शैक्षिक तकनीकी / Educational Technology

टोली शिक्षण की अवधारणा | टोली शिक्षण की विशेषताएँ | टोली शिक्षण का गठन | टोली शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व | टोली शिक्षण की कार्य प्रणाली | टोली शिक्षण की परिसीमाएँ

टोली शिक्षण की अवधारणा | टोली शिक्षण की विशेषताएँ | टोली शिक्षण का गठन | टोली शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व | टोली शिक्षण की कार्य प्रणाली | टोली शिक्षण की परिसीमाएँ | Concept of Team Teaching in Hindi | Features of Team Teaching in Hindi | Formation of team teaching in Hindi | Need and importance of team teaching in Hindi | Team Teaching Methodology in Hindi | Limitations of Team Teaching in Hindi

टोली शिक्षण की अवधारणा (Concept of Team Teaching) –

टोली शिक्षण यद्यपि पाश्चात्य देशों की देन मानी जाती है। किन्तु जब हम भारतीय इतिहास में जाते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन समय में गुरुकुलों में टोली शिक्षण का अनुप्रयोग होता था। अपने-अपने विषय के निष्णात् गुरु यज्ञशाला के पास अपने शिष्यों को यथोचित ज्ञान की बारीकियों को बताते थे। इसके अलावा प्रतिभावान शिष्य नायक पद्धति के अनुरूप शिक्षण के मूर्त रूप देता था। वस्तुतः जव दो या उससे अधिक शिक्षक पारस्परिक सहयोग से छात्रों के समूह के लिए किसी विशिष्ट विषय प्रसंग, तथ्य, प्रकरण का शिक्षण करते हैं तो उसे टोली शिक्षण कहा जाता है। टोली शिक्षण में सहभागी शिक्षक अपने विषय का निष्णात् एवं विशेषज्ञ होता है। जो टोली शिक्षण बनती है उसमें शिक्षकों के बीच का ही एक शिक्षक उस टोली का नेता होता है। जो सम्पूर्ण व्यवस्था को चलायमान बनाया है। अन्य सभी शिक्षक उसी नेता शिक्षक के मार्गदर्शन में कार्य करते हैं। अतः टोली शिक्षण पूर्णतः टोली के नेता पर केन्द्रित होती है।

डेविड वारविक का अभिमत है कि- “टोली शिक्षण, व्यवस्था के एक रूप है जिसमें अनेक शिक्षक अपने साधनों रुचियों तथा निपुणताओं को संगठित करते हैं और विद्यार्थियों की जरूरतों के अनुसार शिक्षकों की एक टोली द्वारा उसे प्रस्तुत किया जाता है। इसमें शिक्षा संस्थाओं की सुविधाओं उचित उपयोग भी किया जाता है।”

टोली शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Team Teaching)-

इस शिक्षण की प्रमुख विशेषताओं को निम्नवत् व्यक्त किया जाता है-

  1. इस शिक्षण में कई शिक्षक एक साथ शिक्षण प्रक्रिया को अंजाम देते है।
  2. इस शिक्षण परस्पर सहयोग पर आधारित होता है।
  3. इस शिक्षण से शिक्षण अधिगम प्रभावी एवं गुणवत्ता युक्त अनुदेशन की रूपरेखा बनाने में मदद मिलती
  4. इस शिक्षण में विविध शिक्षक अपने ज्ञान अनुभव को एक दूसरे को बाँटते है जिससे उनके बीच सन्निकटता आती है।
  5. इस शिक्षण में विद्यालय में उपलब्ध सभी भौतिक संसाधनों का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया जाता है।
  6. इस शिक्षण में विद्यार्थियों को जरुरतों, रुचियों को भी ध्यान में रखकर शिक्षण की योजना क्रियान्वित की जाती है।
  7. टोली शिक्षण में सभी शिक्षक बारी-बारी से अपने ज्ञान से विद्यार्थियों को अभिसिंचित करते हैं।
  8. इस शिक्षण में आवश्यकतानुसार वाह्य विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया जा सकता है।
  9. इस शिक्षण में शिक्षण-अधिगम के दौरान अनौपचारिक तरीके से प्रकट की गयी अनुदेशनात्मक क्रियाएँ भी शामिल कर ली जा सकती है।
  10. इस शिक्षण एक रुचिकर, नमनीय, लचीली एवं प्रभावकारी शिक्षण का संगठनात्मक प्रारूप है।

