विपणन प्रबन्ध / Marketing Management

वस्तु के कीमत निर्णयों को प्रभावित करने वाले तत्व | Factors Affecting Pricing Decisions in Hindi

वस्तु के कीमत निर्णयों को प्रभावित करने वाले तत्व | Factors Affecting Pricing Decisions in Hindi

वस्तु के कीमत निर्णयों को प्रभावित करने वाले तत्व

(Factors Affecting Pricing Decisions)

वस्तु के कीमत निर्णय को निम्नलिखित तत्व प्रभावित करते हैं –

  1. व्यवसाय के उद्देश्य (Objectives of Business) – व्यवसाय के विभिन्न उद्देश्य हो सकते हैं, जैसे- विनियोजित धन पर उचित दर से आय प्राप्त करना, प्रतियोगी बाजार में अधिक बाजार प्राप्त करना, आदि। अतः व्यवसाय के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही कीमत निर्णय लेने चाहिए।
  2. लागत सम्बन्धी तत्व (Cost Consideration) – कीमतों और लागतों में घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण कीमत निर्धारण में वस्तु की लागतों पर उचित ध्यान देना चाहिए। विपणन के क्षेत्र में कीमत ही लागतों का निर्धारण करती है। सर्वप्रथम विपणनकर्ता को बाजार की माँग, प्रकृति, प्रतिस्पर्धियों की स्थिति, वस्तु विभिन्नता, सम्वर्धन वितरण व्यवस्था आदि के आधार पर कीमत का अनुमान लगाना चाहिए। तब उस कीमत के अनुरूप ही विभिन्न लागतों को समन्वित करना चाहिए। इस प्रकार कीमत को वस्तु की लागत प्रभावित करती है और कीमत वस्तु की लागतों को भी निर्धारित करती है।
  3. उत्पाद की जीवन चक्र में अवस्था (Product’s Stage in the Life Cycle) – कीमत निर्धारण वस्तु की जवन चक्र अवस्था (स्थिति) पर निर्भर करता है। वस्तु की प्रारम्भिक या प्रस्तुतीकरण अवस्था में यह फर्म या संस्था की इच्छा पर निर्भर करता है कि वस्तु की ऊंची कीमत निर्धारित करे या नीची कीमत, क्योंकि उस समय बाजार में प्रतिस्पर्धा का अभाव होता है। वस्तु की उत्तरोत्तर अवस्थाओं में बाजार के प्रतिस्पर्धी आ जाते हैं और इसके परिणामस्वरूप फर्म की कीमत निर्धारण की स्वतन्त्रता संकुचित हो जाती है। इन अवस्थाओं में बाजार विस्तार के लिए कीमतों में कमी करनी पड़ती है।
  4. उत्पाद विभक्तीकरण (Product Differentiation) – वस्तु का बाजार उसकी कीमत के स्थान पर उत्पाद की विभिन्नताओं पर अधिक निर्भर करता है। अतः ऐसी स्थिति में उत्पाद, रंग, रूप, आकार, वैकल्पिक प्रयोग, आदि विभिन्नताएँ उत्पन्न कर दी जाती है जिनमें कि अधिक से अधिक ग्राहकों को आकर्षित किया जा सके। ऐसे ग्राहक जिनके लिए कीमत अधिक महत्वपूर्ण क्रय निर्धारण तत्व नहीं होता है, वे वस्तु की कीमत के स्थान पर फैशन, स्टाइल, गुण, टिकाऊपन, उत्पाद सेवा आदि को प्राथमिकता देते हैं। ऐसी स्थिति में वस्तु की अपेक्षाकृत अधिक कीमत निर्धारित की जा सकती है।
  5. उपभोक्ताओं के क्रय प्रारूप (Consumer’s Buying Patterns) – कीमत, निर्धारण में उपभोक्ताओं की वस्तु क्रय करने की आदत एवं तरीकों आदि का भी प्रभाव पड़ता है। यदि किसी वस्तु की बारम्बारता अधिक है तो ऐसी वस्तु को निम्न लाभ सीमा पर बेचा जाना चाहिए क्योंकि ऐसी स्थिति में निम्न लाभ सीमा होते हुए भी कुल विक्रय शीघ्र और अधिक होने के कारण कुल लाभ की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके विपरीत ऐसी वस्तुयें जिनकी क्रय बारम्बारता बहुत होती है उनको अधिक लाभ सीमा पर बेचा जाना चाहिए। उदाहरण के लिए खाद्य सामग्री, साबुन आदि की क्रय बारम्बारता अधिक होने के कारण ऐसी वस्तुएं निम्न लाभ सीमा पर और टेलीविजन, कार, स्कूटर आदि की क्रय बारम्बारता निम्न होने के कारण ये उच्च लाभ पर बेचे जाते हैं।
  6. कीमत लोच (Price Elasticity) – कीमत निर्धारित करते समय उस वस्तु की कीमत लोच को भी ध्यान में रखा जाता है। कीमत की लोच से अभिप्राय कीमत में परिवर्तन के परिणामस्वरूप उस वस्तु की माँग (विक्रय) में परिवर्तन को अपनाने से है। इसको निम्न सूत्र के द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। –

Price Elasticity: = Q2– Q1/Q1+Q2  = P2– P1/P1+P2

P1 = पूर्व कीमत

Q1 = पूर्व माँग

P2 = परिवर्तित कीमत

Q2 = परिवर्तित माँग

ऐसी वस्तुयें जिनकी माँग बेलोचदार होती है, जैसे- नमक, कोयला, एवं मिट्टी का तेल, आदि उनकी अधिक कीमत निर्धारित की जा सकती है। क्योंकि ऐसी स्थिति में कीमत परिवर्तन के बाद भी माँग प्रायः पूर्ववत ही बनी रहती है। इसके विपरीत लोचदार माँग वाली वस्तुओं जैसे – टी०वी०, रेडियों एवं फ्रिज, कूलर आदि की कीमत में लोच अधिक होने के कारण वस्तुओं की कम कीमत निर्धारित करनी चाहिए।

  1. सम्भावित बाजार का परिमाण (Size of Potential Market) – यदि बाजार का आकार अधिक है तो अधिक विक्रय होने की सम्भावना के कारण उत्पादकों की भौतिक, वितरण, यातायात आदि विपणन लागतों में कमी होने की सम्भावना होती है। अतः वस्तुओं की कीमत कम रखी जानी चाहिए।
  2. वितरण नीति (Distribution Channel Policy) – वितरण वाहिका सम्बन्धी नीति भी कीमत निर्धारण पर प्रभाव डालती है। यदि ऐसी वितरण वाहिका का चयन किया जाता है जिससे मध्यस्थों द्वारा वस्तु विक्रय करने के लिए, स्कन्ध, विज्ञापन आदि के लिए अधिक लागतें वहन करनी पड़ती हैं तो ऐसी स्थिति में निर्माता को वस्तु के फुटकर मूल्य अधिक निर्धारित करने पड़ते हैं। इसके विपरीत यदि मध्यस्थों द्वारा वस्तु के विक्रय करने के लिए विपणन लागतों को वहन नहीं करना पड़ता है तो निर्माता वस्तु की कीमत निर्धारित कर सकता है।
  3. प्रतिस्पर्धियों की कीमतें (Competitor’s Prices) – प्रतिस्पर्धियों की कीमतें भी कीमत नीति को प्रभावित करती है। अधिकांश निर्माता अपनी वस्तु की कीमत प्रतिस्पर्धा में आने वाले अन्य निर्माताओं की वस्तु को देखते हुए निश्चित करते हैं। इसके अतिरिक्त वे कीमत निर्धारित करते समय प्रतिस्पर्धियों की वस्तु की किस्त को भी ध्यान में रखते हैं। यदि उनकी वस्तु की किस्म अच्छी है या संस्था की ख्याति अच्छी है तो वे अपनी वस्तु की कीमत अधिक भी निर्धारित कर सकते हैं। इसके विपरीत यदि विपणनकर्ता यह उचित समझता है कि प्रतिस्पर्धी कीमतों से कम कीमत निर्धारित करना अधिक श्रेयस्कर होता तो कम कीमत भी निर्धारित की जा सकती है।
  4. आर्थिक वातावरण (Economic Environment) – वस्तु की कीमत पर आर्थिक वातावरण के परिवर्तन का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है। मन्दी के समय वस्तु की मांग कम होने के कारण विक्रय स्तर को बनाये रखने के लिए वस्तुओं की कीमतों में कमी करना आवश्यक हो जाता है। इसके विपरीत तेजी काल में बढ़ती हुई लागतों के परिणामस्वरूप कीमतों में वृद्धि करना आवश्यक हो जाता है।
  5. अन्य तत्व (Other Factors) – इनमें निम्न तत्व विचारणीय हैं –

