इतिहास / History

सिकंदर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक अवस्था | सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति

सिकंदर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक अवस्था | सिकन्दर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति

सिकंदर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक अवस्था

(The Political Condition of India on the eve of alexander’s Invasion)

जिस समय उत्तरी भारत में मगध के साम्राज्य का उत्कर्ष हो रहा था ठीक उसी समय भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग की राजनीतिक अवस्था अत्यंत शोचनीय थी। इस समय भारत का यह संपूर्ण क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। इनमें से कुछ तो राजतंत्र थे एवं कुछ गणतंत्र। इस क्षेत्र में किसी सार्वभौम शक्ति का सर्वथा अभाव था जो इन विभिन्न राज्यों को नियंत्रण में रख सके। इन राज्यों में आपसी मतभेद भी था। ये राज्य सदैव एक-दूसरे से  संघर्षरत रहते थे तथा एक-दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास में लगे रहते थे। परिणामस्वरूप कोई भी विदेशी शक्ति इनकी कमजोरी का लाभ उठाकर उन्हें अपने कब्जे में आसानी से कर सकती थी और यही हुआ भी। सिकंदर महान ने जो इस समय विश्व विजयी बनने का स्वप्न देख रहा था, इस राजनीतिक कमजोरी का फायदा उठाया तथा 4थी शताब्दी ई०पू० में भारत के इस भाग पर आक्रमण कर यहाँ पर यूनानी प्रभुत्व स्थापित किया। यूनानी इतिहासकारों के विवरण से सिकन्दर के आक्रमण के समय के प्रमुख राज्यों के विषय में जानकारी मिलती है। इस समय के प्रमुख राज्य निम्नलिखित थे-

अस्पेशियन (Aspasian)- यह राज्य काबुल नदी के उत्तर के पहाड़ी भागों में फैला हुआ था। यह राज्य अबिसंग (अलिसंग-कनार-बाजौर की घाटियों) में स्थित था। इस राज्य का नामकरण ईरानी शब्द अस्प(Apsa) तथा संस्कृत शब्द अश्व (Asva) या अश्वक (Asvaka) के आधार पर किया गया था। एच०सी०रायचौधरी के मतानुसार अस्पेसियन अश्वकों की पश्चिमी शाखा थे। इस राज्य का राजा यूअस्पला(Uspala) कनार नदी के किनारे पर स्थित एक नगर में रहता था। अन्दक (Andaka) और एरिजियम(Arrigium) इस राज्य के अन्य महत्वपूर्ण नगर थे।

गूरेअन्स या गौर (Guraeans)-  यह प्रदेश मुख्यतः अस्पेसियन और अस्सकेनियन (अश्वक) राज्यों के मध्य स्थित था। इस क्षेत्र में गुरेअस, गौरी या पंचकौर नदी बहती थी। इसलिए यहां के निवासी गुरेअन्स के नाम से विख्यात थे। इस राज्य के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है

अस्सकेनस या अश्वक (Assakenos)-  अश्वक या अश्मक राज्य सिंधु नदी तक फैला हुआ था। इसकी राजधानी मसग (Masaga) थी जो संभवतः मालकंद दर्रे के निकट उत्तर में स्थित थी। मार्कण्डेय पुराण एवं बृहत्संहिता में अश्वकों को उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में निवास करने वाला बताया गया है। यहां के निवासियों को सुवास्तु, उद्यान तथा ओड्डियान नाम से पुकारा गया है। यहाँ का शासक अस्सकेनोस (Assakenos) काफी शक्तिशाली राजा था। ग्रीक इतिहासकारों के विवरण से ऐसा प्रतीत होता है कि इस राजा के पास एक विशाल सेना थी जिसमें बीस हजार घुड़सवार तथा तीस हजार पैदल सैनिकों के अतिरिक्त एक गज-सेना भी थी जिसमें तीस हाथी थे।

नीसा (Nysa)-  नीसा का राज्य गणतंत्रात्मक था। यह राज्य काबुल और सिंधु नदियों के बीच मेरोस पर्वत की तलहटी में अवस्थित था। इस राज्य की स्थापना संभवतः सिकंदर के पूर्ववर्ती यूनानी उपनिवेशवादियों ने की थी। एरियन का कहना है कि यहां के निवासी भारतीय मूल के नहीं थे। वे डायोनिसस (Dionysus) के साथ आए हुए जातियों के वंशज थे। बौद्ध ग्रंथ मझिमनिकाय के अनुसार गौतम बुद्ध के समय कम्बोज तथा योन (Yon यूनानी) राजा काफी प्रगति कर रहे थे। प्रसिद्ध इतिहासकार होल्डिच का विचार है कि नीसा नामक नगर स्वात देश के कोही-मोर (Kohi-Mor) पर्वत की तलहटी में बसा हुआ था। सिकंदर के आक्रमण के समय इस गणतंत्र का प्रधान आकूफिस (Akouphis) था जो सौ सदस्यों की परिषद की सहायता से शासन कार्य करता था।

प्यूकेलाओटिस (Peukelaotis)-  यहाँ पर राजतंत्रात्मक शासन-व्यवस्था प्रचलित थी। जिस समय सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया उस समय यहां पर आस्टेस (Astes) नामक राजा शासन करता था। वह राजा हस्ती(Hasti) या अष्टक (Ashtaka) के नाम से भी जाना जाता था। एरियन का कहना है कि यह राज्य काबुल से सिंध जाने वाले सड़क के समीपवर्ती क्षेत्र में फैला हुआ था (संभवतः इसका क्षेत्र आधुनिक पाकिस्तान के पेशावर जिले में था)। संस्कृत में इस क्षेत्र की तुलना पुष्करावती (पुष्कलावती) जो गांधार का पश्चिमी क्षेत्र था, से की गई है। इसकी राजधानी भी यहीं पर थी। इस स्थान को आधुनिक चारसद्दा कहा जाता है। जिस समय सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया पुष्करावती भी उसके सैनिक अभियान का शिकार बनी। सिकन्दर के एक सेनापति हेफीस्वन(Hephaestion) ने इस राजा को युद्ध में पराजित कर उसकी हत्या कर दी।

तक्षशिला (Taxila या Takshila)-  तक्षशिला एक काफी प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण नगर था। सिन्धु तथा झेलम नदियों के बीच यह नगर अवस्थित था। यह आधुनिक पाकिस्तान के रावलपिंडी जिले में स्थित था। पहले यह गांधार प्रदेश की राजधानी थी परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि 4थीं शताब्दी ई०पू० में यह एक स्वतंत्र राज्य के रूप में विकसित हो चुका था। सिकन्दर के आगमन के समय बेसीलियस (Basileus) या टैक्साइल्स (Taxiles) यहाँ का शासक था। उसने सिकन्दर के साथ बहुमूल्य भेटों के साथ मुलाकात भी की थी। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र मोफिस (Mophis) या ओम्फिस (Omphis) या आम्भी (Ambhi) तक्षशिला का शासक बना। इससे पता चलता है कि यहां पर वंशानुगत राजतंत्रात्मक पद्धति प्रचलित थी।

आर्सकेस या उरशा (Arasakes)-  यह राज्य हाजरा जिले में स्थित था तथा कम्बोज राज्य का एक भाग था। संस्कृत में आर्सकेस को उरशा कहा गया है। उरशा का उल्लेख बहुत से खरोष्ठी अभिलेखों में किया गया है। संभवतः तक्षशिला का राज्य भी इसका एक भाग था।

अभिसार (Abhisara)-  स्ट्रैबों के कथनानुसार तक्षशिला के उत्तर की ओर के पहाड़ों के मध्यवर्ती क्षेत्र को अभिसार कहा जाता था। प्रसिद्ध विद्वान स्टाईन ने इस क्षेत्र के लिए दार्वाभिसार (Darvabhisar) शब्द का प्रयोग किया है। उनके अनुसार यह राज्य झेलम और चेनाब के बीच स्थित था। इसमें कश्मीर के पुंछ एवं कुछ अन्य स्थान सम्मिलित थे। संभवतः अभिसार का राज्य भी प्राचीन कम्बोज प्रदेश का एक भाग था। सिकंदर का समकालीन अभिसार राजा अबीसेर्यस (abisares) था। वह अपनी कूटनीतिज्ञता के लिए बहुत प्रसिद्ध था।

ज्येष्ठ पुरू (पोरस) का राज्य (Kingdom of the Elder Poros)-  सिकन्दर के आक्रमण के समय यह एक महत्त्वपूर्ण राज्य था। यह राज्य झेलम तथा चेनाब के बीच स्थित आधुनिक गुजरात एवं शाहपुर का भाग था। स्ट्रैबो के विवरण से पता लगता है कि यह काफी समृद्ध राज्य था। यहाँ की भूमि काफी उपजाऊ थी तथा इस राज्य में करीब तीन सौ नगर थे। डायोडोरस का कहना है कि यहां के राजा के पास 5 हजार पैदल सैनिक, 3 हजार घुड़सवार, 1 हजार रथ तथा 130 हाथियों की मजबूत सेना थी। यहां के शासक एवं अभिसार के राजा के बीच संभवतः मैत्रीपूर्ण संबंध था, क्योंकि अभिसार के शासक ने सिकन्दर के अभियानों के दौरान पुरू की मदद की थी। पुरू या पोरस संभवतः वैदिककालीन आर्यों की एक महत्त्वपूर्ण शाखा थी।

