मोदीगिलिआनी-मिलर सिद्धान्त

मोदीगिलिआनी-मिलर सिद्धान्त | मोदींगलिआनी एवं मिलर सिद्धान्त | मोदीगिलाआनी मिलर प्रकल्प की मान्यताएँ | मोदीगिलाआनी मिलर प्रकल्प की सीमायें

मोदीगिलिआनी-मिलर सिद्धान्त | मोदींगलिआनी एवं मिलर सिद्धान्त | मोदीगिलाआनी मिलर प्रकल्प की मान्यताएँ | मोदीगिलाआनी मिलर प्रकल्प की सीमायें | Modigiliani-Miller theory in Hindi | Modiangliani and Miller theory in Hindi | Assumptions of Modigilani Miller Project in Hindi | Limitations of Modigilani Miller Project in Hindi

मोदीगिलिआनी-मिलर सिद्धान्त (Modigiliani_Miller Approach)-

मोदगिलिआनी- मिलर (एम०एम०) सिद्धान्त अपने निष्कर्षो में शुद्ध परिचालन आय सिद्धान्त के समान है। एम०एम० तर्क देते हैं कि करों की अनुपस्थिति में पूँजी संरचना में परिवर्तन पर एक फर्म का बाजार मूल्य और पूँजी की लागत अप्रभावित रहती हैं। तथापि दोनों में एक आधारभूत अन्तर है। शुद्ध परिचालन आय सिद्धान्त विशुद्ध धारणात्मक है और फर्म के मूल्यांकन में पूँजी संरचना की असम्बद्धता के लिये कोई परिचालनात्मक औचित्य नहीं प्रदान करता है। दूसरी ओर एम०एम० ने 1958 में अपने लेख में अपने प्रकल्प (Hypothesis) के लिए विश्लेषणात्मक रूप से सुदृढ़ और तर्कसंगत व्यवहारामक औचित्य प्रदान करते हैं। यदि निगम कर के अस्तित्व को मान लिया जाता है तो एक०एम० प्रकल्प शुद्ध आय सिद्धान्त के समान है।

(I) करों की अनुपस्थिति में (In the Absence of Taxes)- यह सिद्धान्त यह सिद्ध करता है कि पूंजी की लागत संरचना में परिवर्तनों से नहीं प्रभावित होती है। इसका कारण यह है कि यद्यपि ऋण समता पूँजी से सस्ता होता है किन्तु ऋण के बढ़े प्रयोग से बढ़ी वित्तीय जोखिम के कारण समता पूँजी की लागत बढ़ जाती है और कम लागत ऋण का लाभ समता की बढ़ी लागत से समान रूप से समंजित हो जाता है। यह सिद्धान्त यह भी बतलाता है कि ऋण की एक सीमा के पश्चात् ऋण की लागत बढ़ती है किन्तु समता की लागत घटती दर से बढ़ती है। यहाँ पर भी दोनों- लागतें संतुलित रहती हैं और पूँजी की कुल लागत समान बनी रहती है।

मोदीगिलाआनी मिलर प्रकल्प की मान्यताएँ (Assumptions)-

एम०एम० सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

(i) पूर्ण पूँजी बाजार (Perfect Capital Market)- यह सिद्धान्त यह मानकर चलता है कि पूर्ण पूँजी बाजार विद्यमान है। इसका आशय यह हुआ कि-

(a) विनियोक्ता प्रतिभूतियों के क्रय और विक्रय के लिए स्वतन्त्र है।

(b) जिन शर्तों पर फर्म उधार ले सकती है, उन्हीं शर्तों पर विनियोक्ता भी उधार ले सकता है।

(c) विनियोक्ताओं को बाजार के सम्बन्ध में पूर्ण सूचना रहती है और उनका व्यवहार विवेकशील रहता है।

(d) प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय अर्थात् सौदा करने की कोई लागत नहीं होती है।

(ii) समरूप जोखिम वर्ग (Homogeneous Risk Classes)- सभी फर्मों को समरूप जोखिम वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है तथा एक समान वर्ग के अन्तर्गत की सभी फर्मों की व्यावसायिक जोखिम की मात्रा समान होगी।

(iii) जोखिम (Risk)- सभी फर्मों की प्रत्याशित अर्जनों की एक जैसी जोखिम विशेषतायें होंगी।

