गांधी जी का शिक्षा दर्शन

गांधी जी का शिक्षा दर्शन – आदर्शवाद, प्रयोजनवाद और प्रकृतिवाद का समन्वय है।

गांधी जी का शिक्षा दर्शन

गांधी जी का शिक्षा दर्शन – आदर्शवाद, प्रयोजनवाद और प्रकृतिवाद का समन्वय है।

गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं के सन्दर्भ में अग्रलिखित ढंग से किया जा सकता है-

शिक्षा के क्षेत्र में गाँधीजी का दर्शन पूर्णतः आदर्शवादी है। शिक्षा के विभिन्न पहलुओं के सम्बन्ध में उन्होंने जो भी विचार प्रस्तुत किये हैं कि उन सभी पर आदर्शवाद की स्पष्ट छाप दिखलाई पड़ती है। शिक्षा के उद्देश्यों के निर्धारण में आध्यात्मिक विकास और आत्मा की स्वतंत्रता पर बल, अनुशासन के क्षेत्र में आत्म- नियन्त्रण और आत्मानुशासन का समर्थन, छात्र द्वारा ब्रह्मचर्य पालन तथा नैतिकता के विकास आदि पर अधिक बल देने से यह स्पष्ट है कि गाँधीजी का शिक्षा-दर्शन आदर्शवादी था।

  • यथार्थवाद के सम्बन्ध में

गाँधीजी के अनुसार शिक्षा का अर्थ, उद्देश्य, विधियाँ और पाठ्यक्रम सम्बन्धी विचारों का अध्ययन करने पर स्पष्ट प्रतीत होता है कि गाँधीजी के ये विचार यथार्थवाद के भी समीप हैं क्योंकि यथार्थवादियों की ही भाँति गाँधीजी ने भी शिक्षा को जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से सम्बन्धित करने पर बल दिया। यथार्थवादी बालक के नैतिक, चारित्रिक, धार्मिक और सामाजिक विषय के साथ-साथ व्यावसायिक उन्नति को शिक्षा का उद्देश्य मानते हैं। गाँधीजी ने भी इन्हीं उद्देश्यों पर बल दिया है।

वर्धा बुनियादी शिक्षा | वर्धा बुनियादी शिक्षा के सिद्धांत | बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य | वर्धा शिक्षा योजना के गुण – दोष

  • प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में

गाँधीजी ने व्यक्ति के सर्वांगीण विकास को महत्त्व दिया है। इससे प्रतीत होता है कि उनके विचार कुछ सीमा तक प्रकृतिवाद से प्रभावित हैं। किन्तु प्रकृतिवाद के आधुनिक सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि में गाँधीजी के शिक्षा-दर्शन को पूर्णतः प्रकृतिवादी नहीं माना जा सकता। उनके शैक्षिक विचारों में केवल कहीं-कहीं पर उन्हें हम प्रकृतिवाद के समीप पाते हैं। उदाहरण के लिए उन्होंने वर्तमान सभ्यता से बालकों को दूर रखकर ग्रामीण वातावरण में सादा जीवन उच्च विचार के आदर्शों पर चलकर शिक्षा प्रदान करने का समर्थन किया है। पाठ्य पुस्तकों पर पूर्णतः निर्भर रहने का विरोध किया है और वर्तमान शिक्षा-पद्धति की आलोचना करते हुए प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता की पृष्ठभूमि में शिक्षा देने पर बल दिया है। इन विचारों में हम उन्हें प्रकृतिवाद से प्रभावित देखते हैं।

  • प्रयोजनवाद के सन्दर्भ में

गाँधीजी का शिक्षा-दर्शन पूर्ण रूप से आदर्शवाद के सिद्धान्तों से प्रभावित है, और कहीं-कहीं एक अर्थ में प्रकृतिवाद के सिद्धान्तों का समर्थन करता है। प्रयोजनवाद, क्योंकि आदर्शवाद और प्रकृतिवाद के बीच के सिद्धान्तों में विश्वास करता है इसलिए कहा जा सकता है कि गाँधीजी का शिक्षा-दर्शन प्रयोजनवाद के भी कुछ समीप अवश्य है। उदाहरण के लिए उनका हस्तकला को शिक्षा का केन्द्र-बिन्दु बनाना, सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना को उत्पन्न करना। शिक्षा को दैनिक जीवन की आवश्यकताओं और अनुभवों पर आधारित करना, स्वतंत्रता और आत्म-निर्भरता आदि के सिद्धान्त प्रयोजनवादी विचारधारा के पोषक हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि गाँधीजी आदर्शवादी होने के साथ-ही-साथ यथार्थवाद, प्रकृतिवाद और प्रयोजनवाद से भी प्रभावित हैं। संक्षेप में यदि देखा जाय तो गाँधीजी का शिक्षा-दर्शन, उद्देश्य के सम्बन्ध में आदर्शवादी विधियों के सम्बन्ध में यथार्थवादी या प्रगतिवादी, आकार-प्रकार में प्रकृतिवादी और कार्य की पद्धति में प्रयोजनवादी है। उनका दर्शन सभी वादों को समान रूप से उचित महत्त्व देता है और किसी भी वाद की उपेक्षा नहीं करता लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि वह पूर्णतः आदर्शवादी विचारधारा के पोषक हैं।

महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimersarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- [email protected]

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *