अनुसंधान अभिकल्पों के प्रकार | प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अनुसंधान के प्रकार
अनुसंधान अभिकल्पों के प्रकार | प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अनुसंधान के प्रकार | Types of Research Designs in Hindi | Types of Experimental or Experimental Research in Hindi
अनुसंधान अभिकल्पों के प्रकार
(Types of Research Design)
अनुसंधान के उद्देश्यों को प्रमुख रूप से निम्न सामान्य श्रेणियों में रखा जा सकता है-
(1) अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अध्ययन (Exploratory of Formulative Studies)- ऐसे अध्ययन किसी प्रघटना की बारीकी समझने के लिये किये जाते हैं जिससे कि अधिक शुद्ध अनुसंधान समस्या का निरूपण किया जा सके या प्राक्कल्पनाओं को विकसित किया जा सके।
(2) वर्णनात्मक एवं निदानात्मक अध्ययन (Descriptive Studies) – वर्णनात्मक अध्ययन किसी विशेष परिस्थिति, समूह या व्यक्ति की विशेषताओं के सटीक चित्रण के लिये किये जाते हैं। निदानात्मक अध्ययन में उस पुनरावृत्ति का निर्धारण किया जाता है जिसके आधार पर कुछ घटित होता है या जिसके द्वारा यह घटित होना किसी अन्य घटना से सम्बन्ध होता है।
(3) प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अध्ययन (Experimental Studies) – इसके अन्तर्गत चरों के मध्य कार्य-कारण सम्बन्धों की प्राक्कल्पना का परीक्षण किया जाता है।
(1) अन्वेषणात्मक या निरूपणात्मक अध्ययन अभिकल्प
(Design of Exploratory of Formulative Studies)
अन्वेषणात्मक अध्ययनों का प्रमुख उद्देश्य अधिक शुद्ध अन्वेषण या प्राक्कल्पनाओं का विकास करना होता है। इसके अतिरिक्त इसका उद्देश्य प्रघटनाओं से परिचित कराना, अवधारणाओं को स्पष्ट करना, भावी अनुसंधान की प्राथमिकताओं को सुनिश्चित करना, जीवन की यथार्थताओं के मध्य अनुसंधान कार्य की व्यावहारिक सम्भावनाओं की सूचना का संग्रह करना आदि मुख्य हैं।
अन्वेषणात्मक अध्ययन में अध्ययनकर्ता की स्थिति उस चिकित्सक की भाँति होती है जो रोगी की चिकित्सा में दवाइयाँ बदल-बदल कर अन्त में उसके रोग के निदान में सक्षम दवा का पता लगा लेता है। सामाजिक विज्ञान के अधिकांश सिद्धान्त या तो अति सामान्य है या अति विशिष्ट जिससे वे व्यावहारिक या प्रयोगात्मक अनुसंधान में स्पष्ट दिशा-निर्देश देने में सक्षम नहीं हैं। ऐसी परिस्थितियों में अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्रासंगिक प्राक्कल्पनाओं के निरूपण के लिए आवश्यक होता है जिससे अधिक सार्थक अन्वेषण हो सकें जिस क्षेत्र के विषय में अत्यन्त जानकारी उपलब्ध हो उसमें अन्वेषणात्मक अध्ययन सर्वाधिक उपयोगी होता है।
प्रायः देखा गया है कि प्रयोगात्मक अनुसंधान कों ही अधिक वैज्ञानिकतायुक्त माना जाता है और अन्वेषणात्मक अनुसंधान के महत्व को कम आंका जाता है, किन्तु प्रयोगात्मक कार्य की सैद्धान्तिक या व्यावहारिक उपयोगिता बढ़ाने के लिये यह आवश्यक होता है कि प्रयोगात्मक अनुसंधान को व्यापक आधार प्रदान किया जाय और यह अन्वेषणात्मक अनुसंधान से ही सम्भव होता है।
अन्वेषणात्मक अध्ययन अनुसंधान का प्रारम्भिक चरण होता है और यह अनुसंधान से सतत् जुड़ी प्रकिया है। उपयुक्त अन्वेषण द्वारा किसी अनुसंधान की गलत शुरुआत से बचा जा सकता है। सेल्टिज, जेहोदा, डियूश और कुक सार्थक प्राक्कल्पनाओं की खोज में रत अन्वेषणात्मक अध्ययन में निम्नलिखित विधियों को बहुत लाभप्रद मानते हैं-
