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मापन के एक अच्छे उपकरण की विशेषता | अच्छे मापन यन्त्र के गुण

मापन के एक अच्छे उपकरण की विशेषता | अच्छे मापन यन्त्र के गुण | Characteristics of a good measuring instrument in Hindi | Qualities of a Good Measuring Instrument in Hindi

मापन के एक अच्छे उपकरण की विशेषता

अच्छा तथा चरा दो सापेक्ष शब्द हैं और इनका उपयोग हम जीवन के सभी क्षेत्रों में करते हैं। अच्छे शब्द का तात्पर्य यह है कि वह वस्तु या व्यक्ति या विचार, जिस हम अच्छा कह उस कार्य  का पूरा पूरा सम्पादन करती है जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है तथा उसमें विश्वसनीयता  होनी चाहिए। इन गुणों के आधार पर हम उस अच्छा कह सकते है। अच्छा परीक्षण वह होगा जो सविष्ट विधि से मापन कर सके। परीक्षण जिसका निश्चित उद्देश्य हो, जिसका प्रश्न सरल हो तथा जो  अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता हो, जो समय और धन की दृष्टि से मितव्यता हो तथा सवंग्राहा हो जिस प्रमाणीकृत किया गया हो तथा जिसकी एक निश्चित विश्वसयता तथा वैधता  हो जो विभेदीकरण कर सकता हो और जिसके मानक निश्चित हों अच्छा परीक्षा कहलाता है।

एक अच्छे परीक्षण को दो प्रकार की कसौटियों पर कसा जा सकता है-(i) तकनीकी कसौटियाँ (ii) व्यावहारिक कसौटियाँ।

अच्छे मापन यन्त्र के गुण

(i) व्यापकता

(ii) विभेदोकरण

(iii) वस्तुगत होना

(iv) विश्वसनीयता

(v) वैधता

(vi) व्यवहार योग्यता

(vii) मानकीकरण

(viii) मानक

(ix) पद

किसी अच्छे परीक्षण में ये सभी गुण होने चाहिए पर इनमें से किसी को भी स्वतन्त्र सत्ता नहीं है। सब एक-दूसरे पर निर्भर है। एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है।

(1) व्यापकता (Comprehensiveness) – व्यापकता का अर्थ है कि किसी परीक्षण में पाठ्यक्रम में सम्मिलित तथ्यों में से अधिक से अधिक का समावेश होना, परीक्षण परीक्षार्थी के व्यवहार का केवल आंशिक नमूना (Sample) न हो। जितना अधिक कोई परीक्षण पाठ्यक्रम एवं उसके विभिन्न अंशों एवं क्षेत्रों से सम्बन्धित होगा, उतना ही वह व्यापक भी होगा। किसी  सांख्यिकीय सूत्र के आधार पर हम व्यापकता का अनुमान नहीं लगा सकते। परीक्षण की व्यापकता के बारे में निर्णय करना स्वयं निर्माता की सूझ-बूझ, उसकी कुशाग्र बुद्धि एवं उसकी परीक्षण निर्माण की क्षमता पर निर्भर है।

माइकील्स तथा कारेंनस ने व्यापकता कके सन्दर्भ में निष्पत्ति परीक्षण की तुलना केक की परतो के (Sample) से की है। यदि केक की परतों के गुण के बारे में हमें बताने को कहा जाये तो हम केवल देखकर ही उत्तर नहीं दे देंगे। हम उसका स्वाद लेना चाहेंगे। पर इसका पूरी तरह से खा लेना हमारे लिए आवश्यक नहीं होगा। यदि केक को अनेक परतें हों, तो हम सभी परतों का स्वाद लेकर तब अपना निर्णय भी देंगे। इसी प्रकार किसी परीक्षण की व्यापकता की जाँच करने हेतु हम उसे बनाते समय पाठ्यक्रम में सम्मिलित सभी तथ्यों को न लेकर उनमें से कुछ का Sample या बानगी ही लेंगे। इसमें परीक्षार्थों की सफलता असफलता के आधार पर हम सम्पूर्ण तथ्यों के ज्ञान के बार में निर्णय देंगे कि पाठ्यक्रम कैसा है।

तथ्यों का कितना भाग लिया जाये, परीक्षण व्यापक हो सका ये एक बड़ा महत्वपूर्ण विषय है। पर Sample या बानगी में समग्र (Population) का कितना अंश हो, इसका निर्णय करना परीक्षण- रचयिता, परीक्षणों के उद्देश्यों एवं प्रशासन की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर करेगा। हाँ परीक्षण इतना व्यापक हो कि यह वैध हो सके। पाठ्यक्रम वैधता का वर्णन करते समय इसका आगे विवेचन करेंगे। यहाँ पर यह जान लेना आवश्यक है कि परीक्षण व्यापक बनाने के लिए सभी उद्देश्यों (Objectives) तथा परिणामों (Out comes) को ध्यान में रखना आवश्यक है।

