व्यूहरचनात्मक प्रबंधन / Strategic Management

व्यूहरचना निर्णयन के स्तर या मॉडल | व्यूह रचनात्मक मूल्यांकन में सम्भाव्यता नियोजन की भूमिका

व्यूहरचना निर्णयन के स्तर या मॉडल | व्यूह रचनात्मक मूल्यांकन में सम्भाव्यता नियोजन की भूमिका | Levels or Models of Strategic Decision Making in Hindi | Role of Feasibility Planning in Strategic Evaluation in Hindi

व्यूहरचना निर्णयन के स्तर या मॉडल

(Levels / Models of Strategic decision making)

व्यूह रचना निणर्यन के विभिन्न स्तर / माण्डल निम्नलिखित हैं

  1. ध्येय एवं उद्देश्य की स्थापना- प्रत्येक फर्म का अपना ध्येय होता है जो नीति निर्माताओं के व्यावसायिक दर्शन को प्रतिबिम्बित करता है। यह अन्तिम परिणाम होते हैं जिन्हें प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
  2. पर्यावरणीय विश्लेषण तथा उपचार- यह इस प्रक्रिया का अगला चरण है। इसमें पर्यावरणीय घटकों का विश्लेषण किया जाता है।
  3. निगम विश्लेषण तथा उपचार- इस चरण के अन्तर्गत संगठन की सुदृढ़ताओं एवं कमजोरियों को देखा जाता है। ये रणनीतिक अवसरों तथा धमकियों को निर्धारित करने में सहायता करती है।
  4. विकल्पों की पहचान- विकल्पों की पहचान के अनावश्यक कार्य करने से बचाव होता है। विकल्पों की पहचान रणनीतिक अवसरों तथा धमकियों को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए।
  5. रणनीतिक का चुनाव- पूरी सूची का निरीक्षण किया जाना चाहिए।
  6. रणनीति का क्रियान्वयन- समस्त विकल्पों में से सही रणनीति का क्रियान्वयन इस स्तर पर होता है।
  7. मूल्यांकन एवं निक्षेपण- यह इस प्रक्रिया का अन्तिम स्तर होता है। इससे वर्तमान लक्ष्यों को पुनः लागू करने या बदलने पर विचार किया जाता है।

व्यूह रचनात्मक मूल्यांकन में सम्भाव्यता नियोजन की भूमिका

मोर्चाबन्दी या व्यूह रचना एक व्यावसायिक योजना है जिसे प्रतिद्वन्द्वियों की योजनाओं को ध्यान देते हुए तैयार किया जाता है। एक प्रबन्धक को अपनी योजनाओं में असफलता का सामना न करना पड़े इसलिए सम्भाव्यता नियोजन पूर्व में ही बना लेता है। आज के युग में प्रबन्धक का व्यूह रचना में कुशल होना आवश्यक है तभी वह अपने अधीनस्थों पर नियन्त्रण स्थापित करने में समर्थ हो सकेगा। अतएव व्यूह रचनात्मक मूल्यांकन में सम्भाव्यता नियोजन की भूमिका महत्वपूर्ण है जो कि निम्नलिखित है-

  1. भावी कार्यों में निश्चितता- नियोजन के माध्यम से संस्था की भावी गतिविधियों में अनिश्चितता के स्थान पर निश्चितता लाने का प्रयास किया जाता है।
  2. विशिष्ट दिशा प्रदान करना- नियोजन द्वारा किसी कार्य विशेष की भावी रूपरेखा बनाकर उसे एक ऐसी विशेष दिशा प्रदान करने का प्रयत्न किया जाता है जो कि उसके अभाव में लगभग असम्भव प्रतीत होती है।
  3. साम्य एवं समन्वय की स्थापना- नियोजन द्वारा उपक्रम की विभिन्न गतिविधियों में साम्य एवं समन्वय स्थापित किया जाता है।
  4. प्रबन्ध में मितव्ययिता- उपक्रम की भावी गतिविधियों की योजना के बन जाने से प्रबन्ध का ध्यान उसे कार्यान्वित करने की ओर केन्द्रित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप क्रियाओं में अपव्यय के स्थान पर मितव्ययिता आती है।
  5. पूर्वानुमान लगाना- पूर्वानुमान नियोजन का सार है। नियोजन का उद्देश्य भविष्य के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाना है।
  6. निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना- नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहना है।
  7. प्रतिस्पर्द्धा पर विजय पाना- दाँव-पेंच पूर्ण नियोजन प्रतिस्पर्द्धा के क्षेत्र में विजय पाने में सहायक सिद्ध होता है।
  8. कुशलता में वृद्धि करना- नियोजन का एक मूलभूत उद्देश्य उपक्रम की कुशलता में वृद्धि करना है।
  9. जानकारी देना- नियोजन एक सुविचारित कार्यक्रम होता है जिसमें उपक्रम के आन्तरिक एवं बाहरी व्यक्तियों को उपक्रम के सम्बन्ध में समुचित सूचना एवं जानकारी प्राप्त होती है।
  10. भावी जोखिम में कमी- नियोजन उपक्रम की भावी जोखिम एवं सम्भावनाओं को परखता है एवं भावी जोखिमों में कमी लाता है।
  11. स्वस्थ मोर्चाबन्दी- नियोजन का अन्तिम उद्देश्य स्वस्थ मोर्चाबन्दी विकसित करना है।
व्यूहरचनात्मक प्रबंधन – महत्वपूर्ण लिंक

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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