वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

कोषों के अल्पकालीन साधन | कोषों के बैंक-साधन एवं गैर बैंक साधन

कोषों के अल्पकालीन साधन | कोषों के बैंक-साधन एवं गैर बैंक साधन | Short term sources of funds in Hindi | Bank instruments and non-bank instruments of funds in Hindi

कोषों के अल्पकालीन साधन

Short-Term Sources of Funds

कोषों के अल्पकालीन साधनों को प्रायः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है, वे हैं- बैंक-साधन (Bank Sources), तथा गैर-बैंक साधन (Non-Bank Sources )। इन दोनों ही साधनों में कोषों की प्राप्ति अनेक रूपों में की जाती है, जिनका वर्णन नीचे किया गया है :

कोषों के अल्पकालीन साधन

(Short-Term Sources of Funds)

(अ) बैंक-साधन (Bank Sources)

  1. असुरक्षित ऋण

(i) खड़ी साख

(ii) आवर्ती साख अनुबन्ध

  1. अधिविकर्ष
  2. सुरक्षित ऋण

(i) प्राप्तियों की जमानत पर

(ii) इनवेन्ट्री की जमानत पर

  1. बिलों पर कटौती
  2. जमा-प्रमाण पत्र

(ब) गैर बैंक साधन (Non-Bank Sources)

  1. व्यापार साख
  2. खुला खाता
  3. प्रपत्र एवं हुण्डी
  4. कामर्शियल पेपर
  5. ऋण (अल्पकालीन)
  6. बकाया- दायित्व

(अ) बैंक साधन

(BANK SOURCE)

निगमों के लिए अल्पकालीन कोषों द्वारा केवल ऋण सुविधा ही नहीं होती है, अपितु इस साधन का उपयोग धीरे-धीरे बैंक-ग्राहक सम्बन्धों की एक श्रृंखला का निर्माण करता है जो ग्राहक के लिए बैंकों से प्राप्त होने वाली अनेक प्रकार की सेवाओं (Bank Services) को भी सुलभ बनाता हैं। इन सेवाओं में अनेक प्रकार की सेवाएँ होती हैं, जैसे एजेन्सी कार्य, परामर्श सेवाएँ, ग्राहकों के लिए सन्दर्भ-पत्र (Reference Letter), विनियोग सेवाएँ आदि पारस्परिक खुला एवं निष्कपट व्यवहार, विश्वसनीयता, बैंक ग्राहक सम्बन्धों को मधुर बनाने में सहायक होते हैं। तथा प्रबन्ध कुशलता, ख्याति या साख की पृष्ठभूमि में बैंक ऐसे ग्राहकों की अनेक प्रकार से सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। बैंक ऐसे ग्राहकों से आवश्यक तथ्यों एवं सूचनाओं के विवरण (Periodical Statements) की माँग करते हैं, जैसे- तुलना-पत्र, लाभ-हानि लेखा, काल-क्रम सूची, कोष प्रवाह विवरण, रोकड़ प्रवाह विवरण (Cash-Flow Statement) रोकड़ बजट आदि। बैंक इनका विश्लेषण करके यदि कहीं प्रतिकूल विचलनों को पाता है तो इसके सुधार के लिए ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करके इस दिशा में उचित परामर्श भी देता है। कठिनाई अथवा संकट के समय ऋण की किस्तों के भुगतान की अवधि में फेरबदल के लिए भी बैंक सहमत हो जाता है।

  1. असुरक्षित ऋण (Unsecured Loans)

(i) खड़ी साख (Line of Credit)- यह बैंक एवं ग्राहक के बीच में एक अनौपचारिक समझौते (Informal agreement) के रूप में होता है जो प्रायः एक वर्ष की अवधि के लिए किया जाता है। इसके अधीन बैंक ग्राहक के लिए एक अधिकतम ऋण सीमा (Maximum Loan Limit) निर्धारित कर देता है। ग्राहक को मौसमी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस सीमा तक एवं जैसी जरूरत होती है, ऋण लेने की सुविधा होती है। ग्राहक को उसके द्वारा लिए गये ऋण के एक भाग को अपने बैंक खाते में न्यूनतम वैलेन्स (Minimum Balance) के रूप में रखना होता है। यह बैलेन्स 10 से 20 प्रतिशत तक हो सकता है।

इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह एक सरल एवं सुविधाजनक व्यवस्था है, किन्तु इसके द्वारा कोई कानूनी बाध्यता (Legal Binding) उत्पन्न नहीं होती है, यद्यपि बैंकों द्वारा प्रायः सदैव ऐसे समझौते का पालन किया जाता है। फिर भी यदि द्रव्य बाजार में तंगी (Tight Money conditions) हो तो बैंक ऐसे समझौतों को निरस्त कर सकती है और ऐसी दशा में ग्राहक के पास बैंक को बाध्य करने के लिए कोई उपचार नहीं होता है।

(ii) आवर्ती साख अनुबन्ध ( Revolving Credit Contract)- यह एक औपचारिक अनुबन्ध (Formal contract) होता है जो न्यायिक बाध्यता (Legal Binding) उत्पन्न करता है। यह अनुबन्ध प्रायः एक वर्ष से अधिक (प्रायः दो या तीन वर्ष) के लिए किया जाता है, यद्यपि ऋण अल्पकाल के लिए ही दिये जाते हैं। इसके अन्तर्गत दोनों पक्षों के बीच एक अधिकतम सीमा (Maximum Limit) तय हो जाती है। इस सीमा के अन्दर ग्राहक आवश्यकतानुसार धनराशि बैंक से ऋण के रूप में ले सकता है। जब भी ग्राहक की माँग आती है तो बैंक इस सीमा तक उस ग्राहक को ऋण देने के लिए वचनबद्ध होता है। ऐसा वचन देने के लिए बैंक, ग्राहक से अनुबन्ध-शुल्क (Commitment Charge) वसूल करता है जो अप्रयुक्त राशि (Unused amount) पर चौथाई से आधे प्रतिशत तक हो सकता है। प्रयुक्त-राशि (Used amount) पर प्रचलित दर से ब्याज देना होता है। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह एक औपचारिक समझौता है और इस प्रकार दोनों पक्षों के लिए कानूनी बाध्यता उत्पन्न करता है ग्राहक नाममात्र का अनुबन्ध शुल्क देकर इस बात की पक्की व्यवस्था कर लेता है कि कोषों की आवश्यकता होने पर बैंक से साख उपलब्ध होती रहेगी।

(2) अधिविकर्ष (Overdraft) :

यह व्यवस्था खड़ी साख से बहुत कुछ मिलती है। अन्तर यह है कि अधिविकर्ष की सीमाएँ अपेक्षाकृत कम राशि की होती है और इसका सम्बन्ध चेकों की स्वीकृति से होता है। इसके अधीन बैंक इस बात की सहमति देता है कि अधिविकर्ष की तय की गयी सीमा के अन्दर बैंक द्वारा ग्राहक के चेकों का भुगतान उसके खाते में बैलेन्स शून्य (Balance Nil) होने पर भी किया जाता रहेगा। इससे ग्राहक उस सम्भावित विषम स्थिति (awkward position) से बच जाता है जिसका समाना उसे चेक अस्वीकृत (Dishonor) होने पर करना होता है। साथ ही कुछ समय के लिए साख की सुविधा भी प्राप्त हो जाती है और सम्बद्ध कोर्षों का उपयोग वह अन्यत्र कर सकता है।

(3) सुरक्षित ऋण (Secured Loans) :

जहाँ जोखिम अधिक होता है वहाँ बैंक ऋणों के लिए सुरक्षा या जमानत दिये जाने पर जोर देता है। जिन ग्राहकों का भुगतान सम्बन्धी पिछला रिकार्ड ठीक नहीं है, उन्हें भी बैंक भविष्य में साख सुरक्षित ऋणों के रूप में ही दिये जाने पर बल देते हैं। सुरक्षित ऋणों के लिए अनेक औपचारिकताएँ सम्पन्न करनी होती हैं, जो इस प्रकार की साख को अधिक महँगा बना देती हैं। जमानत प्रायः प्राप्तियों (Receivables) एवं इनवेण्ट्री (Inventory) को बन्धक रखकर दी जाती है।

