मानसिक अस्वस्थता की रोकथाम के तरीके | मानसिक अस्वस्थता के उपचार के उपाय

मानसिक अस्वस्थता की रोकथाम के तरीके | मानसिक अस्वस्थता के उपचार के उपाय

मानसिक अस्वस्थता की रोकथाम के तरीके

मनुष्य को मानसिक रोगों से बचने के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में तत्सम्बन्धी प्रयास किये जाने चाहिये-

(1) परिवार- मनुष्य के जीवन में प्रथम पाँच-छ: वर्षों में अधिकांश विकास हो जाता है। इसलिये परिवार को शिशु की देख-रेख बहुत सावधानी से करनी चाहिये। उसे संतुलित आहार दिया जाना चाहिये । उसकी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती रहनी चाहिये और उसे यथासम्भव रोगों से बचाना चाहिये। शिशु और बालक को माँ-बाप और परिवार के अन्य लोगों का प्रेम, स्नेह, मान्यता, सुरक्षा, स्वीकृति बराबर मिलनी चाहिये। मानसिक विकास में इन मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं का भारी महत्त्व होता है। शिशु की स्वतन्त्रता में किसी को बाधक नहीं बनाना चाहिये। उसका संवेगात्मक विकास भी ठीक ढंग से होना चाहिये। उन पर अधिक नियन्त्रण नहीं होना चाहिये क्योंकि इससे संवेगों का स्वाभाविक विकास नहीं होता, उसके लिए खेल-कूद का पर्याप्त प्रबन्ध रखना चाहिए। हर शिशु को परिवार के लोगों से पाँच वस्तुयें अवश्य मिलनी चाहिये-आनन्द, खिलौने, खेल, पालतू पशु-पक्षी एवं उदाहरण। शिशुओं को घुमाने और तरह-तरह की वस्तुओं का निरीक्षण कराने का भी प्रयास होना चाहिये।

(2) शिक्षालय- शिक्षालयों से भी बच्चों को प्रेम, स्नेह, स्वतन्त्रता, और आनन्द की प्राप्ति नहीं होनी चाहिए। शिक्षण में खेल विधियों तथा रुचियों और योग्यताओं का पूरा ध्यान रखा जाये। फिर भी यदि वंशानुक्रम या पारिवारिक या अन्य किसी कारण से किसी बालक में कोई मानसिक दोष परिलक्षित हो तो शिक्षकों को तुरन्त उसका निदान करना चाहिये। इसके बाद फिर वह जहाँ पर ठीक होने लायक हो, बालक को वहीं भेज देना चाहिए। बालकों के साथ किसी प्रकार की कठोरता का बाध्यता या व्यवहार नहीं होना चाहिए।

(3) विशिष्ट आवासीय विद्यालयों की स्थापना- बालक कई प्रकार के होते हैं-पिछड़े हुए, प्रतिभाशाली, मन्द बुद्धि, मानसिक दोषयुक्त और कुसमायोजित। ऐसे आवासीय विद्यालयों की स्थापना होनी चाहिए जिनमें यथायोग्य बालक को भेजा जा सके। समूह में विभिन्न प्रकार के बच्चों के स्थान पर रहने से और पढ़ने से कुछ की अवहेलना हो ही जाती है। जैसे ही कोई मानसिक दोष बालक में दिखाई पड़े उसे तत्सम्बन्धित आवासीय विद्यालय में भेज देना चाहिए।

(4) शिशु निर्देशन केन्द्रों की स्थापना- ऐसे केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहिए जहाँ माँ-बाप को शिशुओं के पालन-पोषण की विधि से अवगत कराया जाता है। इन केन्द्रों में शिशुओं और बालकों की संवेगात्मक समस्याओं को हल करने के तरीके भी बताये जाते हैं।

