शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

ओवरहेड प्रोजेक्टर | ओवरहेड प्रोजेक्टर का शिक्षा में महत्व | ओवरहेड प्रोजेक्टर का शैक्षिक अनुप्रयोग | ओवरहेड प्रोजेक्टर के प्रयोग की विधि | ओवरहेड प्रोजेक्टर की परिसीमाएं

ओवरहेड प्रोजेक्टर | ओवरहेड प्रोजेक्टर का शिक्षा में महत्व | ओवरहेड प्रोजेक्टर का शैक्षिक अनुप्रयोग | ओवरहेड प्रोजेक्टर के प्रयोग की विधि | ओवरहेड प्रोजेक्टर की परिसीमाएं | Overhead Projector in Hindi | Importance of Overhead Projector in Education in Hindi | Educational Application of Overhead Projector in Hindi | Method of Using Overhead Projector in Hindi | Limitations of Overhead Projectors in Hindi

ओवरहेड प्रोजेक्टर (शिरोपरि प्रेक्षेपण यंत्र) (Over-head Projector (O.H.P.) –

आधुनिक समय में ओवरहेड प्रोजेक्टर एक ऐसा यंत्र है जिसके माध्यम से विशाल जनसमूह में किसी विचार या विषय-वस्तु को प्रत्यक्ष रूप से सम्प्रेषित करके दिग्दर्शन कराया जा सकता है इससे जनसमूह में किसी विषय-वस्तु के प्रति जागरूकता एवं चेतना जाग्रत की जा सकती है। इस उपकरण को विशेषतः द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सैन्यकर्मियों को शिक्षित करने के लिए विकसित किया गया था। किन्तु वर्तमान में इसका उपयोग विविध विषयों के शिक्षण के साथ-साथ सम्मेलन, सेमिनार या किसी रेखीय चित्रण को प्रस्तुत करने के लिए बहुतायत किया जाता है। निःसन्देह शिक्षा के क्षेत्र में इसके प्रयोग में आधुनिकता के दौर में कए नूतन क्रान्तिकारी परिवर्तन का सूत्रपात हुआ है। इसे विभिन्न नामों सेसम्बन्धित किया जाता है। जैसे शिरोपरि प्रक्षेपक, चित्रदर्शक आदि। ओवरहेड प्रोजेक्टर को संक्षेप में (O.H.P.) (ओ.एच.पी.) भी कहा जाता है।

ओवरहेड प्रोजेक्टर के द्वारा विभिन्न चित्रों, विचारों वस्तुओं की प्रतिकृति को लेन्सों एवं प्रकाश की सहायता से पर्दे पर किरणों के द्वारा हूबहू प्रकट किया जाता है। इसमें ट्रांसपरेन्सी, स्लाइड तथा फिल्म पट्टी का प्रयोग किया जाता है। इससे शिक्षक पढ़ाते समय किसी भी विषयवस्तु को श्यामपट्ट के पास टंगे पर्दे पर ओवरहेड प्रोजेक्टर (H.O.P.) द्वारा प्रकट कर बिना किसी बाधा के अध्यापन कर सकता है। इस यंत्र में प्रकाश की तीव्र किरणों से विज्ञय-वस्तु पर्दे पर प्रक्षेपित होती है। प्रकाश की तीव्र व्यवस्था हेतु इसमें हैलोजन लैम्प (Halogen Lamp) या बल्ब लगे होते है। O.H.P. में शीशे के टुकड़े के आकार का ‘फ्रेसनल लेन्स’ (Fresnal Lens) लगा होता है। इसका आकार 5×5 इंच या इससे अधिक होता है। यह लेन्स ट्रान्सपरेन्सी द्वारा प्रवर्तित प्रकाश को एक निश्चित केन्द्र बिन्दु पर डालता है तथा शीशा उसे प्रक्षेपित करता है। आजकल अनेक प्रकार के आधुनिक ओवरहेड प्रोजेक्टर बाजार में उपलब्ध हैं जिसे कम्प्यूटर की मदद से संचालित किया जा सकता है।

ओवरहेड प्रोजेक्टर का शैक्षिक अनुप्रयोग (Educational Application of O.H.P.)-

ओवरहेड प्रोजेक्टर का शिक्षा में अनुप्रयोग करके शिक्षक अपने भावों, विचारों, चित्रों को पढ़ाते समय बगैर किसी बाधा या रुकावट के छात्रों के सामने प्रकट कर सकता है। इससे छात्र विषय वस्तु को आसानी से समझ सकते है। इससे छात्रों में सीखने की क्षमता बढ़ जाती है तथा पाठ रुचिकर व प्रभावोत्पादक हो जाता है। इसके अनुप्रयोग में शिक्षक पूरी कक्षा पर नियंत्रण रखते हुए शिक्षण को अंजाम देने में समर्थ होता है। ओवरहेड प्रोजेक्टर निम्नलिखित शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति में मदद देता हैं-

(i) दो विचारों वस्तुओं की तुलना, भेद एवं परिचय प्राप्त करने में।

(ii) अपरिचित तथ्यों, विचारों की जानकारी प्रदान करने में।

(iii) अधिगमित पाठों के विविध बिन्दुओं को सारांश रूप में प्रकट करने में।

(iv) विभिन्न सिद्धान्तों, नियमों के सरल एवं बोधगम्य स्पष्टीकरण में।

(v) निरक्षर व्यक्तियों को अक्षर ज्ञान तथा विविध सूचनाओं को चित्रमय ढंग से प्रस्तुत करने में।

