संस्कृति और शिक्षा का सम्बन्ध | संस्कृति का शिक्षा पर प्रभाव | शिक्षा का संस्कृति कर प्रभाव
संस्कृति और शिक्षा का सम्बन्ध | संस्कृति का शिक्षा पर प्रभाव | शिक्षा का संस्कृति कर प्रभाव
संस्कृति और शिक्षा का सम्बन्ध
संस्कृति और शिक्षा में बहुत ही समीपी और प्राचीन सम्बन्ध बताया जाता है। प्रो० ओटावे लिखते हैं कि “हमने देखा कि व्यक्तित्व अंशतः संस्कृति द्वारा कैसे निश्चित होता है जिसमें उसकी वृद्धि होती है। इसलिए यह निष्कर्ष निकलता है कि जहाँ शिक्षा का सम्बन्ध व्यक्तित्व की वृद्धि से होता है वहाँ वह समाज की संस्कृति पर आश्रित भी है जिस समाज में वह दी जाती है।”
संस्कृति और शिक्षा का सम्बन्ध इस तथ्य से भी ज्ञात होता है कि शिक्षा संस्कृति की विषय-वस्तु का विकास करती है और उसका एक महान् कार्य होता है। विद्वानों ने बताया है कि शिक्षा का एक कार्य समाज की परम्पराओं, प्रथाओं, रीति-रिवाजों, ज्ञान- विज्ञान, कलाओं आदि को सम्पन्न बनाना है। विद्यारयो द्वारा इन सब का ज्ञान दिया जाता है। छात्र को इन्हें स्वीकार करने में अध्यापक एवं अभिभावक तैयार रहते हैं। इस तथ्य से संस्कृति एवं शिक्षा की घनिष्टता मालूम होती है।
शिक्षा का लक्ष्य, शिक्षा का पाठ्यक्रम एवं शिक्षा की विधि के संदर्भ में भी दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध कहा जाता है। “शिक्षा वास्तव में एक समुदाय के पूरे जीवन के अलावा और कुछ नहीं है।”
यदि संस्कृति के तत्वों को ध्यान से देखा जाये तो ज्ञात होगा कि शिक्षा उन तत्वों को प्रदान करने एवं प्राप्त करने का माध्यम है। बिना शिक्षा के संस्कृति नहीं होती है और बिना संस्कृति (संस्कार) के शिक्षा लेना-देना सम्भव नहीं कहा जाता है। अतएव दोनों का सम्बन्ध अविच्छेद्य माना जाता है। कहावत भी है कि शिक्षित व्यक्ति ही संस्कृत (सभ्य) व्यक्ति होता है। शिक्षा का प्रसंग संस्कृति का अंग होता है, यह रिसन्दः माना जाता है। दोनों के सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिये हम इनके परस्पर प्रभाव को आगे दतावेंगे।
संस्कृति पर शिक्षा का प्रभाव
संस्कृति का प्रभाव शिक्षा पर कैसे पड़ता है यह समझने के लिये हमें शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षाविधि, शिक्षक, शिक्षार्थी, अनुशासन एवं विद्यालय पर संस्कृति का प्रभाव देखना चाहिये जिन्हें हम नीचे प्रकट कर रहे हैं-
(i) संस्कृति का प्रभाव शिक्षा के अर्थ पर- विद्वानों ने संस्कृति का प्रभाव शिक्षा के अर्थ बताने में शिक्षा को स्वयं संस्कृति मान लिया है। इसलिये शिक्षा मन और शरीर की संस्कृति (वृद्धि) (Education is culture or growth of mind and body) | संस्कृति के अन्तर्गत इस प्रकार विकास-वृद्धि आता है चूँकि शिक्षा विकास की प्रक्रिया कहलाती है इसलिये इस विचार से शिक्षा के अर्थ पर संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है।
