गुप्त वंश के इतिहास के स्रोत | गुप्त वंश के इतिहास के स्रोतों का उल्लेख
गुप्त वंश के इतिहास के स्रोत | गुप्त वंश के इतिहास के स्रोतों का उल्लेख
गुप्त वंश के इतिहास के स्रोत
(Principal sources of the Gupta’s History)
गुप्तकालीन इतिहास जानने के लिए अनेक साधन उपलब्ध हैं। इन साधनों को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जा सकता है। (I) साहित्यिक सामग्री, (II) पुरातत्त्व सामग्री एवं (III) विदेशियों के विवरण।
(I) साहित्यिक सामग्री-
(I) धार्मिक साहित्य- धार्मिक साहित्य के अन्तर्गत निम्नलिखित ग्रन्थों से गुप्तकाल के इतिहास के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है-
(i) पुराण- ऐसा माना जाता है कि अठारह पुराणों में से अधिकतर गुप्तकाल में ही लिखे गये। पुराणों से हमें गुप्त-सम्राटों के साम्राज्य-विस्तार, उनकी शासन व्यवस्था आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त इनसे गुप्तकालीन, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक अवस्था के बारे में भी बहुमूल्य जानकारी मिलती है।
(ii) स्मृतियाँ- विद्वानों का मत है कि अधिकांश स्मृतियों की रचना गुप्तकाल में ही हुई थी। स्मृतियों से गुप्तकालीन राजनीतिक, सास्कृतिक और धार्मिक अवस्थाओं के बारे में बहुमूल्य ज्ञान प्राप्त होता है।
(2) ऐतिहासिक तथा अर्द्ध ऐतिहासिक साहित्य-
(i) देवी चन्द्रगुप्तम्- विशाखदत्त द्वारा रचित “देवी चन्द्रगुप्तम” नामक नाटक से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपने भाई गमगुप्त का वध करके उसको पत्नी ध्रुवस्वामिनी के साथ विवाह किया था, इस ग्रन्ध में चन्द्रगुप्त द्वितीय के गद्दी पर बैठने का भी उल्लेख मिलता है।
(ii) कालिदास की कृतियाँ- कालिदास गुप्तकाल का एक महान् कवि तथा नाटककार था। उसने “रघुवंश’ नामक महाकाव्य की रचना कलम पर्ववती गुप्तों की वीरता का उल्लेख है। उसकी अन्य रचनाओं (मेघदूत, कुमारसम्भव, अभिज्ञान शाकुन्तलम् आदि) से भी गुप्तकालीन राजनीति, शासन-प्रबन्ध, सामाजिक रीति-रिवाजों आदि के बारे में जानकारी मिलती है। मेघदूत से गुप्तकाल के प्रसिद्ध नगर उज्जैन के सौन्दर्य, उसकी धन-सम्पन्नता आदि का पता चलता है।
(iii) मंजुश्री मूलकल्प- इस ग्रन्थ में गुप्त राजाओं का क्रमबद्ध इतिहास मिलता है।
(iv) मृच्छकटिकम- शूद्रक द्वारा रचित ‘मृच्छकटिकम” नामक नाटक से गुप्तकालीन शासन-पद्धति, न्याय-व्यवस्था, सामाजिक अवस्था, राजनीतिक अवस्था आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
(v) कामन्दक नीतिसार- इस ग्रन्थ से गुप्तकालीन राजनीतिक इतिहास के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है।
(II) पुरातत्त्व सामग्री-
पुरातत्त्व सामग्री को तीन भागों में बाँटा जा सकता है.
