वित्तीय प्रबंधन / Financial Management

वित्त कार्य की प्रमुख परिभाषाएं | वित्त कार्य के प्रकार | आवर्ती वित्त कार्य | अनावर्ती वित्त कार्य

वित्त कार्य की प्रमुख परिभाषाएं | वित्त कार्य के प्रकार | आवर्ती वित्त कार्य | अनावर्ती वित्त कार्य | Key Definitions of Finance Functions in Hindi | Types of Finance Functions in Hindi | Recurring Finance Functions in Hindi | non-recurring finance function in Hindi

वित्त कार्य की प्रमुख परिभाषाएं

वित्त कार्य की प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

(1) गुडमेन एवं डूगल के अनुसार, “किसी व्यवसाय में प्रयुक्त होने वाले कोषों का विनियोजन करना, उन्हें प्राप्त करना, नियंत्रित करना तथा उन्हें प्रशासित करना, वित्त कार्य है।”

(2) आर0सी0 ओसबोर्न के शब्दों में, “वित्त कार्य कोषों को प्राप्त करने तथा उनका प्रयोग करने की प्रक्रिया है।”

(3) पाल जी० हेस्टिंग्ज के अनुसार, “वित्त व्यवस्था, मुद्रा प्राप्त करने तथा उसे बुद्धिपूर्वक व्यय करने की कला है। इसे एक कम्पनी के मौद्रिक मामलों के प्रबन्धक के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है।”

निष्कर्ष : उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वित्त कार्य से आशय उन समस्त क्रियाओं से है जो व्यवसाय के लिए वित्त को प्राप्त करने, उपयोग करने, आवंटन करने तथा नियन्त्रण करने के लिए की जाती है।

वित्त कार्य के प्रकार (Types of Finance Functions)

आधुनिक विचारधारा के अनुसार वित्त कार्य को दो भागों में बाँटा जा सकता है-

(1) आवर्ती वित्त कार्य तथा (2) अनावर्ती वित्त कार्य

(1) आवर्ती वित्त कार्य (Recurring Finance Functions)

आवर्ती वित्त कार्य से तात्पर्य वित्त सम्बन्धी उन कार्यों से है जो व्यवसाय के कुशल संचालन की दृष्टि से समय-समय पर किये जाते हैं। ये कार्य व्यवसाय के जीवन काल में चलते ही रहते हैं। आवर्ती वित्त कार्य निम्न प्रकार हैं-

(i) कोषों का नियोजन एवं संग्रहण- आवर्ती वित्त कार्य में सबसे प्रमुख कार्य कोषों का नियोजन एवं संग्रहण है। सभी व्यवसायों में वित्तीय योजना तैयार की जाती है। वित्तीय योजना में व्यवसाय के वित्तीय कोषों का निर्धारण किया जाता है, जिससे वित्तीय कोषों का समुचित प्रयोग हो सके। वित्तीय नियोजन में वयवसाय के वित्तीय उद्देश्यों को निर्धारण किया जाता है व व्यवसाय की वित्तीय नीतियों का निर्धारण किया जाता है। पूँजी की मात्रा, अवधि, पूँजी प्राप्त करने के लिये विभिन्न स्रोतों का चयन, पूँजीकरण नीतियों का निर्धारण, स्थायी व चालू सम्पत्ति से सम्बन्धित नीतियों का निर्धारण, आय का निर्धारण व वितरण के सम्बन्ध में नीतियों का निर्धारण आदि सभी वित्त कार्य में सम्मिलित किया जाता है। दीर्घकालीन कोषों की प्राप्ति के लिये अंशों का निर्गमन किया जाये अथवा ऋण पत्रों का अथवा दोनों का ही निर्गमन किया जाये, इस सम्बन्ध में निर्णय लेना वित्त कार्य का ही एक भाग है। वित्तीय प्रबन्ध विभिन्न स्रोतों के गुण-दोषों की तुलना कर परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेता है। इस निर्णय के आधार पर ही वह समझते करता है। आवश्यकता पड़ने पर अभिगोपकों की भी सहायता ली जाती है।