ग्लौगनिकाई प्रदेश (Glauganikai)-  यह क्षेत्र चेनाब नदी के पश्चिम में अवस्थित था। इस राज्य की सीमा तथा पुरू राज्य की सीमा एक-दूसरे से सटी हुई थी। अरिस्टोबुलस यहाँ के निवासियों को ग्लौगनिकाई कहता है परंतु टॉलमी इन्हें ग्लासियन (Glausians) के नाम से संबोधित करता है। यह राज्य भी काफी समृद्ध प्रतीत होता है। यहाँ करीब सैंतीस नगर थे जिनमें सबसे छोटे नगर की आबादी 5 हजार थी।

गान्दारिस (gandaris)-  यह राज्य अपेक्षाकृत कम महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है। गान्दारिस एक छोटा-सा राज्य था जो चेनाब और रावी के मध्य स्थित था। यहाँ का शासक भी पुरू के नाम से ही जाना जाता था। यह संभवतः ज्येष्ठ पुरू, का भतीजा था।

आद्रेस्ताई (Adraistai)-  इस राज्य के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। यहाँ के निवासी संभवतः महाभारत में वर्णित आद्विज हैं। ये लोग रावी नदी के पूर्वीतट पर बसे हुए थे। इनका प्रमुख नगर पिम्प्रमा(Pimprama) था।

कथैओई या कठ (Kathaioi)- कठों के बीच गणतंत्रात्मक व्यवस्था प्रचलित थी। स्ट्रैबो का कहना है कि कठों का राज्य झेलम और चेनाब नदियों के बीच में बसा हुआ था, परंतु अन्य इतिहासकारों ने इसे चेनाब और रावी नदियों के बीच अवस्थित बताया है। इस राज्य की सीमा छोटे पुरू के राज्य की सीमा से जुड़ी हुई थी। इस राज्य की राजधानी संभवतः सागल (गुरुदासपुर जिला अंतर्गत) थी। यहाँ के निवासी युद्ध कला में अति प्रवीण थे। इतिहासकार ओनेसीक्रिटोस (Onesikritos) का कहना है कि इस राज्य में सबसे सुंदर पुरुष राजा के रूप में चुना जाता था।

सोफाइटस या सौभूति (Sophytes)-  सौभूति का राज्य सिकन्दर के आक्रमण के समय एक महत्त्वपूर्ण राज्य था। यह राज्य संभवतः झेलम नदी के तट पर बसा हुआ था, परंतु अन्य विवरणों से पता चलता है कि यह राज्य झेलम के पूरब में स्थित था। इतिहासकार कर्टिअस एवं स्ट्रैबो के विवरणों से इस राज्य की व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। यहाँ की शासन- व्यवस्था एवं सामाजिक स्थिति काफी अच्छी थी। यहां के लोग सुंदरता के पुजारी थे।

एच०सी० रायचौधरी के मतानुसार यहाँ का शासक कोई स्वतंत्र राजा नहीं था बल्कि किसी दूसरे राजा का उपराजा था।

फेगेलास या फेगलू (Phegelas)- यहाँ संभवतः गणतंत्रात्मक शासन-व्यवस्था प्रचलित थी। फेगल राज्य रावी और व्यास नदियों के बीच में पड़ता था। यहां का शासक फेगेलास (भागल) था।

सिबोई (Siboi)- सिबोई काफी प्राचीन जाति थी। संभवतः वे ऋग्वेद में वर्णित शिव जाति के थे। जातक कथाओं तथा पाणिनी के ग्रंथ अष्टाध्यायी में इनका उल्लेख हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिव, शिवि तथा शिबोई एक ही जाति थी। इनका निवास क्षंग जिला के शेरकोट क्षेत्र में था। इनकी राजधानी शिबिपुर या शिबि नगर था।

आगलस्सोई (Agalassoi)-  इस राज्य के विषय में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है; परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि आगलस्सोई शिबियों के पड़ोसी थे। इनके पास काफी बड़ी सेना थी जिसमें लगभग 40 हजार पदाति तथा 3 हजार घुड़सवार सैनिक थे।

आक्सीड्रकाई या क्षुद्रक (Oxydrakai-Kshudraka)- क्षुद्रकों का राज्य झेलम तथा चेनाब के संगम के नजदीक था। ये भी शिबियों के पड़ोसी थे। यहां के निवासी अपनी वीरता एवं लड़ाकू प्रवृत्ति के लिए काफी प्रसिद्ध थे। यह एक गणराज्य था।

