इतिहास / History

फ्रांस की राज्यक्रांति के राजनीतिक कारण | Political Causes of the Revolution in Hindi

फ्रांस की राज्यक्रांति के राजनीतिक कारण | Political Causes of the Revolution in Hindi

फ्रांस की राज्यक्रांति के राजनीतिक कारण

(Political Causes of the Revolution)

निरंकुश राजतंत्र-

फ्रांसीसी राजनीतिक जीवन का मुख्य पहलू निरंकुशता था। इस निरंकुश राजतंत्र में किसी प्रतिनिधिसभा का अभाव था। बूढे शासकों के विषय में कहा जाता है कि न तो वे पुरानी बातें भूलते थे और न नई बातें सोखते थे। लुई चौदहवां काफी दंभी और लड़ाकू प्रवृत्ति का था। वह कहा करता था कि वही राज्य है, उसने विशाल स्थानी सेना का गठन किया, सापतों को पहोगापूर्वक दबाया, उन्हें प्रशासनिक अधिकारों से वंचित किया तपा प्रशासनता को पूर्णतया कहाण किया। परिणामतः राजतंत्र प्रशासन का मुख्य स्रोत हो गया जो कानून मना सकता पा, किसी भी प्रकार का का लगा सकता था। युद्ध की घोषणा कर सकता था और महत्वपूर्ण अभियोगों पा स्वयं निर्णय कर सकता था। लुई चौदहवां मही शान शौकत से राज्य कार्य करता था। वह मांग की प्राकृतिक सीमा के निस्तार की बात सोचता था और उसके लिए प्रयासरत पा। फिर भी अपने अंतिम दिनों में लुई चौदहवें ने अपनी गलतियों को समझा और अपने उत्तराधिकारी को राय दी कि वह पड़ोसियों के साप शांतिपूर्वक रहे और पूजा की लालसा मन से निकाल दे। वह अपनी प्रजा की शिकायतों को जल्दी से जल्दी सुलझाए जिसे दुर्भाग्यवश वह स्वयं नहीं कर सका। लेकिन, संयोगवश, लुई पंद्रहवां अयोग्य था और वह अपने दादा के दिए हुए उपदेश को शीघ्र भूल गया और यूरोपीय युद्ध में शामिल हुआ जिससे फ्रांस की आर्थिक स्थिति और बिगडी। बिना तैयारी के वह अग्रेजों से लड़ा। आस्ट्रिया के उत्तराधिकार और सप्तवर्षीय युद्धों में फ्रांस पराजित हुआ और उसकी शक्ति क्षीण हो गई। वर्साय का जीवन विलासिता और पड्यन्नों का केंद्र होता गया। राजा पर दरबारियों का प्रभाव बढ़ता गया और शासनतंत्र का खोखलापन जाहिर होने लगा। मरने के समय लुई पंद्रहवां ने कहा था कि उसके बाद प्रलय होगा क्योंकि वह अच्छी तरह समझ गया था कि उसने फ्रांस की परेशानियों को बढ़ाया है।

अयोग्य राजा-

लुई पदहवें के पश्चात् गद्दी पर बैठनेवाला लुई सोलहवां भी एक अयोग्य शासक था। उसमें इच्छाशक्ति का सवर्था अभाव था। गद्दी पर बैठने के बाद उसने कहा था कि ब्रह्मांड उस पर गिर रहा है और उसके पूर्वजों ने उसे कुछ नहीं सिखाया है। लुई सोलहवें को विलासी कहना अनुचित् होगा, लेकिन वह काहिल और मूर्ख अवश्य था। वह अपने महल की खिड़की से शिकार खेलने और जलाशयों की मरम्मत करने जैसे निरर्थक कार्यों में मनोरंजन ढूँढ़ता था। राज्य की समस्याओं में उसकी कोई रूचि नहीं थी और न ही इसके लिए वह प्रयास करता था। उसकी अकर्मण्यता का अंदाज इससे लगाया जाता है कि जब उसके मंत्री मैलेशर्स (Malesherbes) अपना त्यागपत्र देने आया तो राजा ने उसके भाग्य को यह कहकर सराहा कि वह भाग्यशाली है कि वह पद त्याग सकता है, लेकिन राजा नहीं। राजा गदी एवं शासन को सदैव भार समझता रहा और उससे मुक्ति पाने की तरकीब सोचता रहा। एक के बाद एक उसने कई मंत्रियों को नियुक्त किया, परन्तु दृढ़ विचारों का न होने के कारण उसने सामंतों और रानी को शिकायतों पर उन्हें बर्खास्त किया।