(1) अभिलेख, (2) सिक्के, (3) भवन तथा कलाकृतियाँ।
(1) अभिलेख- गुप्तकाल के अनेक उत्कीर्ण लेख, शिलाओं, स्तम्भों, चट्टानों, लोह स्तम्भों, ताम्रपत्रों एवं गुफाओं पर मिले हैं। हरिसेन द्वारा रचित ‘प्रयाग स्तम्भ लेख’ से हमें समुद्रगुप्त की विजयों एवं उसके जीवन चरित्र के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। “महरौली अभिलेख” से हमें चन्द्रगुप्त द्वितीय के विजयों के बारे में जानकारी मिलती है। स्कन्दगुप्त के “भितरी अभिलेख” से उसके पुष्यमित्रों के विरुद्ध युद्ध का विवरण प्राप्त होता है।
(2) सिक्के- गुप्तकालीन सिक्कों से भी गुप्त वंश के इतिहास के निर्माण में बड़ी सहायता मिलती है। गुप्त शासकों ने सोने, चाँदी तथा ताँबे के सिक्के प्रचलित किए थे। इन सिक्कों से गुप्त सम्राटों के नाम, उपाधि, धर्म, चरित्र उनके साम्राज्य की सीमाओं आदि के बारे में जानकारी मिलती है। समुद्रगुप्त के एक सिक्के पर अश्वमेघ घोड़े का चित्र उत्कीर्ण है इसे ज्ञात होता है कि उसने अश्वमेघ यज्ञ भी सम्पन्न किया था। समुद्रगुप्त के कुछ सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हए तथा शिकार करते हुए दिखाया गया है। इससे स्पष्ट होता है कि वह संगीत-प्रेमी तथा शिकार खेलने का शौकीन था। गुप्तकाल के सिक्कों पर विष्णु तथा गरुड़ के चित्रों का अंकित होना इस बात का परिचायक है कि गुप्त-शासक वैष्णव धर्मावलम्बी थे। इसके अतिरिक्त गुप्तकाल के सिक्कों से तत्कालीन कला, भाषा एवं आर्थिक स्थिति के बारे में भी जानकारी मिलती है।
(3) भवन तथा कलाकृतियाँ- गुप्त शासकों ने भूमरा, तिगवा, देवगढ़ आदि स्थानों पर कई मन्दिर बनवाये थे। इन मन्दिरों से हमें गुप्तकालीन धार्मिक अवस्था तथा वास्तुकला के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। गुप्तकालीन महरौली लौह-स्तम्भ तत्कालीन कला का श्रेष्ठ नमूना है। इससे यह भी पता चलता है कि उस समय धातु-विज्ञान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हो चुकी थी। सारनाथ, साँची एवं मथुरा आदि स्थानों से गुप्तकाल की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनसे उस समय की मूर्तिकला की उन्नति के बारे में जानकारी मिलती है। गुप्तकाल में हिन्दू देवी-देवताओं, बौद्धों एवं जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं जिससे इस बात की पुष्टि होती है कि गुप्त शासक धर्म-महिष्णु थे और सभी धर्मों का आदर करते थे। इसी प्रकार एलोरा तथा अजन्ता को गामा के चित्र उस काल की चित्रकला तथा सामाजिक अवस्था पर भी प्रकाश डालते हैं।
(III) विदेशियों के विवरण- चीनी यात्रियों के यात्रा वृत्तान्तों से भी गुप्तकालीन इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी होती है।
(1) फाह्यान- प्रसिद्ध चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था। उसके विवरण से गुप्तकालीन इतिहास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। उसने चन्द्रगुप्त द्वितीय श्रेणीके राजप्रासाद एवं उसकी राजधानी तथा तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक अवस्था का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है।
(2) ह्वेनसाँग- यह एक चीनी यात्री था जो हर्षवर्धन के समय में भारत आया था। यद्यपि उसका विवरण मुख्यतया हर्षवर्धन के शासनकाल से सम्बन्धित है। परन्तु प्रसंगवश उसके विवरण से गुप्त शासकों के बारे में भी जानकारी होती है। उसने अनेक गुप्त सम्राटों का उल्लेख किया है और उस समय के नगरों का उल्लेख किया है।
(3) इत्सिंग- यह भी एक चीनी यात्री था जो सातवीं शताब्दी में भारत आया था। उसके विवरण से पता चलता है कि गुप्तों द्वारा स्थापित नालन्दा विश्वविद्यालय का भवन बड़ा विशाल था और वह एक अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र के रूप में विख्यात था।
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