अर्थशास्त्र / Economics

भारत में प्रतिव्यक्ति आय कम होने के कारण |  भारतीय प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के सुझाव

भारत में प्रतिव्यक्ति आय कम होने के कारण |  भारतीय प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के सुझाव

Table of Contents

भारत में प्रति व्यक्ति आय न्यून होने के कारण (भारत में प्रतिव्यक्ति आय कम होने के कारण) – 

(1) जनसंख्या वृद्धि (Increasing Population)-

भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने का मुख्य कारण जनसंख्या की तीव्र वृद्धि है, क्योंकि देश में राष्ट्रीय आय बढ़ रही है, लेकिन जनसंख्या वृद्धि के कारण प्रति व्यक्ति आय में उस दर से वृद्धि नहीं हो रही है। इसके अलावा देश में जनशक्ति का नियोजन न होने के कारण करोड़ों हाथ बेकार हैं, जो राष्ट्रीय आय में योगदान नहीं दे रहे हैं।

(2) पूंजी की अल्पता (Lack of Capital)-

भारत में पूंजी के अभाव से अपेक्षित विकास नहीं हो रहा है। फलतः पूँजी का निर्माण अत्यन्त न्यून है। अतः उत्पादन वृद्धि के अभाव में प्रति व्यक्ति आय की वृद्धि का प्रश्न नहीं है। भारत में पूँजी की अल्पता प्रति व्यक्ति आय का एक पहलू है।

(3) न्यून उत्पादकता (Low Productivity)-

किसी देश की प्रति व्यक्ति आय उत्पादकता पर निर्भर होती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रति श्रमिक उत्पादकता अन्य देशों की तुलना में अत्यन्त न्यून है। यह तथ्य केवल औद्योगिक क्षेत्र में लागू नहीं है, बल्कि कृषि क्षेत्र, खनन क्षेत्र आदि में भी क्रियाशील है।

(4) कृषि पर निर्भरता (Dependence on Agriculture)-

भारतवर्ष की 68.8% जनसंख्या कृषि कार्य में संलग्न है जो 40% राष्ट्रीय आय में योगदान देती है। लेकिन कृषि व्यवसाय अनिश्चित है जो मानसून पर निर्भर है इस अनिश्चितता के वातावरण में कभी राष्ट्रीय आय ऊँची हो जाती है तो कभी अत्यन्त कम है। ऐसी परिस्थिति में प्रति व्यक्ति आय का न्यून होना स्वाभाविक ही है।

(5) बचत व विनियोग की निम्न दर (Low Rate of Saving and Investment)-

भारत में बचत विनियोग की निम्न दर के कारण प्रति व्यक्ति आय न्यून है। देश में आय की असमानता के कारण 30% जनसंख्या बचत करती है। चूँकि बचत का स्तर आय पर निर्भर होता हैं, अत: भारत की ग्रामीण जनसंख्या न्यून आय के कारण बमुश्किल उपभाग कर पाती है, तो बचत का प्रश्न ही नहीं उठता है। हाँ 10% जनसंख्या एसी भी है जो उपभोोग में कटोती करके बचत करती है, फिर भी बचत का स्तर अत्यन्त न्यून है।

(6) साहसियों का अभाव (Lack of Interprenures)-

आर्थिक विकास में साहसी वर्ग की अहम् भूमिका होती है। भारत का दुर्भाग्य है कि यहाँ के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक परिवेश ने साहसी वर्ग को प्रोत्साहित नहीं किया है। फलतः देश में कुछ लोगों के पास पूंजी की उपलब्धता होने पर भी पूँजी निर्माण को बल नहीं मिला है, बल्कि जोखिमकर्त्ता हतोत्साहित होते रहे हैं। अतः साहसियों का अभाव स्वाभाविक है।

(7) भाग्यवादी दृष्टिकोण (Fatalistic Views) –

भारत में प्रति व्यक्ति आय की कमी के पीछे सामाजिक परिवेश है, जिसमें अन्धविश्वास, भाग्यवादिता, धर्मवाद, जातिवाद, अशिक्षा व अज्ञानता पोषित है। सामान्य भारतीय दृष्टिकोण है कि ऊँची आय प्राप्त होना भाग्य का खेल है, जब भाग्य बदलेगा तो स्वतः आय ऊँची हो जायेगी। इसी कारण ‘सतोष परम सुख के भाव का पालन होता है।

