बुनियादी शिक्षा योजना के उद्देश्य

बुनियादी शिक्षा योजना के उद्देश्य | बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त

बुनियादी शिक्षा योजना के उद्देश्य | बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त

बुनियादी शिक्षा (योजना ) के उद्देश्य

[Aims of Wardha Basic Education (Scheme)]

बुनियादी शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

(1) आर्थिक उद्देश्य (Economic Aim)- इस उद्देश्य से दो अभिप्राय हैं- (i) बालकों द्वारा बनाई जाने वाली वस्तुओं को बेचकर विद्यालय के व्यय की आंशिक पूर्ति करना और (ii) बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् बालकों का किसी उद्योग के द्वारा धन का अर्जन करना। इस सम्बन्ध में स्वयं गाँधीजी ने लिखा है- “प्रत्येक बालक और बालिका को विद्यालय छोड़ने के पश्चात् किसी व्यवसाय में लगाकर स्वावलम्बी बनना चाहिए।”

(2) नैतिक लक्ष्य (Moral Aim) – आधुनिक भारतीय समाज का अविराम गति से नैतिक पतन हो रहा है। अत: बुनियादी शिक्षा का एक मुख्य उदह्देश्य है-बालक का नैतिक विकास करना। नैतिक शिक्षा में अपना विश्वास प्रकट करते हुए गाँधीजी ने लिखा है- “मैंने हृदय की संस्कृति या चारित्रिक निर्माण को सर्वोच्च स्थान दिया है। मुझे विश्वास है कि नैतिक प्रशिक्षण सबको समान रूप से दिया जा सकता है। इस बात से कोई प्रयोजन नहीं है कि उनकी आयु और पालन- पोषण में कितना अन्तर है।”

(3) नागरिकता का उद्देश्य (Aim of Citizenship)- जनतन्त्रीय शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति शासन के प्रति उत्तरदायी होता है और राज्य के प्रति उसके कर्तव्यों में बृद्धि हो जाती है। किन्तु इसके साथ-साथ उसे अनेक अधिकार भी प्राप्त हो जाते हैं। वह इन कर्तव्यों का पालन और अधिकारों का उपयोग तभी कर सकता है, जब वह उनके प्रति सजग हो। इसके लिए ऐसी शिक्षा आवश्यक है, जो उसमें नागरिकता के सब गुणों का विकास करे बुनियादी शिक्षा इन गुणों के विकास में योग देती है।

(4) सर्वोदय समाज की स्थापना का उद्देश्य (Aim of Establishing Sarvodaya Samaj)- आज का सम्पूर्ण समाज स्वार्थ-सिद्धि की नीति का अनुसरण कर रहा है। यह समाज स्पष्ट रूप से दो वर्गं में विभक्त है-धनवान और धनहीन। ये दोनों वर्ग विकृत हैं-पहला, धन की प्रचुरता के कारण और दूसरा, धन के अभाव के कारण। बुनियादी शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य है- इस “विकृत समाज” के स्थान पर “सर्वोदय समाज” की स्थापना करना।

सर्वोदय समाज में श्रम का महत्व होगा, धन का नहीं, स्नेह और सहयोग की भावनाएँ होंगी, घृणा और पृथकता की नहीं; इस समाज में शोषण का स्थान सेवा; निज-हित का स्थान पर-हित और संचय की प्रवृत्ति का स्थान त्याग की प्रवृत्ति लेगी। बच्चों को इसी सर्वोदय समाज के लिए तैयार करने के विचार से बुनियादी शिक्षा द्वारा उनमें प्रेम, सहयोग, आत्म-बलिदानी, आत्म-विश्वास आदि भावनाओं को समाविष्ट करने की चेष्टा को जाती है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर डॉ० एम० एस० पटेल (M.S. Patel) ने लिखा है- “बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य में से एक उद्देश्य यह है-गाँधीजी की सर्वोदय समाज की धारणा के अनुसार भारतीय समाज का पुनः संगठन करना।”

(5) सांस्कृतिक उद्देश्य (Cultural Aim) – हमारी शिक्षा-प्रणाली का एक प्रत्यक्ष दोष यह है कि उसमें भारतीय संस्कृति का ज्ञान न कराया जाकर बालकों को पाश्चात्य आदर्शों और विचारों का भक्त बनाया जाता है। फलस्वरूप, वे अपनी परम्परागत संस्कृति से पूर्णतया अनभिज्ञ रहते हैं इसके दृषित परिणाम को बताते हुए, गाँधीजी ने लिखा है-“यदि किसी स्थिति में पहुँचकर एक पीढ़ी अपने पूर्वजों के प्रयासों से पूर्णतया अनभिज्ञ हो जाती है या उसे अपनी संस्कृति पर लज्जा आने लगती है तो वह नष्ट हो जाती है।”

अपने इस विचार में दृढ़ विश्वास रखने के कारण गाँधीजी ने शिक्षा की अपेक्षा शिक्षा के सांस्कृतिक पक्ष को अधिक महत्व दिया है। इसी उद्देश्य से बुनियादी शिक्षा में भारतीय उद्योगों या शिल्पों को आधार भूत स्थान दिया गया है और शिक्षा को भारतीय संस्कृति के अनुरूप बनाया गया है।

