इतिहास / History

फ्रांस की राज्यक्रांति के सैनिक कारण | फ्रांस की राज्यक्रांन्ति पर विदेशी घटनाओं का प्रभाव | फ्रांस की राज्यक्रांति के तात्कालिक कारण

फ्रांस की राज्यक्रांति के सैनिक कारण | फ्रांस की राज्यक्रांन्ति पर विदेशी घटनाओं का प्रभाव | फ्रांस की राज्यक्रांति के तात्कालिक कारण

फ्रांस की राज्यक्रांति के सैनिक कारण

(Military Causes of the Revolution)

फ्रांस के प्रशासन का दुर्भाग्य था कि सेना उससे असंतुष्ट थी। सेना किसी भी देश-विशेषकर निरंकुश शासनवाले देशों की रीढ़ होती है और अगर सेना में असंतोष फैला तो उसका पतन निश्चित हो जाता है। कठोर अनुशासन, कम वेतन, खराब भोजुन आदि कारणों से फ्रांस के सैनिक असंतुष्ट थे। अमेरिकी स्वातंत्र्य संग्राम में भाग लेकर लौटी सेना में लोकतंत्रात्मक विचारों का प्रचार हो रहा था।

इस प्रकार संपूर्ण फ्रांसीसी समाज में असमानता, असंतोष और अन्याय का अंधकार छाया हुआ था । केटेलबी के अनुसार, “फ्रांस शिकायत और स्वतंत्रता, अनुदारता और उदार व रोष और उत्प्रेरणा का वह समन्वय उपस्थित करता था जो क्रांति के लिए सर्वश्रेष्ठ सामन प्रदान करता है।”

फ्रांस की राज्यक्रांन्ति पर विदेशी घटनाओं का प्रभाव

(Effects of Foreign Events on the Revolution)

अमेरिकी स्वातंत्र्य युद्ध का प्रभाव 1776 से 1787 ई. तक इंगलैंड के विरुद्ध अमेरिकी उपनिवेशवासियों ने स्वतंत्रता-संग्राम किया। फ्रांस ने अमेरिका को इंग्लैंड के विरुद्ध धन-जन से सहायता की। अमेरिका में फ्रांसीसी सैनिक अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े भी। 1787 ई० में अमेरिका की विजय हुई तथा उपनिवेशवासियों ने स्वतंत्रता, समानता तथा भ्रातृत्व के महत्वपूर्ण सिद्धांतों के आधार पर अपने देश में एक लोकसत्तावादी गणराज्य की स्थापना की, जिसका आज का नाम संयुक्त राज्य अमेरिका है।

उपनिवेशवासी इस युद्ध में सफल रहे। उनकी सफलता ने फ्रांसीसियों को भी प्रेरित किया कि वे भी क्रांति कर अपने को राजाओं के स्वेच्छाचारिता, सामंतों के अत्याचार एवं पुरोहितों के प्रतिबंधों से मुक्त कराएँ। प्रसिद्ध लेखक बर्क का इस संबंध में कथन है, अमेरिकावासियों के स्वतंत्रता-संग्राम और उसमें उनकी सफलता ने फ्रांस की जनता पर गहरा प्रभाव डाला।

जॉर्ज वाशिंगटन ने स्वयं कहा है, “अमेरिका के स्वतंत्रता-सप्रांम ने यूरोप के अन्य राष्ट्रों की आँखें खोल दी और फ्रांस की राज्यक्रांति के नेताओं के जन्म दिया।”

इस प्रकार, अमेरिका की क्रांति ने फ्रांस के सम्मुख एक उच्च आदर्श प्रस्तुत किया, जिससे प्रेरित होकर फ्रांस की जनता ने अपने शासक के विरुद्ध अधिकारों की प्राप्ति के लिए शस्त्र धारण करना उचित समझा।

फ्रांस की राज्यक्रांति के तात्कालिक कारण

(Immediate Causes of the Revolution)

