वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

पूँजी बजटन में जोखिम विश्लेषण का महत्व | पूँजी बजटन को प्रभावित करने वाले घटक | पूँजीगत बजटन का क्षेत्र

पूँजी बजटन में जोखिम विश्लेषण का महत्व | पूँजी बजटन को प्रभावित करने वाले घटक | पूँजीगत बजटन का क्षेत्र | Importance of risk analysis in capital budgeting in Hindi | Factors affecting capital budgeting in Hindi | Area of ​​capital budgeting in Hindi

पूँजी बजटन में जोखिम विश्लेषण का महत्व

(Importance of Risk Analysis in Capital Budgeting)

पूँजी सम्पत्तियों में विनियोग एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं कठिन समस्या है और जोखिम विश्लेषण इसके समाधान के यन्त्र के रूप में कार्य करता है। अतः पूँजी बजटन में जोखिम विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण स्थान है, इससे निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-

(1) अधिक अनिश्चितता व जोखिम का समाधान- दीर्घकालीन विनियोग निर्णयों की पेचीदगियाँ अल्पकालीन निर्णयों से अधिक विस्तृत होती हैं। क्योंकि एक तो इन निर्णयों का प्रभाव चालू वर्ष से भी आगे तक रहता है और इसकी शुद्धता का तुरन्त सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। दूसरे उन परियोजनाओं का प्रभाव आगामी बहुत से वर्षों तक रहने के कारण इनमें अनिश्चितता व जोखिम भी अधिक होती हैं। उपर्युक्त कारणों से व्यवसाय में कुशल जोखिम विश्लेषण बहुत आवश्यक है जिससे इनका सही समाधान किया जा सके।

(2) विस्तार निर्णय में सहायक – जोखिम विश्लेषण विभिन्न प्रकार के विस्तार निर्णयों में भी सहायक है जैसे- नई मशीन या इमारत का क्रम, वर्तमान इमारतों व मशीनों का विस्तार, किसी अन्य व्यवसाय का विलीनीकरण आदि मामलों के निर्णय में यह अत्यन्त सहायक है क्योंकि इन मामलों पर निर्णय विनियोग की लागत और इससे उत्पादित वस्तुओं से प्राप्त सम्भावित लाभ के आधार पर किया जाता है।

(3) प्रतिस्थापन निर्णय में सहायक- प्रयोग में घिस जाने या बाजार में अच्छी किस्म की मशीन आ जाने से वर्तमान मशीन के स्थान पर नई मशीन की स्थापना की आवश्यकता हो सकती है। नई मशीन के प्रयोग से संचालन लागतों में कमी तथा उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होती है, ऐसे मामलों पर निर्णय विनियोग से संचालन लागतों में कमी के कारण बचत तथा उत्पादित अतिरिक्त मात्रा से लाभ के आधार पर किया जाता है। जोखिम विश्लेषण इसके लिये महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है।

(4) लाभ प्रदत्ता व वित्तीय स्थिति पर प्रभाव – पूँजीगत विनियोगों से संस्था की लाभदायकता तथा वित्तीय स्थिति तुरन्त प्रभावित होती है तथा प्रबन्ध अपनी संस्था के वित्तीय लोच के लिए भावी घटनाओं पर आश्रित हो जाती है। अतः विभिन्न विनियोग निर्णयों में जोखिम विश्लेषण का महत्वपूर्ण योगदान है।

(5) दीर्घकालीन प्रभाव- पूँजीगत परियोजनाएँ व्यवसाय के आगामी कई वर्षों की अर्जनों को प्रभावित करती हैं जैसे श्रम के स्थान पर मशीन के प्रति स्थापन से व्यवसाय की स्थिर लागतें बढ़ जाती हैं। इस तरह के निर्णयों में जोखिम विश्लेषण से काफी लाभ होता है।

(6) क्रय या पट्टा निर्णय में सहायक- यदि किसी फर्म को यह निर्णय लेना है कि किसी सम्पत्ति को बाजार से क्रय किया जाये या किसी से पट्टे पर ले तो ऐसे निर्णय उक्त सम्पत्ति की लागत और पट्टे पर देय राशि के बीच तुलना के आधार पर किये जाते हैं जिसमें जोखिम विश्लेषण अत्यन्त सहायक है।

