शिक्षण प्रतिमान के आधारभूत तत्व | शिक्षण प्रतिमान के आधारभूत तत्वों का वर्णन
शिक्षण प्रतिमान के आधारभूत तत्व | शिक्षण प्रतिमान के आधारभूत तत्वों का वर्णन
प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान के प्रमुख रूप से चार आधारभूत या मूल तत्व होते हैं जिसका वर्णन निम्नवत् किया जा सकता है-
(1) उद्देश्य (Focus) –
किसी भी कार्य को किया जाये उसका कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है। उसी प्रकार शिक्षण प्रतिमान का भी उद्देश्य होना नितान्त आवश्यक है जिसे उस शिक्षण प्रतिमान का केन्द्र बिन्दु कहा जाता है। यह केन्द्र बिन्दु (Focus) उद्देश्य अथवा लक्ष्य से प्रभावित होता है जिनकी प्राप्ति हेतु उपयुक्त साधनों तथा प्रक्रियाओं से युक्त प्रतिमान विकसित किये जाते हैं।
(2) संरचना (Syntax) –
शिक्षण प्रतिमान की संरचना से शिक्षण की क्रियाओं, नीतियों, तकनीकों एवं अन्तःक्रियाओं को किस प्रकार सम्बन्धित किया जाये ताकि उद्देश्यों को प्राप्त हो जाये। इसका सम्बन्ध विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण से होता है।
शिक्षण प्रतिमान के द्वारा शिक्षण प्रक्रिया के विभिन्न क्रमों का निर्धारण किया जाता है। इसे ही इसकी संरचना कहते हैं। शिक्षक शिक्षार्थी की रुचि, क्षमता एवं योग्यता तथा आवश्यकता को ध्यान में रखकर एक क्रमबद्ध प्रणाली का निर्माण करता है और यह समस्त प्रक्रिया क्रमबद्ध रूप से चलती है। इसमें किस प्रतिमान के कितने सोपान अथवा पक्ष होंगे, उन पक्षों में क्या क्रमबद्धता (Sequence) होगी, उन सभी को किस प्रकार संगठित किया जायेगा आदि का अध्ययन इसमें किया जाता है।
(3) सामाजिक प्रणाली (Social System) –
सामाजिक प्रणाली शिक्षण प्रतिमान के उद्देश्य (Focus) के अनुसार होती है। क्योंकि प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान का उद्देश्य भी अलग-अलग होता है। इसलिए इसकी सामाजिक प्रणाली भी अलग-अलग होगी चूंकि कक्षा भी समाज का ही एक लघु रूप है और शिक्षण एवं सामाजिक प्रक्रिया भी। इसलिए शिक्षक एवं शिक्षार्थी की क्रियाओं और उनके आपसी सम्बन्धों का निर्धारण इस पद के अन्तर्गत किया जाता है। इसमें छात्र को अभिप्रेरित करने से सम्बन्धित क्रियाओं पर भी विचार किया जाता है। शिक्षण की प्रभावशीलता में सामाजिक संरचना का विशेष महत्व है। शिक्षण के प्रत्येक शिक्षण प्रतिमान। की अपनी विशिष्ट सामाजिक प्रणाली होती है। सामाजिक प्रणाली का प्रारूप प्रतिमान उद्देश्य पर आधारित होता है।
(4) मूल्यांकन प्रणाली (The Support system) –
यह सोपान शिक्षण प्रतिमान की प्रक्रिया का अन्तिम एवं चौथा सोपान है। इसमें शिक्षक की समस्त क्रियाओं का मल किया जाता है। पिछली बातों को ध्यान में रखकर भविष्य के लिए कार्य प्रणाली का निर्धारण किया जाता है। शिक्षक मूल्यांकन के द्वारा अपने शिक्षण की प्रभावशीलता अथवा उद्देश्यों के प्राप्ति की वास्तविक स्थिति का पता कर सकता है। इस प्रयोजन हेतु विभिन्न मूल्यांकन विधि का प्रयोग किया जाता है। इसमें सुधार भी सम्भव है एवं परिवर्तन भी किया जा सकता है। अर्थात अन्तिम तत्व के आधार पर इसकी जांच की जाती है।
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