किशोरावस्था की विशेषतायें | किशोरावस्था में शारीरिक विकास | किशोरावस्था में मानसिक विकास | किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास | किशोरावस्था में सामाजिक विकास
किशोरावस्था की विशेषतायें | किशोरावस्था में शारीरिक विकास | किशोरावस्था में मानसिक विकास | किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास | किशोरावस्था में सामाजिक विकास
किशोरावस्था की विशेषतायें
किशोरावस्था विकास की तीसरी पीढ़ी है। किशोरावस्था ‘परिपक्वता की ओर बढ़ने’ में पाई जाती है जो 12 से 18 वर्ष तक चलती है। इस अवस्था में शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक, सामाजिक सभी विकास तेज होकर अपनी चरम सीमा को छूते हैं।
किशोरावस्था में शारीरिक विकास
किशोरावस्था में शारीरिक विकास की निम्नलिखित विशेषताएँ कही गई हैं-
(1) मनोविज्ञानियों ने बताया है कि 14 से 16 वर्ष तक किशोर का भार और लम्बाई तेजी से बढ़ती है। भार 35 से 45 किलो० तक हो जाता है और ऊँचाई 1 1/2 से 1 1/2 मीटर तक हो जाती है।
(2) आन्तरिक और वाह्य सभी अंगों का विकास तेजी से होता है। सभी अंग सुडौल हो जाते हैं। स्वास्थ्य अच्छा रहता है। हड्डियों एवं मांसपेशियों में दृढ़ता आती है, यह दशा अन्तिम वर्षों में होती है।
(3) कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों का विकास वंशानुक्रम और रहन-सहन के आधार पर होता है फिर भी 18 वर्ष तक किशोर हाथ-पैर व चेहरे से पूरा मनुष्य दिखाई देने लगता है।
(4) किशोरी की वाणी में कर्कशता और किशोरियों की वाणी में कोमलता आती है। दाढ़ी मूंढ बढ़ना, वक्षस्थल बढ़ना, जनेन्द्रिय की वृद्धि एवं प्रौढ़ता आदि पाई जाती है।
(5) क्रियाशीलता बहुत बढ़ जाती है, सभी काम करने के योग्य किशोर हो जाता है इस अवस्था में सभी ग्रन्थियों में वृद्धि होती है। शक्ति का प्रवाह तेज होता है, किशोरियों में मासिक धर्म होने लगता है।
(6) विकास तेज होने से कुछ बीमारियाँ भी आ जाती हैं जैसे रक्त हीनता, हृदय की निर्बलता, फेफड़ों की कमजोरी, मुंहासों का निकलना ।
(7) मस्तिष्क का वजन इस अवस्था में लगभग 1260 ग्राम हो जाता है जब कि जन्म के समय वह 350 ग्राम होता है।
(8) गतिशीलता एवं संचरण शीलता में तीव्रता आती है ऐसा मत प्रो० स्टेनली हाल का है। इसीलिए किशोर दिन भर घर से बाहर घूमता पाया जाता है।
(9) किशोर-किशोरियों में शरीर को सुन्दर बनाने की क्रियाएँ भी पायी जाती हैं। कसरत एवं दौड़-धूप, खेल की क्रियाएँ होती हैं।
(10) शारीरिक आदतों का भी निर्माण इस अवस्था में होता है। काम करने की आदत, खेल-कूद की आदत, आराम करने की आदत बनती है जिसमें पूर्ण, मनुष्य के लक्षण होते हैं।
किशोरावस्था में मानसिक विकास
किशोरावस्था में निम्नलिखित ढंग से मानसिक विकास होता है-
(1) 15 से 18 वर्ष तक मानसिक विकास तीव्र होता है, शुरू में मन्द होता है।
(2) किशोरों में कल्पना का तीव्र विकास पाया जाता है। दिवा स्वप्न की तेजी होती है।
(3) विचार एवं तर्क की बहुलता किशोरों में पाई जाती है। इसका कारण है उसका कार्यशील जीवन।
(4) स्मृति और ध्यान एवं रुचि का भी विकास तेजी से होता है। विभिन्न परिस्थितियों में जो अनुभूति होती है उसे वह धारण करता है। इसकी रुचि बहुमुखी होती है। जिससे वह कहानी, कविता, उपन्यास, नाटक सभी पढ़ने में लगा होता है।
(5) संवेदन, प्रत्यक्षीकरण एवं सम्प्रत्यक्षीकरण की प्रक्रियाओं में परिपक्वता आती है। निरीक्षण की शक्ति बढ़ती है।
(6) निर्णय एवं समस्या समाधान करने में किशोर पूर्ण समर्थ होता है। हो सकता है कि उसमें वह शीघ्रता कर बैठे और नई समस्याएँ खड़ी हो जावें।
(7) सीखने की क्षमता में भी व्यावहारिक तथा सैद्धान्तिक तौर पर विकास होता है। वैज्ञानिक, तकनीकी यांत्रिक एवं जटिल विषयों के सीखने में किशोर लगा होता है।
(8) किशोरावस्था में बुद्धि का अधिकतम विकास होता है। प्रो० पीयरमैन ने बताया है कि 14 से 16 वर्ष तक बुद्धि तेजी से बढ़ती है।
(9) जीवन के व्यवसाय एवं दर्शन के चुनाव निश्चित करने में भी किशोर का मानसिक विकास प्रकट होता है। जीवन के आदर्श निश्चित कर वह अपने विचार एवं कार्य को आगे बढ़ाता है।
(10) सृजनशीलता का विकास भी इस अवस्था में खूब होता है। इसी से किशोर एवं किशोरी-दोनों कुछ-न-कुछ निर्माण एवं रचना कार्य करते हैं।
