अर्थशास्त्र / Economics

विदेश व्यापार नीति 2004-09 | विदेश व्यापार नीति के मुख्य उद्देश्य | विदेशी व्यापार नीति 2004-2009 की समीक्षा

विदेश व्यापार नीति 2004-09 | विदेश व्यापार नीति के मुख्य उद्देश्य | विदेशी व्यापार नीति 2004-2009 की समीक्षा

विदेश व्यापार नीति 2004-09

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्रीकमल नाथ ने 31 अगस्त 2004 को 5 वर्षों (2004- 2009) के लिए नयी विदेश व्यापार नीति घोषित की। इस नीति का मुख्य उद्देश्य विश्व व्यापार भारत के भाग को जो 2003 में 0.7 प्रतिशत था बढ़ाकर 2009 में 1.5 प्रतिशत अर्थात् ‘दुगुना करना है। 2003 (04 के दौरान भारत का पण्यवस्तु निर्यात (Merchandise export) 61.48 अरब डालर था, जो कि विश्व व्यापार का लगभग 0.7 प्रतिशत था। यदि इस भाग को दुगुना करना है, तो इसका अर्थ यह होगा कि देश के निर्यात को बढ़ा कर 2009 तक 195 अरब डालर तक पहुंचाया जाए। इस आकलन में यह मान्यता की गयी है कि इस अवधि में विश्व व्यापार की चक्रवृद्धि दर 10 प्रतिशत प्रति वर्ष रहेगी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारतीय निर्यात को 26 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करनी होगी। इसके अतिरिक्त, सेवा क्षेत्र को शुद्ध अदृश्य पर्दा (Net invisibles) मैं अपने भाग को बढ़ाकर 100 अरब डालर तक ले जाना होगा। अतः इन दोनों क्षेत्रों से मिलकर 2009 तक 300 अरब डालर के लक्ष्य को प्राप्त करने की उम्मीद की गयी है।

विदेश व्यापार नीति के दो मुख्य उद्देश्य हैं :

(i) विश्व पण्यवस्तु व्यापार में भारत के भाग को जो 2003 में 0.7 प्रतिशत है, बढ़ा कर 2009 में 15 प्रतिशत और

(ii) आर्थिक विकास के प्रभावी उपकरण के रूप में कार्य करना ताकि रोजगार-जनन को बढ़ावा मिले, विशेषकर अर्द्ध-नगरीय एवं ग्राम क्षेत्रों में।

इन दोनों उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए लिए मुख्य रणनीति के अंग निम्नलिखित हैं-

  1. नियंत्रों (Controls) को समाप्त करना;
  2. विश्वास एवं पारदर्शिता का वातावरण कायम करना;
  3. कार्यविधि को सरल बनाना और कारोबारी लागत (Transaction cost) को कम करना;
  4. यह मूल सिद्धान्त अपनाना कि शुल्कों (Duties) एवं उपकरों (Cesses) का निर्यात नहीं किया जाएगा और
  5. भारत को विनिर्माण, व्यापार और सेवाओं के क्षेत्र में विश्व के एक केन्द्र के रूप में विकसित करने के लिए विशेष केन्द्रीय क्षेत्रों की पहचान करना और उन्हें बढ़ावा देना।

विशेष केन्द्रीय पहल

ऐसे क्षेत्र, जिनमें निर्यात संवर्धन की महत्वपूर्ण सामर्थ्य है और इसके साथ-साथ अर्द्ध- नगरीय और ग्राम क्षेत्रों में रोजगार-जनन की क्षमता रखते हैं, की पहचान, विकास केन्द्रों के रूप में की गयी है। इनमें शामिल हैं कृषि, हस्तशिल्प, हथकरघा, रत्न और आभूषण, चमड़ा और फुटवियर।

निर्यात में श्रेष्ठता-प्राप्त नगरों (Towns of export excellence) की न्यूनतम सीमा 1,000 करोड़ रुपये से घटा कर 250 करोड़ रुपये कर दी गयी है और वे भी विकास-केन्द्रों की श्रेणी में लाए जाएंगे।