लुई सोलहवाँ- फ्रांस में क्रांति का विस्फोट लुई सोलहवें के शासनकाल में हुआ। उसके शासनकाल के प्रारम्भ से ही फ्रांस की व्यवस्था जर्जर हो चली थी अपव्यय तथा अनेकानेक युद्धों के कारण राष्ट्रीय ऋण का भार बहुत अधिक बढ़ गया था। बजट में प्रतिवर्ष घाटा हो रहा था और यह घाटा ऋण लेकर पूरा किया जा रहा था। अपव्यय की मात्रा बहुत बढ़ गई थी। राजकोष में आते ही रुपया बेढंगे तरीके से खर्च कर दिया जाता था। आय भी दिन-प्रतिदिन कम होती जा रही थी। लुई सोलहवें को इस दुर्दशा का कुछ आभास मिल गया था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि राज्य की आय किस प्रकार बढ़ाई जाए, जिससे घाटा पूरा होने लगे और ऋण न लेना पड़े। अतः, उसने सिंहासन पर बैठते ही अपने मंत्रिमंडल में परिवर्तन करके योग्य व्यक्तियों को उसमें सम्मिलित किया। उसने ऑस्ट्रिया के पक्षपाती च्योजल, संसदविरोधी मशाल्ट तथा इसी प्रकार के कुछ अन्य मंत्रियों को मंत्रिपद से पृथक कर दिया और उनके स्थान पर मलेशर्स, बर्गेन मोरेपस, और तुजों आदि सुयोग्य व्यक्तियों को मंत्रिपद पर नियुक्त कर दिया। इन सब में तर्जों की नियुक्ति को फ्रांसीसी समाज ने बहुत अधिक पसंद किया । लुई सोलहवें ने तुर्जों को वित्त का महानियंता नियुक्त किया।

राजा का चरित्र-1774 ई० में अपने दादा लुई पन्द्रहवें के उपरांत लुई सोलहवाँ फ्रांस का राजा बना था। उसने अपने चारित्रिक दोषों तथा गलतियों से क्रांति को अवश्यंभावी बना दिया। आलोचकों का यह कथन कि अगर लुई दूरदर्शी, दृढ़ संकल्पवाला और चतुर सम्राट रहता तो यह क्रांति कुछ समय के लिए टाली जा सकती थी, बिल्कुल सत्य है। इतिहासकार डी टाकविले ने तो कांति होने का सारा आरोप 16वें लुई पर ही लगाया है। अगर लुई के चारित्रिक दोषों को देखा जाए तो यह आरोप सही प्रतीत होता है।

लुई शराबी था, शिकारी था और शासनकला में बिल्कुल अनाड़ी था। उसने बीस को उम्र में राजपद पाया, लेकिन उसे किसी प्रकार की राजनीतिक शिक्षा नहीं मिली इसलिए शासन के भार को देखकर वह घबड़ा उठता था। उसने स्वयं यह स्वीकार कर लिया कि “ऐसा प्रतीत होता है कि सारा संसार मेरे ऊपर गिर रहा है। हे ईश्वर मेरा इतना बड़ा है और उन्होंने मुझे कुछ भी शिक्षा नहीं दी है।” यह सही है कि वह उत्तरदायित्व को पहचानता था, उसके हृदय में प्रजाहित की भावना थी और उसकी उदाहणाएं यथार्थ थी, पर सफलता पाने के लिए जिन विशेषताओं की आवश्यकता थी, वे उसमें नहीं थी। उसने अपने ढंग से कभी काम नहीं किया। दरबारियों और रानी एन्त्वाएनेत के दबाव में आकर ही वह गलत कार्य करने को विवश हो जाता था। वह बुद्धिमान पुरुषों की बातों को सुनने के लिए सदैव तत्पर था, पर अपनी चंचलता एवं दुलमुल नीति के कारण उन परामर्शों के अनुसार कार्य नहीं कर पाता था। उसमें नेतृत्व का कोई भी गुण नहीं था। कहाँ खतरे की जंजीर लटकी है और उसे किस प्रकार दूर किया जाए, यह वह नहीं जानता था। इस दुर्बल, दुलमुल और डावाँडोल नीति के चलते राजा को अपने प्राण तक गंवाने पड़े।

रोमांटिक एवं विलासी रानी- लुई सोलहवें की पली मेरी एन्त्वाएनेत हैप्सबर्गवंश की राजकुमारी मेरिया थेरेसा पुत्री और आस्ट्रिया के सम्राट जोजेफ द्वितीय की बहन थी। फ्रांस की जनता ने उसे कभी फ्रांस की नागरिक स्वीकार नहीं किया और उसे सदैव ‘आस्ट्रियावाली’ कहकर पुकारा। रानी का प्रभाव राजा पुर अत्यधिक था। उसका सौंदर्य परियों को लज्जित करनेवाला था। उसके गुलाबी हाथ और सुंदर नीली आँखें सबका मन मोह लेती थीं। रानी की रूपप्रशिस्त में होरेस वॉलपोल ने लिखा है, “मेरी जब स्थिर रहती है तो साक्षात सौंदर्य की प्रतिमा लगती है और जब गतिमान होती है तो चारुता को जीवित प्रतिमा।”

