शिक्षाशास्त्र / Education

नवाचार के मार्ग में अवरोध तत्व | शिक्षा में ‘नवीन प्रवृत्तियों (नवाचार) के मार्ग में अवरोध तत्वों’ का वर्णन 

नवाचार के मार्ग में अवरोध तत्व
नवाचार के मार्ग में अवरोध तत्व

नवाचार के मार्ग में अवरोध तत्व | शिक्षा में ‘नवीन प्रवृत्तियों (नवाचार) के मार्ग में अवरोध तत्वों’ का वर्णन 

नवाचार का मार्ग बांधाओं या अवरोधों से भरा रहता है। परिवर्तन की प्रक्रिया प्रतिराध का सामना किये बगैर पूरी नहीं हो सकती। मानव विज्ञानियों का निश्चित मत है कि परिवर्तन का उतनी ही मात्रा में प्रतिरोध या विरोध होगा जितनी मात्रा में हम परिवर्तन लाना चाहते हैं। अर्थात् किमी छोटे-मोटे परिवर्तन का व्यापक परिवर्तन की अपेक्षा थोड़ा ही विरोध होगा।

शिक्षा में परिवर्तन लाने के लिये नवाचारों को अपनाना अति आवश्यक है। नवाचार निर्विघ्न लागू हो और उद्देश्यों तक हमें सफलतापूर्वक पहुंचा सके, इसके लिए यह आवश्यक है। कि हम परिवर्तन के मार्ग में आने वाले अवैरधो के कारणों को पहचान और समझ सर्कें।

जी. वाटसन के अनुसार, परिवर्तन के मार्ग में आने वाले अवरोध दो प्रकार के कारकों से उत्पन्न होते हैं-

(1) व्यक्तिगत कारकों द्वारा उत्पन्न प्रतिरोध,

(2) अज्ञानता एव समाज द्वारा उत्पन्न प्रतिरोध अथवा क्रियात्मक प्रतिरोध।

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व्याक्तिगत कारक जनित अवरोध (Personality Factors of Obstacles)

परिवर्तन लाने की बात कहीं पर भी किसी के भी मुख से सुनी जा सकती है। पुरानी कहावत है ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’ किन्तु जब परिवर्तन की बात की जाती है तब अधिकांश लोग बगलें झांकने लगते हैं। परिवर्तन के मार्ग में आने वाला सबसे बड़ा अवरोध व्यक्ति का अपना व्यक्तित्व ही होता है। व्यक्तित्व के निम्नलिखित कारक परिवर्तन के मार्ग में सबसे बड़े रोड़े सिद्ध होते हैं-

