अनुसंधान क्रियाविधि / Research Methodology

समंक संकलन से आशय | प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक | प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों में अन्तर | प्राथमिक समंकों के संकलन की रीतियाँ | उपयुक्त प्रणाली का चयन

समंक संकलन से आशय | प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक | प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों में अन्तर | प्राथमिक समंकों के संकलन की रीतियाँ | उपयुक्त प्रणाली का चयन| Meaning of data collection in Hindi | Primary and Secondary data in Hindi | Difference between primary and secondary data in Hindi | Methods of Compilation of Primary Data Selecting the appropriate system in Hindi

समंक संकलन से आशय

(Meaning of Collection of Data)

समंक संकलन से अभिप्राय समंकों के एकत्र करने से है, जो अनुसंधान हेतु आवश्यक होते हैं। अनुसंधान की योजना बना लेने के पश्चात् उपयुक्त रीति के द्वारा समंकों को एकत्रित करने का कार्य किया जाता है। सांख्यिकीय अनुसंधान में समंकों का संकलन एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। अपूर्ण एवं अशुद्ध समंकों के आधार पर किये गये अनुसंधान से कभी भी सही निष्कर्ष परनहीं प्राप्त हो सकते।

प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक

(Primary and Secondary Data)

समंक दो प्रकार के होते हैं – प्राथमिक एवं द्वितीयक समंक।

(1) प्राथमिक समंक- प्राथमिक समंकों से हमारा अभिप्राय ऐसे समंकों से है, जो किसी अनुसंधान द्वारा प्रथम बार बिल्कुल नये सिरे से एकत्रित किये गये हों। दूसरे शब्दों में, प्राथमिक समंक ऐसे मौलिक समंक होते हैं जो एकदम अछूते रहते हैं उदाहरण के लिये – यदि हमें मेरठ की जनगणना करनी है तथा इस कार्य के लिये घर-घर जाकर जनसंख्या की गणना की जाये तो इस प्रकार एकत्रित की गई सामग्री को प्राथमिक सामग्री या प्राथमिक समंक कहते हैं।

(2) द्वितीयक समंक- द्वितीयक समंकों से हमारा अभिप्राय ऐसे समंकों से हैं जो पहले से ही अन्य व्यक्तियों या संस्थाओं द्वारा एकत्रित एवं प्रकाशित किये जा चुके हैं, अनुसंधानकर्ता अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये पहले से संगृहित समकों को उपयोग कर लेता है, द्वितीयक समंकों में मौलिकता का अभाव पाया जाता है। उदाहरणार्थ, यदि अनुसंधानकर्त्ता, सरकार द्वारा कृषि श्रम अनुसंधान के अन्तर्गत संकलित एवं प्रकाशित समकों को प्राप्त का लेता है तो ये समंक उसके लिये द्वितीयक समंक होंगे।

क्रम संख्या

आधार का अन्तर

प्राथमिक समंक

द्वितीयक समंक

(1)

मौलिकता

प्राथमिक समंक नये एवं मौलिकता लिये हुए होते हैं।

द्वितीयक समंक पुराने होते हैं। इनमें मौलिकता का अभाव पाया जाता है।

(2)

एकत्रीकरण का ढंग

अनुसंधानकर्त्ता स्वयं प्राथमिक समंकों को एकत्रित करता है।

अनुसंधानकर्त्ता स्वयं समंक एकत्रित न करते हुये उन संस्थाओं से समंकों की जानकारी ले लेता है जिन्होंने पूर्व में ही समंकों का संग्रहण कर रखा है।

(3)

समय एवं श्रम

प्राथमिक समंकों के एकत्रीकरण में अधिक समय एवं श्रम लगता है।

 द्वितीयक समंकों के एकत्रीकरण में अधिक समय व श्रम नहीं लगता है। पत्र- पत्रिकाओं या समाचार- पत्रों या अन्य संस्थाओं से आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

(4)

संशोधन

ये समंक उद्देश्य के अनुकूल रहते अतः अधिक संशोधन की अधिक संशोधन की आवश्यकता नहीं होती है।

द्वितीयक समंकों का उपयोग करने से पूर्व अपेक्षाकृत अधिक संशोधन की आवश्यकता रहती है।

प्राथमिक एवं द्वितीयक समंकों में अन्तर

प्राथमिक समंकों के संकलन की रीतियाँ

(Methods of Collection of Primary Data)