(1) सरकारी नीति ( Government Policy) – जब कोई निर्माता वस्तु की अधिक कीमतें निर्धारित करता है तो सरकार उसकी कीमतों को निर्धारित करने के लिए कदम उठा सकती है या उस संस्था का राष्ट्रीयकरण कर सकती है अथवा संस्था की पूर्ति अपने हाथ में ले सकती है। यहीं कारण है कि सरकार द्वारा कीमत को नियन्त्रित करने के लिए उठाये जाने वाले कदमों के भय से अधिकांश निर्माता अपनी वस्तुओं की कीमत अधिक निर्धारित नहीं करते हैं। कुछ वस्तुओं की कीमतों को तो सरकारी हस्तक्षेप प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, जैसे- गन्ना, गेहूँ, चीनी, नियन्त्रित कपड़े, वनस्पति घी आदि की कीमतें सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।

(2) उचित कीमत (Fair Price) – व्यवसायी का यह सामाजिक व नैतिक दायित्व है कि वह वस्तु की कीमत न्यायोचित ढंग से निर्धारित करे। अत्यधिक लाभ कमाने की इच्छा से वस्तु की कीमतों में अधिक वृद्धि करना असामाजिक व अनैतिक कार्य है। इसलिए बहुत सी संस्थायें सामाजिक और नैतिक पहलुओं को ध्यान में रखकर वस्तु की उचित कीमतें निर्धारित करती हैं।

(3) श्रमिक नेताओं का भय ( Fear of Labour Leaders ) – उत्पादकों को कीमत बढ़ाते समय यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि उसका श्रमिकों पर क्या प्रभाव पड़ेगा? कीमत वृद्धि से जहाँ एक ओर फर्म के लाभों में वृद्धि होती है वहीं दूसरी और श्रमिकों द्वारा वेतन, मजदूरी, बोनस एवं अधिक सुविधाओं की माँग किया जाना स्वाभाविक ही है जो कि औद्योगिक विवाद का कारण बन सकता है। यदि कीमत वृद्धि के परिणामस्वरूप श्रमिक की मजदूरी में अनुपातिक वृद्धि कर दी जाये तो उत्पादकों का वृद्धि से होने वाला अतिरिक्त लाभ भी कम हो जायेगा। दूसरे मजदूरी में एक बार वृद्धि करने के पश्चात उसको कम करना सम्भव नहीं होता है। इसलिए निर्माता को सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि थोड़े समय के लिए कीमत बढ़ाने की अपेक्षा वस्तु की कीमत कम ही रखे, जिससे कि श्रम नेता अपनी अधिक वेतन की माँगों को मनवाने के लिए आन्दोलन न शुरू करें।

(4) उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया (Consumer’s Reaction) – कीमत वृद्धि का उपभोक्ता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है। वे इसका विरोध करते हैं। कभी-कभी तो विवेकशील उपभोक्ता उस वस्तु का उपभोग पूर्णतः बन्द या आनुपातिक रूप से कम कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उत्पादों को कीमत वृद्धि का अधिक लाभ नहीं मिल पाता है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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