(7) संयन्त्र का चुनाव- इसके अन्तर्गत किसी विशेष कार्य के लिए उपलब्ध कई वैकल्पिक मशीनों में से सर्वश्रेष्ठ मशीत का चुनाव सम्मिलित होता है। ऐसे निर्णय विभिन्न मशीनो की लागत और उनकी लाभप्रदता के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर किये जाते हैं जिसमें जोखिम विश्लेषण बहुत सहायक है।

पूँजी बजटन को प्रभावित करने वाले घटक

(Factors Affecting Capital Budgeting)

पूँजी व्यय, निर्णय अनेक घटकों से प्रभावित होते हैं। अतः पूँजी बजट बनाते समय वे सभी घटक जिनका पूँजी निर्णय पर प्रभाव पड़ता है, ध्यान में रखना आवश्यक है। ऐसे महत्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैं-

(1) आर्थिक परिवर्तन (Economic Changes) – आर्थिक परिस्थितियाँ कभी स्थिर नहीं होती। इसलिये भावी आर्थिकं अभिवृद्धियों जैसे नये राष्ट्रीय समुदायों में वृद्धि विभिन्न देशों के जीवन स्तर में वृद्धि आदि को दृष्टिगत रखना महत्वपूर्ण है। नये औद्योगिक राष्ट्रों का उद्भव नये प्रतियोगियों तथा बाजारों की जानकारी देता है।

(2) तकनीकी परिवर्तन (Technological Change) – आजकल तकनीकी क्षेत्र में बड़ी द्रुत गति से परिवर्तन हो रहे हैं। शीघ्र संवहन, परिष्कृत संगणक विधियाँ, सामग्री की नई- नई किस्में तथा शोध एवं विकास के फलस्वरूप अधिकाधिक उत्पादों का विकास होता जा रहा है। अतः कोई भी दीर्घकालीन परियोजना बिना इन तथ्यों को ध्यान में रखे साकार नहीं हो सकती।

(3) उद्योग का विकास (Growth of Industry)- उपर्युक्त, दो घटकों के साथ ही स्वयं के उद्योग के विकास का भी पूँजी बजट बनाते समय ध्यान रखना चाहिये। यदि उद्योग द्रुत तकनीकी विकास के क्षेत्र में तथा तेजी से आर्थिक वातावरण में स्थित है तो उद्योग का तेजी से विकास होगा। इसके विपरीत, यदि उद्योग तकनीकी दृष्टि से पिछड़ा हुआ है या अवसाद की अर्थव्यवस्था में है तो निश्चित रूप से डूबने की स्थिति में होगा।

(4) प्रमुख बजट कारक (Principal Budget Factor) – पूंजी बजटन के समय संस्था के प्रमुख कारक, जैसे सामग्री, श्रम, माँग आदि पर भी विचार करना चाहिये। दीर्घकाल में यह विक्री ही होता है, किन्तु कभी-कभी उत्पादन क्षमता या सामग्री भी हो सकता है।

(5) भावी अतिरिक्त संयन्त्र (Future Additional Equipment’s) – पूँजी बजटन में उत्पादन नियोजन के साथ-साथ भावी माँग की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिये अतिरिक्त संयन्त्रों पर विचार करना होगा। संयन्त्रों में भूमि और भवन को भी सम्मिलित किया जायेगा।

(6) संयन्त्रों का प्रतिस्थापन लागतें (Replacement of Equipment’s) – दीर्घकालीन बजट की दशा में संयन्त्रों का कई बार प्रतिस्थापन करना पड़ता है। इसलिये पूँजी बजट बनाते समय संयन्त्रों को प्रतिस्थापन कब-कब किया जायेगा, इसका सही निर्धारण कर लेना चाहिए।

(7) भावी प्रशासनिक लागतें (Future Administrative Costs)-  पूँजी बजटन में इस बात का भय रहता है कि अल्पकाल में सामान्यतः नियमित रूप से होने वाली लागतें स्थिर समझी जाती हैं। प्रशासनिक लागतें इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। दीर्घकाल में इन लागतों में समझी जाती हैं। प्रशासनिक लागतें इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। दीर्घकाल में इन लागतों में परिवर्तन हो सकता है। जैसे बीस वर्ष पूर्व स्थापित मुख्यालय भावी वृद्धि की दशा में अचानक अपर्याप्त हो सकता है। इसलिये पूँजी बजटन में ऐसी सम्भावनाओं पर विचार कर लेना चाहिये।