(8) आधारभूत साधनों का आंशिक विदोहन (Partial Utilization of Natural Resources)-

भारत प्राकृतिक साधनों में धनी देश है, आर्थिक विकास की पूर्ण गुंजाइश है। लेकिन देश के इन साधनों का उचित विदोहन न होने के कारण प्रति व्यक्ति आय का स्तर न्यून है। जैसे-यातायात का 25% एवं वन संसाधन का 30% प्रयोग आंशिक विदोहन के प्रमुख कारण है।

(9) आधारभूत सेवाओं का अभाव (Lack of Basic Services)-

भारत में प्रति व्यक्ति आय की कमी के पीछे आधारभूत सेवाओं का अभाव है, क्योंकि किसी देश में आधारभूत सेवाएँ जैसे-यातायात, बैंकिग, बीमा, संचार व विद्युत आदि का प्रसार होने पर भी आय में वृद्धि होती है।

(10) अन्य कारण (Other Reasons) –

भारत में प्रति व्यक्ति आय की कमी के लिए प्रशासनिक एवं राजनैतिक कारण उत्तरदायी हैं, क्योंकि स्वतंत्रता के बाद राजनैतिक अस्थिरता युद्ध व भ्रष्टाचार आदि ने आर्थिक विकास की योजनाएँ असफल कर दीं।

भारतीय प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के सुझाव

(1) औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि एवं विस्तार (Increase and Expansion in Industrial Production)-

औद्योगिक क्षेत्र क्षमता के उपयोग की आवश्यकता है। उद्यम चाहे निजी अथवा सार्वजनिक क्षेत्र का हो, उसकी उत्पादकता में वृद्धि के प्रयास होने चाहिए। इसके अलावा नवीन औद्योगिक इकाइयों की स्थापना करना भी आवश्यक है। राष्ट्रीय आय अथवा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए औद्योगिक उपक्रमों की उत्पादकता कई गुनी उऊँची हो, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

(2) कृषि का आधुनिकीकरण (Modification of Agriculture) –

परम्परागत कृषि के स्थान पर नवीन तकनीक पर आधारित कृषि कार्य होना चाहिए, जिससे खाद्यान्न उत्पादन का सूचकांक बढ़ सके।

(3) खनन एवं अन्य उत्पादनों में वृद्धि (Increase in Mining and Other Productions) –

खनिज पदार्थों का मूल्य स्तर ऊँचा होता है। इसलिए भारत की खनन क्षेत्र की आवश्यकता में गुणात्मक सुधार करने चाहिए, तो दूसरी और खनिज क्षेत्र के लिए अनुसंधान व खोज की भी आवश्यकता है।

(4) जनसंख्या नियंत्रण (Population Control)-

भारत में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए जनसंख्या के नियंत्रण की विशेष आवश्यकता है, क्योंकि एक ओर आर्थिक विकास दर में वृद्धि और दूसरी ओर जनसंख्या के नियंत्रण का परिणाम होगा कि प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी।

(5) आधारभूत सेवाओं का विस्तार (Expansion of Basic Services)-

भारतवर्ष में यातायात, बैंकिग, बीमा, विद्युत शक्ति व अन्य आधारभूत सेवाओं के विस्तार की आवश्यकता है, क्योंकि आधारभूत सेवाओं से आर्थिक विकास को बल मिलता हे, जिससे प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि सम्भव है।

(6) आय के वितरण में समानता (Equal Distribution of Income)-

भारतीय अर्थव्यवस्था की यह विडम्बना है कि देश में प्रति व्यक्ति आय की विषमता के कारण धनी व गरीब के मध्य दूरी बढ़ रही है। सरकार को प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के प्रयत्नों के साथ-साथ धनव सम्पत्ति के केन्द्रीयकरण को रोकना चाहिए । इसके लिए कृषि-भूमि की सीमाबन्दी, आयु सीमा का निर्धारण व काले धन की खोज करनी चाहिए, जिससे सरकारी आंकड़ों में घोषित प्रति, व्यक्ति आय का प्रत्यक्ष लाभ सामान्य नागरिक को मिल सके।

(7) कुटीर व लघु उद्योगों की स्थापना (Establishment of Cottage and Small Scale Industries)

भारत सरकार को प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना पर बल देना चाहिए। कृषि आश्रित उद्योगों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जिससे कुटीर एवं लघु उद्योगों के उत्पादन का निर्यात हो सके।

(8) बचत एवं विनियोग को प्रोत्साहन (Incentives to Savings and Investments)-

देश में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के लिए बचत व निवेश को प्रोत्साहित होना चाहिए। इसके लिए सरकार को ऊँचे एवं आकर्षक ब्याज के साथ निवेशकर्ता को निवेश के लिए विभिन्न छूटें प्रदान की जानी चाहिए।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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