वैदिककालीन शिक्षा प्रणाली | Teaching System in Vedic Period in Hindi

वैदिककालीन शिक्षा प्रणाली | Teaching System in Vedic Period in Hindi
वैदिककालीन शिक्षा प्रणाली
(Teaching System in Vedic Period)
(1) मौखिक शिक्षण-
लेखन कला विकसित न होने के कारण शिक्षण की प्रणाली मुख्य रूप से मौखिक थी। गुरू अपने शिष्य के सम्मुख मौखिक रूप में अनेक ग्रंथों का भाष्य प्रस्तुत करता था तथा शिष्य उसको ध्यानपूर्वक कण्ठस्थ करता था एवं एकांत में बैठकर एकाग्रचित होकर उस पर चिंतन करता था।
(2) उच्चारण पर बल (Emphasis on Pronunciation)-
शिक्षा में शब्दों के ठीक उच्चारण पर विशेष बल दिया जाता था। गुरू अपने शिष्यों को प्रत्येक शब्द के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराता था। सर्वप्रथम गुरू स्वयं उच्चारण करता था।
(3) मनन तथा चिंतन-
मंत्र तथा भाष्यों को कष्ठरूप करने के बाद छात्र उन पर मनन और चिंतन करते थे। मनन द्वारा छात्र मन्त्रों के आन्तरिक अर्थों को भली प्रकार समझने का प्रयत्न करते थे। मनन और चिन्तन से उनके अन्दर आत्म साक्षात्कार की भावना उदय होती थी, इसी कारण उस युग में स्वाध्याय तथा मनन पर अधिक बल दिया गया।
(4) वाद-विवाद की प्रमुखता (Importance of Discussion )-
शिक्षा प्रणाली में वाद- विवाद को भी प्रमुख स्थान दिया गया था। किसी विषय पर मतभेद होने पर उसका निराकरण वाद-विवाद द्वारा होता था। छात्र भी आपस में वाद-विवाद करते थे। विषय के पक्ष तथा विपक्ष में बोलने वाले छात्रों को पूर्ण स्वतंत्रता थी।
(5) पाठ्य विषय (Curriculum)-
वैदिक काल में पाठ्य विषय मुख्य रूप से व्याकरण, कल्प, ज्योतिष, छन्द, निरुक्त थे। कुछ लोगों का भ्रम हे कि प्राचीन काल में पाठ्य विषय मुख्य रूप से धर्म प्रधान थे, परन्तु यह धारणा गलत हे। वेदों के अतिरिक्त वैदिक व्याकरण, कल्प राशि (गणित), दैव विद्या, ब्रम्ह विद्या, नक्षत्र विद्या, आदि अनेक विद्याओं को जानते थे। तर्क-शास्त्र को भी पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया था इसके अतिरिक्त राशि-विद्या (गणित), निधि-विद्या (भूगर्भशास्त्र ), एकापन (आचारशास्त्र) तथा शस्त्र विद्या (सैन्य विज्ञान) का भी अध्ययन होता था।
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