कृषि के लिए पैकेज

एक नयी योजना जिसे विशेष कृषि उपज योजना कहा जाएगा, चालू की गयी ताकि फलो, सब्जियों, फूलों और मूल्य संवर्धित उत्पार्दी (Value added products) के निर्यात को बढ़ाया जाए। इनका अधिक निर्यात करने वालों को करमुक्त ऋण (Duty free credit) दिया जाए जो कि इनके निर्यात का 5 प्रतिशत होगा।

हथकरघा और हस्तशिल्प

हथकरघा और हस्तिशल्प के शुल्क मुक्त आयात को बढ़ा कर निर्यात के मूल्य को 5 प्रतिशत तक बढ़ा दिया गया है।

एक नया हस्तशिल्प विशेष आर्थिक क्षेत्र कायम किया जाएगा।

रत्न और आभूषण (Gems and Jewellery)

स्वर्ण और प्लाटिनम को छोड़ अन्य धातुओं के लिए निर्यात के 2 प्रतिशत मूल्य तक शुल्क-मुक्त आयात की इजाज़त होगी।

18 करैट या इससे ऊपर के स्वर्ण के आयात के लिए पुनःपूर्ति योजना (Replenishment Scheme) के अधीन आयात की इजाजत होगी।

चमड़ा और फुटवियर (Footwear)

चमड़ा उद्योग के लिए शुल्क-मुक्त आयात (Duty free import) की सीमा बढ़ाकर निर्यात के मूल्य के 3 प्रतिशत तक कर दी गयी है।

चमड़ा क्षेत्र के लिए कुछ विशिष्ट मदों के शुल्क-मुक्त आयात को बढ़ा कर निर्यात के मूल्य के 5 प्रतिशत तक कर दिया गया है।

चमड़ा उद्योग से निकलने वाले मल को प्रसंस्कृत करने के लिए मशीनरी और उपकरणों को आयात-शुल्कों से मुक्त कर दिया गया है।

निर्यात संवर्धन योजनाएं (Export Promotion Schemes)

एक नयी योजना ‘टारगेट प्लस’ (Target Plus) (लक्ष्य से अधिक निर्यात) चालू की गयी है, जिसके आधीन निर्यातक को शुल्क-मुक्त उधार का हक होगा, यदि उसका अतिरिक्त निर्यात, निर्धारित निर्यात-लक्ष्य से महत्वपूर्ण रूप में अधिक है। अतिरिक्त निर्यात के 20 प्रतिशत, 25 प्रतिशत और 100 प्रतिशत होने पर शुल्क-मुक्त ऋण, अतिरिक्त निर्यात के मूल्य का क्रमशः 5 प्रतिशत, 10 प्रतिशत और 25 प्रतिशत होगा।

सेवा निर्यात (Service Exports)

सेवा निर्यात के लिए, ‘भारत से सेवा-प्रद’ (Served from India) योजना चालू की गयी है, जिसके आधीन भारतीय ब्राडों को विदेशी बाजारों में स्थापित करने का अभियान चलाया जाएगा। इसके अधीन वैयक्तिक सेवा प्रदाता को 10 लाख रुपये की विदेशी मुद्रा अर्जित करने के विरुद्ध, इसके 10 प्रतिशत तक शुल्क-मुक्त ऋण प्राप्त करने का अधिकार होगा।

निर्यात उन्मुख इकाइयां (Export Oriented Units)

कृषि के लिए इस योजना के आधीन आयातित पूंजी वस्तुओं को कृषि-निर्यात-क्षेत्र में भारत में किसी भी स्थान पर स्थापित करने की इजाजत होगी।

निर्यात-उन्मुख इकाइयों को, उनके द्वारा सेवाओं और वस्तुओं के रूप में किए गए अनुपात के रूप में सेवा-कर से छूट होगी।

निर्यात-उन्मुख इकाइयां अपने निर्यात से प्राप्त 100 प्रतिशत आय को, अपनी विदेशी मुद्रा अर्जित करेन्सी खातों में रख सकेंगी।

नया स्टेटस-धारक वर्गीकरण (States holder classification)

स्टार निर्यात घरानों (Star Export Houses) के स्टेटस-धारकों का एक नया युक्ति-युक्त

