जनसंख्या शिक्षा का अर्थ एवं परिभाषा | जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता | जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य | जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी शैक्षिक कार्यक्रम | भारत में जनसंख्या-शिक्षा के प्रसार में समस्याएं
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जनसंख्या शिक्षा
भारत में जनसंख्या बड़ी तीव्र गति से बढ़ रही है। सन् 1961 में देश में 42.2 करोड़ जनसंख्या थो, वह 20 वर्ष बाद बढ़कर 68 करोड हो गई। अनुमान है कि 1995 तक यह बढकर 100 करोड़ से अधिक हो जाएगी। बताया जाता है कि विश्व का प्रत्येक सातवाँ व्यक्ति भारतीय हैं तथा भारत में प्रत्येक सैकेण्ड में एक बच्चे का जन्म होता है। यदि देश में इसी गति से जनसंख्या बढ़ती रहो तो देश गरीबी, बेरोजगारी, मकानों को कमी अपराधों की वृद्धि, निरक्षरता आदि जिन अनेक गम्भीर समस्याओं का सामना कर रहा है वे और भी अधिक जटिल एवं असाध्य हो जायेंगी। जनसंख्या विस्फोट के इन्हीं दुष्परिणामों को दृष्टिगत रखकर भारत सरकार ने सन् 1976 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की। इस नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए परिवार नियोजन तथा जनसंख्या शिक्षा पर प्रमुख रूप से बल दिया गया।
अर्थ एवं परिभाषा –
जनसंख्या शिक्षा की अवधारणा नवीन एवं अविकसित है। जनसंख्या शिक्षा पद का प्रयोग सर्वप्रथम कोलम्बिया विश्वविद्यालय के प्रो० वेलैंड ने किया। यद्यपि इस पद का प्रयोग व्यापक यप से होने लगा है तथापि अभी तक इसका सर्वमान्य कोई अर्थ व परिभाषा नहीं है। वैसे जनसंख्या शिक्षा वह शिक्षा है जिसमें युवा पीढ़ी को जनसंख्या की गति, उसकी प्रवृति एवं देश पर उसके प्रभाव तथा परिवार के आकार, छोटे परिवार के लाभ आदि की जानकारी दी जाती हैं। यहाँ जनसंख्या शिक्षा की कुछ परिभाषाएँ प्रस्तुत हैं-
(1) यूनेस्की की सन् 1970 में आयोजित जनसंख्या शिक्षा संगोष्ठी के अनुसार जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक कार्यक्रम है, जिसमें परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व की जनसंख्या की स्थिति का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन का उद्देश्य छात्रों में इस स्थिति के प्रति विवेकपूर्ण उत्तरदायित्वपूर्ण दृष्टिकोणों एवं व्यवहार का विकास करना है ।”
(2) डॅकन का कथन है कि ” वातावरण में परिवर्तन, जनसंख्या के संचार में परिवर्तन, जनसंख्या को समस्या से जूझने के उपाय तथा कारकों की पारस्परिकता से परिस्थिति संकुल (Ecological complex) बनते हैं इन संकुलो को लेखा-जोखा ही जनसंख्या शिक्षा है।’’
(3) केन्द्रीय पैडागौजिकल संस्थान द्वारा प्रकाशित पत्रिका के अनुसार “जनसंख्या शिक्षा जनसंख्या पर नियन्त्रण की जाने वाली समस्या के रूप पर नहीं, वरन उसकी व्यवस्था की जाने वाला सामाजिक एवं जैवकीय घटना के रूप पर विचार करती है ।”
(4) एम0 एस0 विश्वविद्यालय बड़ौदा द्वारा प्रकाशित पत्रिका के अनुसार, “जनसंख्या शिक्षा एक ऐसी शैक्षिक प्रक्रिया है जिससे स्कुल व काकालेजों द्वारा जनसंख्या की समस्याओं की बुनियादी जानकारी और छोटे परिवार के प्रति अभिरु पैदा की जाती है। “
उपरोक्त परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि-
(1) जनसंख्या शिक्षा एक शैक्षिक कार्यक्रम है। (2) यह जनसंख्या वृद्धि का समाज पर प्रभाव का अध्ययन करने का अवसर देती है। (3) यह बालकों में जनसंख्या वृद्धि के प्रति सजगता एवं उचित दृष्टिकोण विकसित करती है ।
जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता-