मल्लोई या मालव (Malloi)- मल्लोई या मालव राज्य रावी नदी के निचले भाग की ओर दाहिने तट पर अवस्थित था। चेनाब और सिंधु नदी का संगम मालव राज्य में ही हुआ था। कात्यायन के अनुसार क्षुद्रकों एवं मालवों का एक संयुक्त राज्य था। अतः यह भी एक गणराज्य ही था। इन दोनों की सम्मिलित सेना काफी बड़ी थी। कर्टियस कहता है कि इनके पास 90 हजार पैदल, 10 हजार अश्वारोही तथा 900 युद्ध के रथ थे। पाणिनी ने इनका उल्लेख ‘शास्त्रोपजीवी’ के रूप में किया है।

आबस्टनोई या अम्बष्ट (Abastanoi)-  4थी शताब्दी ई०पू० में अम्बष्टों का राज्य एक महत्वपूर्ण राज्य था। यह मालव देश के नीचे तथा चेनाब और सिंधु के संगम के ऊपरी प्रदेश में कहीं अवस्थित था। संस्कृत साहित्य में इसका बराबर उल्लेख मिलता है। अम्बष्टों को क्षत्रिय, ब्राह्मण एवं वैश्य बताया गया है। संभवतः यह पहले एक लड़ाकू जाति थी, परंतु बाद में इन लोगों ने अन्य व्यवसायों को अपना लिया। सिकन्दर के आक्रमण के समय यहां गणतांत्रिक शासन व्यवस्था वर्तमान थी। इनकी सैन्य शक्ति काफी मजबूत थी। यहाँ की सेना में लगभग 60 हजार पैदल सैनिक, 6 हजार घुड़सवार और 500 रथ थे।

जाथ्रोई और ओसोडिओई (Kathroiand Ossodioi)- मेक्रिन्डल महोदय के मतानुसार जाथ्रोई संस्कृत क्षत्रिय का पर्यायवाची है तथा यूनानी ओसोडियाई महाभारत का वसाति है। इनके राज्य के विषय में कम जानकारी उपलब्ध है। यह राज्य चेनाब के तटवर्ती क्षेत्र में फैला हुआ था।

सोद्रई (सोग्दोई) और मस्सनोई (Sodrai-Sogdoi and Massanoi)-  यह प्रदेश उत्तरी सिंध, बहावलपुर राज्य तथा सिंधु की सहायक नदियों के संगम के पास अवस्थित था। सिंधु नदी के दोनों पटों पर इन जातियों का संघ था।

मैसिकनोष या मुषिक (Mousikanos)- सिंधु के एक बड़े भू-भाग पर इनका आधिपत्य था। इस राज्य की राजधानी सक्खर जिले में स्थित अलोर (एलोर) नामक स्थान पर थी। इस देश में ब्राह्मणों का काफी अच्छा प्रभाव था। सिकन्दर के विरुद्ध ब्राह्मणों ने ही यहां के जनमत को उभाड़ा था तथा उसका मुकाबला किया।

प्रोस्थस या ऑक्सीकनोस (Prosthas or Oxykanos)- इतिहासकार कर्टियस ऑक्सीकनोस की प्रजा को प्रास्ती या प्रोस्थस कहता है। इनका निवास सिंध के पश्चिम लरखान के पास था।

सम्बोस, सम्बस या शाम्ब (Sambos)- मूषिकों के राज्य के पास के पहाड़ी इलाकों का शासक सम्बोस या शाम्ब था। इसकी राजधानी सिन्दीमान या सेहवान थी। मूषिकों के साथ इनका सौहार्द्रपूर्ण संबंध नहीं था। दोनों एक-दूसरे के विरोधी प्रतीत होते हैं।

पटल या पटलेन (Patalene)- यह राज्य सिंधु के डेल्टा में फैला हुआ था। इसकी राजधानी पाटल नगर थी जो बहमनाबाद के समीप था। डायोडोरस का कथन है कि पटल की शासन व्यवस्था स्पार्टा के ही समान थी। यह का राजा मोरेस था।

इस प्रकार उत्तर-पश्चिमी भारत में चौथी शताब्दी ई०पू० में अनेक छोटे-बड़े राज्य थे। इनके बीच आएपी विभेद बहुत अधिक था। वे सदैव एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास करते थे। फलस्वरूप इस क्षेत्र में राजनीतिक एकता का सर्वथा अभाव था। ऐसी स्थिति किसी भी आक्रमणकारी के लिए अत्यंत उपयुक्त होती है। सिकन्दर को यहां की वर्तमान राजनीतिक अवस्था को देखते हुए भारत पर आक्रमण करने की प्रेरणा मिली। इतना ही नहीं, वह इन राज्यों के आपसी फूट का लाभ उठाकर लगातार विजयी होता चला गया। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि उत्तर-पश्चिमी भारत की राजनीतिक अवस्था ने सिकन्दर को भारत पर आक्रमण करने को प्रेरित किया।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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