(ii) संस्कृति का शिक्षा के उद्देश्य पर प्रभाव- शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों में मोक्ष प्राप्ति, विकास की प्राप्ति एवं मनोरंजन और अवकाश का सदुपयोग होता है। ‘मोक्ष’ का सम्बन्ध धर्म एवं विश्वास से होता है। इसलिये स्पष्ट है कि शिक्षा के उद्देश्य पर संस्कृति का प्रभाव पड़ता है। सांस्कृतिक क्रिया के अन्तर्गत मनोरंजन तया अवकाश के समय होने वाली क्रिया रखते हैं। यदि शिक्षा का उद्देश्य इस प्रकार की क्रिया से सम्बन्धित होता है तो निश्चय ही शिक्षा के उद्देश्य पर संस्कृति का प्रभाव पड़ता है। संस्कृति का एक स्वरूप “भौतिक” माना जाता है और आज शिक्षा का उद्देश्य लोगों को भौतिक सुख प्रदान करना, उनका भौतिक कल्याण करना होता है। अतः स्पष्ट है कि शिक्षा के उद्देश्य पर संस्कृति का प्रभाव बहुत पड़ता है।
(iii) संस्कृति का शिक्षा के पाठ्यक्रम पर प्रभाव- शिक्षा की सामग्री पर संस्कृति का प्रभाव और भी स्पष्ट दिखाई देता है। संस्कृति जीवन की समग्र विधि है। इसलिये विद्यालय लड़के लड़कियों को उन्हीं चीजों की शिक्षा देते हैं जिनको समाज चाहता है। इसका अर्थ यह है कि शिक्षा की सामग्री पर संस्कृति का प्रभाव पड़ता है। इस सम्बन्ध में मुदालियर शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में लिखा गया है कि “नये ज्ञान, कौशल, अभिवृत्तियाँ और मूल्य जो विद्यालय में अर्जित किये जाते हैं उन्हें घरेलू जीवन में उसकी समस्याओं को सुलझाने तया उसके मानकों को ऊँचा उठाने के लिये प्रयोग करना चाहिये।”
(iv) संस्कृति का शिक्षा-विधि पर प्रभाव- शिक्षा की विधि वैयक्तिक और सामाजिक, शाब्दिक और वस्तुनिष्ठ होती है। संस्कृति व्यक्ति और समाज के लिये होती है और इनकी ही विरासत होती है। फलस्वरूप शिक्षा की चाहे वैयक्तिक विधि हो चाहे सामाजिक, दोनों पर संस्कृति का प्रभाव पाया जाता है। इसी प्रकार से शाब्दिक विधि का सम्बन्ध भाषा से होता है और ऐसी दशा में जब कि भाषा संस्कृति का एक अंग है, तो निश्चय है कि शाब्दिक विधि पर संस्कृति का प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार वस्तुनिष्ठ विधि पर भी भौतिक संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है क्योंकि शिक्षा की सामग्री का उत्पादन समाज के लोगों की बुद्धि, कल्पना, सौंदर्य के प्रति रुचि एवं अभिवृत्ति पर निर्भर करता है। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा की विधि भी संस्कृति की देन होती है। आज की संस्कृति के कारण ही श्रव्य-दृश्य सामग्रियों की सहायता से शिक्षा दी जा रही है। शिक्षण मशीन, संगणक, भाषा प्रयोगशाला, चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन का प्रयोग शिक्षा-विधि में होना संस्कृति का प्रभाव प्रकट करता है।