(iv) कोई कर नहीं (No Taxes)- 1958 के मूल प्रकल्प में एम०एम० ने यह मान लिया था कि कोई निगम कर अस्तित्व में नहीं है।

(v) पूर्ण भुगतान (Full pay out)- कम्पनी की सभी अर्जने अंशधारियों में वितरित कर दी जाती हैं।

(vi) कट-ऑफ बिन्दु (Cut-off Point)- एक फर्म में विनियोग का कट-ऑफ विन्दु पूँजीकरण दर है।

प्रतिभूतिक्रय-विक्रय प्रक्रिया (Arbitrage Process)- एम०एम० प्रकल्प का परिचालनात्मक औचित्य ही है। एम०एम० का मत है कि अपनी पूँजी संरचना के सिवाय अन्य सभी प्रकार से एक-सी दो फर्मे विभिन्न बाजारों में लम्बे समय तक भिन्न नहीं रह सकतीं क्योकि मित्रता की स्थिति में (Arbitrage) हो जायेगा और विनियोक्ता व्यक्तिगत उत्तोलन में लग जायेंगे अर्थात् वे अधिक मूल्यांकित कम्पनी के अंशों को बेचकर कम मूल्यांकित कम्पनी के अंश क्रय करेंगे और इस प्रक्रिया के कारण शीघ्र ही दोनों फर्मों का कुल मूल्य समान हो जायेगा।

(II) जब निगम कर विद्यमान हैं (When Corporate Taxes Exist)- सन् 1963 के अपने एक लेख में एम०एम० ने स्वीकार किया कि कर उद्देश्य के लिए ब्याज प्रभारों के कटौती योग्य होने के कारण ऋण के प्रयोग से फर्म का मूल्य बढ़ेगा अथवा पूँजी की कुल लागत घटेगी। एक उत्तोलित फर्म (levered firm) का बाजार मूल अ-उत्तोलित फर्म (unlevered firm) से अधिक होगा। यह उत्तोलित फर्म के ऋण ब्याज प्रभारों की कटौती योग्यता (deductibility) के कारण कर बचाव का वर्तमान मूल्य होता है। सूत्र रूप में इसे निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है-

V1 = Vu + Bt

Where

V1 = Value of a levered firm

Vu = Value of an unlevered firm

B = Amount of Debt

t= Tax rate

अ- उत्तोलित फर्म का बाजार मूल्य इसके अंशों के बाजार मूल्य के बराबर होगा, अर्थात्

Vu    Profits available for equity shareholders., EBT (1-t)/ Equity Capitalisation Rate

इसी प्रकार पूँजी संरचना में ऋण भाग को अधिकतम करके अनुकूलतम पूँजी संरचना प्राप्त की जा सकती है। तथापि यदि बाजार की अपूर्णताओं के कारण ऋण की लागत बढ़ती है तो ऋण का उपयोग सीमाओं के अन्तर्गत करना ही चाहिए।

मोदीगिलाआनी मिलर प्रकल्प की सीमायें (Limitations of M-M Hypothesis) –

Arbitrage प्रक्रिया एम०एम० सिद्धान्त की आधारशिला है किन्तु निम्नलिखित कारणों से यह प्रक्रिया वांछित परिणाम लाने में असफल रहती है-

(1) व्यक्तियों और फर्मों के लिए ब्याज दरें समान नहीं होती क्योंकि व्यक्तियों की तुलना में फर्म की साख अधिक होती है।

(2) व्यक्तिगत उत्तोलन निगम उत्तोलन का पूर्ण स्थानापन्न नहीं होता है। कम्पनी की तुलना व्यक्तिगत विनियोक्ता की जोखिम अधिक होती है क्योकिं उसका दायित्व असीमित होता है।

(3) प्रतिभूतियों के क्रय-विक्रय में सौदे की लागत (transaction cost) आती है। अतः वही प्रत्याय अर्जित करने के लिए विनियोक्ता को अपने वर्तमान विनियोग की तुलना अधिक राशि का विनियोग करना होगा।

(4) अ-उत्तोलित फर्म से उत्तोलित फर्म को अथवा उत्तोलित फर्म से अ-उत्तोलित फर्म को धारण (Holding) बदलने का विकल्प सभी विनियोक्ताओं को उपलब्ध नहीं है, विशेषकर संस्थागत विनियोक्ताओं, जैसे जीवन बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया आदि।

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