प्राथमिक समंकों के संकलन करने की प्रमुख रीतियाँ निम्नलिखित हैं।

 (I) प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान (Direct Personal Investigation)- प्राथमिक समंकों के संग्रहण की इस विधि के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता स्वयं अनुसंधान क्षेत्र में जाता है और सम्बन्धित व्यक्तियों से प्रत्यक्ष मुलाकात करके निरीक्षण तथा अनुभव द्वारा समंकों को एकत्रित करता है। यह रीति उन अनुसंधानों के लिये उपयुक्त है जिनका क्षेत्र सीमित अथवा स्थानीय प्रकृति का हो तथा जहाँ पर समंकों की मौलिकता, शुद्धता तथा गोपनीयता का अधिक महत्व हो।

गुण अथवा लाभ (Merits)

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान के निम्नलिखित गुण अथवा लाभ हैं-

(1) यह प्रणाली लोचदार है  तथा अनुसंधानकर्त्ता आवश्यकता पड़ने पर प्रश्नों में थोड़ा बहुत संशोधन करके सूचना प्राप्त कर लेता है।

(2) यह विधि सीमित क्षेत्र के लिये अधिक उपयुक्त रहती है।

(3) इस रीति में सजातीयता एवं एकरूपता का गुण विद्यमान रहता है।

दोष (Demerits)

(1) इस विधि में अनुसंधानकर्त्ता के व्यक्तिगत पक्षपात के कारण निष्कर्ष के एकांकी एवं दूषित होने का भय रहता है।

(2) यह रीति अपव्ययी है।

(3) सीमित क्षेत्र के कारण सम्भव है कि समंक पूरे समग्र का प्रतिनिधित्व न करें तथा निष्कर्ष भ्रामक सिद्ध सकते हैं।

(II) अप्रत्यक्ष मौलिक अनुसंधान (Indirect Oral Investigation) : जब प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान किसी कारणवश सम्भव न हो सके तो उस स्थिति में अप्रत्यक्ष मौलिक अनुसंधान रीति अपनाई जा सकती है। इसमें ऐसे व्यक्तियों से सूचनायें प्राप्त की जाती हैं, जिन्हें उस विषय की अच्छी जानकारी है। साधारणतः ऐसे अनुसंधानों में अन्वेषण से सम्बन्धित प्रश्नों की एक छोटी सूची तैयार की जाती है और ये प्रश्न विभिन्न व्यक्तियों अथवा साक्षियों से पूछे जाते हैं, जिनके उत्तर आलेख किये जाते हैं। प्रायः सरकारी आयोग तथा राजकीय समितियाँ, जिन्हें सांख्यिकीय सामग्री संग्रह करनी होती हैं। सामान्यतया इस रीति का प्रयोग तब किया जाता है, जबकि वे व्यक्ति जिनसे सूचना प्राप्त करनी है, सूचना न देना चाहते हों अथवा वे उदासीनता दिखायें अथवा जाँच का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो।

गुण (Merits)

(1) यह प्रणाली सरल एवं सुविधाजनक है।

(2) यह विस्तृत क्षेत्र के लिये एकमात्र उपयुक्त विधि है।

(3) इस विधि के अन्तर्गत कम समय में अनुसंधान कार्य पूर्ण किया जा सकता है।

(4) इस विधि में पक्षपात का अभाव पाया जाता है।

(5) इस रीति में अनुसंधान के विषय में विशेषज्ञों की राय एवं उनकी सहमति प्राप्त हो जाती है।

दोष (Demerits)

(1) निष्कर्ष के भ्रामक एवं अशुद्ध होने की सम्भावना अधिक रहती है, क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से जो व्यक्ति समस्या से सम्बन्धित हैं उनसे जानकारी प्राप्त नहीं की जाती है।

(2) साक्षियों की लापरवाही के कारण समंक दूषित हो जाते हैं।

(III) स्थानीय प्रतिवेदन या संम्वाददाताओं से सूचना प्राप्ति (Information Through Local Report and Correspondents) : यह विधि समाचार-पत्रों एवं पत्र- पत्रिकाओं के द्वारा अधिकांशतः उपयोग की जाती है। इस विधि के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न स्थानों पर अपने सम्वाददाता नियुक्त कर दिये जाते हैं तथा उनके द्वारा भेजी गई सूचना को सही व शुद्ध मानकर अनुसंधान कार्य किया जाता है। सरकार विभिन्न मण्डियों से वस्तुओं के बाजार भाव ज्ञात करने तथा फसल आदि का अनुमान प्राप्त करने के लिये सामग्री संकलन की इसी रीति को  अपनाती है। यह रीति ऐसे अनुसंधान कार्यों के लिये उपयुक्त है, जिसमें शुद्धता की अधिक आवश्यकता नहीं रहती है।

गुण (Merits)

(1) सामग्री संकलन की यह रीति काफी मितव्ययी है, इसमें समय, श्रम एवं धन की काफी बचत होती है।

(2) इस रीति में दूर-दूर के स्थानों से जानकारी प्राप्त कर जा सकती है।

दोष (Demerits)

