संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

लिकट की चार नेतृत्व प्रणाली विचारधारा | लिकर्ट की चार प्रबन्धकीय प्रणाली | Likert’s Four System of Leadership Theory in Hindi | Likert’s Four management Systems in Hindi

लिकट की चार नेतृत्व प्रणाली विचारधारा | लिकर्ट की चार प्रबन्धकीय प्रणाली | Likert’s Four System of Leadership Theory in Hindi | Likert’s Four management Systems in Hindi

लिकट की चार नेतृत्व प्रणाली विचारधारा (Likert’s Four System of Leadership Theory)

अथवा

लिकर्ट की चार प्रबन्धकीय प्रणाली (Likert’s Four management Systems)

रेसिस लिकर्ट (Rensis Likert) ने लगभग 30 वर्षो तक अपने साथियों के साथ मिलकर अमेरिका की मिशीगन विश्वविद्यालय (University of Michigan of U.S.A. ) में प्रबन्ध की शैलियों अथवा प्रणालिनों पर व्यापक अध्ययन किया तथा नेतृत्व व्यवहार को समझने के लिए कई अवधारणाओं एवं दृष्टिकोणों को विकसित किया। अपने 30 वर्षों के शोधकार्य की अवधि में लिकर्ट ने विभिन्न संस्थाओं में अनेक प्रबन्धकों से सम्पर्क किया। इसके आधार में उन्होंने चार प्रणालियों/मॉडलों को प्रस्तुत किया। इन्हें लिकर्ट की ‘प्रबन्ध प्रणाली’ के नाम से सम्बोधित करते हैं।

लिकर्ट ने इन चार प्रणालियों/मॉडलों को विकसित करने में निम्न सात चरों (Vari- ables) को सम्मिलित किया। इन्हें विभिन्न प्रबन्ध प्रणालियों में से लिया गया है-

(1) नेतृत्व (Leadership);

(2) अभिप्रेरण (Motivation);

(3) सन्देशवाहन (Communication);

(4) परस्पर सम्बन्ध प्रभाव (Interaction Influence);

(5) निर्णयन प्रक्रिया (Decision-making Process);

(6) उद्देश्य निर्धारण (Goal-setting) एवं

(7) नियन्त्रण प्रक्रिया (Control Process)।

लिकर्ट की चार प्रबन्ध प्रणाली (Likert’s Four management System) –

लिकर्ट ने उपरोक्त सातों चरों के आधार पर ही प्रबन्ध की निम्न चार प्रणालियों अथवा मॉडलों का प्रतिपादन किया है।

(1) प्रणाली : शोषणात्मक तानाशाही अथवा निरंकुश प्रणाली ( System 1: Exploitative Autocratic System )- प्रबन्ध की शोषणात्मक तानाशाही प्रणाली, जैसा कि इसके नाम से भी स्पष्ट है, के अन्तर्गत प्रबन्धक तानाशाह होते हैं। वे मुख्य रूप में कार्य से सम्बन्ध रखते है, कर्मचारियों से नहीं। वे कार्य प्रमाप एवं विधि निर्धारित करते हैं। निर्णयन की प्रक्रिया में कर्मचारियों की कोई भागिता नहीं होती है। प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों के मध्य सन्देशवाहन पूर्णतः औपचारिक होता है। और केवल नीचे से ऊपर की ओर ही चलता है। प्रबन्धक कर्मचारियों पर तनिक भी विश्वास नहीं करते हैं। कर्मचारियों से काम लेने के लिए प्रबन्धक ‘भय एवं दण्ड’ (Threats and Punishment) की पद्धति का उपयोग करते हैं। प्रबन्धकों का कर्मचारियों पर सख्त पर्यवेक्षण एवं नियन्त्रण होता है। समस्त अधिकार सत्ता प्रबन्धकों में केन्द्रित होती है। कर्मचारियों को कार्य की दशाओं तथा प्रबन्धकों के विरुद्ध बोलने का कोई अधिकार नहीं होता। इस प्रबन्ध की प्रणाली में सभी सात चर किसी न किसी रूप में मौजूद हैं। इस प्रबन्ध प्रणाली को लिकर्ट ने ‘शोषणात्मक तानाशाही प्रणाली’ के नाम से सम्बोधित किया है।