वर्गीकरण चालू किया गया है

वर्ग गत तीन वर्षों में कुल निष्पादन
एक स्टार निर्यात घराना 15 करोड़ रुपये
दो स्टार निर्यात घराना 100 करोड़ रुपये
तीन स्टार निर्यात घराना 500 करोड़ रुपये
चार स्टार निर्यात घराना 1,000 करोड़ रुपये
पांच स्टार निर्यात घराना 5,000 करोड़ रुपये

स्टार निर्यात घरानों को बहुत से विशेषाधिकार प्राप्त गत तीन वर्षों में कुल निष्पाद प्राजैक्टों की तेजी से स्वीकृति की कार्यविधि, बैंक गारंटी उपलब्ध कराने में छूट, लक्ष्य से अधिक निर्यात योजना में शामिल किए जाने की पात्रता, आदि।

मुक्त व्यापार और भाण्डागार क्षेत्र (Free Trade and Warehousing Zone)

(i) एक नयी योजना चालू की जाएगी जिसके आधीन मुक्त व्यापार एवं भण्डागार क्षेत्र कायम किये जाएंगे ताकि विदेशी व्यापार-सम्बन्धी-आधारसंरचना (Infrastructure) स्थापित की जा सके जिससे वस्तुओं और सेवाओं का आयात एवं निर्यात सुविधाजनक रूप में किया जा सके। इसके साथ-साथ मुक्त करेन्सी में व्यापारिक सौदे करने की भी स्वतन्त्रता होगी।

(ii) इन क्षेत्रों के विकास और स्थापना करने के लिए और इनमें आधारसंरचना सुविधाओं को बढ़ावा देने के लिए 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (Foreign Direct Investment) की इजाजत होगी।

 (iii) प्रत्येक क्षेत्र पर 100 करोड़ रुपये का न्यूनतम परिव्यय किया जाएगा और इसका निर्यात क्षेत्र 5 लाख वर्ग मीटर होगा।

(iv) इन क्षेत्रों को वे सभी लाभ प्राप्त होंगे जो विशेष निर्यात क्षेत्रों (Special Export Zones) को प्राप्त हैं।

पुरानी पूंजी वस्तुओं (Second Hand Capital Goods) का आयात

बिना आयु का प्रतिबन्ध लगाए पुरानी प्रयुक्त पूंजी वस्तुओं के आयात की इजाजत होगी। भारत में पुनः स्थापित करने के लिए प्लान्ट एवं मशीनरी की न्यूनतम मूल्य ह्रसित कीमत (Depreciated price) 50 करोड़ रुपये से घटा कर 25 करोड़ रुपये कर दी गयी है।

कार्यविधि सरलीकरण और युक्तिकरण सम्बन्धी उपाय

कारोबरी (Transaction cost) कम करने के लिए सभी निर्यातकों को, जिनका न्यूनतम निर्यात 5 करोड़ रुपये है और निष्पादन-रिकार्ड अच्छा है, किसी भी योजना में बैंक-गारंटी उपलब्ध कराने से छूट दी जाएगी।

निर्यात की गयी सभी वस्तुओं और सेवाओं को जिनमें देशीय टैरिफ क्षेत्र (Domestic Tariff Area) की इकाइयां भी शामिल हैं, सेवा कर से छूट प्राप्त होगी।

सभी लाइसेंसों एवं अधिकारों (Entitlements) की विभिन्न योजनाओं में मान्यता की अवधि बढ़ा कर एक समान 24 महीने कर दी गयी हैं।

निर्यात कारोबार के लिए इलैक्ट्रानिक डेटा इंटरचेंज (Electronic Data Interchange) समय-बद्ध रूप में चालू किया जाएगा।

प्रगति मैदान को एक बहुत बड़े कन्वेन्शन सेंटर (Convention center) के रूप में विकसित किया जाएगा जिसमें 10,000 प्रतिनिधियों को स्थान प्राप्त हो सके और 9,000 गाड़ियों के लिए कार-पार्क सुविधा उपलब्ध हो। इसका उद्देश्य विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना है।

