प्रजातंत्र के दोष | प्रजातंत्र का मूल्यांकन | Evaluation of Democracy in Hindi | Demerits of Democracy
प्रजातंत्र के दोष | प्रजातंत्र का मूल्यांकन | Evaluation of Democracy in Hindi | Demerits of Democracy
प्रजातंत्र का मूल्यांकन
(Evaluation of Democracy)
प्लेटो, अरस्तू आदि यूनानी दार्शनिकों ने प्रजातंत्र को सरकार का विकृत रूप बताया है। कुछ लोगों ने इसे ‘भीड़तंत्र’ (Mobocracy) कहा है, तो कुछ लोगों ने इसे ‘बेवकूफों का शासन’ (Government of fools) बताया है। एच० जी० बेल्स ने प्रजातंत्र को ‘सपनों का महल’ (utopia) कहा है। लेकिन, कुछ अन्य विचारकों ने प्रजातंत्र की काफी प्रशंसा की है और इसे समस्त सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान की कुंजी कहा है। जे० एस० मिल के विचारानुसार “उत्तम शासन और जनता के चरित्र-निर्माण की दृष्टि से प्रजातंत्र ही सबसे अच्छा शासन है।”
प्रजातंत्र के दोष (Demerits of Democracy)
प्रजातंत्र की आलोचनाएँ निम्नलिखित तर्कों के आधार पर की गई हैं:-
(i) अयोग्यों का शासन (A cult of incompetence)-
एच० जी० बेल्स के अनुसार, प्रजातंत्र बुद्धिहीनों तथा अयोग्यों का आसन है। सर हेनरी मेन ने भी इसका समर्थन किया है। यूनानी दार्शनिक प्लेटो ने इसे ‘अज्ञानता का राज्य’ कहा है। लेकी के विचारानुसार, “प्रजातंत्र वह शासन प्रणाली है, जिसका संचालन सबसे अधिक दरिद्र और सबसे अधिक अज्ञानी लोगों के हाथों में होता है जिनकी संख्या स्वभावता अधिक होती है।” भारतीय प्रजातंत्र के संदर्भ में ये सारी बातें सत्य हैं।
(ii) अनुत्तरदायी शासन (Irresponsible Administration)-
कुछ लोगों ने प्रजातंत्र को अनुत्तरदायी शासन कह कर पुकारा है। फैगेट के अनुसार, “प्रजातंत्र-शासन के अन्तर्गत शासन-सत्ता एक अव्यवस्थित भीड़ के हाथ में रहती है। अतः किसी को कोई शिकायत करनी हो तो किससे करें?” हर्नशॉ ने स्पष्ट रूप से कहा है कि प्रजातंत्र मनुष्यों में सार्वजनिक कार्यों के प्रति उदासीनता उत्पन्न करता है।
(iii) कोरा आदर्शवाद (Hollow Idealism)-
प्रजातंत्र का सबसे बड़ा अवगुण है कि यह कोरे आदर्शवाद पर आधृत है। यह समानता की रट तो लगाता है, लेकिन उसे व्यावहारिक रूप नहीं देता। इसलिए बर्क ने कहा है कि “प्रजातंत्र समानता का एक भयानक प्रपंच है।” इसमें सिद्धान्त के तौर पर उन समस्त चीजों की माँग की जाती है, जिनका व्यावहारिक जगत् से कोई मतलब नहीं रहता।
(iv) वीर-पूजा (Hero worship)-
प्रजातन्त्र वीर-पूजा की भावना पर आघृत है। प्रजा अपनी अज्ञानता के कारण एक नेता को पूजने लगती है, जिसका अनुचित लाभ उठाकर वह तानाशाह भी बन सकता है। इतिहास साक्षी है कि इसी वीर-पूजा की भावना के परिणाम स्वरुप फ्रांस में नेपोलियन और जर्मनी में हिटलर तानाशाह बने। अतः, प्रजातंत्र की चहारदीवारी से वीर-पूजा समाप्त होनी चाहिए।
(v) बहुमत का अत्याचार (Tyranny of the majority)—
प्रजातंत्र बहुमत का शासन है, इसलिए बहुमत अल्पसंख्यकों के हितों का गला घोटने लगता है। बहुमत के कारण नागरिक स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है, इसलिए की तारमेन ने कहा है कि प्रजातंत्र में स्वतंत्रता का गला घोंट दिया जाता है। इसमें 51 प्रतिशत जनता 49 पतिशत लोगों पर शासन करती है। जनता सरकार ने केवल 46 प्रतिशत मत रही समस्त भारत पर 33 महीनों तक शासन किया।
(vi) धनवानों का शासन (Administration of rich persons)-
प्रजातंत्र की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि इसमें धनवानों को ही प्रबलता होती है। धनी और महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति पैसों के बल पर गरीबों के मत खरीदकर निर्वाचित हो जाते हैं। निर्वाचन में जीतने के बाद वे धनवानों के हितों पर ही ध्यान देते हैं और गरीबों को भूल जाते हैं।