(2) प्रणाली 2 : उदार तानाशाही अथवा निरंकुश प्रणाली (System 2 : Benevolent Autocratic or Authoritative System )- इस प्रबन्ध प्रणाली में भी प्रबन्धक तानाशाह होते हैं। समस्त अधिकार सत्ता प्रबन्धकों के पास कन्द्रित होती है किन्तु प्रबन्धक शोषणकर्ता नहीं होते हैं। इसके अन्तर्गत प्रेरणा के लिए ‘पुरस्कार एण्ड दण्ड’ (Carrot and Stick ) की नीति को अपनाते हैं। वे कर्मचारियों में विश्वास दर्शाते हैं और निर्धारित सीमाओं में कर्मचारियों को कार्य करने की स्वतन्त्रता प्रदान करते हैं। वे कार्य निष्पादन में कर्मचारियों में आज्ञाकारिता तथा निष्ठा की भवना को प्रोत्साहित करते हैं, तथा लक्ष्यों के निष्पादन के लिए कर्मचारियों को पुरस्कृत करते हैं। जो कर्मचारीगण आदेशों का पालन नहीं करते है तथा निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं, उनके साथ सख्ती का व्यवहार किया जाता है। नियंत्रण के लिए कर्मचारियों को शक की निगाह से देखा जाता है और डर का वातावरण बनाकर रखा जाता है। कभी-कभी किसी विशिष्ट कृत्य की समस्याओं के बारे में कर्मचारियों से परामर्श किया जाता है। और कुछ निर्णयन लेने की सत्ता का कर्मचारियों में प्रत्यायोजन किया जाता है। इसमें एकतरफा (One-Way) सन्देशवाहन प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस प्रणाली में अनौपचारिक समूह बनते हैं। किन्तु ये सदैव प्रबन्ध का विरोध नहीं करते हैं। इस प्रकार प्रबन्ध की इस प्रणाली में पूर्व शोषणात्मक तानाशाही प्रणाली की तुलना में सुधार है। इस प्रबन्ध प्रणाली में भी सात चर किसी न किसी रूप में देखे जा सकते हैं।

(3) प्रणाली 3 : परामर्शात्मक (System 3 : Consultative)- इस प्रबन्ध की प्रणाली में प्रबन्धकों की तानाशाही प्रवृत्ति लगभग समाप्त हो जाती है। प्रबन्ध कर्मचारियों में आंशिक विश्वास करता है। वह कर्मचारियों को अपने विचार प्रकट करने तथा सम्मति देने के लिए प्रोत्साहित करता है और उसे यथा-सम्भव स्वीकार भी किया जाता है। प्रबन्ध निर्णय लेने की सत्ता केवल कुछ विशिष्ट मामलों तक अपने हाथों में रखता है तथा दैनिक प्रकृति के मामलों में निर्णय लेने की सत्ता कर्मचारियों को सौंप देता है। इस सौंपी गयी सत्ता के अधीन कर्मचारियों को निर्णय लेने की स्वतन्त्रता रहती है। वे सम्बन्धित मामलों में अपने अधिकारियों के साथ स्वतन्त्रतापूर्वक विचार- विमर्श करते हैं इसमें द्वि-मार्गीय Two-way सन्देशवाहन होता है। कर्मचारियों को अभिप्रेरित करने के लिए ‘पुरस्कार’ देने पर बल दिया जाता है न कि दण्ड देने में। नियन्त्रण प्रणाली लक्ष्य प्रधान होती है एवं लोचशील होती है। इस प्रणाली में सभी सात चर पहली दोनों प्रणालियों की तुलना में सुधरे हुए रूप में उपस्थित रहते हैं। इस प्रबन्ध की प्रणाली में प्रबन्धकों द्वारा कर्मचारियों से परामर्श पर बल दिया जाता है। इसी कारण इसे ‘परामशत्मिक प्रबन्ध प्रणाली (Consultative manage ment System) कहते हैं।

(4) प्रणाली 4: सहभागिता अथवा प्रजातान्त्रिक ( System 4 Participative or Democratic )- इस प्रणाली में प्रबन्धकों का दृष्टिकोण पूर्णता उदार, मानवीय एवं प्रजातान्त्रिक होता है। कार्य सम्बन्धित लगभग सभी मामलों में प्रबन्धकों का कर्मचारियों में पूर्ण विश्वास होता है। इसमें तानाशाही प्रवृत्ति का कोई स्थान नहीं होता है। लक्ष्यों का निर्धारण कर्मचारियों से परामर्श करके प्रजातान्त्रिक विधि से किया जाता है। प्रबन्धकों तथा कर्मचारियों के मध्य पूर्णतयः मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होते हैं। खुला एवं प्रभावपूर्ण सन्देशवाहन होता है। सभी छोटे एवं बड़े मामलों में कर्मचारियों से परामर्श अवश्य लिया जाता है। उद्देश्यों के निर्धारण में कर्मचारियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