विदेशी व्यापार नीति (2004-2009) की समीक्षा

वाणिज्य मंत्री कमलनाथ नयी विदेश व्यापार नीति की घोषणा द्वारा दो उद्देश्य एक-साथ प्राप्त करना चाहते हैं अर्थात् विश्व व्यापार में भारत के भाग को जो 2003-04 में 0.7 प्रतिशत था बढ़कर 2008-09 में दुगुना कर 1.5 प्रतिशत करना और इसके अतिरिक्त रोजगारजनन को बढ़ावा देना, विशेषकर अर्द्ध-नगरीय एवं ग्राम क्षेत्रों में। इस दृष्टि से विदेशी व्यापार नीति न्यूनतम साझे कार्यक्रम के उद्देश्यों से मेल खाती है। विदेश व्यापार नीति का मूल लक्षण यह है कि केवल मात्रात्मक प्रतिबन्धों (Quantitative Restrictions) को हटाने की अपेक्षा, यह निर्यात को ऐसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में बढ़ाने के बारे में उपाय प्रस्तुत करती है जिनकी पहचान इसके द्वारा की जा चुकी है। प्रोत्साहन के मुख्य क्षेत्र हैं : कृषि, हस्तशिल्प, ‘हथकरघा, रत्न एवं आभूषण, चमड़ा और फुटवियर के क्षेत्र। चूँकि इन क्षेत्रों में लघु एवं मध्यम के उद्यमों का प्रभुत्व है, लघु तथा मध्यम उद्यमों (Small and Medium Enterprises-SMEs) को दिए गए प्रोत्साहनों से निर्यात बढ़ेंगे और साथ में अधिक रोजगार का जनन भी होगा। इस दृष्टि से, नीति- निर्देश बहुत ही अर्थपूर्ण है क्योंकि इस प्रकार इस नीति की पहुंच बहुत बड़ी संख्या वाली, छोटे व्यापार की इकाइयों पर केन्द्रित है, न कि कुछ बहुत बड़े पांच स्टार निर्यात घरानों पर।

एक स्टार से 5 स्टार निर्यात घरानों का युक्तिकरण करने से यह नीति छोटे निर्यातकों की बड़ी संख्या को प्रतिष्ठा प्रदान करना चाहती है जिनकी पहले अनदेखी की जाती थी। इसके अतिरिक्त, इससे छोटे निर्यातकों को प्रोत्साहन मिलेगा कि वे निम्न वर्ग से ऊंचे वर्ग में प्रवेश करने का प्रयास करें। अतः छोटे घराने धीरे-धीरे इस सीढ़ी पर ऊंचे चढ़ जाएंगे। बहुत सी निर्यात इकाइयों के विविधीकरण और विस्तार के परिणामस्वरूप इस नीति की पहुंच का व्यापक रूप बन जाना एक अभिनन्दनीय पहल है।

इसी प्रकार, निर्यात में श्रेष्ठता-प्राप्त नगरों की न्यूनतम सीमा को 1,000 करोड़ रुपये से 250 करोड़ रुपये तक कम करने का उद्देश्य भी नगरों की अधिक संख्या को निर्यात-प्रोन्नति के पवित्र प्रयास में झोंकना है। गोपाल के0 पिल्लई, विदेशी व्यापार के महानिदेशक ने इस सम्बन्ध में सही उल्लेख किया है : “श्रेष्ठता के नगरों को विकसित करने की लागत को 1,000 करोड़ रुपये से कम करके 250 करोड़ रुपये करने का इस नीति में प्रस्ताव पर्याप्त मात्रा में साधन जुटाना है, ताकि ऐसे नगर में सुविधाएं उन्नत की जाएं, जो केवल निर्यात में ही जुटा हुआ है जैसे तीरपुर।” मुख्य उद्देश्य तो निर्यात केन्द्रों के फैलाव को विकसित करना है।

चूंकि विदेश व्यापार नीति सेवा निर्यातों (Service Exports) को तिगुना करना चाहती है, इसके लिए भी बहुत सी अभिनन्दनीय पहल की गयी है। “भारत से सेवा प्रद” ब्रोड निर्माण अपने आप में एक अद्वितीय कदम है, जिससे भारत की छवि विदेशी बाजारों में उन्नत की जाएगी। दूसरे, सेवा निर्यात प्रोन्नति परिषद की स्थापना से सेवाओं में बाजार पहुंच विकसित करने और ब्रांड निर्माण में भारी लाभ प्राप्त किया जा सकता है, यदि इसे बड़े जोश और साहस से बढ़ाया जाए।

