प्राकृतिक संसाधन | Natural resource in Hindi
प्राकृतिक संसाधन | Natural resource in Hindi
प्राकृतिक संसाधन (Natural resource)
आदिकाल से ही प्रकृति ने मानव को जीविकोपार्जन एवं विकास के साधन प्रदत्त किये हैं, जैसे-जैसे सभ्यता एवं ज्ञान विज्ञान का विकास हुआ इन प्रकृति प्रदत्त साधनों को मानवोपयोगी बनाने का प्रयास हुआ। प्रकृति द्वारा प्रदत्त यह साधन प्राकृतिक साधन कहलाते हैं। कोई साधन उस समय संसाधन कहलाता है जब उसका उपयोग संभव हो जाता है । अर्थात उसके उपयोग के लिए उपयुक्त तकनीकी का विकास हो जाता है । अर्थात ऐसी वस्तु पदार्थ या तत्व जिसका उपयोग सम्भव हो तथा उसके रूपांतरण से उसकी उपादेयता एवं मूल्य में अभिवृद्धि हो जाए संसाधन कहलाती है। संसाधन कहलाने वाली वस्तुएँ पदार्थ व तत्व जो प्रकृति प्रदत्त होती हैं प्राकृतिक संसाधन कहलाती हैं : जैसे भूमि, जल, पशु, वन, खनिज आदि एवं स्वयं मनुष्य भी। अत: यह स्पष्ट है कि किसी भी देश का विकास उसके संसाधनों एवं संसाधनों के उपयोग के लिए उपयुक्त प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है । यही कारण है कि संसार के अधिकांश विकासशील देश पिछडे हैं। क्योंकि उनके पास संसाधनों के रूपांतरण के लिए उपयुक्त तकनीकी का अभाव है। तकनीकों के अभाव में वह अपना कच्चा माल ( प्राकृतिक संसाधन) सस्ते दरों पर विकसित देशों (तकनीकी सम्पन्न )को निर्यात करते है एवं महंगी दरों पर तैयार माल आयात करते हैं । स्पष्ट है कि संसाधनों का उपयोग जितनी कुशलता से किया जाएगा देश का आर्थिक विकास उतनी ही तीव्र गति से होगा ।
संसाधनों के प्रकार –
संसाधनों का वर्गीकरण कई आधारो पर किया जा सकता है : जैसे (i) उपयोग की निरंतरता के आधार पर (ii) उद्भव के आधार पर (ii) उपयोग के उद्देश्यों के आधार पर।
उपयोग की निरंतरता – इस आधार पर संसाधनों को तीन वर्गों में बाँटा जाता है (1) नवीकरण योग्य या असमाप्य – ऐसे संसाधन जिनका दोहन के साथ-साथ नवीकरण (उत्पादन) संभव हो । इससे वह निरंतर उपयोग के लिए उपलब्ध रहते हैं जैसे वन संसाधन, सौर ऊर्जा आदि । (2) नवीकरण अयोग्य या समाप्य – ऐसे संसाधन जिनका नवीकरण बहुत कठिन हो या जिनके निर्माण में काफी समय ( हजारों वर्र्ष ) लगता है फलत: दोहन के कारण उनका भण्डार समाप्त होने लगता है जैसे लोहा, कोयला खनिज तेल आदि । (3) चक्रीय संसाधन – ऐसे संसाधन जिनका उपयोग निरंतर होता रहता एवं बार-बार उसे शुद्ध या रूपान्तरित करके पुनः उपयोग में लाया जाता रहता है जैसे जल।
उद्भव के आधार पर – इस आधार पर संसाधनों को, दो वर्गों में बाँटा जाता है (1) जैव या कार्बनिक संसाधन यह पृथ्वी के जैव मण्डल से प्राप्त होते हैं जैसे वन, वनोत्पाद, फसले, पशु-पक्षी, मत्स्य एवं समुद्री जीव, कोयला, खनिज तैल आदि ।
(2) अजैव या अकार्बनिक संसाधन – ऐसे सभी संसाधन जिनका निर्माण अजैविक तत्वों या अकार्बनिकों से होता है जैसे भूमि, जल, लोहा, ताँबा, सीसा, सोना आदि खनिज ।
उपयोग के उद्देश्य के आधार – प्रत्येक संसाधन या तो कच्चे माल के रूप में उपयोगी होता है या ऊर्जा के रूप में ।
(1) कच्चा माल – यह तीन प्रकार के होते हैं ।
(क) खनिज- जैसे लोहा, ताँबा, बाक्साइट, बालू, नमक, इमारती पत्थर आदि । (ख) वनस्पति – यह प्राकृतिक, कृषित व जीवजन्तु के उपवर्गों में बाँटे जाते हैं। प्राकृतिक में लकड़ी, जंगली रेशे, रबर, छाल, कार्क, औषध वनस्पति, समुद्र शैवाल आदि एवं कृषित में रेशेदार उत्पादन, रबर, तिलहन, तम्बाकू, गन्ना, फूल आदि शामिल हैं । जीव जंतुओं को जंगली व समूद्री एवं पालतू पशुओं में बाँटा जा सकता है । जंगली व समुद्री जीव में खाल, समूर, सींग, हाथी दाँत, तेल, चर्बी, खाद, स्पंज आदि एवं पालतू पशुओं में ऊन, बालू, खाल, समूर, रेशम आदि शामिल हैं। (ग) खाद्य पदार्थ – इसे खनिज, वनस्पति एवं पशु वर्गों में रखा जाता है । खनिज में नमक व पशु में मांस, दुग्धपदार्थ, अण्डे, शहद, मछली एवं समुद्री उत्पाद शामिल हैं। वनस्पति के प्राकृतिक एवं कृषित उपवर्ग में रखते हैं । प्राकृतिक में जंगली फल, कंदमूल, पत्तियाँ, व खुम्बी एवं कृषित में अनाज, गन्ना, पेय पदार्थ, सब्जियाँ, फल, तिलहन व मसाले आदि शामिल हैं।
(2) ऊर्जा संसाधन – ऊर्जा संसाधनों को समाप्य एव असमाप्य वर्गों में रखा जाता है । लकड़ी, कोयला, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस व आणविक खनिज समाप्य एवं वायु, प्रवाहित जल, ज्वार, भूतापीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा असमाप्य ऊर्जा संसाधन हैं।
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