(v) संस्कृति का विद्यालय, विद्यार्थी एवं अध्यापक पर प्रभाव- आज समुदाय, विद्यालय, जन विद्यालय, जनतांत्रिक विद्यालय संस्कृति के प्रभाव को प्रकट करते हैं। विद्यालय में सहकारी जीवन की व्यवस्था (System of corporate living) भी संस्कृति का प्रभाव बताती है। “विधमान लघु समाज” भी इसी प्रभाव के कारण माना जाता है। आज धर्म में विश्वास करने वाले भारत की संस्कृति में परिवर्तन हो जाने से धर्म निरपेक्षता से पूर्ण विद्यालय चल रहे हैं। सभी नागरिकों को समान अधिकार एवं सुविधा के साथ शिक्षा दी जा रही है। यह संस्कृति का ही सद्भाव कहा जा सकता है।
विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी पर भी संस्कृति का प्रभाव पड़ता है। संस्कृत या अरबी-फारसी पढ़ने वाला छात्र स्कूल के छात्र से भिन्न होता है। उसकी वेशभूषा, आचरण-व्यवहार, चिन्तन-कार्य सभी भिन्न पाये जाते हैं क्योंकि संस्कृति अलग-अलग होती है। नगर एवं ग्राम के छात्रों में भी सांस्कृतिक भिन्नता पाई जाती है। भारतीय छात्र में संस्कृति के प्रभावानुसार भिन्नता दिखाई देती है।
विद्यालय में शिक्षा देने वाले अध्यापक पर भी संस्कृति का प्रभाव दिखाई देता है। आज अध्यापक छात्र का मित्र एवं सहायक माना जाता है जब कि प्राचीन भारत में गुरु को साक्षात् ब्रह्म कहा गया है। मध्यकाल में भी मौलवी-मास्टर ईश्वरीय ज्ञान देने वाले समझे जाते थे। इनके प्रति श्रद्धा एवं सम्मान सर्वोच्च ढंग से प्रकट होता था। आज अध्यापक वेतनभोगी निम्न एवं कहीं-कहीं हेय दृष्टि से भी देखा जाता है। यह सब संस्कृति का प्रभाव है। वैयक्तिकता, भौतिकता एवं अहम्शीलता पर आधुनिक संस्कृति इतना अधिक जोर देती है जिससे विद्यालय का गरीद अध्यापक नगण्य गिना जाता है।
शिक्षा का संस्कृति पर प्रभाव
संस्कृति समग्र जीवन की विधि होती है। समाज के जीवन पर शिक्षा का प्रभाव दिखाई देता है। आज भारत एवं पश्चिम के समाज में व्यक्ति का जीवन सरल से जटिल की ओर बढ़ रहा है, प्राकृतिक जीवन से कृत्रिम जीवन की ओर बढ़ रहा है, नये-नये सुख-साधन जुटाये जा रहे हैं और आध्यात्मिक से भौतिक जीवन की ओर लोग लौट रहे हैं। इससे शिक्षा का स्वरूप भी इसी प्रकार के जीवन से सम्बद्ध हो गया है। शिक्षा आजकल नवीन सभ्यता एवं संस्कृति को बढ़ावा दे रही है। (Education today is promoting a new culture and civilisation.)