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास
किशोर का जीवन पूर्णतया भावमय होता है। भावनाओं की तरंगों में यह तैरता है और आगे बढ़ने का सतत प्रयत्न करता है। उसके संदेशात्मक विकास में निम्न विशेषताएँ होती हैं-
(1) किशोर स्वतन्त्रता प्रिय होता है। इससे उसमें विद्रोह की भी भावना पाई जाती है। घूमने, यात्रा करने और जिज्ञासाओं की सन्तुष्टि में उसकी आत्मा स्वतन्त्रता का प्रयोग करती है।
(2) वीरपूजा की भावना इस अवस्था में तीव्र होती है। गुरुजनों, महापुरुषों, नेताओं. चलचित्रों के प्रधान पात्र-पात्रियों, ऐतिहासिक वीरों के प्रति श्रद्धा, त्याग और समर्पण की भावना का विकास एवं प्रकाशन किशोर करते हैं।
(3) सहानुभूति एवं प्रेम भावना भी इसमें तीव्र गति से बढ़ती है। अप आपके जोखिम में डालकर दूसरों का बचाव करना भी किशोर की विशेषता है।
(4) काम प्रवृत्ति, विषमलिंगी प्रेम, आस सम्मान की प्रवृत्ति, भजन जन्वषण की प्रवृत्ति, सामाजिकता की प्रवृत्ति तेजी से विकसित होती है।
(5) आत्मनिर्भरता, नैतिकता, ज्ञान-विज्ञान-आदर्श के प्रति उत्सुकता, भय, ईर्ष्या और चिन्ता जैसे भावों का तीव्र विकास इस अवस्था में होता है।
(6) तीव्रगति से भावों का विकास होने से अस-तुलन एवं अनियंत्रण भी इस अवस्था में पाया जाता है। इससे किशोर कुछ अनियमित व्यवहार भी कर बैठते हैं।
(7) अपराध-वृद्धि की ओर झुकाव एवं अपराध क्रिया होना भी किशोरावस्था की एक विशेषता कही जाती है।
(8) 16 से 18 वर्ष तक की आयु में किशोर अपने आप पर अनुशासन रखने लगता है और प्रौढ़ सदृश व्यवहार करता पाया जाता है।
(9) खेल-कूद, क्रिया एवं रचना के प्रति किशोर की रुचि तीव्र होती है। प्रायः सामूहिक रूप में यह रुचि अभिव्यक्त होती है।
(10) किशोर अभिप्रेरण के द्वारा अधिक काम करता है अतएव उसके दामों की प्रशंसा एवं स्वीकृति होने से किशोर उत्तम कार्य करता है।
किशोरावस्था में सामाजिक विकास
किशोरावस्था प्रौढ़ जीवन का द्वार है अतएव किशोर अपने को समाज का एक जिम्मेदार सदस्य मानने लगता है। ऐसी स्थिति में वह अपनी भूमिका समाज के परिप्रेक्ष्य में पूरी करता है। उसमें निम्न ढंग का सामाजिक विकास होता है-
(1) किशोर में अपने आपके और दूसरे के साथ जीवन की योग्यता का विकास होता है। वह मिल जुलकर काम करता है। परिवार, कक्षा, विद्यालय और समाज के विभिन्न लोगों के साथ मिल जुलकर वह काम करता है।
(2) विषम-लिंगी भाव के बढ़ने से किशोर-किशोरी एक साथ जीवन व्यतीत करने के लिए शादी-व्याह भी करते हैं। उनमें वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित होता है।
(3) मित्रता, सहयोग एवं टीम की प्रवृत्ति बढ़ती है। खेल और अभिनय के द्वारा यह प्रवृत्ति बढ़ती है।
(4) जातीय एवं सामुदायिक चेतना का विकास इस अवस्था में होता है। सभ्यता और संस्कृति का भी विकास इसी अवस्था में होता है |
(5) देश-विदेश में भ्रमण, वहाँ के निवासियों के बारे में जानकारी और उनके साथ ‘पेन-फ्रेंडशिप’ का विकास इस अवस्था में होता है ! इससे दृष्टिकोण व्यापक होता है।
(6) सामाजिक परिस्थितियों के साथ समायोजन सभी किशोर-किशोरी करते हैं। वे समाज की मान्यताओं एवं उसके आदर्श, मूल्य, मानव एवं चरित्र को धारण करते हैं। इसके विपरीत भी कुसमायोजन होने से कुछ असामाजिक बातें हो जाती हैं।
(7) आर्थिक कठिनाई को दूर करने के लिए किशोर-किशोरी ट्यूशन, क्लर्क का काम, पुस्तकालय में काम करते हैं। व्यवसायात्मक क्रिया का आरम्भ होता है।
(8) सामाजिक परिपक्वता और बड़ेपन का भाव किशोर-किशोरी में आने लगता है। समाज में ऊँचा पद पाने की चेटा वे करने लगते हैं।
(9) राजनैतिक क्रियाओं का प्रभाव लेकर किशोर भी राजनीति में भाग लेने लगते हैं विशेषकर छात्र संघ के सदस्य के रूप में। सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यों में भाग लेना एवं नेतृत्व करना इसका प्रमाण है।
(10) किशोर-किशोरी एक ऐसे धरातल पर खड़े होते हैं कि जरा से धक्के से नीचे गिर जाता है। इस दशा में किशोर के सामने सामाजिक समस्याएँ खड़ी होती हैं और अनैतिक व्यवहार से समाज पीड़ित होता है।
विकास की अवस्थाओं की अपनी विशेषताएँ होती हैं। इनके अनुकूल ही शिक्षा की व्यवस्था की जाती है जिससे विकास की दिशा सही होती है।
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