(1) सूचनायें अनुमान के आधार पर भेज दी जाती है अतः भेजी गई सूचना में शुद्धता का अंश कम रहता है।

(2) इस विधि में पक्षपात की सम्भावना अधिक रहती है।

(3) सूचना में एकरूपता का अभाव रहता है।

(4) मौलिकता का अभाव रहता है।

(5) सूचना प्राप्ति में अनावश्यक रूप से विलम्ब होता है।

(IV) प्रश्नावली तथा अनुसूची द्वारा सूचना (Information Through Questionnaire and Schedule) : सामग्री संकलन की इस विधि के अन्तर्गत अनुसंधानकर्ता अनुसंधान के लिये आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से प्रश्नावली अथवा अनुसूची तैयार कर उचित माध्यम से सम्बन्धित व्यक्तियों के पास पहुंचा देता है तथा सम्बन्धित व्यक्ति इसमें पूछे गये प्रश्नों के उत्तर भर कर वापिस अनुसंधानकर्ता को दे देता है। इस विधि में जानकारी भरने वाले को इस बात का विश्वास दिलाया जाता है कि उसके द्वारा दी गई सूचनायें गुप्त रखी जायेंगी जिससे कि उसका पूर्ण विश्वास एवं सहयोग प्राप्त हो सके और वह प्रश्नों के सही-सही उत्तर दे सके।

गुण (Merits)

(1) यह पद्धति मितव्ययी है इसके अन्तर्गत धन, समय एवं श्रम की काफी बचत होती है।

(2) यह पद्धति विस्तृत क्षेत्रों के लिये अधिक उपयुक्त है।

(3) अशुद्धता की सम्भावना न्यूनतम रहती है।

(4) सूचनायें स्वयं सम्बन्धित व्यक्ति के द्वारा दी जाती हैं, अतः इनमें मौलिकता रहती है।

दोष (Demerits)

(1) अनुसूचियाँ एवं प्रश्नावली में अधिकांशतः व्यक्ति अपूर्ण एवं अपर्याप्त जानकारी देते हैं तथा कुछ व्यक्ति तो अनुसूचियाँ एवं प्रश्नावली वापिस ही नहीं भेजते हैं।

(2) अनेक कारणों से इस रीति द्वारा प्राप्त समंकों में शुद्धता की मात्रा कम रहती है।

(3) इस विधि में लोच का अभाव पाया जाता है।

(4) इस रीति का प्रयोग केवल शिक्षित व्यक्तियों तक ही सीमित है। अशिक्षित व्यक्तियों से इस माध्यम से सूचना प्राप्त करना कठिन है।

(V) गणकों की नियुक्ति (Appointment of Enumerators) : सामग्री संकलन की इस विधि के अन्तर्गत गणकों की नियुक्ति की जाती है। जो स्वयं घर-घर जाकर व्यक्तियों से प्रश्नावली में अंकित प्रश्नों के उत्तर पूछ कर स्वयं प्रश्नावली में भरते हैं। गणकों को विभिन्न क्षेत्र  बाँट दिये जाते हैं तथा भिन्न-भिन्न गणक अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर सूचना देने वालों से सम्पर्क स्थापित करके प्रश्नावली तैयार करते हैं।

गुण (Merits)

(1) यह रीति विस्तृत क्षेत्र के लिये अधिक उपयुक्त है।

(2) गणकों का सम्बन्धित व्यक्तियों से व्यक्तिगत सम्पर्क रहता है, अतः सही सूचनायें प्राप्त हो जाती हैं।

दोष (Demerits)

(1) यह प्रणाली अधिक खर्चीली है।’

(2) गणकों द्वारा लापरवाही बरतने की स्थिति में प्राप्त निष्कर्ष भ्रामक हो सकते हैं।

उपयुक्त प्रणाली का चयन

प्राथमिक समंकों के संकलन की उपरोक्त वर्णित रीतियों में से किसी भी एक रीति को प्रत्येक परिस्थिति में उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि एक प्रणाली एक अनुसंधान में उपयुक्त हो सकती है तथा वही प्रणाली दूसरे अनुसंधानों में अनुपयुक्त हो सकती है। साधारणतः किसी एक उपयुक्त प्रणाली का चयन करते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना होगा –

(1) अनुसंधान की प्रकृति,

(2) अनुसंधान का उद्देश्य एवं क्षेत्र,

(3) शुद्धता का स्तर,

(4) उपलब्ध मौद्रिक साधन,

(5) उपलब्ध समय

उपरोक्त बातों पर विचार करने के पश्चात् ही समंक संकलन की उपयुक्त प्रणाली का चुनाव किया जा सकता है।

अनुसंधान क्रियाविधि – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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