टोली शिक्षण का गठन

शैफलीन तथा ओल्ड ने अपनी पुस्तक ‘टीम टीचिंग’ (Team Teaching) में टोली शिक्षण का जो प्रारूप प्रस्तुत किया गया है वह निम्नवत् हैं-

(i) Team leader → टोली संयोजक

(ii) Senior Teacher → वरिष्ठ शिक्षक

(iii) Teacher → शिक्षक

(iv) Teacher Aid→ सहायक शिक्षक

(v) Clerical Aid → सहायक लिपिक

वास्तव में टोली शिक्षण का गठन शिक्षा-संस्थाओं में कार्यरत शिक्षक और अन्य स्टाफों क उपलब्धता पर निर्भर करती है।

टोली शिक्षण की आवश्यकता एवं महत्व

(Need and Importance of Team Teaching)

वर्तमान समय में वैज्ञानिक जागृति चरम सीमा पर है। इससे अनेको संयंत्रों का प्रादुर्भाव हुआ है। इन संयंत्रों को शिक्षा में अनप्रयोग करके त्वरित रूप से असंख्य विद्यार्थियों तक ज्ञान की ज्योति प्रज्जवलित करने में मदद मिल रही है। इन संयंत्रों का अनुप्रयोग टोली शिक्षण में करके शिक्षक सम्मिलित रूप से विद्यार्थियों को विविध तथ्यों का सजीव विवरण तथा व्याख्या करने में सफल होते हैं। अतः स्पष्ट है कि विविध संयंत्रों का सम्यक् सदुपयोग करने की दृष्टि से टोली शिक्षण एक आवश्यक शिक्षण पद्धति है।

हमारे देश की आबादी बड़ी त्वरित वेग से बढ़ती चली जा रही है। आबादी के अनुरूप शिक्षक, शिक्षार्थी अनुपात में अत्यधिक वृद्धि होती जा रही है। जो शिक्षक विद्यालयों में नियुक्त भी हैं वे ठीक ढंग से शिक्षण व्यवसाय के प्रति ईमानदार नहीं है।

ऐसी स्थिति में टोली शिक्षण शिक्षकों से पारस्परिक सहयोग की भावना का विकास करने तथा एक दूसरे में ज्ञान के आदान-प्रदान का माहौल बनाती है तथा शिक्षकों की अभाव की पूर्ति में भी मददगार है।

इस शिक्षण में भाग लेने वाले शिक्षकों में अपने शिक्षण व्यवसाय के प्रति जागरूक रहने तथा अद्यतन ज्ञान की प्राप्ति हेतु उत्सुकता का संचार होता है। वे विविध साहित्यों के अध्ययन तथा सूचनाओं को इकट्ठा करके शिक्षण की नवीन योजना बनाने में तथा उनका क्रियान्वयन करने में समर्थ होते हैं।

इस शिक्षण में कक्षा के सभी विद्यार्थी को अपनी बात शिक्षकों के समक्ष रखने तथा उनका समाधान करने हेतु मार्गदर्शन की प्राप्ति होती है। इससे विद्यार्थियों को स्वतन्त्र अभिव्यक्ति का अवसर और स्वतः अध्ययन की प्रवृत्ति भी विकसित होती है।

प्रायः देश की आवश्यकता, समसामयिक नवीन प्रवृत्ति के उदय के कारण पाठ्यचर्या में समय सापेक्ष अनेकों नूतन आयाम जुड़ते रहते हैं और उनमें परिवर्तन आता रहता है। अतः पाठ्यक्रम परिवर्तन तथा नवीन आयामों से विद्यार्थियों को अवगत कराने में टोली शिक्षण विशेष सहायता करता है।