(i) प्राप्तियों के आधार पर ( On the basis of Receivables) – ऐसी साख पर बैंक पर्याप्त मार्जिन रखते हैं, क्योंकि प्राप्तियों में संदिग्ध एवं डूबत (Doubtful & bad debts) ऋणों का पर्याप्त पुट हो सकता है। अतः जोखिम की मात्रा को देखते हुये बैंक 30 से 40 प्रतिशत तक मार्जिन ऐसी साख पर रखते हैं। बैंक ऐसा करते समय ग्राहक से प्रायः कालक्रम सूची (Ageing Schedule) की माँग करते हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि उधार विक्रय एवं बैंक साख में सम्बन्ध स्थापित हो जाता है तथा उधार बिक्री के लिए आवश्यक कोषों की व्यवस्था प्राप्तियों (Bills Receivables, Debtors) के आधार पर बैंक से हो जाती है।

(ii) इन्वेण्ट्री के आधार पर ( On the basis of Inventory)- इनवेण्ट्री की जमानत पर बैंक ऋणों का प्रचलन अधिक है। ऐसे ऋण फर्म की इनवेण्ट्री पर प्रभार (Charge) उत्पन्न करते हैं। पिछले रिकार्ड को देखते हुए फर्म की औसत इनवेण्ट्री का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है तथा उचित मार्जिन रखकर शेष राशि के स्टॉक की जमानत पर बैंक साख प्रदान कर देता हैं यह प्रभार खुला (Floating) तथा विशिष्ट (Specific) दोनों ही प्रकार का हो सकता है। प्रायः बैंक ऐसी साख देते समय इस बात पर बल दडेते है कि माल बैंक के गोदाम में बैंक की सील के अधीन रखा जाये तथा जैसे- जैसे भुगतान होता जाये ग्राहक को गोदाम से माल उठाने की सुविधा दी जाय।

(4) बिलों पर कटौती (Discounting of Bills & Hundis) –

इस प्रकार की साख का चलन भी प्रायः सभी जगह है। बैंक ऋण देने की तिथि से परिपक्वता की तिथि (Maturity date) तक के ब्याज की कटौती बिल की राशि में से कर लेता है। इस प्रकार बिल का वर्तमान मूल्य (Present Value) ग्राहक को साख के रूप में प्राप्त होता है परिपक्वता पर बैंक सम्बद्ध पक्ष से बिल की पूर्ण राशि प्राप्त कर लेता है।

(5) जमा-प्रमाणपत्र ( Certificate of Deposit)

अल्पकालीन साख-पत्रों के क्षेत्र का विस्तार करने तथा कोषों के अल्पकालीन विनियोगों में अधिक लोच लाने के उद्देश्य से भारत के रिजर्व बैंक के द्वारा ऐसे प्रमाणपत्रों (CD’s) को निर्गमित करने का अधिकार जून 1989 से अनुसूचित बैंकों (प्रामीण ऑचिलित बैंकों को छोड़कर) को प्रदान किया। इस प्रकार अल्पकालीन साख के एक नये प्रपत्र का चलन भारत में हुआ, यद्यपि विदेशों में इसका चलन पहले से ही था। प्रारम्भ में अनुसूचित बैंक को अपनी कुल औसत जमा राशियों के एक प्रतिशत तक ऐसे जमा प्रमाणपत्र (CD) जारी करने का अधिकार था। मई 1990 से इस प्रतिशत को बढ़ाकर दो प्रतिशत तथा दिसम्बर 1990 से पुनः इसे बढ़ाकर तीन प्रतिशत कर दिया गया। ऐसे प्रमाणपत्र 5 लाख रुपयों (पहले यह 10 लाख तथा 25 लाख के गुणितों में था) के गुणितों में होने चाहिए। किसी एक निवेशक को जारी किये जाने वाले CD की अधिकतम राशि 25 लाख रूपये (पहले यह 50 लाख रुपये थी।) होनी चाहिये।