(6) त्रिविध विकास का उद्देश्य (Aim of Three fold Development)- भारत की वर्तमान शिक्षा-पद्धति में केवल बालक के मानसिक विकास पर बल दिया जाता है। उसमें बालक के शारीरिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति रंचमात्र भी ध्यान नहीं दिया जाता है। इस प्रकार, बालक का केवल एकांगी विकास होता है। इसके विपरीत, बुनियादी शिक्षा में बालक के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के प्रति पूर्ण ध्यान दिया जाता है। पाठ्यक्रम में इस प्रकार के विषयों का समावेश किया गया है, जिनसे बालक का तीनों प्रकार का अर्थात् त्रिविध विकास होना निश्चित हो जाता है । इस विकास पर बल देते हुए गाँधीजी ने कहा है – “शिक्षा से मेरा अभिप्राय है बालक और मनुष्य की सम्पूर्ण शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियों का सर्वतोमुखी विकास|”

बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त

(Principles of Basic Education)

बुनियादी शिक्षा के मुख्य सिद्धान्त निम्नांकित हैं-

(1) नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा (Free and Compulsory Education)- गाँधीजी ने भारत के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की ।

(2) जनसाधारण की शिक्षा (Education of the Masses)-  भारत की अधिकांश साधारण जनता अज्ञानता के अन्धकार से आवृत्त है। यही कारण है कि बुनियादी शिक्षा का सर्वप्रथम सिद्धान्त जनसाधारण को शिक्षित बनाना निर्धारित किया गया है। इस प्रकार, गाँधीजी के निम्नांकित कथन के अनुसार कार्य किया जा रहा है “जनसाधारण की अशिक्षा भारत का पाप और कलंक है। अतः उसका अन्त किया जाना अनिवार्य है।”

(3) स्वावलम्बी शिक्षा (Self-Supporting Education )- गाँधीजी ने बुनियादी शिक्षा के आधारभूत सिद्धान्त की ओर संकेत करते हुए कहा- “सच्ची शिक्षा स्वावलम्बी होनी चाहिए। इसका अभिप्राय यह है कि शिक्षा से पूँजी के अतिरिक्त वह सब धन मिल जाना चाहिए, जो उसे प्राप्त करने में व्यय किया जाये।”

बुनियादी शिक्षा के इस स्वावलम्बी पहलू के प्रति विशेष ध्यान देकर उसे स्वावलम्बी बनाया गया है। डॉ० एम० एस० पटेल के अनुसार, बुनियादी शिक्षा दो प्रकार से स्वावलम्बी है-(i) बुनियादी शिक्षा प्राप्त करने वाला बालक किसी हस्तशिल्प को सीखकर, उसे अपने भावी जीवन के निर्वाह का साधन बनाए और (ii) विद्यालय के बालकों द्वारा बनाई जाने वाली वस्तुओं को बेचकर, अध्यापकों को वेतन दिया जाये। इस प्रकार, बालक अपने विद्यालय जीवन और भावी जीवन दोनों में अपने ऊपर निर्भर होकर, स्वावलम्बी बन सकता है।

(4) शिक्षा का माध्यम, ‘मातृभाषा’ (Mother-Tongue as Medium of Instruction)- बुनियादी शिक्षा का माध्यम मातृभाषा है। इतिहास हमें बताता है कि किसी देश की संस्कृति का विनाश करने के लिए, उसके साहित्य का विनाश किया जाता है। इसी सिद्धान्त का अनुगमन करके, अंग्रेजों ने हमारे देश में अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाया। बुनियादी शिक्षा में अंग्रेजी को कोई स्थान नहीं दिया जाता है और मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया गया है।

(5) शारीरिक श्रम (Manual Labour)- बुनियादी शिक्षा में हस्तशिल्प के माध्यम से शारीरिक श्रम को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया है। इससे अग्रांकित चार लाभ होते है-(i) इससे बालकों की शिक्षा का व्यय निकल आता है; (ii) इससे उनको किसी व्यवसाय का प्रशिक्षण प्राप्त हो जाता है; (iii) इससे उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न होता है और उनमें शारीरिक श्रम के प्रति घृणा नहीं रह जाती है; और (iv) गाँधीजी के शब्दों में- “बालक के शरीर के अंगों का विवेकपूर्ण प्रयोग उसके मस्तिष्क को विकसित करने की सर्वोत्तम और शीघ्रतम् विधि है।”

(6) सामाजिक शिक्षा (Social Education)- बुनियादी शिक्षा के द्वारा एक ऐसे समाज का नव-निर्माण करने का प्रयत्न किया जा रहा है, जो स्वार्थ एवं शोषण विहीन हो, जो प्रेम एवं न्याय पर आधारित हो, और जिसके मूलमन्त्र सत्य एवं अहिंसा हों। यही कारण है कि बुनियादी विद्यालयों में बालकों को इसी प्रकार के समाज में रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है। रायबन (Ryburn) का कथन है- “बुनियादी विद्यालय एक वास्तविक सामाजिक इकाई बन जाता है और बच्चों को साथ-साथ रहने की कला का वास्तविक प्रशिक्षण मिलता है।”

(7) हस्तशिल्प की शिक्षा (Training in Handicraft)- बुनियादी शिक्षा में हस्तशिल्प का केन्द्रीय स्थान है और सब विषयों की शिक्षा उसी के माध्यम से दी जाती है। हस्तशिल्प को केन्द्रीय स्थान प्रदान करने का कारण गाँधीजी के निम्नलिखित शब्दों में विदित हो जाता है-‘” साक्षरता स्वयं शिक्षा नहीं है। अत: मैं बच्चे की शिक्षा उसे एक उपयोगी हस्तशिल्प सिखाकर और जिस समय से वह अपनी शिक्षा आरम्भ करता है, उसी समय से उत्पादन करने के योग्य बनाकर आरम्भ करना चाहता हूँ।”

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