इस शिक्षण द्वारा कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी की रुचि, आवश्यकता, क्षमता, अभिरुचि के अनुरूप व्यक्तिगत मित्रताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया के संचालन में भी मदद मिलती है। योजना पद्धति, डाल्टन पद्धति, विनेटका पद्धति आदि व्यक्तिगत भिन्नता का पोषण करती है।

इस शिक्षण में विद्यार्थियों को शिक्षक टोली हमेशा काम में तल्लीन रखती है और वे हमेशा शिक्षकों के सानिध्य में रहते हैं, जिससे उन्हें अनुशासनहीनता फैलाने का मौका ही नहीं मिल पाता है। अतएव टोली शिक्षण अनुशासनहीनता की समाप्ति में विशेष सहायक होती है।

टोली शिक्षण एक योजनाबद्ध सुव्यवस्थित तथा नियोजित शिक्षण नीति है। इसमें प्रतिभाग करने वाले सभी शिक्षकों सहायकों, तकनीशियनों आदि को विविध कार्य एवं उत्तरदायित्व का पूर्व निर्धारण रहता है। सभी अपने-अपने कार्य एवं उत्तरदायित्व की पूर्ति करके शिक्षण अधिगम के वांछित उद्देश्यों की पूर्ति सरलता से करने में सफल रहते हैं।

इस शिक्षण से धन, समय, श्रम की बचत होती है। इससे विविध विषयों, प्रसंगों को एक साथ पढ़ाने तथा पढ़ने की प्रवृत्ति का विकास होता है। इससे एक विषय का ज्ञान दूसरे विषय के ज्ञान की प्राप्ति में सहायता करता है।

इस शिक्षण में भाग लेने वाले सभी शिक्षकों को अपने ज्ञान, अनुभव, रुचि तथा विशेषता वाले प्रकरणों को पढ़ाने का मौका मिलता है इससे उनमें आत्म-विश्वास, आत्म-सन्तोष का अनुभव होता है और विद्यार्थी की शिक्षक के विशिष्ट ज्ञान का लाभ उठाने में समर्थ होते है।

टोली शिक्षण की कार्य प्रणाली

(Procedure of Team Teaching)

इस शिक्षण की कार्य प्रणाली में निम्नलिखित तथ्यों को महत्व दिया जाता है-

(1) इस शिक्षण में भाग लेने वाले शिक्षकों एवं कर्मचारियों का चयन करके उनके कार्य एवं उत्तरदायित्व को बताना।

(2) शिक्षण की योजना बनाना। इसमें विषय का चयन, उद्देश्यों का चयन, व्यवहार परिवर्तन को लिखना, छात्रों के पूर्व ज्ञान का पता लगाना, शिक्षण की अनुमानित योजना बनाना, अनुदेशन की विधियों का स्तरीकरण करना, छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन करने के ढंग का निर्धारण करना आदि बातें निर्धारित की जाती है।

(3) शिक्षण की योजना बनाने के बाद उसे क्रियान्वित करने हेतु व्यवस्था बनायी जाती है। इसके अन्तर्गत उपर्युक्त सम्प्रेषण नीतियों का चयन, छात्रों से किये जाने वाले प्रश्नों का चयन अनुभवी शिक्षक द्वारा स्वागत व्याख्यान (Lead lecture) कराने का निश्चय, अन्य शिक्षकों द्वारा अनुवर्ती कार्य (Follow Up work) करवाने का उत्तरदायित्व, छात्रों को पुनर्बलित करने के तौर तरीकों का निश्चय, छात्रों के कार्य कलापों के निरीक्षण के कार्य का उत्तरदायित्व का निर्धारण, छात्रों को गृह कार्य एवं कक्षा कार्य करवाने का दायित्व निर्धारण आदि कार्य किया जाता है।