लेकिन, रानी के इसी सौंदर्य, इसी रूप और इसी यौवन ने लुई की स्त्रैण बनने को बाध्य किया। वह सदैव राजा के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती रहती थी। वह विलासप्रिय थी और विलासप्रिय-प्रसाधनों की खरीद में करोड़ों रूपए खर्च कर डालती थी। उसने लिटिल ट्रायनान के महल को-जो कभी 15वें लुई का रंगमहल था-खूब सजाया तथा अपनी एक पृथक् दुनिया बसा डाली। उसने आदमी और प्रकृति में सुलभ समस्त सुंदरता से उसे सजाया। नदियों की जगह नहरों ने ली और पहाड़ों की जगह टीलों ने। वन को कल्पना में सारा उपवन खिल उठा। टीलों में एकांत गुफाएँ बनीं और उपवन में कामकुंज। मदन मंदिर का निर्माण कर उसने अपनी सेक्सजन्य कुंठाओं को ही जैसे सहलाया। कुशल चितरों ने भित्तिचित्रों का अंकन किया। सोने, चाँदी, बहुमूल्य पत्थरों और दुर्लभ रेशमी वस्त्रों से वह रंगभवन सजाया गया। राजकोष का घाटा बढ़ता गया, प्रजा की क्यक्षमता छीजती गई, खेतों की उर्वरता को अकाल लीलते गए, पर लिटिल ट्रायनान को सजाने-संवारने में कोई रुकावट नहीं आई। वह फ्रांस की रूपवती सम्राज्ञी की आकांक्षाओं का विलास-दुर्पण बनकर ही रहा। पाप-पुण्य का वह अर्थ नहीं जानती थी। शासन में हस्तक्षेप करना और करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाना उसका शौक था।

फ्रांस की जनता ने ऐसी रानी को अस्वीकार किया और उसकी आलोचना करने लगी। घृणा, द्वेष, प्रपंच आदि रानी के नाम के साथ जुड़ गए। किसी भी बुरे और बदनाम करने वाले कार्य में दोषी रानी ही ठहराई गई। ऐसी रानी से मुक्ति पाना आवश्यक था।

तुर्जों के सुधार- तुर्जों उस समय का एक बड़ा ही योग्य व्यक्ति माना जाता था। मंत्रीपद ग्रहण करते ही उसने फ्रांस की आर्थिक दशा को सुधारना आरम्भ कर दिया। उसने मितव्ययिता का आश्रय लिया तथा बहुत-से खर्चों को समाप्त किया। उसने बहुत-सी योजनाएँ बनाई। आंतरिक व्यापार पर से चुंगी हटा दी गई। व्यापार पर से सब प्रतिबंध हटा दिए गए। कृषकों की अवस्था सुधारने तथा उन्हें बेगारी से मुक्ति दिलाने का प्रयत्न किया गया। उसकी सबसे महत्वपूर्ण योजना थी-कुलीनवर्ग पर कर लगाने की व्यवस्था। साधारणवर्ग के कंधों पर से असह्य करों के भार को कम करने के लिए कुलीनों पर कर लगाना आवश्यक था। अतः तुजों ने राजा से प्रार्थना की कि सब वर्गों पर समान रूप से कर लगाया जाए। इस योजना ने उसके विरोधियों की संख्या बढ़ा दी। क्लीनवर्ग का कथन था कि कर देने से उनके विशेषाधिकार ही समाप्त हो जाएंगे । कुलीन होने का लाभ ही क्या है, यदि उन्हें कर देना पड़े। दरबारियों ने जाकर रानी से फरियाद की तथा रानी के कहने पर राजा ने तुर्जों को मंत्रीपद से हटा दिया।