  • सन्तुलन (Homeostasis)- प्राणी में सन्तुलित रहने की प्रवृत्ति होती है। यह प्राणी की जन्मजात प्रवृत्ति है। परिवर्तन की अवस्था को झेलकर वह पुनः स्थिर अथवा सन्तुलित अवस्था में आना चाहता है। मनुष्य की इस प्रवृत्ति को नवाचार और परिवर्तन के प्रतिपादकों का सामना करने के लिए मनोवैज्ञानिक विधियों जैसे संवेदनशील प्रशिक्षण (sensitivity training) का सहारा लेना चाहिए।
  • आदत (Habit)-व्यक्ति की आदतें भी परिवर्तन के मार्ग में बाधा बनकर आती है। इस अवरोध का सामना मनोविज्ञान के प्रनियम ‘परिचित व्यवहार से अपरिचित व्यवहार की आर बढ़ाना (Performance from familiar to unfamiliar)का अनुसरण कर लिया जा सकता है। विद्यालय वातावरण में उद्देश्य लाये जाने वाले परिवर्तन ऐसी आदतों में वांछित परिवर्तन ला सकते हैं।
  • प्राथमिकता (Primacy)- मानव मन पर प्राथमिक प्रभावों का गहरा एवं दूरगामी प्रमाव पड़ता है। इन प्राथमिक प्रभावों के कारण व्यक्ति बाद में किसी नवीन अनुभव को स्वीकार करने दे हिचकता है। नवाचारों द्वारा प्राप्त होने वाले लाभों को प्रभावशाली ढंग से बताकर इस हिचक को धीरे-धीरे दूर किया जा सकता है।
  • पराश्रितता (Dependence)- व्यक्ति किसी समूह का सदस्य होता है। वह समूह के मानदण्डों तथा परम्पराओं का आदर करता है। उसको तोड़ने में वह घबराता है, क्योंकि उसे भय रहता है कि समाज उसे अलग कर देगा तथा उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना डगा। समाज में बहिष्कृत होने का भय परिवर्तन के मार्ग में बहुत बड़ा प्रतिरोध खड़ा करता है। रस प्रतिरोध को दूर करने के लिए परिवर्तन के इच्छुक नेताओं या प्राचार्यों को सबसे पहले उन लोगों को चुनना पड़ेगा जो समाज की पराश्रितता के बन्धन को तोड़कर नवाचार को सबसे पहले अपनाते हैं। ऐसे लोगों को आदर्श के रूप में सामने रखकर उन्हें सम्मानित कर अन्य व्यक्तियों में भी पराश्रितता के अवरोध को दूर किया जा सकता है।
  • नैतिक मन (Super-ego)- व्यक्ति की ऐसी प्रवृत्ति जो पुरातन श्रद्धा बिन्दुओं, मान्यताओं एवं नैतिकता के कारण किसी नवीनता अथवा परिवर्तन से बचने के लिए उसे बाध्य करती है। परिवर्तन चाहने वालों को इस अवरोध को तोड़ने के लिए विश्वासोत्पादक आकर्षक विधियों (Persuasive method)का प्रयोग करना चाहिए।
  • आत्म-विश्वासहीनता (Self-distrust)- प्रायः व्यक्तियों में स्वयं अपनी ही क्षमताओं पर विश्वास नहीं रहता। वे सोचते हैं कि उनमें इतनी ताकत कहां जो वे पुरातन परम्पराओं को तोड़ सकें। इस आत्म-विश्वसहीनता को नेतृत्व द्वारा धीरे-धीरे मनोवैज्ञानिक उपायों से पुरस्कार एवं सम्मान देने की विधि द्वारा परिवर्तन की प्रक्रिया को पुनर्बलित (Reinforce) कर दूर किया जा सकता है।
  1. क्रियात्मक अवरोध (Obstacles in Action)

परिवर्तन एवं नवाचार को व्यक्ति कई बार अज्ञानता, भूल-चूक, सामाजिक प्रतिक्रिया और अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों के कारण परिवर्तन एवं नवाचार को अस्वीकृत कर देता है।

यहां हम देखते हैं कि ये सभी प्रतिक्रियात्मक अवरोध नवाचार के विषय में अज्ञान अथवा पर्याप्त ज्ञान के अभाव में जन्म लेते हैं। नवाचारों का क्रियात्मक प्रतिरोध इसलिए भी होता है कि बहुत से सहकर्मी या मित्र उसे नहीं अपनाते। व्यक्ति सोचता है कि जब हमारे संगी साथी परिवर्तन या नवाचार को नहीं अपना रहे हैं तो मैं ही क्यों मुसीबत मोल लू।

इन सभी प्रकार के प्रतिरोधों को नेताओं अथवा स्कूली परिवेश में प्राचारयों के द्वारा आसानी से दूर किया जा सकता है। उन्हें इन प्रतिरोधों की प्रकृति, इनसे ग्रसित व्यक्तियां एव सामाजिक अन्तःक्रिया कार्य प्रणाली को समझकर बुद्धिमत्तापूर्वक स्नेह और सहभागिता के द्वारा धीरे-धीरे दूर करना होगा।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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