(ii) कोषों व आय का आवंटन- वित्त कार्य में दूसरा कार्य जो वित्तीय प्रबन्ध को करना होता है वह कोषों व आय का आवंटन है। व्यावसायिक संगठन में पूँजी प्राप्त की जाती है। संगठन को जो आय प्राप्त होती है वह भी संगठन में कोषों के रूप में रखी जाती है। संगठन में इन कोषों का लाभपूर्ण कार्यों में प्रयोग वित्त कार्य माना जाता है। विभिन्न कार्यों में वित्त का आवंटन उनकी लाभदायकता, अनिवार्यता आदि तत्वों को ध्यान में रखकर किया जाता है। उत्पादन के लिये पर्याप्त मशीनें व कच्चा माल समय पर उपलब्ध रहना आवश्यक है इसके लिये वित्तीय प्रबन्ध उत्पादन प्रबन्ध को उपलब्ध पूंजी के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिससे वह उसी के अनुसार उत्पादन नियोजन कर सके। वित्तीय प्रबन्ध लाभदायकता व तरलता का ध्यान रखते हुए चालू सम्पत्तियों में विनियोजन भी करता है।

जब संगठन का विस्तार करना होता है तब आय को लाभांश के रूप में वितरित नहीं किया जाता वरन् आय को संगठन में ही रोक लिया जाता है। आय को कोष के रूप में संगठन में रखा जाये अथवा लाभांश के रूप में वितरित किया जाये यह निर्णय वित्त कार्य में ही सम्मिलित किया जाता है। इस सम्बन्ध में निर्णय संगठन की वित्तीय स्थिति, अंशधारियों व संचालकों की रूचि व फर्म की वर्तमान व भावी नकदी आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जाता है।

(iii) कोषों का नियन्त्रण- कोषों के आवंटन के साथ ही कोषों का नियन्त्रण का कार्य भी महत्वपूर्ण वित्त कार्य है। वित्त कार्य में साधनों के प्रयोग को नियन्त्रित करना भी सम्मिलित होता है। यह देखना होता है कि कोषों का प्रयोग उसी कार्य के लिये किया जा रहा है जिसके लिये उनका आवंटन हुआ है। कोषों पर नियन्त्रण के लिये वित्तीय निष्पादन प्रमाप भी निर्धारित किये जाते हैं, जिनसे वास्तविक स्थिति की तुलना कर यह ज्ञात किया जाता है कि दोनों में क्या अन्तर है व इस अन्तर के क्या कारण हैं। जहाँ आवश्यकता होती है वहाँ सुधार का भी प्रयत्न किया जाता है।

(iv) वित्त विभाग व अन्य विभागों में समन्वय- व्यावसायिक फर्म में कई विभाग होते हैं। सभी विभाग वित्त विभाग से सम्बन्धित होते हैं। व्यवसाय की सफलता उपक्रम के विभिन्न विभागों के समन्वय पर निर्भर करती है। वित्त कार्य से सभी विभाग प्रभावित होते हैं। अतः वित्तीय निर्णयों का अन्य विभागों द्वारा लिये गये निर्णयों से समन्वय होना आवश्यक है। यह समन्वय इस प्रकार होना चाहिये कि विभिन्न निर्णयों में एकरूपता हो।

(2) अनावर्ती वित्त कार्य (Non-Recurring Finance Functions ):

अनावर्ती वित्त कार्य में वित्त सम्बन्धी वे कार्य सम्मिलित किये जाते हैं जो वित्तीय प्रबन्धक को एक बार ही करने पड़ते हैं। इन कार्यों को बार-बार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। कम्पनी के प्रवर्तन के समय वित्तीय योजना का निर्माण दो कम्पनियों के संबिलयन के समय सम्पत्तियों का मूल्यांकन, आवश्यकता पड़ने पर पूँजी पुनर्समायोजन आदि इसी प्रकार के कार्य हैं। आवश्यकता पड़ने पर ये कार्य वित्त प्रबन्धक द्वारा ही कर लिये जाते हैं।

वित्तीय प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!