शैक्षिक आय से आप क्या समझते हैं? | शैक्षिक आय के स्त्रोतो का विश्लेषण | शिक्षा के नये स्रोत

शैक्षिक आय से आप क्या समझते हैं? | शैक्षिक आय के स्त्रोतो का विश्लेषण | शिक्षा के नये स्रोत
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वर्तमान समय में शिक्षा के महत्व से कोई इन्कार नहीं कर सकता है। शिक्षा राष्ट्र,समाज, व्यक्ति सभी के लिए एक आवश्यकता बन गयी है। शिक्षा के माध्यम से ही मानव के अन्तर्निहित गुणों को बाहर लाया जाता है जिससे वह मानवता तथा समाज की भलाई के लिए अपना योगदान दे सकें। शिक्षा से ही मानव में निर्णय क्षमता का विकास होता है तथा वह शिक्षा से ही इस योग्य बनता है कि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक व औद्योगिक क्षेत्रों में राष्ट्र के अनुकूल निर्णय ले सकें। शिक्षा के इसी महत्व के कारण प्रत्येक राष्ट्र की सरकार प्रयत्न करती है कि वह अपने राष्ट्र की जनता के लिए शिक्षा के आधुनिक पाठयक्रम, शिक्षा के स्रोत आदि में वृद्धि करें तथा इस हेतु वह अपनी राष्ट्रीय आय का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा के मद पर व्यय करता है। स्वतन्त्रता मिलने के बाद हमारी सरकार ने भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत धन व्यय किया तथा अनेक योजनायें इस उद्देश्य हेतु बनाई ताकि शिक्षा का चहँमुखी विकास हो सके। इसके अन्य कारण भी थे एक प्रमुख कारण था हमारे संविधान में भी सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा के समान अवसर देने की प्रतिबद्धता तथा प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क तथा अनिवार्य रूप से देने का प्रावधान करना। दूसरा प्रमुख कारण था शिक्षा का विकास करके राष्ट्र को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने का निश्चय।
शैक्षिक आय का अर्थ
किसी एक वित्तीय वर्ष में शिक्षा से जुड़े शैक्षिक कार्यों को सम्पन्न कराने के लिए जो धन प्राप्त किया जाता है उसे उस वर्ष की शैक्षिक आय कहते हैं तथा जिन साधनों, अभिकरणों, व मरदों से यह प्राप्त होती है उसे शैक्षिक आय के स्रोत कहते हैं।
शैक्षिक आय के स्रोत दो प्रकार के होते है। 1. सार्वजनिक स्त्रोत 2. निजी स्त्रोत
सार्वजनिक स्त्रोत
जो आय सार्वजनिक स्त्रोत से प्राप्त होती है उसे सार्वजनिक शैक्षिक आय कहते हैं। ये स्त्रोत निम्न प्रकार के होते हैं।
(1) केन्द्र सरकार द्वारा प्राप्त आय- शैक्षिक आय के सार्वजनिक स्त्रोतों में केन्द्र सरकार है। केन्द्र सरकार अपनी आय का एक भाग शिक्षा पर व्यय करती है। तथा राज्यों को भी इस सम्बन्ध में सहायता देती है। के्द्र द्वारा शासित राज्यों में शिक्षा पर होने वाले प्रतिदिन व्यय को कहन किया जाता है। माध्यमिक स्तर पर शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए एन.सी.आर. टी. के माध्यम से केन्द्र शिक्षा का प्रसार करता है तथा इस हेतु सहायता करता है तथा विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षा का प्रसार व उन्नत बनाने हेतु विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के द्वारा सहायता दी जाती है। इसी प्रकार शिक्षा के मद में केन्द्र सरकार पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा राज्यों को शिक्षा का प्रसार करने हेतु अनुदान देती है।
