पारिस्थितिक तंत्र पर मानव का प्रभाव
पारिस्थितिक तंत्र पर मानव का प्रभाव
मानव पृथ्वी पर रहने वाले असंख्य जीवों में से एक होने के बावजूद वह अपने ज्ञान – विज्ञान के कारण पारिस्थितिक तंत्र को अन्य की अपेक्षा काफी अधिक प्रभावित करता है । वह अपने उपयोग के अनेक पौधों की खेती करने लगा एवं अनेक उपयोगी प्राणियों को पालतू बना लिया है फलतः प्राकृतिक चयन के सिद्धान्त की जगह मानवीय चयन का महत्व बढ़ता जा रहा है । इस मानवीय चयन के कारण पर्यावरण का प्राकृतिक संतुलन बहुत अधिक प्रभावित हो रहा है फलत: जैवमण्डल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है एवं पर्यावरण प्रदूषण संसार की प्रमूख समस्या बनकर मानव अस्तित्व के लिए खतरा बनती जा रही है ।
मानव के मनचाहे प्रयोगों के कारण पर्यावरण एकांगी होता जा रहा है एवं प्राकृतिक संसाधनों में गुणात्मक व संख्यात्मक कमी हो रही है । अतः उसे अपने को स्वकारित विनाश से बचाने के लिए न केवल प्रदूषणों की रोकथाम करनी होगी वरन प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण भी करना होगा ताकि वह लंबी अवधि तक उपयोग के लिए मिलते रहे हैं । ऐसा संसाधनों के पुनर्चक्रण तथा विकल्प के रूप में अन्य वस्तुओं के उपयोग से सम्भव हो सकता है । परन्तु विकल्पों के चयन में हमें सावधानी बरतनी होगी जैसे धातुओं के स्थान पर प्लास्टिक का उपयोग । ज्ञातव्य है कि प्लास्टिक कोयले व खनिज तेल का संश्लेषित यौगिक होता है एवं शीघ्रता से सड़ता-गलता नहीं है । इसलिए जहाँ यह प्रदूषक वही उपयोगोपरान्त कूड़े-कचरे के रूप में भी समस्या पैदा करता है । संसाधनों की पुनरूपयोग की प्रक्रिया पुनर्चक्ण कहलाती है जैसे खराब कारों, बसों व ट्रकों आदि के लोहे को गलाकर नई वस्तुओं का निर्माण करना । इस दिशा में गहन शोध एवं प्रयोग की आवश्यकता है ।
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