(5) मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान का प्रचार- मानसिक स्वास्थ्य के महत्त्व तथा मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान के नियमों से सम्बन्धित पुस्तिकायें छापकर इस विचार और सिद्धान्त का प्रचार जनसाधारण में किया जाना चाहिये ताकि लोग इसके महत्त्व को समझें और इसकी रक्षा करने का प्रयास करें तथा मानसिक रोगों से बच सकें।

(6) मनोरंजन के स्वस्थ साधनों की व्यवस्था- कार्य की व्यवस्था और दैनिक जीवन की भाग-दौड़ से विश्राम पाने के लिए ऐसे केन्द्रों की स्थापना की जानी चाहियेक्षजहाँ लोग खाली समय में अपना मनोरंजन करके अपने तनाव और चिन्ता को दूर कर सकें।

(7) निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था- विद्यालयों के बालकों, किशोरों, युवकों तथा वृद्ध और जन-साधारण के लिए निर्देशन केन्द्र खुलने चाहिये जहाँ लोग अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें और उनके विषय में सही राय प्राप्त कर सकें। अनेक मानसिक रोग तो इसलिए बढ़ते चले जाते हैं क्योंकि रोगियों को उचित निर्देशन और सुझाव नहीं मिल पाते। इन निर्देशन केन्द्रों में इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिए।

(8) आर्थिक विकास- अनेकों मानसिक रोगों की जड़ आर्थिक समस्याओं में होती है। दरिद्रता के बीच पलने वाले लोगों का मानसिक स्वास्थ्य तो तभी ठीक हो सकता है जब उनकी सभी आवश्यकताएँ पूरी हो सकें। इसका प्रयास सरकार की ओर से होना चाहिए।

(9) औद्योगिक क्षेत्र में मनोविज्ञान का प्रयोग- औद्योगिक क्षेत्र में मानसिक तनाव अधिक रहता है। मशीनों की खड़खड़, धुआँ-धक्कड़ और काम की तेजी के कारण स्नायुओं पर बुरा प्रभाव पड़ता रहता है। श्रमिकों को कठिन शारीरिक श्रम करना पड़ता है और साथ ही सुपरवाइजरों की डाँट भी सहनी पड़ती है। अस्तु, मिलों और फैक्ट्रियों में सद्भाव उत्पन्न करने के लिए मनोवैज्ञानिक केन्द्रों का होना जरूरी है।

(10) सैनिकों के लिए मनोवैज्ञानिक सेवाएँ- सैनिकों को बारूद; गोलियों, चीख- पुकार, मार-धाड़, खून-खच्चर की दुनिया में रहना पड़ता है। सैनिक इस प्रकार का जीवन व्यतीत करते-करते मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। हजारों सैनिक अपंग हो जाते हैं। उनसे मानसिक संतुलन बिगड़ने का भी डर रहता है। इसलिए सैनिकों की मानसिक- स्वास्थ्य रक्षा के लिए मनोवैज्ञानिक सेवा की व्यवस्था होनी चाहिए।

(11) नागरिकता की शिक्षा- भारत में प्रेम, सौहार्द्र, सहयोग का विकास करना, अपने अधिकारों की रक्षा करने और दूसरों के अधिकारों की कद्र करना। सिखाने के लिए लोगों को नागरिकता की शिक्षा मिलनी चाहिये। शासन-प्रणालियों में मानसिक- स्वास्थ्य की दृष्टि से जनतन्त्रात्मक प्रणाली सर्वोत्तम है। उसके अन्तर्गत यदि व्यक्ति को उचित नागरिकता की शिक्षा मिले तो वह अपना मानसिक स्वास्थ्य कायम रखने के योग्य हो जाता है।

उपसंहार-

मानसिक स्वास्थ्य का मानव जीवन में बड़ा महत्त्व है। इससे जीवन सुखी रहता है और आनन्द की वृद्धि होती है। इसलिए मानसिक अस्वस्थता को रोकने के उपर्युक्त उपायों का यथासम्भव अधिक-से-अधिक प्रयोग होना चाहिये।

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