लिकर्ट अनुसार प्रबन्ध की सहभागिता अथवा प्रजातान्त्रिक प्रणाली वर्तमान दशाओं में सबसे उपयुक्त प्रणाली है। (i) यह संगठन में मानवीय संसाधनों का विकास एवं उपयोग करने की दिशा में सबसे उत्तम प्रणाली है। (ii) इससे औद्योगिक सम्बन्ध स्वस्थ होते हैं। (iii) उत्पादकता में वृद्धि होती है। (iv) कर्मचारियों की सन्तुष्टि का संवर्द्धन होता है। (v) पारस्परिक सहभागिता की भावना विकिसत होती है। (vi) वर्तमान दशाओं में यह प्रबन्ध की श्रेष्ठ प्रणाली है। (vii) प्रबन्धकों को संस्था का प्रबन्ध करने में कर्मचारियों का पूर्ण सहयोग एवं समर्थन मिलता है। (viii) लिकर्ट ने यह सुझाव दिया है कि प्रबन्धकों को सभी स्तरों पर नेतृत्व का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे इस प्रणाली को सहर्ष अपना सकें।

विभिन्न चरों तथा प्रबन्ध प्रणालियों का सम्बन्ध

(Relationship Between Different Variables and Management System)

विभिन्न चरों तथा चारों प्रबन्ध प्रणालियों का सम्बन्ध अग्र तालिका द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

चर (Variable)

प्रणाली 1 (शोषणात्मक तानाशाही )

प्रणाली 2 (उदार- तानाशाही)

प्रणाली 3 (परामर्शात्मक)

प्रणाली 4 (सहभागिता/ प्रजातान्त्रिक)

1. नेतृत्व (Leadership)

शोषणात्मक एवं तानाशाही प्रवृत्ति।

उदार तानाशाही प्रवृत्ति ।

परामर्शात्मक प्रवृत्ति।

सहभागिता/ प्रजातान्त्रिक प्रवृत्ति।

2. अभिप्रेरण (Motivation)

दण्ड एवं भय प्रणाली।

पुरस्कार एवं दण्ड प्रणाली।

पुरस्कार प्रणाली।

सहभागिता/ प्रजातान्त्रिक प्रणाली।

3. सन्देशवाहन (Communication)

औपचारिक एवं नीचे से ऊपर की ओर।

एक तरफा सन्देशवाहन प्रणाली।

द्वि-भागीय सन्देशवाहन प्रणाली।

खुली एवं प्रभावी सन्देशवाहन प्रणाली।

4. परस्पर सम्बन्ध प्रभाव (Interaction Influence)

परस्पर विश्वास का प्रभाव।

परस्पर विश्वास में कमी एवं निर्धारित सीमाओं में स्वतन्त्रता।

परस्पर विश्वास की भावना जाग्रत ।

पूर्ण परस्पर विश्वास की भावना।

5. निर्णयन प्रक्रिया (Decision makingg Process)

निर्णयन प्रक्रिया में भागिता शून्य।

अधिकतर निर्णय प्रबंधकों द्वारा लिया जाना तथा सीमित क्षेत्र में निर्णयन लेने की सत्ता का प्रत्योजन।

दैनिक मामलों में कर्मचारियों को निर्णयन की स्वतंत्रता।

सभी मामलों में कर्मचारियों से परामर्श लिया जाना।

6. लक्ष्य निर्धारण (Goal Setting)

लक्ष्यों का निर्धारण केवल उच्च प्रबंधकों के द्वारा।

लक्ष्यों का निर्धारण उच्च प्रबंधकों के द्वारा।

लक्ष्यों के निर्धारण में कर्मचारियों की सीमित भागीदारी।

लक्ष्य निर्धारण में कर्मचारियों की प्रभावी भूमिका।

7. नियन्त्रण प्रक्रिया (Control Process)

सख्त नियन्त्रण प्रणाली।

शक एवं डर के वातावरण में नियन्त्रण प्रणाली।

लक्ष्य- प्रधान एवं लोचशील नियंत्रण प्रणाली।

सामूहिक नियंत्रण प्रणाली।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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