(2) राज्य सरकार द्वारा प्राप्त आय- राज्य सरकार भी शिक्षा के प्रचार तथा प्रसार के लिए अनेक स्तरों पर धन व्यय करती है। इस धन की आपूर्ति को एक तो केन्द्र सरकार द्वारा प्राप्त सहायता से पूरा किया जाता है तथा दूसरे राज्य स्वयं अपनी आय का एक हिस्सा इस हेतु व्यय करती है। राज्य सरकारी शिक्षण संस्थाओं को व्यय के लिए धन उपलब्ध कराता है तथा साथ ही निजी शैक्षिक संस्थाओं को भी वित्तीय अनुदान देता है।
(3) स्थानीय शासन से प्राप्त आय- स्थानीय शासन भी सरकारी अनुदान, कर तथा अन्य मदों से प्राप्त आय से शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु कार्य करते हैं। स्थानीय स्तर पर भी शासन प्रशासनिक दृष्टि से कर आदि लगाता है जिनसे प्राप्त आय भी अप्रत्यक्ष रूप से शैक्षिक कार्यों हेतु-भी प्रयोग की जाती है।
(4) प्रबन्ध कमेटी द्वारा प्रदान धन- अनेक शैक्षिक संस्थायें निजी प्रबन्धन कमेटियों द्वारा संचालित होती है तथा इन निजी प्रबन्धन कमेटियों का यह दायित्व है कि वे इन संस्थाओं को आवश्यकतानुसार इन्हें अनुदान देती रहेंगी लेकिन आमतौर पर यह ही देखा जाता है कि इन कमेटियों के द्वारा अपने धन का प्रयोग नहीं किया जाता है तथा सरकार जो अनुदान इन्हें व्यय करने के लिए देती है वह भी आँकड़ों की जादूगरी से सब इन संस्थाओं के सदस्यों की जेब में ही चला जाता है।
(5) विदेशों से प्राप्त सहायता- शैक्षिक कार्यों के लिए विदेशों से भी सहायता प्राप्त होती है विदेशों से शिक्षक हमारे यहाँ आकर अपने व्याख्यान द्वारा हमारे छात्रों , को मार्ग-दर्शन देते है तथा अनेक शैक्षिक तकनीक, उपकरणों, पुस्तकों तथा अन्य शैक्षिक साधनों को प्रदान करते हैं। किसी शोध अथवा विशेष कार्यक्रम के आयोजन के लिए धन की व्यवस्था विदेशी संस्थाओं अथवा विदेशी सरकारों के द्वारा प्रदान की जाती है। विदेशों में अध्ययन हेतु तथा शोध हेतु भी छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है तथा शैक्षिक टूर के माध्यम से छत्रों को दूसरे देशों के टूर पर भेजा जाता है। वह सभी कार्य आय के सार्वजनिक स्वोतों में आते है।
आय के निजी स्त्रोत
(1) विद्यालय की फीस- आय के निजी स्त्रोतों में विद्यालय के रूप में प्राप्त धन प्रमुख है। प्रत्येक माह शुल्क के रूप में विद्यालयों को धन मिलता है जिसे वे शिक्षा के विकास हेतु ही व्यय करते हैं। सरकारी विद्यालयों में शिक्षा का शुल्क नाममात्र का है परन्तु निजी शिक्षण संस्थायें लगातार फीस वृद्धि कर ‘ही है तथा कई मामलों में यह देखा जाता है कि निजी शिक्षण संस्थान शुल्क, से प्राप्त आय को शिक्षा पर व्यय न करके प्रबन्धन कमेटी के सदस्यों आदि पर व्यय करते हैं।
(2) निजी धन- निजी धन को प्राभूत धन भी कहते हैं। यह धन शिक्षण संस्थाओं का अपना धन होता है तथा इस धन से प्रप्त ब्याज से ही विद्यालयों के खर्च चलते हैं। अनेक शिक्षण संस्थान इस प्रकार के हैं जो अपनी भूमि पर अपना भवन बनाकर तथा अपनी आय पर चलते हैं।
(3) दान- शिक्षण संस्थाओं को धन की सहायता दान के रूप में भी मिलती है। अनेक स्वयं सेवी संस्थान तथा बहुत से धनी व्यक्ति भी दान के रूप में बहुत सा धन दे जाते हैं। कुछ व्यक्तियों द्वारा अपनी धन सम्पत्ति, भवन, जमीन आदि विद्यालय के लिए दान दे देते हैं तथा कुछ व्यक्ति बड़े बुजुर्गों के नाम पर विद्यालय में कोई कक्ष,भवन, प्याऊ अथवा अन्य किसी का निर्माण करा देते है।
(4) अन्य स्त्रोत- विद्यालय के निजी स्त्रोतों से प्राप्त आय में प्रबन्ध कमेटी द्वारा बैंक में जमा धन पर मिलने वाला ब्याज और विद्यालय की इमारत में दुकानों आदि से प्राप्त होने वाली आय आदि भी शामिल है।
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