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धर्म निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ | भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य के रूप में

धर्म निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ | भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य के रूप में

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धर्म निरपेक्ष राज्य की प्रमुख विशेषताएँ-

भारत सदैव से एक धर्म प्रधान संस्कृति वाला देश रहा है। धर्म निरपेक्ष समाज में कुछ ऐसी विशेषतायें विद्यमान होती हैं जो उसे पवित्र समाज से पृथक करती है। पवित्र समाज में परम्परागत धार्मिक व्यवस्था जीवन के सभी पहलुओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है ऐसे समाज में परम्परागत मान्यताओं तथा स्वीकृत आदर्श नियमों के आधार पर नियंत्रण और संगठन बनाये रखा जाता है, हमारे देश में हिन्दू, मुसलमान और ईसाई आदि समूह पवित्र समाज के अन्तर्गत आते हैं। ऐसे समाज में परम्पराओं, कर्मकाण्डों, धार्मिक विश्वासों, रीति-रिवाजों एवं स्वीकृत आदर्श नियमों का बहुत महत्व होता है। इस प्रकार के समाजों में प्राकृतिक शक्तियों, जादू-टोने और अन्धविश्वासों को काफी महत्व दिया जाता है। ऐसे समाज में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को अच्छा नहीं समझा जाता है, किन्तु कालान्तर में धर्म के नाम पर कर्मकाण्ड और आडम्बर इतने बढ़ गये कि साधारण जनता का धर्म के ऊपर से विश्वास टूटने लगा और समाज विभिन्न वर्गों में बंटने लगा परिणामस्वरूप राष्ट्रीय एकता को आघात पहुँचा। इन सब दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुये संविधान निर्माताओं ने धर्म निरपेक्ष भारत की व्यवस्था की जिसमें निम्नांकित प्रावधान प्रमुख रूप से किये गये-

  1. भारत के प्रत्येक नागरिक को धार्मिक स्वतन्रता (Religious Freedom) है। धर्म व्यक्ति के व्यक्तिगत विश्वास की चीज है। राज्य या सरकार का कोई धर्म नहीं होगा न ही राज्य धर्म के आधार पर नागरिकों के साथ किसी तरह का भेदभाव करेगा। धर्म निरपेक्ष राज्य में व्यक्तियों को अपनी इच्छानुसार धार्मिक जीवन व्यतीत करने की स्वतन्त्रता होती है।
  2. राज्य के समस्त नागरिकों को समान अधिकार है। लिंग, रंग, जाति एवं धर्म आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता तथा धार्मिक कर्मकाण्डों और संस्कारों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता। गाँधी जी के अनुसार, “विश्व के सभी धर्म एक विशाल वृक्ष के समान हैं तथा सभी धरमों के अनुयायी एक-दूसरे के साथ अपने मुख्य भेदों पर जोर दिये बिना प्रसन्नतापूर्वक साथ-साथ रह सकते हैं।”
  3. धर्म और राजनीति का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा धर्म को राजनीति का आधार बनाना संविधान के प्रतिकूल होगा। धर्म निरपेक्ष राज्य में समाज की सारी शक्ति जनता के सामान्य प्रतिनिधियों में निहित होती है।
  4. संविधान में धारा 27 के द्वारा अस्पृश्यता का अन्त कर दिया गया। धारा 15 के (ii) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को धर्म के आधार पर किसी सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोका नहीं जायेगा।
  5. भारतीय संविधान में नागरिकों को धार्मिक संस्थाओं की स्थापना की स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है तथा धार्मिक या परोपकारी कार्यों के लिए खर्च की जाने वाली सम्पत्ति पर कोई भी कर न लगाये जाने का प्रावधान है।
  6. संविधान की धारा 28 में कहा गया है कि किसी सरकारी शिक्षण संस्था में कोई भी धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। सरकार से सहायता प्राप्त संस्थाओं में किसी भी धार्मिक कार्य में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। धर्म निरपेक्ष राज्य में तो शिक्षा पर जोर दिया जाता है, जो नैतिकता एवं चरित्र- निर्माण पर जोर देती है, साथ ही ऐसी शिक्षा अपने में विभिन्न धर्मों के आदर्शों को सम्मिलित कर सामाजिक एकीकरण का प्रयास भी करती है।
  7. धर्म निरपेक्ष राज्य की एक अन्य विशेषता यह है कि यह पवित्र समाज की तुलना में नवीन परिवर्तनों को सुगमता से अपना लेता है।
  8. धर्म निरपेक्ष समाज या राज्य प्रजातांत्रिक मूल्यों में विश्वास करता है। प्रजातंत्र स्वतन्त्रता एवं समानता पर आधारित है, धर्म निरपेक्ष राज्य में भी सभी की समानता एवं स्वतन्त्रता पर विश्वास किया जाता है। ऐसे समाज में धार्मिक सहिष्णुता पर जोर दिया जाता है।
  9. धर्म निरपेक्ष राज्य विवेक व तर्क पर आधारित होते हैं। आदिम अथवा पवित्र समाज के लोग सभी सामाजिक घटनाओं को धर्म व अलौकिक शक्ति के साथ जोड़ते हैं लेकिन धर्म निरपेक्ष राज्य में ऐसा नहीं है, ऐसे राज्यों में कार्य-करण सम्बन्धों पर जोर दिया जाता है, विवेक के आधार पर निर्णय लिये जाते हैं किसी भी वस्तु, कार्य या व्यवहार के गुण-दोष पर तार्किक ढंग से विचार किया जाता है।
  10. धर्म निरपेक्ष राज्य सभी धर्मानुयायियों के साथ समान व्यवहार करता है। इसका कारण यह है कि राज्य किसी भी रूप में किसी विशेष धर्म को बढ़ावा नहीं देता है अतः सभी व्यक्तियों को समान माना जाता है।
  11. धर्म निरपेक्ष राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होता यद्यपि यह धर्म विरोधी अथवा अधार्मिक भी नहीं होता ऐसा राज्य मानवोचित गुणों, यथा-सत्य, अहिंसा, त्याग समानता, बन्धुत्व एवं प्रेम आदि को प्रधानता देता है। डॉ0 राधाकृष्णन के अनुसार-“धर्म निरपेक्ष होने का अर्थ अधर्मी होना या संकुचित धार्मिकता पर चलना नहीं होता, बल्कि पूर्णतया आध्यात्मिक होना है। इतना आशय है कि ऐसा समाज या राज्य अपने को किसी धर्म विशेष के साथ नहीं जोड़ता है।”
  12. धर्म निरपेक्ष राज्य में धर्म को एक, व्यक्तिगत मामला समझकर राज्य के द्वारा लोगों के धार्मिक जीवन में किसी भी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता। इतना अवश्य है कि कभी-कभी जनकल्याण को ध्यान में रखकर सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा प्राप्त करने के उद्देश्य से राज्य विशेष परिस्थितियों में धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है। परन्तु ऐसा करने पर किसी समाज के धर्म निरपेक्ष होने पर किसी प्रकार की कोई आँच नहीं आती है।

इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है न कि धर्म विरोधी राज्य।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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