(क) सम्बन्धित सामाजिक विज्ञान और अन्य प्रासंगिक साहित्य का पुनरावलोकन ।
(ख) अध्ययन के लिये स्वीकृत समस्या के बारे में व्यावहारिक अनुभव रखने वाले लोगों का सर्वेक्षण।
(ग) अन्तर्दृष्टि-प्रेरक (insight stimulating) घटनाओं का विश्लेषण।
साहित्य पुनरावलोकन (Review or Survey of Literature)
कभी-कभी कोई अन्वेषणात्मक अध्ययन ऐसे अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित होता है जिसमें उस समय तक किसी प्राक्कल्पना का निरूपण नहीं हुआ होता। अनुसंधानकर्ता के लिये ऐसी परिस्थिति में आवश्यक हो जाता है कि वह उपलब्ध सम्बन्धित साहित्य पूर्व अनुसंधानकर्ताओं की प्राक्कल्पनाओं और अन्य क्षेत्रों में उपलब्ध सामग्री का सार्थक सदुपयोग करें।
अनुभव सर्वेक्षण (The Experience Survey)
बहुत से लोग अपने कार्यक्षेत्र की विशेषता के क रण विभिन्न प्रकार के अनुभव प्राप्त करते हैं जिनका उपयोग उनका सर्वेक्षण कर अनुसंधान कार्य में किया जा सकता है। अनुभव-सर्वेक्षण का उद्देश्य ऐसे अनुभव को एकत्रित और संश्लेषित (synthesize) करना होता है। अनुभव सर्वेक्षण ऐसे लोगों के बीच नहीं करना चाहिये जिन्हें आवश्यक अनुभव नहीं है या अनुभव की समुचित अभिव्यक्ति नहीं कर सकते। ऐसे सर्वेक्षणों के लिये सर्वाधिक उपयुक्त व्यक्ति उस क्षेत्र में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत अधिकारी होते हैं।
अन्तर्दृष्टि-प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण (Analysis of Insight Stimulating Cases)
ऐसे अध्ययन क्षेत्र में जिनमें समस्या का निरूपण अपेक्षाकृत कठिन है, क्योंकि अनुभव की कमी होती है और उचित निर्देशन प्राप्त होना सरल नहीं होता, इस विधि का आश्रय लिया जाता है। कुछ चुनी हुयी घटनाओं को लेकर उनका गहन अध्ययन किया जाता है जिससे सुव्यवस्थित अनुसंधान के लिये प्राक्कल्पना की प्राप्ति होती है। कुछ आदिम (primitive) संस्कृतियों के मानवीय अध्ययनों ने व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों के बारे में गहनक्षअन्तर्दृष्टि जाग्रत करने में योगदान किया है। प्रसिद्ध मनोविश्लेषक (Psychoanlyst) सिग्मंड फ्रायड ने मानव-मन की कार्यपद्धति के विषय में अनेक सैद्धान्तिक अन्तर्दृष्टि रोगियों के बारे में अध्ययन करके ही प्राप्त की थीं।
(2) वर्णनात्मक एवं निदानात्मक अध्ययनों हेतु अभिकल्प
(Design for Descriptive and Diagnostic Studies)
वर्णनात्मक अध्ययनों का ध्येय शुद्धतापूर्वक किसी समूह, समुदाय या जाति की विशेषताओं का वर्णन करना होता है। अनुसंधानकर्ता की अभिरुचि किसी समुदाय के लोगों, उनकी आयु, सेक्स, जातिगत विभाजन, शैक्षिक विभाजन आदि में हो सकती है। अनुसंधानकर्ता की रुचि य जानने में हो सकती हैं कि किसी जनसंख्या में कितने लोग किन्हीं मुद्दों पर क्या दृष्टिकोण रखते हैं। कितने लोग मतदान की आयु कम करने का समर्थन करते हैं आदि। इसके अतिरिक्त कुछ अनुसंधान किन्हीं विशिष्ट पूर्वानुमानों से सम्बन्धित हो सकते हैं, यथा-कितने प्रतिशत लोग एक विशिष्ट दल के पक्ष में मतदान करेंगे? एक दशाब्दी में बेराजगारी की क्या स्थिति होगी?