(2) विभेदकारिता ( Discrimination) — एक परीक्षण तभी विभेदकारी होता है जब वह निष्पत्ति या उपार्जन में अन्तर हो, का पता लगा सकें। अर्थात् यह सुयोग्य एवं अयोग्य छात्रों में विभेद कर सकें। परीक्षण पद जब भलीभांति विद्यार्थियों में विभेद करता है तभी उनका निष्पत्ति या  अकों के आधार पर पदक्रम (Ranking) सम्भव है। इसके लिए तीन बात आवश्यक है-

(1) जब परीक्षण प्रशासित किया जाय तो फलाकों का प्रसार क्षेत्र (Range) काफी विस्तृत हहै- चाहिए क्योंकि इससे प्रत्येक विषय में निम्नतम से लेकर उच्चतम फलांक दिये जा सकें।

(2) परीक्षण में कठिनाई के सभी स्तरों के प्रश्न-पद शामिल होने चाहिए। कुछ प्रश्न-पद ऐसे हों जिनका उत्तर सभी विद्यार्थी आसानी से दे सकें, एवं कुछ पद ऐसे हों कि केवल योग्य विद्यार्थी ही उनका उत्तर दे सकें।

(3) प्रत्येक पद इस प्रकार का हो कि अधिकांश योग्य विद्यार्थी उसका उत्तर दे सकें और अधिकांशतः अयोग्य या कम योग्य विद्यार्थी उनका उत्तर न दे सकें। कुछ पद ऐसे भी होते हैं। कि अयोग्य या कम योग्य विद्यार्थी तो उनका उत्तर दे देते हैं पर सुयोग्य विद्यार्थी उन्हें हल नहीं कर पाते। ऐसे पदों की विभेदकारी सामर्थ्य नकारात्मक होती है। अत: उन्हें परीक्षण में सम्मिलित न करना ही श्रेयस्कर होगा।

परीक्षण पदों को विभेदकारी सामर्थ्य ज्ञात करने के लिए परीक्षण के उपरान्त प्रत्येक पद का विश्लेषण किया जा सकता है। इसे item Analysis कहते हैं। इससे प्रत्येक पद की कठिनाई के स्तर का पता चल जायेगा। अत्यन्त कठिन व अति सरल पदों को बाहर निकालने में सुविधा होगी।

(3) वस्तुगत होना (Objectivity) – किसी भी परीक्षण के लिए वस्तुगत होना अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि इसका विश्वसनीयता एवं वैधता दोनों पर प्रभाव पड़ता है। अतः यह आवश्यक है कि फलांकन ही नहीं वरन परीक्षार्थी द्वारा परीक्षण के व्यक्तिगत पदों का निर्वाचन भी  वस्तुगत हो। एक बार परख की कुंजी (Key) बन जाने के बाद यह प्रश्न उठना ही नहीं चाहिए कि प्रश्न अस्पष्ट तो नहीं है या उसके उत्तर के बारे में ठीक से निर्णय नहीं किया जा सकता। कोई भी व्यक्ति उत्तर पुस्तिका को जाँचे एवं किसी भी अवसर पर जाँचे, परीक्षार्थी को सदैव उतने ही अंक मिलने चाहिए। निबन्धात्मक परीक्षाओं में यह बात नहीं होती। इनमें उत्तर पुस्तिकाओं को जॉनने वाले व्यक्ति के व्यक्तिगत या आत्मगत (Subjective) निर्णय से उसके द्वारा प्रदत्त अंक प्रभावित रहते हैं। जहां तक परीक्षार्थी द्वारा पदों को स्पष्ट रूप से समझने अर्थात् उनका वस्तुगत निर्वचन (Interpretation) करने की बात है, यदि पदों की रचना सुव्यवस्थित हो और वे दुयार्धक (Ambiguous) न हो तो सब परीक्षार्थी उनका एक और केवल एक ही अर्थ लगाएंगे। अन्यथा विद्यार्थी का कुछ अर्थ समझेंगे जबकि प्रशिक्षण-रचयिता ने उन्हें किसी अन्य अर्थों में प्रयुक्त किया था। इससे परीक्षण की वैधता कम हो जायेगी। परीक्षण पदों को वस्तुगत बनाने के लिए यह आवश्यक है कि वे द्वयार्थक न हो, इनमें स्थिरता (Consistency) हो, एवं व्याकरण की दृष्टि से वे  शुद्ध हो। यदि हम निम्न पदों को देखें तो पता चलेगा कि वे वस्तुगत नहीं है।

(4) विश्वसनीयता (Reliability)- जब किसी परोक्षण में विभिन्न अवसरों पर या एक ही प्रकार के विभिन्न परीक्षण पदों में किसी परीक्षार्थी द्वारा प्राप्त फलांकों में संगति होती है तो वह परीक्षण विश्वसनीय कहलाता है।