मेरी एन्त्वाएनेत (Marie Antoinette)- 

मेरी एन्त्वाएनेत लुई सोलहवें की पत्नी थी। वह आस्ट्रिया की महारानी मेरिया थेरेसा की पुत्री और सम्राट जोसेफ द्वितीय की सगी बहन थी। यदि रानी श्रृंगार और दिखावा में व्यस्त रहती तो संभवतुः लुई सोलहवें की परेशानी इतनी नहीं बढ़ती। परंतु, वह राजनीति में हस्तक्षेप करती थी और अपने चापलूसों का कार्य राजा से करवाती थी। आस्ट्रिया की राजुकुमारी होने के नाते वह निरंकुश राजतंत्र में विश्वास करती थी। इसके अलावा आस्ट्रिया और फ्रांस में पुरानी शत्रुता थी जिसके कारण फ्रांसीसी उसे ‘विदेशी’ और ‘घृणित’ ऑस्ट्रियन कहते थे। वह सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस की पराजय का जीवित प्रतीक थी। वह प्रतिक्रियावादी तत्वों से घिरी हुई थी जो किसी भी सुधार के खिलाफ थे। चूंकि वह राजपरिवार में जन्मी थी, अत: आम आदमी की परेशानियों को वह नहीं समझती थी। एक बार जब लोगों का जुलूस रोटी की मांग कर रहा था तो उसने सलाह दी कि यदि रोटी उपलब्ध नहीं है तो लोग केक क्यों नहीं खाते ? उसे इतना भी पता नहीं था कि रोटी से केक अधिक महंगा है और यह आम आदमी के लिए और अधिक कठिन है। उसकी माँ और भाई बराबर यह चेतावनी देते थे कि वह राजनीति में दखल न दे, लेकिन उसने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। वह देश की माली हालत से परिचित नहीं थी, फिर भी राजकाज में हस्तक्षेप करती थी। यह राजा रानी तथा देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण था। दि क्रांति के होने में रानी एक कारण बनी तो क्रांति हो जाने के बाद राजा के फाँसी के तख्ते तक पहुंचाने में उसके षड्यन्त्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।

राजकीय अर्थ व्यवस्था-

बूर्बों शासकों के निरंकुश राजतंत्र में राजा की व्यक्तिगत संपति और राजकोष के सार्वजनिक पाने में कोई अंतर नहीं था। राजा अपने इच्छानुसार राजकोष से धन खर्च कर सकता था। राजपरिवार का सारा खर्च बिना किसी लेखा-जोखा के राजकोष से होता था और इस कार्य में किसी तरह का कहीं से प्रतिबंध नहीं था। राजा और उसके दरबारियों को राज्य की सही आर्थिक स्थिति की जानकारी नहीं थी। राज्य का खर्च बढ़ रहा था, जबकि विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के कर नहीं देने के कारण राज्य का आय का स्रोत घट रहा था। तूजो, नेकर और मिराबो जैसे लोगों ने जब उचित सलाह देकर राज्य को आर्थिक संकर से निकालना चाहा तो राजा ने सुविधाप्राप्त सामंतों, पादरियों और रानी की सलाह पर उनकी बातों को अनदेखी कर दिया।