ऐसे प्रमाण-पत्र (CD’s) व्यक्तियों, निगमों, कम्पनियों, न्यासों एवं संघों को जारी किये जा सकेगे। इनकी अवधि कम से कम 3 महीने और अधिक से अधिक 12 महीने हो सकती है। ये अंकित मूल्य पर निर्धारित दर से बट्टे (Discount) पर निर्गमित किये जाने चाहिए। बट्टे की दर जारी करने वाला बैंक स्वयं निर्धारित करेगा। निर्गमन के 45 दिन बाद इनका हस्तान्तरण पृष्ठांकन (Indorsement) और सुर्पुदगी (Delivery) के द्वारा जारी किये गये CD को वापस खरीद हैं। इन प्रमाणपत्रों (CD’s) के माध्यमिक बाजार (Secondary Market) के विकास के उद्देश्य से भारत का डिस्काउन्ट एण्ड फाइनेन्स हाउस इन्हें खरीदने के लिए कोटा जारी करता है।

(ब) गैर-बैंक साधन

(NON-BANK SOURCES)

अल्पकालीन साख के ये साधन बैंकों के अतिरिक्त अन्य पक्षों से प्राप्त होते हैं। ये साधन निम्नलिखित हैं-

  1. व्यापार साख (Trade Credit)- इस प्रकार की साख का उपयोग अधिकांशतः खुदरा व्यापारी, थोक व्यापारी एवं निर्माताओं के द्वारा किया जाता है। इस प्रकार के फर्म माल के लिए अथवा कच्चे माल के लिए अपने सप्लायर्स (Suppliers) से यह साख प्राप्त करते हैं। यह थोड़ी अवधि के लिए होती है। यह अवधि बाजार के चलन के अनुसार एक सप्ताह अथवा दस दिन या एक पखवाडे (fortnight) या इससे भी अधिक एक या दो माह की हो सकती है तथा इस अवधि में कोई व्याज इस साख पर नहीं लिया जाता है। इसके विपरीत, कुछ सप्लायर्स (Suppliers) पाँच या दस दिनों के अन्दर माल का भुगतान करने पर नकद छूट (Cash discount) देते हैं जो एक या दो प्रतिशत तक हो सकती है। इस अवधि के बाद भुगतान करने पर छूट का लाभ तो समाप्त हो जाता है, साथ ही विलम्ब की अवधि के लिए ब्याज भी देय होता है।

छोटे आकार के फर्म इस साख का अधिक उपयोग करते हैं, क्योंकि उनके पास तरल साधनों की कमी रहती है। कोषों की तंगी के समय वे खरीदे गये माल के भुगतानों में विलम्ब करके यह साख प्राप्त कर लेते हैं। मध्यम एवं बड़े आकार के निर्माताओं के लिए भी यह एक सुलभ साधन है जिसके द्वारा वे अपनी कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं में कमी कर सकते हैं। सप्लायर्स द्वारा स्वीकृत साख-अवधि (Credit Period) उस अवधि से प्रायः अधिक होती है जो फर्म के द्वारा अपने ग्राहकों को उधार विक्रय के लिए स्वीकृत की जाती है। इस प्रकार उधार विक्रय एवं सप्लायर्स-साख में एक धनात्मक पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।

(2) खुला खाता (Open Account)- इसके अन्तर्गत सप्लायर माल रवाना कर देता है तथा ग्राहक माल की सुपुर्दगी ले लेता है। बीजक एवं बिल्टी सीधे ग्राहक के पास भेज दिये जाते हैं। दोनों पक्ष अपनी लेखा-पुस्तकों में उचित प्रविष्टियाँ कर लेते हैं। ग्राहक माल बेचकर समय-समय पर भुगतान के रूप में चेक भेजता रहता है। इस साख पर कोई व्याज नहीं लिया जाता है। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के पारस्परिक सम्बन्धों तथा विश्वास पर आधारित होती है। सरलता एवं न्यूनतम प्रशासनिक लागतें भी इस साख के गुण हैं। जब ग्राहक पहली बार ऐसी सुविधा चाहता है तब सप्लायर्स ग्राहक से बैंक या अन्य प्रतिष्ठित पार्टी सन्दर्भ (Reference) चाहते हैं, जो प्रायः दे दिया जाता है।

(3) प्रपत्र एवं हुण्डी (Promissory Notes & Hundies) – सभी बाजारों में इनका चलन हैं ग्राहक माल उधार लेकर प्रोनोट लिख देता है अथवा हुण्डी या बिल पर अपनी सहमति (Acceptance) अंकित कर देता है। निश्चित अवधि पर अथवा परिपक्वता पर ग्राहक भुगतान कर देता है।