विश्वसनीयता का सम्बन्ध मापन की यथार्थता से है। कुछ न कुछ त्रुटि तो किसी भी प्रकार के वैज्ञानिक मापन में होती हो है। जैसे-तापक्रम के बढ़ने और घटने से धातु का फुटा बढ़ता या सिकुड़ता है। अतः यथार्थ मापन तभी सम्भव है जब तापक्रम स्थिर रहे। इसी प्रकार मनोवैज्ञानिक परीक्षण के परिणाम भी अनेक बातों पर निर्भर करेंगे। बार-बार किसी व्यक्ति पर किसी परीक्षण को प्रयुक्त करने से परिणाम, अर्थात् परीक्षार्थी के फलांक विभिन्न हो सकते हैं, क्योंकि पनर्परीक्षण में  उसकी मानसिक एवं वातावरणजन्य वस्तुस्थिति वही न रहेगी जो प्रथम परीक्षण में थी। ध्यान एवं प्रयास में परिवर्तन, सोखने, स्वास्थ्य व्यक्तित्व में परिवर्तन सभी सम्भव है यदि कोई परीक्षण इस प्रकार से संरचित हो कि इन परिवर्तनों से उसके परिणामों पर प्रभाव न पड़ें या कम पड़े तो वह परीक्षण विश्वसनीय कहलायेगा। स्टेनफोर्ड-बिने परोक्षण एक ऐसा हो परीक्षण है।

किसी परीक्षण को विश्वसनीयता का अर्थ है कि उसे बार-बार प्रयुक्त करने पर प्राप्त फलांकों, या परिणामों में परिवर्तन न हो, अर्थात् परिणाम संयत (Consistent) हो। यदि कोई व्यक्ति हमें आज किसी घटना को एक रूप में सुनाए और कुछ दिन बाद किसी दूसरे रूप में, तो हम उसकी बात का विश्वास नहीं कर पायेंगे, क्योंकि इसमें संगति नहीं है। पर वह जब घटना सुनाए, उसी रूप में सुनाए तो हमें उसकी बात विश्वसनीय लगेगी। अतः विश्वसनीय परीक्षण वह है जिसमें विश्वास किया जा सके।

यहाँ यह समझ लेना आवश्यक है कि विश्वसनीयता और वैधता में अन्तर है। इस अन्तर का स्पष्ट करने के लिए रॉस (C. Ross: Measurement in Today’s School) ने एक उदाहरण दिया है- एक व्यक्ति अवकाश से लौटकर अपने मित्रों को एक मछली का, जो कि उसने पकड़ी थी चित्रमय वर्णन सुनाता है। प्रत्येक मित्र को अत्यन्त सूक्ष्मता के साथ विस्तार में वह उसी प्रकार का ज्वलन्त विवरण देता चलता है। अतः सांख्यिकीय अर्थ में यह कहानी विश्वसनीय है, क्योंकि यह संगत है। पर इस संगत के विवरण के आधार पर उसकी सत्यता स्थापित नहीं होती। अतः विवरण आवश्यक रूप से वैध नहीं है। एक अन्य उदाहरण लीजिये। आज किसी समय मेरे पड़ोसी की घड़ी 8 बजाती है। मेरी घडी बन्द है। अपने पड़ोसी की घड़ी देखकर मैं भी अपनी घड़ी में 8 बजा लेता है। दूसरे दिन अपने पड़ोसी की घड़ी से देखकर में अपनी घड़ी मिलाता हूँ और मुझे ज्ञात होता है कि दोनों घड़ियों में एक ही समय है। इससे यह पता लगता है कि घड़ी  विश्वसनीय है, न यह धीमी है न तेज पर यदि मेरी घड़ी में 8 बजकर 10 मिनट हो जाये तो यह विश्वसनीय नहीं है। विश्वसनीय होने पर भी मुझे यह पता नहीं कि वास्तव में समय वही हुआ है जो मेरो घड़ी में है। सम्भव है कि रेडियो के अनुसार समय 8 बजने में 5 मिनट हो और इसमें 8 बजकर 10 मिनट हो गये हैं तो ऐसी अवस्था में घड़ी समय का वैध मापन नहीं कर रही है।

परीक्षण की विश्वसनीयता का सांख्यिकीय मापनों की विश्वसनीयता से सभ्रम (Confusion) नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए जब हम मध्यमान, प्रमाप, विचलन, सह-सम्बन्ध आदि की विश्वसनीयता की बात करते हैं तो हमारा मतलब प्रमाप त्रुटि (Standard Error) या न्यादर्श त्रुटि (Sampling Error में होता है। अर्थात् यह जानना चाहते हैं कि विभिन्न न्यादर्शों के किसी दिये हुए तथ्य का मध्यमान, प्रमाप विचलन आदि निकाला जाये तो परिणामों में कितनी संगति होगी। इस प्रकार को परीक्षण को विश्वसनीयता में एक ही परीक्षण को उन्हों व्यक्तियों पर बार-बार प्रयुक्त करके परिणामों में कितनी संगति है, यह ज्ञात करते हैं, जबकि सांख्यिकीय मापकों की विश्वसनीयता में अलग-अलग समूहों पर जो परिणाम आते हैं, उनमें संगति देखते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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