अकर्मण्य शासनतंत्र-

निरंकुश राजता के लिए शासनतंत्र का चुस्त रहना आवश्यक होता है। नई चौदावा अच्छी तरह शासन इसलिए चला सका कि वह स्वयं योग्य था और वह योग्य मंत्रियों का चुनाव कर सकता था। लेकिन, संयोग से लुई सोलहवें को कोल्बैर और रिशलू जैसे मंत्री उपलब्ध नहीं थे और जब कुछ मंत्री उपलव्य हुए भी तो उनकी योग्यता की अवहेलना कर उसने उन्हें बर्खास्त कर दिया। राजागण सामंतों का विरोध करने में मध्यमवर्ग से सहयोग लेते आए थे, लेकिन इस वर्ग को इस तरह की मान्यता नहीं मिली थी कि वह राजा का पूर्ण समर्थक और उसके तंत्र का वाहक बन जाए। लुई सोलहवें के काल में सामंत विलासी, अयोग्य और अकर्मण्य हो गए थे। लगभग 175 वर्षों से फ्रांस की प्रतिनिधिसभा (इस्टेट्स जनरल) का अधिवेशन नहीं हुआ था। स्थानीय संस्थाएँ निर्जीव हो गई थी, क्योंकि शासन के केंद्रीकरण पर जोर दिया गया था। गांव के एक चर्च की मरम्मत की आज्ञा भी केंद्रीय सरकार, अर्थात् वर्साय से प्राप्त करनी होती थी।

प्रशासनिक अराजकता-

तत्कालीन फ्रांस में प्रशासनिक केंद्रीकरण पर जोर दिया गया था, लेकिन केंद्रीय सरकार कमजोर थी। ऐसी हालत में स्थानीय प्रशासन में अराजकता आ गई थी। प्रांतों पर केंद्र का नियंत्रण ढीला पड़ गया था। पूरा देश धार्मिक, प्रशासकीय, शैक्षणिक आदि इकाइयों में विभक्त था। फ्रांस की सीमाओं पर के हाल में फ्रांस में मिलाए गए प्रांतों, यथा-ब्रितानी, प्रोवान्स आदि के कानूनों और संस्थाओं आदि में विशेष परिवर्तन नहीं किया गया था और अलग-अलग प्रांतों की ऐतिहासिक भिन्नता बनी रही। तत्कालीन फ्रांस में लगभग 285 स्थानीय विधि-प्रणालियाँ प्रचलित थीं। व्यापारिक दृष्टिकोण से भी देश में एकता नहीं थी। जगह-जगह चुंगी वसूलने का प्रावधान था। विभिन्न तरह के नियम कानून सारे राज्य में व्याप्त थे, जो एक-दूसरे के विरोधी थे। एक कानून एक क्षेत्र में वैध तथा दूसरे में अवैध था। कानूनी एकरूपता का अभाव था और भ्रष्ट शासनतंत्र बुर्जुआवर्ग के लिए विशेषकर और संपूर्ण समाज के लिए सामान्यतः कष्टदायक था।

भ्रष्ट नौकरशाही तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभाव-

सरकारी उच्च पद योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि पैसे की बदौलत खरीदे जाते थे। परिणामतः सरकारी अधिकारी भ्रष्ट और अयोग्य होते थे। व्यक्तिगत स्वतंत्रता की उपेक्षा की जाती थी। ‘लेब (एक प्रकार का वारंट) जारी कर किसी व्यक्ति को कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता था और बिना मुकदमा चलाए ही उसे जेल में रखा जा सकता था। कानून का कोई महत्व नहीं रह गया था।

इस प्रकार, हम पाते हैं कि फ्रांस की क्रांति के पूर्व राजतंत्र न केवल अयोग्य और निरंकुश था, बल्कि भ्रष्ट एवं अकुशल नौकरशाही द्वारा शासन करने की कोशिश कर रहा था। इस शासन-प्रणाली में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का नामोनिशान नहीं था। इस समय फ्रांस में सामाजिक परिवर्तन हो रहा था और बुर्जुआवर्ग में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना आ रही थी, लेकिन तत्कालीन निरंकुश राजतंत्र आँखें बंदकर सुधारों के प्रति लापरवाह था और किसी राजनीतिक सुधार के पक्ष में नहीं था।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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