण से बचा पाते हैं।

लेकिन अधिकांश युवा (और वयस्क भी) अपने जीवन पर जेंडर के प्रभाव के प्रति अनभिज्ञ होते हैं और शायद इसलिए जेंडर भूमिकाएं समाज द्वारा बनती हैं और इसलिए ये बदल भी सकती हैं।

लैंगिक पहचान उस रूप में बनती है जिस रूप में पुरुष या स्त्री अपने आपको देखते हैं। पहचान बनाने की यह आंतरिक धारणा प्रायः मनुष्य की बाहरी शारीरिक छवि को और लिंग संबद्ध विशिष्ट भूमिका को जो व्यक्ति विकसित करता है और उसे महत्व देता है या फिर समाज मनुष्य पर ऐसी भूमिका को थोपता है, को प्रतिबिम्बित करती है। जेंडर पहचान किसी मनुष्य को प्रदत्त अनुभूत सामाजिक जेंडर को महत्च देना है। विशिष्ट रूप से नर को लड़का या मनुष्य के रूप में देखा जाता है। जहां लड़का और पुरुष ऐसे सामाजिक शब्द हैं जो अपने साथ जुड़ी सांस्कृतिक अपेक्षाओं से संबद्ध है। इसी तरह, मादा को लड़की या महिला के रूप में देखा जाता है। लड़का/लड़की और पुरुष/महिला के बीच का फर्क, आयु से बनता है और इसी आधार पर उनकी सामाजिक भूमिकाओं में भी फर्क आ जाता है जो आमतौर पर आगे समाजकीय अपेक्षाओं में फर्क के साथ बढ़ता जाता है।

जेंडर शब्द का सम्बन्ध प्रारम्भ में हिन्दी भाषा में लिंग अर्थात् (i) स्त्रीलिंग व (ii) पुल्लिंग ही रहा है। अन्य भाषाओं में जेंडर विभाजन को इस प्रक्रिया के तीन रूप स्त्रीलिंग (Feminine) पुल्लिंग (Masculine) और न्यूट्रल जेंडर प्रयोग मिलता है तो हिन्दी में स्त्रीलिंग व पुल्लिंग केवल दो रूपों का प्रयोग मिलता है। वहीं वैदिक संस्कृत मंच देखते हैं तो एक तीसरा लिंग नपुंसकलिंग (उभयलिंगी) का प्रयोग भी भाषा में देखा जा सकता है। पश्चिम में तीसरे न्यूट्रल जेंडर विभाजन का आधार स्त्रीत्व व पुरुषत्व के समाज में निर्धारण गुणों का अलग स्वतन्त्र पहचान का होना था जो वही संस्कृत में तीसरे लिंग से अभिप्राय स्त्रीत्व व पुरुषत्व के गुणों का साथ होना था जो आज भी भाषा विज्ञान में देखा जा सकता है। स्त्रीत्व (Feminine) पुरुषत्व (Masculine) और न्यूट्रल शब्दों का प्रयोग संज्ञा के वर्गीकरण के संदर्भ में किया। भाषा में जेंडर की यह विभाजन प्रक्रिया व्यवहार मूलक थी जैसा कि चाल्ल्स हाकेट (Charls Hockett) ने कहा शब्दों के व्यवहार के आधार पर संज्ञा का वर्गीकरण विभाजन जेंडर (Genders) है। भाषा के संदर्भ में भले ही जेंडर का प्रयोग शब्दों के व्यवहार के आधार पर संज्ञा का वर्गीकृत विभाजन जेंडर (Genders) हैं। भाषा के संदर्भ में भले ही जेंडर का प्रयोग शब्दों के व्यवहार मूलक प्रयोग पर आधारित था लेकिन सामाजिक संदरभों में भाषा को भी से अलग करके नहीं देखा जा सकता जैसा कि बारबरा जॉनसन का मानना था कि जैंडर (स्त्री) का सवाल भाषा का सवाल है। क्योंकि भाषा भौतिक रूपों में हस्तक्षेप करती है। सेक्स और जेंडर दोनों ही न्यूट्रल नहीं है। बल्कि एलियन और Lynder के मत के अनुसार कहा जाए तो परिवर्तनीय है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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