(4) बनायी गयी व्यवस्था के क्रियान्वयन के बाद छात्रों के मूल्यांकन का कार्य किया जाता है। इसके लिए मौखिक एवं लिखित दोनों तरह की परीक्षाएँ ली जाती है तथा जिन छात्रों की उपलब्धि निम्न रहती है उनकी समस्याओं का निदान करके उपचार दिया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर पूरी व्यवस्था में आवश्यकता परिवर्तन एवं परिशोधन भी किया जाता है।

टोली शिक्षण की परिसीमाएँ

(Limitations of Team Teaching)

इस शिक्षण, शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया के संचालन में नवीन दृष्टिकोण एवं कौशल का विकास अवश्य करता है, किन्तु भारत जैसे विशाल आबादी वाले राष्ट्र में इस शिक्षण से विविध विषयों की शिक्षा नहीं दिया जा सकता है। भारत में अभी तक अन्तर अनुशासनात्मक उपागम को ठीक ढंग से महत्व नहीं मिल पाया है और न अभी तक एक विषय के ज्ञान का पारस्परिक सम्बन्ध अन्य विषयों से जोड़ा जा सका है। इसलिए इस शिक्षण द्वारा पर्याप्त सफलता नहीं प्राप्त की जा सकती है। संक्षेप में टोली शिक्षण की परिसीमाओं को निम्नवत् व्यक्त किया जा सकता है-

  1. इस शिक्षण के क्रियान्वयन हेतु विद्यालयों में पर्याप्त संस्था में विद्यार्थियों को बैठाने वाले कक्षा-कक्ष एवं फर्नीचर का पूर्णतया अभाव है।
  2. विद्यालयों में शिक्षकों में पारस्परिक गुटबन्दी विद्यमान है। वे एक दूसरे का सहयोग तथा पारस्परिक ज्ञान का आदान-प्रदान भी नहीं करना चाहते है। इससे टोली शिक्षण की योजना को मूर्त रूप नहीं दिया जा सकता है।
  3. इस शिक्षण में धन का व्यय तथा श्रम अधिक लगता है। इससे सामान्य विद्यालय इसे अपनाने से कतराते है।
  4. इस शिक्षण में भाग लेने वाले शिक्षकों में प्रत्येक का कार्य, उत्तरदायित्व एवं जवाबदेही तय होती है। इससे शिक्षक प्रायः घबराते हैं और इसे बीक नहीं मानते हैं।
  5. भारतीय विद्यालयों में एक साथ एक समान अनुभव एवं योग्यता रखने वाले शिक्षक प्रायः नियुक्त किये जाते है। टोली शिक्षण में विशिष्ट योग्यता वाले शिक्षकों की आवश्यकता पड़ती है। अतः एक विषय में तीन-चार शिक्षकों की नियुक्ति विशिष्टता को ध्यान में रखकर करनी चाहिए। जो वर्तमान परिस्थितियों में पूर्णतया असम्भव परिलक्षित होता है।
  6. भारत में इस शिक्षण की उपादेयता, आवश्यकता एवं कार्य प्रणाली पर शोध अत्याल्प हुए है। इसलिए इसे अभी तक व्यावहारिक स्वरूप की प्राप्ति नहीं हो पायी है।
  7. प्रायः आधुनिक शिक्षक परम्परागत शिक्षण विधियों के इतने अन्ध-भक्त एवं अनुयायी हो गये हैं कि वे नवीन विधियों से उपजने वाली चुनौतियों एवं पुनः अध्ययन करने की प्रवृत्ति से नहीं जुड़ना चाहते है। अतः वे टोली शिक्षण को अंगीकार ही नहीं करना चाहते हैं।
  8. इस शिक्षण से शिक्षक की स्वतन्त्रता का हनन होता है। वह अपने मौलिक विचार अभिव्यक्ति की प्रदर्शित नहीं कर पाता है। टोली शिक्षण में शिक्षक निर्धारित कार्य एवं उत्तरदायित्व से बंधकर ही कार्य करता है।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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