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सीखना क्या है? | सीखने की विशेषताएं | what is learning in Hindi | characteristics of learning in Hindi

सीखना क्या है?
सीखना क्या है?

सीखना क्या है? | सीखने की विशेषताएं | what is learning in Hindi | characteristics of learning in Hindi

सीखने का अर्थ एवं परिभाषा (सीखने क्या है?)

सीखना मनोविज्ञान में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। जैसे ही मानव इस पृथ्वी पर जन्म लेता है वैसे ही उसके सीखने की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। कुछ विद्वान तो यहाँ तक मानते हैं कि गर्भावस्था में ही बालक की सीखने की प्रक्रिया का प्रारम्भ हो जाता है। हमारे प्राचीन ग्रन्थ महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु द्वारा गर्भ में ही चक्रव्यूह में प्रवेश करना सीखने की बात कही गयी है। स्पष्ट है सीखना वह प्रक्रिया है जिसका प्रारम्भ उसने गर्भावस्था काल से ही प्रारम्भहो जाता है। जन्म के पश्चात सीखने की यह प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है। उसे समाज में रहते हुए समाज की परिस्थिति एवं वातावरण के साथ अनुकूलन सीखना होता है। वह अपनीसभ्यता एवं संस्कृति को समाज एवं परिवार से ही सीखता है। बालक की शिक्षा भी पूर्णतया सीखने की प्रक्रिया पर ही आधारित है। वास्तव में सीखना एक व्यापक शब्द है। इसका अर्थ केवल विद्यालय में सीखने या किसी वस्तु विशेष के बारे में जान लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें मानवीय व्यवहार की वह सभी क्रियाएँ सम्मिलित हैं जो व्यक्ति पर अपना स्थायी प्रभाव छोड़ती हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि अधिगम या सीखना एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसका शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान है। कुछ प्रमुख विद्वानों ने अधिगम या सीखने को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

कालविन के अनुसार, “अनुभव के आधार पर हमारे पूर्व-निर्मित (मौलिक) व्यवहार में परिवर्तन की क्रिया ही सीखना है।”

चार्ल्स ई० स्किनर के अनुसार, “व्यवहार के अर्जन में क्रमशः प्रगति की प्रक्रिया को सीखना कहते हैं।

क्रो व क्रो के अनुसार, “सीखना, आदतों, ज्ञान तथा अभिवृत्तियों का अर्जन है।”

गेट्स, जरसील्ड व कालमन के अनुसार, “अनुभव तथा निर्देशन द्वारा व्यवहार में परिवर्तन होने की अवस्था को सीखना कहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने के बाद सीखने की कुछ विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं, जो निम्न प्रकार से गिनायी जा सकती हैं-

सीखने की विशेषताएँ (characteristics of learning)

  1. सीखना लगातार चलने वाली प्रक्रिया है

सीखना एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। यह कभी समाप्त नहीं होती। गर्भावस्था से प्रारम्भ होकर यह मृत्यु तक चलती रहती है, यद्यपि कुछ अवस्थाओं में इसकी गति कम अथवा अधिक हो सकती है।

  1. सीखना व्यवहार में परिवर्तन है

विद्वानों ने परिवर्तन की प्रक्रिया को मानव के व्यवहार में परिवर्तन के रूप को स्वीकार किया है। मानव समाज के अन्य व्यक्तियों एवं परिस्थितियों के सम्पर्क में आता है तथा उनसे प्रभावित होता है जिससे उसके व्यवहार में परिवर्तन आने प्रारम्भ हो जाते हैं। यही परिवर्तन उसके सीखने की प्रक्रिया है।

  1. सीखना अनुकूलन है

व्यक्ति का अपने सामाजिक वातावरण से अनुकूलन करना सीखना है। व्यक्ति को समाज में रहते हुए वातावरण से अनुकूलन करना होता है। व्यक्ति की सीखने की शक्ति जितनी अधिक होती है उतनी ही तीव्रता से वह परिस्थितियों के साथ अनुकूलन करता है। सीखने के पश्चात् ही उसमें परिस्थितियों से अनुकूलन करने की क्षमता आती है। अत: विद्वान मानते हैं कि सीखना ही अनुकूलन है।

