सीखने को प्रभावित करने वाले कारक क्या क्या हैं? | Factors affecting learning in Hindi
सीखने को प्रभावित करने वाले कारक क्या क्या हैं? | Factors affecting learning in Hindi
सीखने को प्रभावित करने वाले दशाएँ | Factors or conditions affecting learning
ऐसे अनेक कारक या दशाएँ हैं, जो सीखने की प्रक्रिया में सहायक या बाधक सिद्ध होती हैं । इनका उल्लेख करते हुए सिम्पसन ने लिखा है- “अन्य दशाओं के साथ-साथ सीखने की कुछ दशाएँ है-उत्तम स्वास्थ्य, रहने की अच्छी आदतें, शारीरिक दोषों से मुक्ति, अध्ययन की अच्छी आदतें, संवेगात्मक सन्तुलन, मानसिक योग्यता, कार्य-सम्बन्धी परिपक्वता, वांछनीय दृष्टिकोण और रुचियां, उत्तम सामाजिक अनुकूलन, रूढ़िबद्धता और अन्धविश्यास से मुक्ति।” हम इनमें से कुछ महत्वपूर्ण कारकों पर प्रकाश डाल रहे हैं, यथा-
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विषय-सामग्री का स्वरूप
सीखने की क्रिया पर सीखी जाने वाली विषय-सामग्री का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। कठिन और अर्थहीन सामग्री की अपेक्षा सरल और अर्थपूर्ण सामग्री अधिक शीघ्रता और सरलता से सीख ली जाती है। इसी प्रकार, अनियोजित सामग्री की तुलना में “सरल से कठिन की ओर सिद्धान्त पर नियोजित सामग्री सीखने की क्रिया को सरलता प्रदान करती है।“
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बालकों का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य
जो छत्र, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होते हैं, वे सीखने में रुचि लेते हैं और शीघ्र सीखते हैं। इसके विपरीत, शारीरिक या मानसिक रोगों से पीड़ित छात्र सीखने में किसी प्रकार की रुचि नहीं लेते हैं। फलतः वे किसी बात को बहुत देर में और कम सीख पाते हैं।
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परिपक्वता
शारीरिक और मानसिक परिपक्वता वाले छात्र नये पाठ को सीखने के लिए सदैव तत्पर और उत्सुक रहते हैं। अत: वे सीखने में किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं करते हैं। यदि छात्रों में शारीरिक और मानसिक परिपक्वता नहीं होती है, तो सीखने में उनके समय और शक्ति का नाश होता है। कोलसनिक के अनुसार- “परिपक्वता और सीखना पृथक् प्रक्रियाएँ नहीं हैं, वरन् एक-दूसरे से अविच्छिन्न रूप में सम्बद्ध और एक-दूसरे पर निर्भर है।“
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सीखने का समय व थकान
सीखने का समय सीखने की क्रिया को प्रभावित करता है, उदाहरणार्थ, जब छात्र विद्यालय आते हैं, तब उनमें स्फूर्ति होती है। अत: उनको सीखने में सुगमता होती है। जैसे-जैसे शिक्षण के घण्टे बीतते जाते हैं, वैसे-वैसे उनकी स्फूर्ति में शिथिलता आती जाती है और वे थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामत: उनकी सीखने की क्रिया मन्द हो जाती है।
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सीखने की इच्छा
यदि छात्रों में किसी बात को सीखने की इच्छा होती है, तो वे प्रतिकूल परिस्थरितियों में भी उसे सीख लेते हैं। अत: अध्यापक का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह छात्रों की इच्छा-शक्ति को दुढ़ बनाये। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे उनकी रुचि और जिज्ञासा को जाग्रत करना चाहिए।
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प्रेरणा
सीखने की प्रक्रिया में प्रेरको का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रेरक, बालकों को नयी बातें सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। अत: अध्यापक चाहता है कि उसके छात्र नये पाठ को सीखें, तो प्रशंसा, प्रोत्साहन, प्रतिद्वन्द्विता आदि विधियों का प्रयोग करके उनको प्रेरित करें। स्टीफेन्स के विचारानुसार-“शिक्षक के पास जितने भी साधन उपलब्ध हैं, उनमें प्रेरणा सम्भवत: सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।”
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अध्यापक व सीखने की प्रक्रिया
सीखने की प्रक्रिया में पथ-प्रदर्शक के रूप में शिक्षक का स्थान अति महत्वपूर्ण है। उसके कार्यों और विचारों, व्यवहार या व्यक्तित्व, ज्ञान और शिक्षण-विधि का छात्रों के सीखने पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इन बातों में शिक्षक का स्तर जितना ऊँचा होता है, सीखने की प्रक्रिया उतनी ही तीव्र और सरल होती है।
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सीखने का उचित वातावरण
सीखने की क्रिया पर न केवल कक्षा के अन्दर के, वरन् बाहर के वातावरण का भी प्रभाव पड़ेता है। कक्षा के बाहर का वातावरण शान्त होना चाहिए। निरन्तर शोर गुल से छात्रों का ध्यान सीखने की क्रिया से हट जाता है। यदि कक्षा के अन्दर छात्रों को बैठाने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है, और यदि उसमें वायु और प्रकाश की कमी है, तो छात्र थोड़ी ही देर में थकान का अनुभव करने लगते हैं। परिणामतः उनकी सीखने में रुचि सभाप्त हो जाती है। कक्षा का मनोवैज्ञानिक वातावरण भी सीखने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। यदि छात्रों में एक-दूसरे के प्रति सहयोग और सहानुभूति की भावना है, तो सीखने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में सहयोग मिलता है।
इन कारणों या दशाओं के वर्णन से यह स्पष्ट है कि सीखना तभी प्रभावशाली हो सकता है जबकि ये दशाएँ अनुकूल हों। अनुकूल होने की परिस्थितियों में सीखने की क्रिया सबलएवं प्रभावयुक्त हो जाती है।
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