निदानात्मक और निदानात्मक अध्ययन, अध्ययन-अभिकल्प के लिये एक समान आवश्यकतायें रखते हैं। इसी आधार पर इन दोनों को एक साथ रखा जाता है। अन्वेषणात्मक अध्ययन के बिल्कुल विपरीत इन अध्ययनों में अनुसंधान की समस्या का पूर्व ज्ञान अधिक अपेक्षित होता है। इनमें अनुसंधानकर्त्ता स्पष्टतया बताने में सक्षम होना चाहिये। अनुसंधानकर्ता को यह भी ज्ञान होना चाहिये कि ‘दी हुयी जनसंख्या’ (given population) की परिभाषा में किन्हें रखना है। इस प्रकार के अनुसंधानों के प्रमाण-संग्रह में सबसे अधिक आवश्यकता इस बात के स्पष्ट निरूपण की होती है कि किसका मापन करना है और वैध विश्वसनीय मापन की विधियाँ क्या हैं।
वर्णनात्मक और निदानात्मक अध्ययन में प्रयुक्त की जाने वाली विधियों को सावधानीपूर्वक चयनित करना चाहिये, क्योंकि इन अध्ययनों का उद्देश्य सम्पूर्ण एवं विशुद्ध सूचना प्राप्त करना होता है। इन अध्ययनों के अनुसंधान अभिकल्प में पूर्वाग्रह को समाप्त करने के लिये अधिक व्यवस्था होनी चाहिये। वर्णनात्मक एवं निदानात्मक अध्ययनों में कार्याधिक्य को देखते हुये अनुसंधान में मितव्ययिता (समय, धन और श्रम) अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
वर्णनात्मक और निदानात्मक अध्ययनों में मितव्ययिता और पूर्वाग्रह-मुक्त उपाय अपनाने पर ही वर्णनात्मक और निदानात्मक अभिकल्पों की रचना होती है। इनमें से प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
(क) समस्या या प्रश्न को भली-भांति परिभाषित करना।
(ख) तथ्यों या समकों (data) के संग्रह के लिये उचित विधियों का चयन करना।
(ग) समंकों या तथ्यों का पूर्व परीक्षण करना।
(घ) यदि पर्याप्त हो तो निदर्शन द्वारा ही उपकथन प्राप्त किये जायें।
(ङ) सर्वाधिक उपयुक्त निदर्शक (sample) का चयन करना चाहिये।
(च) त्रुटिरहित समंकों की प्राप्ति के लिये सूचना संग्रहित और अंकित करने के समय सम्बन्धित कर्मचारियों पर प्रभावी नियन्त्रण रखना।
(छ) संकेतीकरण की त्रुटियों को दूर करने के लिये सतत् पर्यवेक्षण होना चाहिये।
(3) प्रयोगात्मक अध्ययन-अभिकल्प
(Experimental Study-Designs)
प्रयोगात्मक अध्ययनों का सम्बन्ध कारण-प्राक्कल्पनाओं (causal hypotheses) के परीक्षण से होता है। कारण-सम्बन्ध की प्राक्कल्पना यह सुनिश्चित रहती है कि एक निश्चित विशेषता या घटना उन कारकों में से एक है जो दूसरी विशेषता या घटना का निर्धारण करती है। प्रयोगात्मक या प्रयोगिक अथवा परीक्षणात्मक अभिकल्प के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के तथ्यों का सग्रह एक साथ होता रहता है जिससे सभी सम्भावित प्राक्कल्पनाओं का परीक्षण किया जा सकता है। प्रायोगिक अनुसंधान अभिकल्प दो चरों के परस्पर सम्बन्ध का अध्ययन करने के लिये निर्मित किये जाते हैं। इसमें दो प्रकार के समूह होते हैं-नियन्त्रित (controlled) और प्रायोगिक (Experimental)। नियन्त्रित समूह को अप्रमाणित और अपरिवर्तित रखते हुये प्रयोगिक समूह में अभीष्ट कारण के प्रभाव का अध्ययन करने हेतु उसका प्रकटीकरण (Exposure) किया जाता है।
परीक्षण अभिकल्प का निम्नलिखित प्रारम्भिक अवस्थाओं की कसौटी पर खरा उतरना आवश्यक है तभी विश्वसनीय और प्रामाणिक निष्कर्ष प्राप्त हो सकते है।
