चट्टानों के प्रकार

चट्टानों के प्रकार | आग्नेय चट्टानें | अवसादी चट्टानें | रुपांतरित चट्टानें

चट्टानों के प्रकार | आग्नेय चट्टानें | अवसादी चट्टानें | रुपांतरित चट्टानें

चट्टानों के प्रकार

बनावट के आधार पर भूपटल को निर्मित करने वाली इन चट्टानों को तीन मुख्य वर्गो में बाँटा जा सकता है । (i) आग्नेय (ii) अवसादी (iii) कायान्तरित इनमें उत्पत्ति के साथ साथ पाये आाने वाले खनिज तथा खनिज रबों की व्यवस्था भी अलग-अलग किस्म की होती है ।

(1) आग्नेय चट्टानें (IGNEOUS ROCKS) –

आग्नेय शब्द अग्नि से बना है । लैटिन शब्द इंग्निस का भी अर्थ अग्नि होता है । इन्हें प्राथमिक चट्टानें भी कहते हैं क्योंकि अन्य सभी चट्टानों का निर्माण इसी से हुआ है । इन चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के भीतर से भूगर्भीय माप के कारण निकले मैगमा से हुआ है । मैगमा का कठोर रुप ही आग्नेय चट्टाने हैं। तरल मैगमा का गैसीय अंश पृथ्वी के धरातल पर वायुमण्डल में विलीन हो जाने पर शेष गैस रहित मैगमा लावा कहलाता है । इस लावा के ठोस रूप को वहिर्वेधी आग्नेय चट्टान या ज्वालामुखी चट्टान कहते हैं । गर्म लावा के तेजी से ठण्डा होने के कारण बहुत छोटे आकार के रवे बनते हैं। वेसाल्ट महीन कणों वाली वहिर्वेधी आग्नेय चट्टानों का उत्तम उदाहरण है। इसका उपयोग सड़क बनाने में किया जाता है एवं इसके क्षरण से उपजाऊ काली मिट्टी का निर्माण होता है । डेक्कन ट्रैप के नाम से ज्ञात प्रायद्वीप पश्चिम भारत का लगभग 500000 वर्ग किमी क्षेत्र वेसाल्ट चट्टानों से भरा है । यहां काली उपजाऊ मिट्टी रेगर कहलाती है । धरातल के थोड़ा नीचे ठंडे हुए मैगमा से बनी आग्नेय चट्टानों के रवे बड़े होते हैं डोलेराइट एवं माइका पेग्मेटाइट इसके उदाहरण हैं। अधिक गहराई पर ठण्डे हुए मैगमा से बनी चट्टानों का आकार ज्यादा बड़ा होता है इनको पाताली आग्नेय (प्लूटोनिक) चट्टान कहते है जैसे ग्रेनाइट । ग्रेनाइट का उपयोग इमारतों एवं सड़कों के निर्माण में होता है । दक्षिण भारत के ढक्कन पठार, मध्य प्रदेश, छोटा नागपुर पठार, राजस्थान तथा हिमालय के कुछ भागों में भूरे, लाल, गुलाबी, सफेद आदि रंगो के ग्रेनाइट मिलते हैं।

धरातल के नीचे (चाहे थोड़ा या अधिक) बनने वाली आग्नेय चट्टानें अतर्वेधी चट्टाने (जैसे वैयोलिथ, लैकोलिथ, स्टाकसिल, डाइक आदि) कहलाती है । प्रत्येक अन्तर्वेधी चट्टान की एक प्रतिरुप वर्हिर्देधी चट्टान होती है । वहिर्वेधी आग्नेय चट्टानी पिंडो से महाद्वीपों के धरातल, महासागरों के विरल ज्वालामूखी पर्वत या पठार बनते हैं अन्तर्वेधी चट्टानें विश्व के बड़े पर्वत समूहों की बीज रुप होती है ।

मैगमा ही अधिकांश कच्चे धातुओं का स्रोत होता है। इसलिए अधिकांश खनिज धातुएं आग्नेय चट्टानों में पायी जाती हैं । जल में घुले खनिज पदार्थ जब चट्टानों की दरारों से होकर गुजरते हैं तो मूल्यवान खनिज इन दरारों में जमा हो जाते है । इसी कारण अनेक धातुएं चट्टानों की दरारों में रवेदार खनिजों से प्राप्त होती है। विशाल भारतीय प्रायद्वीप की पुरानी चट्टानों में इसी कारण रवेदार खनिजों या धातुओं की बहुलता है ।

विशेषताएं –

  • आग्नेय चट्टाने कठोर, रवेदार तथा दानेदार होती हैं ।
  • इसमें परत नहीं होती है एवं पानी का प्रवेश कम होने के कारण रासायनिक अपक्ष य कम होता है।
  • इनमें जीवावशेष (FOSSILS) नहीं पाए जाते, सन्धियाँ (ज्वाइन्ट) ऊपर ज्यादा पायी जाती हैं एवं प्राय:ज्वालामुखी क्रिया से सम्बन्धित होती हैं।