(4) कामर्शियल पेपर ( Commercial Paper)- यह एक प्रकार का अल्पकालीन साख-पत्र है जिसका चलन भारतीय मुद्रा बाजार में जनवरी 1990 से प्रारम्भ हुआ। यह एक प्रकार का प्रतिज्ञा पत्र (Promissory Note) है जिसे पृष्ठांकन एवं सुपुर्दगी के द्वारा हस्तांतरित किया जा सकता है। अतः यह एक ऐसा साखपत्र है जिसकी प्रकृति वाहक (Bearer) होती है। इसका निर्गमन केवल ऐसी उत्तम कम्पनियाँ ही कर सकती हैं, जो इस विषय में रिजर्व बैंक द्वारा जारी किये गये दिशा-निर्देशों (Guidelines) को पूरा करती हों।

इसकी अवधि कम से कम 3 महीने और अधिक से अधिक 6 महीने हो सकती है और इसे बट्टे (Discount) पर निर्गमित किया जाता है। कम्पनी क्षेत्र द्वारा अपनी कार्यशील पूंजी की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए यह एक अत्यन्त सुविधाजनक साखपत्र सिद्ध हो सकता है। साथ ही निवेशकों को अपने अल्पकालीन अतिरिक्त कोषों के उत्तम निवेश का अवसर प्रदान करता है। यह एक गैर-सुरक्षित (Unsecured) साखपत्र है तथा किसी विशिष्ट व्यापारिक सौदे में यह बँधा हुआ नहीं होता है। इसके लिए रिजर्व बैंक द्वारा निम्न दिशा-निर्देश जारी किये हुए हैं:

(i) कम्पनी की खरी स्वामि पूँजी (Tangible Net Worth) 5 करोड़ रुपये (अप्रैल 1990 से पूर्व यह 10 करोड़ रूपये थी) होनी चाहिए।

(ii) कम्पनी के लिए बैंकिग प्रणाली के कोष पर आधारित कार्यशील पूंजी की सीमा (Fund Based Working Capital Limit) कम से कम 15 करोड़ की निर्धारित होनी चाहिए।

(iii) कम्पनी के इक्विटी अंशों का सूचियन (Listing) किसी न किसी स्टॉक एक्सचेन्ज पर होना चाहिए।

(iv) रिजर्व बैंक द्वारा अनुमोदित किसी एजेन्सी से कम्पनी का उत्तम साख-प्रमाणन । फिलहाल [Credit Rating & Information Services of India Ltd. (CRISIL)] ऐसी अनुमोदित एजेन्सी है जिससे कम्पनी को कम से कम PI (अप्रैल 1990 से पहले यह PI+ था) साख-प्रमाणक (Credit Rating) प्राप्त होना चाहिए।

अल्पकालीन ऋण (Short term Loans)- इस प्रकार के ऋण बैंकों के अतिरिक्त अन्य पक्षों में लिये जाते हैं, जैसे- सहकारी समितियाँ, सरकार, देशी महाजन एवं साहूकार, विनियोग एवं फाइनेन्स कम्पनियाँ आदि। ऐसे ऋण सुरक्षित (Secured) तथा असुरक्षित (Unsecured) दोनों प्रकार के हो सकते हैं। कभी-कभी कम्पनी अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों से भी ऋण लेती है, किन्तु ऐसा अपवादस्वरूप ही होता है, क्योंकि यह उत्तम साख नीति नहीं है।

बकाया ऋण (Outstanding Liabilities)-  व्ययों एवं अन्य मदों के ऐसे भुगतान जो देय (Payable) हो चुके हैं, किन्तु जिनका भुगतान जानबूझकर रोक लिया गया है, बकाया- दायित्वों में आते हैं। उदाहरण के लिए – ब्याज, किराया, टैक्स, वेतन, मजदूरी, बिजलो, पानी के बिल एवं अन्य इसी प्रकार के देय भुगतानों में विलम्ब करके कुछ समय तक ऐसे कोषों का उपयोग व्यवसाय में ही किया जा सकता है, किन्तु ऐसा अपवादस्वरूप ही किया जाना चाहिए; अन्यथा निरन्तर ऐसा करने से कम्पनी की साख पर आँच आ सकती है तथा बाजार में उसकी ख्याति गिर जाती है।

वित्तीय प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!