(i) व्याख्या सर्वप्रथम परीक्षण की व्याख्या की जाती है जिससे परीक्षण अभिकल्प की प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करना सरल हो जाता है।
(ii) नियन्त्रित परीक्षण – व्याख्या के उपरान्त नियन्त्रित परीक्षण द्वारा सामाजिक घटनाओं का सुव्यवस्थित अध्ययन किया जाता है। यद्यपि नियन्त्रण बहुत कठोर नहीं होता है।
प्रयोगात्मक या परीक्षणात्मक अनुसंधान के प्रकार
(Types of Experimental Research)
(क) पश्चात् परीक्षण (The After-Only Experiment)- इस परीक्षण में समान विशेषताओं और प्रकृति के दो चर समूह चुन लिये जाते हैं जिनमें एक नियन्त्रित और दूसरा परीक्षणात्मक कहलाता है। नियन्त्रित समूह अपरिवर्तित रहता है और परीक्षणात्मक समूह में कारक द्वारा परिवर्तन करने का प्रयत्न किया जाता है। यदि दोनों समूहों में भिन्नता उपस्थित हो जाती है तो कारक को परिवर्तन का कारण माना जाता है।
प्रायः सामाजिक अनुसंधानों में समान समूहों का उपलब्ध होना कठिन कार्य है, अतः परीक्षण के बाद ‘नी यह शंका बनी रहती है कि परितर्वन का कारण कारक ही था या अन्य कुछ।
(ख) पूर्व-पश्चात् परीक्षण (Before After Experiment)- इस परीक्षण में केवल एक समूह होता है जिसका अध्ययन किसी विशिष्ट अवस्था से पूर्व एवं पश्चात् किया जाता है। दोनों में अन्तर होने पर यह माना जाता है कि यह परिवर्तित परिस्थिति का परिणाम है।”
इस परीक्षण में समूह का प्रयोग आरम्भ करने से पूर्व और प्रयोग को पूर्ण करने के पश्चात् निरीक्षण किया जाता है।
इस परीक्षण की प्रमुख त्रुटि यह है कि प्रयोग पूर्ण होने के अन्तराल में समूह का बाह्य कारकों का भी प्रभाव पड़ सकता है जिससे किसी भी प्रकार का नियन्त्रण व्यर्थ हो जाता है।
(ग) कार्यान्तर तथ्य परीक्षण (Ex-post Factor Experiment)- किसी ऐतिहासिक घटना के अध्ययन में इस परीक्षण को उपयोग में लाया जाता है, किन्तु ऐतिहासिक घटनाओं की पुनरावृत्ति सम्भव नहीं होती। इस परीक्षण में दो या दो से अधिक समूह चुने जाते हैं जिनमें एक में घटना घटित हो चुकी होती है और दूसरे में नहीं। तुलनात्मक अध्ययन द्वारा यह खोज की जाती है कि वे कौन से कारण थे जिनके कारण एक समूह में घटना विशेष घटित हुयी और दूसरे में नहीं। घटनाओं की जटिलता कभी-कभी बाधा के रूप में खड़ी हो जाती है।
जे.एस. मिल (J. S.Mill) ने दो विधियाँ प्रतिपादित की हैं-
(i) समानता की विधि (Method of Equality) और (ii) असमानता की विधि (Method of Difference)
अनुसंधान क्रियाविधि – महत्वपूर्ण लिंक
- Research Methodology Methods And Techniques By C.R.Kothari | free pdf download
- Types of Sampling in Hindi – निदर्शन के प्रकार
- प्रतिचयन की समस्या (Sample problem in Hindi) – ये समस्याएँ मुख्यतः 3 प्रकार की हैं
- सहभागी अनुसंधान क्या है (What is participatory research in Hindi) सहभागी अनुसंधान के प्रकार
- सहभागी अनुसंधान तकनीक के गुण – इन 21 गुणों के बारे में जाने (Properties of participatory research techniques in Hindi)
- सहभागी अनुसंधान के दोष (sahbhagi anusandhan ke dosh)
- सामाजिक शोध की प्रकृति तथा सामाजिक शोध के उद्देश्य
- सांख्यिकी की उपयोगिता एवं महत्व (Usefulness and importance of statistics in hindi)
- सांख्यिकी की सीमाएं (Statistic limits in Hindi)
Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com