ओवरहेड प्रोजेक्टर को शिरोपरि प्रक्षेपक इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह कथ्य विषयवस्तु का प्रक्षेपण शिक्षक के सरि के ऊर लगे पर्दे पर करता है। O.H.P. द्वारा समूह शिक्षण/अनुदेश प्रदान करने में काफी लाभ होता है। इसके द्वारा समूह में छात्रों के सम्मुख किसी तथ्य, भावों, विचारों को प्रकट करके आसानी से समझाने में मदद मिलती है। यह उपकरण विभिन्न तथ्यों की पुनरावृत्ति करके कमजोर छात्रों को सीखाने में मदद भी देता है। शिक्षक एक बार पाठ्यचर्या एवं विषय वस्तु, से सम्बन्धित ट्रांसपरेन्सी तैयार करके उसका उपयोग काफी समय तक कर सकता है तथा बचे हुए समय की उपयोग चिन्तन, मनन, शोध में व्यय कर नूतन आयामों में दक्षता अर्जित कर सकता है। विदेशों में किये गये शोधों का निष्कर्ष रहा है कि जिन कक्षाओं में शिक्षण के अन्तर्गत ओवरहेड प्रोजेक्टर का उपयोग किया गया है उनकी उपलब्धि इस यंत्र का उपयोग न करने वाली कक्षाओं से उन्नत रहा तथा इसके प्रयोग से एक कक्षा में लगभग 15 मिनट की बचत होती है। किन्तु खेद का विषय है कि भारत में अभी ओवरहेड प्रोजेक्टर का शैक्षिक अनुप्रयोग सभी संस्थानों के द्वारा सम्भव नहीं है। इसके अनेक कारण हैं। किन्तु फिर भी कुछ अग्रणी संस्थाओं ने इसका अनुप्रयोग करके अपनी शिक्षण व्यवस्था को समय सापेक्ष व अद्यतन बनाया है।

ओवरहेड प्रोजेक्टर के प्रयोग की विधि-

एक तकनीकी सम्पन्न तथा प्रशिक्षित शिक्षक को ओवरहेड प्रोजेक्टर संचालन की क्रियाविधियों की जानकारी होना आज के युग में बहुत जरूरी है। वस्तुतः इसके संचालन के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण लेना आवश्यक नहीं है। इसकी कुछ बुनियादी प्रायोगिक विधियाँ निम्नवत् हैं-

(i) शिक्षक को शिक्षण देते समय O.H.P. को विद्युत से संलग्न कर पढ़ाये जाने विषय-वस्तु से सम्बन्धित ट्रांसपरेन्सी को प्रोजेक्टर के प्लेटफार्म पर रखकर उसकी केन्द्रबिन्दु स्थिति तथा प्रसार क्षमता का निरीक्षण कर लेना चाहिए। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रक्षेषित विषय वस्तु सभी छात्रों को स्पष्ट एवं पठित रूप में परिलक्षित हो।

(ii) किसी विषय वस्तु को प्रक्षेपित करते समय शिक्षक को इस स्थिति में होना चाहिए कि प्रक्षेपित वस्तु पर उसकी परछायी न पड़े या वह ढँकने न पाये।

(iii) किसी विषय-वस्तु को प्रक्षेपित करते समय यह प्रयास करना चाहिए कि ओवरहेड प्रोजेक्टर (O.H.P.) का प्रक्षेपण सिरा उठा हुआ हो जिससे प्रक्षेपित विषय-वस्तु ऊँचाई पर होने के कारण सभी छात्रों को देखने में कठिनाई नहीं होगी।

(iv) छात्रों को प्रक्षेपित विषय वस्तु को पढ़ने में जानने-समझने के लिए पूरा समय दिया जाना चाहिए।

(v) शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति में मदद देने वाले क्लिष्ट विषयों की सरल ढंग से ट्रान्सपरेन्सी पर उतारने का प्रयास करना चाहिए जिससे सभी छात्र आसानी से समझ सकें।

ओवरहेड प्रोजेक्टर की परिसीमाएं (Limitations of Over-head Projector ) –

ओवरहेड प्रोजेक्टर में जहाँ गुणकारी पहलू सन्निहित हैं, वहीं पर इसके प्रयोग की अपनी कुछ परिसीमाएँ भी हैं-

(i) ओवरहेड प्रोजेक्टर हर एक संस्था अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण प्रत्येक विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध नहीं करा सकती है।

(ii) इस संयंत्र का अनुप्रयोग कर सम्पूर्ण विषय वस्तु को व्यापक ढंग से नहीं प्रस्तुत किया जा सकता है। इसका प्रयोग सीमित एवं जरूरी पाठ्यांशों के प्रस्तुतीकरण में ही उपादेय है।

(iii) इस संयंत्र में प्रक्षेपित किरणों के माध्यम से पर्दे पर आया चित्र अधिक समय तक देखने पर वह अवधान को खण्डित करता है। इसके अधिक उपयोग से दृष्टि दोष का खतरा उत्पन्न हो सकता है।

(iv) ओवरहेड प्रोजेक्टर में ट्रान्सपरेन्सी तैयार करने वाले व्यक्ति को विषय-वस्तु में पररंगत एवं दक्ष होना चाहिए।

(v) ओवरहेड प्रोजेक्टर तथा ट्रांसपरेन्सी का रख-रखाव असुविधायुक्त एवं कठिनाई पूर्ण है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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