“लक्ष्य से अधिक प्राप्ति योजना” (Target Plus Scheme) निर्यातक को निष्पादन के आधार पर प्रोत्साहन देती है। साधारण सिद्धान्त जिसका अनुपालन इसके द्वारा किया गया है, यह है : जितना ऊंचा निष्पादन होगा, उतना ही अधिक शुल्क-मुक्त ऋण अधिकार प्राप्त होगा। इस प्रकार की प्रोत्साहन प्रणाली, प्रतिस्पर्धा की भावना को जागृत करती है ताकि भारतीय खिलाड़ियों द्वारा निर्यात क्षेत्र में निष्पादन उन्नत किया जा सके।

एक और स्वागत योग्य पहल सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात पर सेवा कर से छूट देना है। यह पहल, इस मूल सिद्धान्त के अनुरूप है कि करों एवं शुल्कों का निर्यात नहीं होना चाहिए। दूसरे शब्दों में, यह भारतीय निर्यातक की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में स्पर्द्धा शक्ति को उन्नत करती है। इसके नतीजे के तौर पर निर्यात को समग्र प्रोत्साहन प्राप्त होगा।

एक और पहल स्वतंत्र व्यापार और भाण्डागार क्षेत्र की स्थापना द्वारा, विदेशी व्यापार क्षेत्र में आधारसंरचना को उन्नत करना है। इस नीति के आधारसंरचना के विकास इन क्षेत्रों की स्थापना के लिए 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) की इजाजत दी गयी है। कुछ आलोचकों ने तर्क दिया है कि चीन में, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश विनिर्माण निर्यात का 50 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह केवल 8 प्रतिशत है। यहां यह संकेत करना जरूरी है कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से विश्व-स्तरीय आधारसंरचना (World Class Infrastructure) के विकास में सहायता मिलती है परन्तु यदि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न हो रहे हों, तो भारत को स्वयं आधारसंरचा में निवेश बढ़ाना चाहिए। यदि एक बार भारत ने अपना विश्वास विदेशी व्यापार में कायम कर दिया, तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह अधिक मात्रा में प्राप्त होने लगेंगे।

एक और मुद्दा जिसकी ओर ध्यान देना आवश्यक है, कारोबारी लागत को कम करना है ऐसा विशेषकर इसलिए जरूरी है क्योंकि जिन छोटे एवं मध्यम स्तर के उद्यमों को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य रखा गया है, वे बहुत कम लाभान्तर (Margin) पर व्यापार करते हैं। ऐसे निर्यातों को जिनका निर्यात-राजस्व कम-से-कम 5 करोड़ रुपये है, बैंक गारंटी देने से छूट, सभी लाइसेंसों और अधिकारों की समय-सीमा बढ़ा कर एक समान 24 महीने कर देना और सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात पर सेवा कर से छूट, इन सभी का उद्देश्य कारोबारी लागत कम करना है।

अन्तिम परन्तु कम महत्वपूर्ण नहीं, यह उल्लेख करना होगा कि जहां सभी नीति सम्बन्धी पहल नेक इरादों से की गयी है और उचित दिशा में कदम हैं, विदेश व्यापार नीति की सफलता की मात्रा कार्यान्वयन की गुणवत्ता पर निर्भर करेगी। अफसरशाही तन्त्र कार्यान्वयन के मार्ग में रुकावटें पैदा करने के लिए बदनाम है। इसलिए सरकार का मुख्य कार्य लघु एवं मध्यम उद्यमों और अन्य मुख्य निर्यातकों के व्यापार-कार्य को सुविधाजनक बनाना है ताकि वे नयी विदेश व्यापार नीति द्वारा निर्धारित चुनौती पूर्ण लक्ष्य को प्राप्त कर सकें और पण्यवस्तु निर्यात (merchandise export) में 195 अरब डालर का लक्ष्य और सेवा क्षेत्र के साथ मिलकर 2009 तक 300 अरब डालर के निर्यात का लक्ष्य प्राप्त कर सकें। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री द्वारा इतना ऊंचा लक्ष्य रखना एक बहुत बड़ा साहसी कदम है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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