  1. सीख सार्वभौमिक है

सीखना एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। यह केवल व्यक्तियों में ही नहीं बल्कि सभी जीव जन्तुओं एवं प्राणियों में भी होती है। सीखने का कोई निश्चित स्थान व अवस्था नहीं होती है बल्कि मानव प्रत्येक स्थान, जैसे परिवार, विद्यालय, पड़ोस, रेलवे- स्टेशन, बाजार आदि सभी जगह सीखता है। अत: यह एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है।

  1. सीखने की प्रक्रिया उद्देश्यपूर्ण

सीखने की प्रक्रिया उद्देश्यपूर्ण एवं कोई न कोई प्रयोजन लिए हुए होती है। किसी उद्देश्य अथवा प्रयोजन से प्रेरित होकर ही बालक सीखने की ओर अग्रसर होता है।

  1. सीखना ज्ञान का संचय

सीखने से बालक के ज्ञान में वृद्धि होती है इसलिए कहा जाता है कि सीखना ज्ञान का संचय है। ज्ञान का संचय कर बालक अपने बौद्धिक एवं संवेगात्मक व्यवहार पर नियन्त्रण करना सीखता है और जो कार्य उसके लिए पहले कठिन था वह सीखने के बाद सरल हो जाता है।

  1. सीखना सक्रिय होता है

सीखने की प्रक्रिया एक सक्रिय प्रक्रिया है। निर्जीव प्रक्रिया नहीं। सीखने के लिए बालक का सक्रिय होना अत्यन्त आवश्यक है। यदि वह सक्रिय होकर सीखने की प्रक्रिया में भाग नहीं लेता तो वह सीख नहीं पाता है।

  1. अनुभवों का संगठन ही सीखना है

केवल अनुभवों को प्राप्त कर लेना ही काफी नहीं है, अनुभवों को प्राप्त कर लेने के बाद उनका संगठन करने पर ही सीखने की प्रक्रिया पूर्ण होती है। अपनी आवश्यकताओं के अनुसार मानव अपने अनुभवों को संगठित कर सीखने की प्रक्रिया को पूर्ण करता है।

  1. सीखना मानसिक विकास है

सीखने की प्रक्रिया के दौरान बालक को नित्य नये-नये अनुभव होते रहते हैं। इन अनुभवों से उसका मानसिक विकास होता है। अतः यह कहा जा सकता है कि सीखना मानसिक विकास करता है।

  1. सीखना एक विवेकपूर्ण प्रक्रिया है

सीखने की प्रक्रिया में विवेक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। किसी भी बालक को तब तक नहीं सिखाया जा सकता जब तक उसमें विवेक न हो। यह विवेक ही है जो बालक को सीखने में सहायता करता है। यदि कोई बालक बार-बार सिखाने पर भी नहीं सीख पाता तो निश्चित ही यह उसके विवेक में कमी की ओर इंगित करता है। सीखने में विवेक का महत्वपूर्ण योगदान है और सीखने के लिए विवेक का होना अत्यन्त आवश्यक है।

  1. सीखना एक व्यक्तिगत एवं सामाजिक कार्य

योकम एण्ड सिम्पसन के अनुसार, “सीखना सामाजिक कार्य है, क्योंकि सामाजिक वातावरण के अभाव में व्यक्ति का सीखना असम्भव है।” उपरोक्त कथन से स्पष्ट है कि सीखने की प्रक्रिया यद्यपि एक व्यक्तिगत रूप से पूर्ण होती है लेकिन यह एक सामाजिक प्रक्रिया भी है। क्योंकि मानव व्यक्तिगत रूप से जो कुछ भी सीखता है वह सामाजिक वातावरण में रहकर ही सीख पाता है।

  1. सीखना एक जननिक प्रक्रिया

सीखना जहाँ एक सामाजिक प्रक्रिया है वहाँ यह एक जननिक प्रक्रिया भी है। यह देखा गया है कि विभिन्न वर्गों के बालकों की सीखने की गति भिन्न-भिन्न पायी गयी है। सीखने की प्रक्रिया की गति की यह भिन्नता उनके वंशानुक्रमण के गुणों के कारण है। अत: सीखने में जननिक प्रक्रिया भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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