नयी औद्योगिक नीति 1991 | भारत सरकार की नवीन औद्योगिक नीति 1991 | 1991 की औद्योगिक नीति के प्रमुख तथ्य | भारत की नवीन औद्योगिक नीति का मूल्यांकन
नयी औद्योगिक नीति 1991 | भारत सरकार की नवीन औद्योगिक नीति 1991 | 1991 की औद्योगिक नीति के प्रमुख तथ्य | भारत की नवीन औद्योगिक नीति का मूल्यांकन | New Industrial Policy 1991 in Hindi | New Industrial Policy of Government of India 1991 in Hindi | Key facts of the industrial policy of 1991 in Hindi | Evaluation of India’s New Industrial Policy in Hindi
नयी औद्योगिक नीति 1991 | भारत सरकार की नवीन औद्योगिक नीति, 1991
नीति का आधार-निजी क्षेत्र को अधिक प्रोत्साहन
संसार के विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था में पिछले कुछ में हुए परिवर्तनों का प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा हैं। विश्व में जो देश साम्यवाद के समर्थक थे उनका प्रभाव कम हुआ, दूसरी ओर अमेरिका जैसी पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं का प्रभाव बढ़ा। इन्हीं सब बातों ने सरकार को नवीन औद्योगिक नीति घोषित करने को विवश किया।
जुलाई, 1991 में सरकार ने जो नयी औद्योगिक नीति घोषित की उसमें लाइसेंसिंग सम्बन्धी अनेक प्रतिबन्ध हटा लिए गये और निजी क्षेत्र को अनेक प्रोत्साहन दिये गये। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के सम्बन्ध में भी नयी नीति की घोषणा की। वास्तव में इस नीति से यह पता लगा कि सरकार समाजवाद के सम्बन्ध में नये ढंग से सोचना चाहती है।
1991 की औद्योगिक नीति के प्रमुख तथ्य
- नीति के उद्देश्य- सरकार ने इस नीति की घोषणा करते समय इसके निम्न उद्देश्य बताये-
(i) उद्योगों पर से अनावश्यक नियंत्रण हटाना– सरकार ने इस नीति में यह बताया कि सरकार औद्योगिक विकास की गति में तीव्रता लाने के लिए उद्योगों पर से, जो नियन्त्रण आवश्यक नहीं हैं उन्हें हटा लेगी।
(ii) नवप्रवर्तन एवं तकनीकि विकास पर अधिक ध्यान- इस नीति का एक उद्देश्य तकनीकि विकास एवं नवप्रवर्तन से भी आवश्यक नियन्त्रण हटाना था।
(iii) पूँजी बाजार का विकास- पूँजी बाजार का विकास करना भी इस नीति का एक प्रमुख उद्देश्य था।
(iv) लघु उद्योगों के विकास पर ध्यान- नवीन औद्योगिक नीति में यह बताया गया कि सरकार बड़े उद्योगों के साथ-साथ लघु उद्योगों के विकास पर भी समान ध्यान देगी।
(v) निर्यात बढ़ाने पर अधिक ध्यान- विदेशी मुद्रा के संकट को हल करने के लिए सरकार विदेशी विनिमय तथा तकनीक को अपनायेगी, ताकि निर्यात बढ़ सके।
(vi) औद्योगिक क्षेत्र में एकाधिकार को समाप्त करना- इस नीति का उद्देश्य औद्योगिक क्षेत्र में एकाधिकार को समाप्त करना भी था।
(vii) सार्वजनिक क्षेत्र को घाटे से उबारना- इस नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को घाटे से उबारने एवं इनकी कुछ इक्विटी वर्गीकरण की अनुसूची थी उसमें भी परिवर्तन किया।
- उद्योगों का वर्गीकरण- उद्योगों को अब निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया गया हैं-
(अ) सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग-प्रथम अनूसूची- प्रथम अनुसूची के अन्तर्गत अब निम्न सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग आयेंगे-
(I) आर्म्स एवं सैन्य उपकरण सुरक्षा, एयर क्राफट एवं जहाज, (II) आणविक ऊर्जा, (III) कोयला एवं लिग्नाइट, (IV) खनिज तेल, (V) खनन-लौह अयस्क, मैग्नीज, क्रोम, जिप्सम, सल्फर, स्वर्ण एवं हीरा, (VI) कॉपर, लैंड, जिंक, टिन (VII) आणविक ऊर्जा के खनिज, (VIII) रेल यातायात।
(ब) अनिवार्य लाइसेंस क्षेत्र-द्वितीय अनुसूची- इस अनुसूची में जो उद्योग रखे गये हैं, उनके लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य हैं। इसमें मुख्य रूप से 18 उद्योगों को रखा गया हैं, इनमें से प्रमुख हैं, पेट्रोलियम, एल्कोहल, शक्कर, सिगरेट, प्लाइवुड, मोटरकार, कागज व न्यूजप्रिन्ट, ड्रग्स आदि।
(स) विदेशी विनियोग की छूट से सम्बन्धित उद्योग-तृतीय अनुसूची- इस सूची में जिन 34 उद्योगों को रखा गया हैं उनमें 51% विदेशी पूँजी लगायी जा सकेगी तथा विदेशी तकनीकि अनुबन्धों के लिए अपने आप अनुमति प्राप्त हो जायगी।
- एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम में व्यापक संशोधन- 1991 की औद्योगिक नीति के सन्दर्भ में इस अधिनियम में व्यापक संशोधन किये गये। उपभोक्तओं के हितों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की बात कही गयी हैं। अधिनियम के क्षेत्र में सरकारी उद्योगों को भी लिया गया हैं, ताकि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा हो। अधिनियम की 20 से लेकर 27 तक धाराएँ समाप्त कर दी गयी हैं। संशोधनों के अन्तर्गत विद्यमान उद्योगों के विस्तार, एकीकरण एवं संविलियन पर लगाये गये प्रतिबन्धों को हटा लिया गया हैं। सभी संशोधनोंको दिसम्बर, 1991 में संसद की मान्यता भी मिल गयी हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार को तोड़ना- इस नीति के अन्तर्गत सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के सम्बन्ध में अपने नये विचार प्रकट किये। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की बैंको के सम्बन्ध में अपनी-नीति स्पष्ट की जिससे बैंक कर्मचारियों को यह लगने लगा कि अब बैंक फिर से निजी क्षेत्र में चले जायेंगे। सरकार ने यह भी कहा कि कुछ अपवादों को छोड़कर सार्वजनिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र भी प्रवेश कर सकेगा। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के प्रबन्ध को सुधारने एवं उसे स्वतन्त्र करने की बात कही। 1991 की नीति में यह कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की इक्विटी बाजार में जारी की जायगी।
- विदेशी पूँजी के सम्बन्ध में 40% की सीमा को 51% करना- नवीन औद्योगिक नीति में विदेशी पूँजी एवं सहयोग को आमन्त्रित करने पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया हैं। अब उद्योगों में 40% के स्थान पर 51% तक विदेशी पूँजी लगायी जा सकेगी। विदेशी तकनीक को किराये पर लेने के लिए अब पहले से अनुमति लेने के आवश्यकता नहीं होगी।
भारत की नवीन औद्योगिक नीति का मूल्यांकन
भारत की नवीन औद्योगिक नीति काफी सफल नहीं हैं। इस सम्बन्ध में अग्रांकित तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
- औद्योगिक विकास की गति में तीव्रता- नवीन औद्योगिक नीति के लागू होने के बाद से औद्योगिक विकास की गति में काफी तीव्रता आ गयी हैं। इस कारण औद्योगिक उत्पादन में काफी वृद्धि हो गयी हैं और देश अनेक वस्तुओं का निर्यात करने लगा हैं।
- लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास- नवीन औद्योगिक नीति लागू होने के कारण लघु एवं कुटीर उद्योगों का काफी विकास हुआ हैं। 1996-97 में इन उद्योगों ने रु 4,12,636 करोड़ के माल का निर्माण किया। नौवीं योजना के प्रथम वर्ष 2010 में लघु उद्योग क्षेत्र में कुल उत्पादन रु 5,89,717 करोड़, निर्यात रु 49,481 करोड़ तथा रोजगार 171.58 लाख व्यक्ति रहा।
- सार्वजनिक क्षेत्र का विकास- पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों का भी काफी विस्तार हुआ है। 1960-61 में इनमें केवल रु 953 करोड़ रुपये की पूँजी लगी थी जो 2011-12 में बढ़कर रु 2,56,137 करोड़ हो गयी।
- पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगिक विकास में तीव्रता- पिछले कुछ वर्षों से पिछड़े राज्यों में अनेक छोटे एवं बड़े उद्योगों की स्थापना की गयी हैं जिससे इन राज्यों के औद्योगिक विकास में तीव्रता आ गयी हैं।
- विदेशी उपक्रमों की स्थापना- विदेशी उपक्रमों की संख्या भी काफी बढ़ गयी हैं। इस समय देश में इनकी संख्या 6 हजार के आस -पास हैं।
- सार्वजनिक क्षेत्र की निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्द्धा- सार्वजनिक क्षेत्र की निजी क्षेत्र से प्रतिस्पर्द्धा होने के कारण इसका प्रत्यक्ष लाभ जनता को मिलेगा।
- निजी क्षेत्र की परियोजनाएँ निर्धारित समय में पूरी होना- अब निजी क्षेत्र की परियोजनाएँ निर्धारित समय में इसलिए पूरी होंगी, क्योंकि लाइसेंसिंग एवं पंजीयन सम्बन्धी अनेक सरकारी औपचारिकताओं से मुक्त मिल गयी हैं।
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