(vii) वर्ग-विरोध को प्रोत्साहन (Encouragement of class antagonism)-
प्रजातंत्र वर्ग-विरोध एवं वर्ग-संघर्ष को प्रोत्साहित करता है। प्रजातंत्र में शासन चूँकि पूँजीपतिवर्ग के हाथों में चला जाता है, इसलिए संपदा के बल पर मतदाताओं और मंत्रियों को भी वे खरीद लेते हैं। प्रजातंत्र पूँजीपतियों का शासन बन जाता है और इस प्रकार धनी और गरीब के बीच एक लम्बी दीवार खडी हो जाती है। इससे देश का वास्तविक वातावरण अशांत और विद्रोहात्मक हो जाता है, जिससे देश की शांति जाती रहती है।
(viii) सभ्यता-विरोधी (Anti-civilization)-
प्रजातंत्र सभ्यता, संस्कृति तथा विज्ञान का दुश्मन है। लेकी के अनुसार, “प्रजातंत्र बौद्धिक विकास तथा वैज्ञानिक सत्य की प्रगति के विपरीत है।” सर हेनरी मेन ने भी कहा है, “प्रजातंत्र बौद्धिक उन्नति, साहित्य, कला तथा विज्ञान का विरोधी है।”
(ix) धन और समय का अपव्यय (Misuse of wealth and time)-
प्रजातांत्रिक शासन की आलोचना इस आधार पर भी की जाती है कि इसमें धन और समय का अपव्यय होता है। इसके निर्वाचन, प्रतिनिधियों के वेतन एवं भत्ते आदि के कारण अनावश्यक खर्च हो जाता है। इसलिए गेटेल ने कहा है कि “प्रजातंत्र में न केवल अपव्यय होता है, वरन् उसके कारण प्रजातंत्रीय व्यवस्था की आत्मा को ही समाप्त कर देने की प्रवृत्ति रहती है। इसके निरर्थक वाद-विवाद और संपत्ति-पद्धति के कारण व्यर्थ में समय की बरबादी होती है।”
(x) नैतिक दृष्टिकोण से भी गलत (Unsuitable from moral point of view)-
आलोचकों की दृष्टि में, नैतिक दृष्टि से भी प्रजातंत्र गलत धारणा पर आधृत है। इसमें ईमानदारी का प्रचार किया जाता है; किन्तु झूठ और निंदा ही राजनीति के आधार बन जाते हैं। चुनावों के दौरान प्रचार और प्रतिप्रचार के कारण देश का राजनीतिक वातावरण गंदा हो जाता है।
(xi) दलगत बुराइयाँ (Partisan evils)-
प्रजातंत्र अपनी दलगत बुराइयों का भी शिकार है। दलगत भावना के कारण बुराइयों के दौरान आपस में लड़ाई झगड़ा होता है और एक-दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है। पारस्परिक कटुता के इस सन्दर्भ में देश का नागरिक-जीवन अशांत हो जाता है। कभी-कभी तो संसद और विधानसभाओं में दो राजनीतिक दलों के विधायक आपस में तू-तू, मैं-मैं करते हुए शारीरिक संघर्ष भी कर बैठते है।
(xii) संख्यात्मक शासन (Numerical Administration)-
प्रजातंत्र संख्यात्मक शासन है, जिसमें गुण पर ध्यान नहीं दिया जाता। योग्य तथा अल्पमत वाले व्यक्तियों का शासन में कोई स्थान नहीं रहता। परिणामस्वरूप, प्रजातंत्र अकुशल शासन हो जाता है और वह अन्य शासनतंत्रों की तुलना में अधिक भ्रष्ट हो जाता है।
(xiii) लॉर्ड बाइस की आलोचना (Lord Bryce’s criticisms)-
प्रजातंत्र के महान समर्थक लार्ड बाइस ने अपनी पुस्तक आधुनिक प्रजातंत्र में जनतंत्र के निम्नलिखित दोषों का उल्लेख किया है-
(i) शासन-व्यवस्था को विकृत करने में धन-बल का प्रयोग ।
(ii) राजनीति को लाभ का पेशा बनाने की प्रवृत्ति ।
(iii) शासन-व्यवस्था में अत्यधिक व्यय।
(iv) समानता के सिद्धान्त का दुरुपयोग ।
(v) प्रशासकीय पटुता या योग्यता का उचित मूल्यांकन नहीं।
(vi) दलबंदी पर अत्यधिक बल |
(vii) विधायिका-सभाओं के सदस्य तथा राजनीतिक अधिकारियों द्वारा कानून पास करते समय मतों को दृष्टि में रखना और अनुचित व्यवस्था के भार को सहन करना।
अस्तु, प्रजातंत्र के उपर्युक्त दोषों के आधार पर ही आज इसकी आलोचनाएँ की जा रही हैं, लेकिन उपर्युक्त दोषों के बावजूद प्रजातंत्र में गुण भी हैं, जिनके कारण विश्व में अधिकांश देश आज इस प्रणाली को अपना रहे हैं।
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