(ii) अवसादी चट्टानें (SEDIMENTARY ROCKS) –

यह पृथ्वी के धरातलीय चट्टानों के अपरदन एवं अपक्षय के कारण बने अवसाद (चट्टान) से निर्मित चट्टाने हैं । स्थल मण्डल के ¾ भाग पर विस्तृत इन चट्टानों का आयतन भूपर्वटी के आटीतन का 5% है । सागरतल में निक्षिप्त तलहटी से इनकी रचना होने के कारण इन्हें तलहटी चट्टाने भी कहा जाता है । लैटिन शब्द सेडी-मेंटम का अर्थ भी नीचे बैठना होता है । इनका रचना में आग्नेय चट्टानों के अपक्षयी अवशेषों के साथ-साथ समुद्री जीवों मृत काष्ठ, विभिन्न वनस्पति पदार्थों के अवशेषों व जल में मिले खनिजों के अवक्षेपण से होने के कारण इनमें जैव पदार्थ व खनिज पदार्थ भी पाए जाते हैं। यह समतलीय पटल में निर्मित होती है एवं लाखों वर्षों में कठोर चट्टान बनती है । हवा, हिमानी आदि यान्त्रिक कारकों से बनी अवसादी चट्टानों के उदाहरण है लोएस, गोलश्म मृत्तिका, शेल (SHALE) बालू का पत्थर, कांग्लोमट्टे, ब्रेसिआ आदि । चूने, पत्थर, कोयला एवं पीट जैविक तत्वों से तथा सेंधा नमक जिप्सम तथा शोरा रासायनिक तत्वों से बने अवसादी चट्टानों के उदाहरण हैं। अवसादी चट्टानों में आर्थिक महत्व वाले खनिज कम पाये जाते हैं परन्तु लौह अयस्क फास्फेट, इमारती पत्थर, कोयला एवं सीमेन्ट बनाने वाले पदार्थों की यह प्रमुख स्रोत है । कुछ उपयुक्त संरचना ( अप्रवेश्य शैल की दो पत्तों के बीच में प्रवेश्य शैल की पर्त होना) बाली अवसादी चट्टानों में सूक्ष्म समुद्री जीवों के सड़ने से बनने वाले खनिज तेल के भण्डार भी पाये जाते हैं । कुछ उपजाऊ मिट्टियाँ जैसे गंगा-सिन्धु का जलोढ़ मैदान, कोयला के प्रमुख क्षे त्र दामोदर, महानदी व गोदावरी के वेसिन, असम, गुजरात एवं बम्बई के पश्चिम के सागर तल के खनिज तेल क्षेत्र व म० प्र०, राजस्थान, बिहार आदि के बलुआ पत्थर क्षेत्र आदि इसी की देन हैं।

विशेषताएँ –

  • इसमें जीवावशेष पाये जाते है।
  • यह मुलायम तथा कोमल होती है इनमें परते, सन्धि या जोड़ पाये जाते हैं परन्तु शैल रवेदार नहीं होते हैं।
  • यह पृथ्वी के हलचलों से विरूपित होक स्थानान्तरित हो जाती है एवं कभी-कभी असम्भाव्य स्थानों पर स्थित होती है जैसे हिमालय पर्वत का शीर्ष।

(iii) रुपांतरित चट्टानें (METAMORPHIC) –

यह ग्रीक शब्द मेटामार्फीस से बना है जिसका अर्थ रूप परिवर्तन होता है । जब उपयुक्त दबाव और ताप से या रासायनिक क्रिया कलाप से एकही स्थान पर रहने वाली चट्टानों के मूल लक्षण (रगं, कठोरता, गठन एवं संघटन) में आंशिक या पूर्ण परिवर्तन होता है तो उन्हें रूपांतरित या कायान्तरित चट्टाने कहा जाता है । अत्यधिक दाब के कारण होने वाले रूपान्तर को मासिक रूपान्तर कहते है । इससे ग्रेनाइट नाइस (GNEISS) तथा मिट्टी एवं शेल शिस्ट (SCHIST) में रूपातंरित हो जाते है । भूपर्पटी में मौजूद अत्यधिक उष्मा के कारण होने वाले परिवर्तन को तापीय रूपान्तरण कहते हैं इसमें बलुआ पत्थर क्वार्ट्जाइट में कोयला एंथ्रासाइड तथा ग्रेफाइट में, चूने का पत्यर का संगमरमर में बदल जाता है । ताप एवं दाब के सयुक्त प्रभाव से जब किसी परे क्षेत्र की चट्टानों का रूपांन्तरण होता है तो इसे क्षे त्रीय रूपातरण कहते हैं। रूपांतरण  दौरान नीलम मणिक जैसे बहुमूल्य रत्न उत्पन् होते हैं एवं रवे आकार में बड़े तथा व्यवस्थित हो जाते हैं । मैगमा द्वारा जोड़े गये तत्व चट्टान के संघटन को भी बदल देते हैं। रुपांतरण से बनने वाले क्वार्टजाइट का प्रयोग कॉच बनाने में, संगमरमर का इमारती पत्यर के रुप में तथा ग्रेफाइट का पेंसिल आदि में प्रयोग होता है ।

 

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