नैकर के सुधार- तुर्जों की पदच्युति के उपरांत लुई ने नैकर को अपना अर्थमंत्री बनाया। नैकर एक निपुण अर्थशास्त्री था। जनता में नैकर का बहुत सम्मान था। उससे बहुत बड़ी-बड़ी आशाएँ भी थीं। नैकर तुों के व्यापार संबंधी सिद्धांतों का विरोधी था। विभिन्न वस्तुओं के बढ़ते हुए मूल्यों पर उसने रोक लगा दी, किंतु उसके सम्मुख सबसे बड़ा कार्य था फ्रांस के बढ़ते हुए ऋण को रोकना और इस कार्य में वह पूर्णतः असफल रहा। अमेरिका के स्वाधीनता-युद्ध के कारण फ्रांस का दिवाला निकल रहा था तथा कोई भी देश उसे ऋण देने को तैयार न था। फ्रांस की स्थिति को सुधारने के लिए नैकर ने बैंक के सिद्धांतों को अपनाया तथा चालीस करोड़ फ्रैंक उधार ले लिए। उसने सरकारी हिसाब-किताव ठीक किया तथा खर्च कम करने के लिए राजा से अपील की। किंतु, उसके सुधारों से फ्रांस की आर्थिक दशा न सुधर सको तथा ऋण बराबर बढ़ता ही गया। मेरी एन्त्वाएनेत लापरवाही से धन व्यय कर रही थी तथा बहुमूल्य वस्त्राभूषणों पर अपार धन खर्च हो रहा था। नैकर ने इस व्यर्थ के अपव्यय को रोकने का प्रयल किया। रानी ने क्रुद्ध होकर राजा से मंत्री की शिकायत की, फलतः उसको पदच्युत कर दिया गया।

कैलोन- कैलोन नैकर का उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। कैलोन में तुर्जों अथवा नैकर जैसी योग्यता का अभाव था, फिर भी उसने आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए ऋण लेने की सोची। किंतु, अब फ्रांस की जनता अधिक ऋण देने को तैयार न थी अतः, व्याज की दर बढ़ा दी गई तथा ऋण लिया गया। इस समय फ्रांस की सरकार की प्रतिष्ठा लगभग समाप्त हो चुकी थी। कर्ज ले-लेकर उसने अपनी स्थिति को बहुत नीचा बना लिया था। संपूर्ण जनता दिवालिया सरकार का असम्मान करती थी। 1786 ई. तक किसी प्रकार से कर्ज लेकर कैलोन् राजकाल चलाता रहा, किंतु अब कर्ज मिलना भी असंभव था। यद्यपि फ्रांस जैसे धनी देश के लिए यह ऋण चुकाना कोई असंभव बात नहीं थी और यदि कुलीनवर्ग अब भी कर देने को तैयार हो जाता तो फ्रांस शायद् क्रांति के भयावह काल से कुछ समय के लिए मुक्ति पा जाता, किंतु कुलीन लोग कर देने को तत्पर नहीं थे। दृढ़ निश्चय के अभाव में लुई सोलहवाँ उनसे बलपूर्वक कर वसूल करने में असमर्थ था। ऐसी दशा में एक ही मार्ग था कि प्रसिद्ध पुरुषों की सभा का अधिवेशन हो और राजा उसके सम्मुख इस समस्या को रखे। केलोन ने यही सुझाव राजा को दिया तथा विषम आर्थिक अवस्था से दुखी राजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया। अगले वर्ष इस सभा का अधिवेशन बुलाया गया, जिससे वह सभी वर्गों पर समान रूप से कर लगाने का प्रस्ताव स्वीकार कर ले।

प्रतिनिधिसभा की बैठक-राजा की आज्ञा से 1789 ई० में फ्रांस के गिने-चुने प्रसिद्ध कुलीनों का एक सम्मेलन वर्साय में बुलाया गया तथा उसके सम्मुख आर्थिक प्रश्न उपस्थित किया गया। इस समय भी यदि ये अमीर लोग कर देने को तैयार हो जाते तो क्रांति का आगमन शायद रुक जाता, पर वे लोग किसी प्रकार का कर देने को तैयार नहीं थे और राजा किसी अन्य प्रकार से अपनी आय में वृद्धि नहीं कर सकता था। विवश होकर उसने राज्य परिषद् को बुलाने का निश्चय किया तथा 1789 ई० में 175 वर्ष की मृत संस्था का अधिवेशन हुआ, जहाँ से क्रांति की शुरुआत हुई।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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