(i) शिक्षा का जीवन के मूल्यों पर प्रभाव- जीवन में भौतिक एवं अभौतिक और आध्यात्मिक मूल्य पाये जाते हैं। विज्ञान एवं तकनीकी विज्ञान के विकास ने हमें भौतिक मूल्य अपनाने की अभिवृत्ति प्रदान की है। फलस्वरूप हमने संसार के सुख-ऐश्वर्य प्राप्त कराने वाली शिक्षा को अपनाया है। अतः स्पष्ट है कि शिक्षा हमें जीवन के भौतिक मूल्य देकर संस्कृति को प्रभावित कर रही है।
(ii) शिक्षा का सामाजिक परिवर्तन पर प्रभाव- यह सत्य है कि समाज में जो परिवर्तन होते हैं वह शिक्षा के कारण होते हैं। शिक्षित व्यक्ति समाज की संस्थाओं के पुराने मानकों को बदलते हैं, प्रधाओं को बदलते हैं, समाज की स्थिति सुधारते हैं। समाज में होने वाले आन्दोलन शिक्षा के कारण ही हुआ करते हैं। अपने देश में राजनतिक सत्ता में परिवर्तन शिक्षा के कारण हुआ। आज भी राजनैतिक वाद-विवाद, झगड़े आदि शिक्षित व्यक्ति ही करते हैं। विद्यालय में छात्र नेता होते हैं। अध्यापक राजनीति का अखाड़ा तैयार करते हैं और उसमें भी भाग लेते हैं। ऐसा परिवर्तन शिक्षा से होना सम्भव हुआ है। इससे शिक्षा का प्रभाव समाज की संस्कृति पर पड़ता दिखाई देता है।
(iii) शिक्षा का जीवन के स्तर पर प्रभाव- शिक्षा के द्वारा तकनीकी विकास हुआ है और इससे जीवन के सुख-आराम में वृद्धि हुई है। फलस्वरूप लोगों का दृष्टिकोण भी बदला है। शीघ्रता एवं तीव्रता आज जीवन की शैली की प्रमुख विशेषताएँ बन गई हैं जो चलने-फिरने, काम करने में पाई जाती हैं। सुख की तीव्र इच्छा होने से लोग अधिकतर काम की उपेक्षा भी करने लगे हैं। जनतन्त्र के विकास से जीवन में सामूहिकता का दृष्टिकोण आता जा रहा है और “संघे शक्तिः कलयुगौ” का नारा बुलन्द है। अस्तित्ववादी दृष्टिकोण से हम-ही-हम मैं-ही मैं में बदल चुका है। इन सबके पीछे व्यक्ति की शिक्षा पाई जाती है। अतः शिक्षा ने आज जीवन के स्तर या मानक पूर्ण तौर से बदल दिया है।
(iv) शिक्षा का धर्म एवं विश्वास पर प्रभाव- संस्कृति का एक अंग धर्म एवं विश्वास भी है। भारत धर्मप्रधान देश था, और उसकी शिक्षा व्यक्ति को धर्मपरायण बनाती रही है। आज भारत धर्म निरपेक्ष देश बना हुआ है जिससे जीवन में धर्म, विश्वास को कोई स्थान नहीं दिया गया है। धर्म के सिद्धान्तों के लिए आज श्रद्धा नहीं होती है और उसे “अन्धविश्वास” की संज्ञा दी जाती है। सही रूप में अन्धविश्वास शिक्षा के कारण समाप्त हो गया लेकिन तर्कयुक्त विश्वास तो होना ही चाहिए। लेकिन ठेठ यथार्थवाद, भौतिकवाद एवं अस्तित्ववाद ने विश्वास एवं धर्म को भी समाप्त-प्राप्य कर दिया है। यह शिक्षा का ही संस्कृति पर प्रभाव कहा जाता है।
निष्कर्ष
ऊपर के विचारों से स्पष्ट है कि संस्कृति एवं शिक्षा में कितना अधिक समीपी सम्बन्ध पाया जाता है। संस्कृति और शिक्षा दोनों एक दूसरे को गहराई से प्रभावित करते हैं। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि प्राचीनकाल से आज तक शिक्षा के कारण संस्कृति में परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हुआ और संस्कृति के अनुरूप ही शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम आदि निश्चित हुए। शिक्षा समाज के जीवन को नये मानदण्डों के अनुसार अनुशासित करती है, शिक्षित व्यक्ति अपने ज्ञान, कौशल, मूल्य एवं आदर्श के आधार पर संस्कृति के निर्माण, सुधार एवं विकास में सहायता देता है। इसके विपरीत संस्कृति व्यक्ति को सभ्य एवं शिक्षित बनाती है, शिक्षा के विभिन्न उपादान प्रदान करती है। इस सम्बन्ध में डॉ० जाकिर हुसेन ने कहा है, “शिक्षित मनुष्य की विशेष निशानी यह होनी चाहिए कि उसमें संस्कृति के प्रति एक धनात्मक दृष्टिकोण हो।”
शिक्षाशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक
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