(8) भावी नीति सम्बन्धी लागतें (Future Policy Costs)- पूँजी बजटन में भविष्य में होने वाली नीति सम्बन्धी लागतों पर भी विचार कर लेना चाहिये। नीति सम्बन्धी लागतें संस्था की शोध एवं विकास नीति, विज्ञापन नीति आदि के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं।

(9) साख एवं स्कन्ध नीतियाँ (Credit and Stock Policies)- संस्था की उधार अवधि एवं स्कन्ध स्तर सम्बन्धी नीतियाँ कार्यशील पूँजी की आवश्यकताओं को प्रभावित करती हैं। इसलिए पूँजी बजटन के समय इनका ध्यान रखना भी अनिवार्य है।

पूँजीगत बजटन का क्षेत्र

(Scope of Capital Budgeting)

पूँजी बजटन के क्षेत्र के अन्तर्गत उन सभी क्रियाओं एवं निर्णयों को शामिल किया जाता है जिनका सम्बन्ध दीर्घकालीन विनियोग से होता है। ये मामले निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

(1) संयन्त्र का चुनाव (Choice of Equipment) – इसके अन्तर्गत किसी विशेष कार्य के लिए उपलब्ध कई वैकल्पिक मशीनों में से सर्वश्रेष्ठ मशीन का चुनाव सम्मिलित होता है। ऐसे मामलों पर निर्णय विनियोग की लागत और उसकी लाभप्रदता के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर किया जाता है।

(2) विस्तार निर्णय (Expansion Decision) – जैसे नई मशीन या इमारत का क्रय, वर्तमान इमारतों व मशीनों का विस्तार, किसी अन्य व्यवसाय का विलीनीकरण आदि मामलों पर निर्णय। इन मामलों पर निर्णय विनियोग की लागत और उससे उत्पादित वस्तुओं से सम्भावित लाभ के आधार पर किया जाता है।

(3) बदलने का निर्णय (Replacement Decisions)- प्रयोग से घिस जाने या बाजार में अच्छी किस्म की मशीनें आ जाने से संस्था में लगी हुई मशीन के स्थान पर नई मशीन की स्थापना की आवश्यकता अनुभव की जा सकती है। इस प्रकार के परिवर्तनों पर निर्णय, विनियोग से संचालन लागतों में कमी के कारण बचत तथा उत्पादित अतिरिक्त मात्रा से लाभ के आधार पर किया जाता है।

(4) सम्पत्ति की खरीद या पट्टा निर्णय (Buy or Lease Decisions) – इसके अन्तर्गत संस्था के लिये आवश्यक किसी सम्पत्ति को बाजार से क्रय करने या पट्टे (किराये) पर लेने के सम्बन्ध में निर्णय क्रय के लिये आवश्यक धनराशि की लागत और पट्टे पर देय राशि के बीच तुलना के आधार पर किया जाता है।

(5) उत्पाद या प्रक्रिया में सुधार (Product or Process Improvement)- इसमें उत्पाद की किस्म में सुधार या परिवर्द्धन (Diversification) लाकर उत्पादन की विधियों में परिवर्तन करके अतिरिक्त आय अर्जित करने या लागत कम करने से सम्बन्धित मामलों पर निर्णय लिया जाता है। ऐसे मामलों पर निर्णय परिवर्तन की लागत और उससे प्राप्त बचत या अतिरिक्त आय में तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर किया जाता है।

(6) अन्य परियोजनाओं के सम्बन्ध में निर्णय (Decisions for Other Projects)- पूँजी बजटन का क्षेत्र मशीनों एवं मानवों तक ही सीमित नहीं है। उसके अन्तर्गत अन्य अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं के सम्बन्ध में भी निर्णय लिये जाते हैं। जैसे- (i) स्वास्थ्य एवं सुरक्षा परियोजनाएँ (ii) कर्मचारियों के कल्याण की परियोजनाएँ (iii) कर्मचारियों की शिक्षा एवं प्रशिक्षण से सम्बन्धित परियोजनाएं। (iv) सेवा-विभाग से सम्बन्धित परियोजनायें, (v) शोध एवं विकास कार्यक्रम आदि।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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