भारत में जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता निम्न कारणों से है-
(1) जनसंख्या को अत्यधिक तीव्र गति से हो रही वृद्धि देश के जन-जीवनकारणों से है से प्रभावित कर रही है। इससे बच्चों को परिचित कराना आवश्यक है।
(2) बालकों को छोटे परिवार के आदर्श, उससे होने वाले लाभों से परिचित करा दिया जाता है तो वे स्वतः ही परिवार नियोजन के लिए प्रेरित होंगे ।
(3) आधुनिक राज्य कल्याणकारी राज्य है। उन पर जनता के कल्याण, पूर्ण विकास एवं उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखी जीवन का उत्तरदायित्व है। इन दायित्वों का वे तभी निर्वाह कर सकते है जब वे जनसंख्या वृद्धि से जनित समस्याओं से परिचित हों तथा उनके समाधान के उपायों से परिचित हों। यह जनसंख्या शिक्षा द्वारा ही संभव है।
(4) भारत में बाल विवाह की बुरो प्रथा अभी भी प्रचलित है अतः युवकों एवं युवतियों को विवाह से पूर्व जनसंख्या नियंत्रण के उपायों से परिचित कराना तथा इन उपायों का जनसंख्या वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों की जानकारी जनसंख्या शिक्षा द्वारा दी जा सकती है ।
जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य-
जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
(1) छात्रों को जनसंख्या वृद्धि की गति, उसके कारणों एवं दुष्परिणामों से अवगत कराना ।
(2) छात्रों को जनसंख्या एवं गुणात्मक जीवन के घनिष्ठ सम्बन्ध से परिचित करना । (3) छात्रों को छोटे परिवार के आदर्श एवं सुखी परिवार की अवधारणा से परिचित कराना ।
(4) छात्रों को यह समझने की योग्यता विकसित करना कि परिवार के आकार को नियन्त्रित किया जा सकता है तथा सीमित परिवार राष्ट्रीय जीवन को उत्तम एवं सुविधाजनक बना सकता है।
(5) छात्रों को इस तथ्य से परिचित कराना कि परिवार की आर्थिक स्थिरता को छोटे तथा संगठित परिवारों द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है ।
जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी शैक्षिक कार्यक्रम-
जनसंख्या शिक्षा के शैक्षिक कार्यक्रम में तीन तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है-
(1) जनसंख्या वृद्धि की गति, कारक एवं परिणाम।
(2) यौन शिक्षा तथा निरोध शिक्षा सम्बन्धी जानकारी ।
(3) सीमित परिवार के लाभ तथा परिवार को सीमित करने के उपाय।
(4) राष्ट्रीय अर्थव्यस्था, स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा आदि कल्याणकारी समाज का जनसंख्या से सम्बन्ध ।
(5) विश्व के अन्य देशों द्वारा जनसंख्या नियन्त्रण हेतु अपनाए गए उपायों को जानकारो।
(6) छात्रों को जनसंख्या शिक्षा के कार्यक्रमों की ओर आकर्षित व प्रेरित करने के लिए समाचार-पत्रों, रेडियो, चलचित्र, पोस्टर, दूरदर्शन, विज्ञापन, कार्टून फिल्म स्ट्रिप आदि जन संचार के साधनों का प्रयोग किया जा सकता है।
भारत में जनसंख्या-शिक्षा के प्रसार में समस्याएं-
देश में जनसंख्या शिक्षा के व्यापक प्रसार में निम्न समस्याएँ उपस्थित हैं-
(1) छात्रों के लिए जनसंख्या-शिक्षा सम्बन्धी साहित्य का अभाव। (2) जनसंख्या – शिक्षा, प्रदान करने वाले शिक्षकों को ज्ञान में कमी तथा प्रशिक्षण का अभाव। (3) विद्यालयों में जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी उपकरणों को अभाव । (4) जनसंख्या-शिक्षा के क्षेत्र में शोध का अभाव। अभिवाकों का अशिक्षित होना जिसके कारण वे जनसंख्या शिक्षा के महत्व को समक्ष नहीं पाते।
उपरोक्त समस्याओं का हल किया जाना आवश्यक है। तभी जनसंख्या शिक्षा के कार्यक्रम सफल हो सकेंगे।
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