शिक्षाशास्त्र / Education

मापन का अर्थ | प्राचीन काल में मापन | आधुनिक युग में मापन | मापन के क्षेत्र | मापन के उद्देश्य

मापन का अर्थ | प्राचीन काल में मापन | आधुनिक युग में मापन | मापन के क्षेत्र | मापन के उद्देश्य | Meaning of Measurement in Hindi | Measurement in ancient times in Hindi | Measurement in the Modern Age in Hindi | Area of ​​Measurement in Hindi | Measurement Objectives in Hindi

मापन का अर्थ

प्राय: मापन से अभिप्राय यह लगाया जाता है कि यह प्रदत्तों का अंकों के रूप में वर्णन करता है। मापन किसी भी वस्तु का शुद्ध एवं वस्तुनिष्ठ रूप से वर्णन करता है। एस० एल० स्टीवेन्स लिखते हैं कि “मापन किन्ही निश्चित स्वीकृत नियमों के अनुसार वस्तुओं का अक प्रदान करने की प्रक्रिया है।” हेल्मस्टेडर (Helm Stadter) के शब्दों में. “मापन को एक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन होता है।”

साधारण शब्दों में “मापन क्रिया विभिन्न निरीक्षणों, वस्तुओं अथवा घटनाओं को कुछ विशिष्ट नियमों के अनुसार नार्थक एवं संगत रूप से संकेत चिह्न अथवा आंकिक संकेत प्रदान करने की प्रक्रिया है।”

अतएव यह कहा जा सकता है कि मापन के मुख्य रूप से तीन कार्य हैं- (i) यह वस्तुओं का श्रेणी को व्यक्त करता है (ii) यह संख्याओं की श्रेणी को व्यक्त करता है तथा (iii) यह वस्तुओं का अंक प्रदान करने वाले नियमों को व्यक्त करता है।

प्राचीन काल में मापन

मौखिक परीक्षाओं का सर्वप्रथम वर्णन Old Testument में मिलता है। यूनान में सुकरात एथेन्स में अपने शिष्यों के ज्ञान को परख करने एवं अपने विचारों को समझाने के लिए उनसे एक के बाद दूसरा प्रश्न पछता था। उसको विधि इतनी प्रसिद्ध हुई कि इसका नाम ही सुकरात विधि पड़ गया। 500 ईसा पूर्व स्पाटा में युवकों के शारीरिक विकास का परीक्षण करने के लिए भी अनेक कठिन कार्यों को कराकर उनका ली जाती थी। ईसा से 2200 वर्ष पूर्व चीन में राज्य के अफसरों का चयन करने के लिए लिखित परीक्षाओं की व्यवस्था थी। इसा से 29 वर्ष पूर्व तक लोक सेवकों के चयन में निश्चित रूप से लिखित रूप में परीक्षाओं का उपयोग किया जाने लगा था। उससे चानी संस्कृति पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा क्योंकि एक ओर तो सारे राज्य क्षेत्र में एक ही प्रकार की व्यवस्था होने से एकता बनाये रखने में सहायता मिली, दूसरे, सरकारी नौकरी प्राप्त करने के लिए सबको समान अवसर प्राप्त हुए।

आधुनिक युग में मापन

प्राचीन काल में बुद्धि व्यक्तित्व, गुण, ज्ञानोपार्जन आदि क्षेत्र में मापन इतने व्यापक कभी प्रयुक्त नहीं हुए जितने आजकल विभिन्न क्षेत्रों में इनके विकास का संक्षिप्त इतिहास निम्न प्रकार हैं –

(1) निष्पत्ति परीक्षण (Achievement Test)- 13वीं शताब्दी में Bologna एवं पेरिस विश्वविद्यालय में मौखिक परीक्षाओं का प्रयोग होता था। इंग्लैण्ड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 1702 में लिखित परीक्षाएं प्रचलित थीं। अमेरिका में 1845 में बोस्टन में परीक्षाएं प्रयुक्त होती थीं। इस समय Horace Mann ‘मैंसेच्युसेट्स शिक्षा मण्डल’ का मंत्री था, उसने एक विद्यालय पत्रिका में, जिसका कि वह सम्पादक था. परीक्षाओं में सुधार के लिए अनेक सुझाव दिये। इसमें उसने मौखिक परीक्षाओं के दोष तथा लिखित परीक्षाओं के उपयोगों को ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उसके बाद एक अग्रेजी अध्यापक श्री जार्ज फिशर ने प्रथम वस्तुगत परीक्षणों का सूत्रपात किया। सन् 1864 में ‘ग्रोनविच चिकित्सालय-विद्यालय’ में उसकी प्रमाप-पुस्तकों (Scale Books) का प्रयोग होता था। इनक माध्यम से व्याकरण, रचना, गणित, हस्तलेखन, वर्णविन्यास, सामान्य इतिहास आदि विषयों में निष्पत्ति का मापन होता था।

(2) Thorndike ने सन् 1904 में शैक्षिक मापन पर प्रथम पुस्तक प्रकाशित को सन् 1908 में उसके शिष्य ‘स्टोन’ ने गाणतोय तर्क पर प्रथम प्रमापीकृत परीक्षण प्रकाशित किया। सन् 1009 में स्वयं थानडाइक ने बालकों के लिए हस्तलेखन मापदण्ड का प्रकाशन किया। 1930 में ऑडेल ने एक अन्य पुस्तक शैक्षिक मापन पर प्रकाशित की जिसमें उस काल में प्रचलित अनेक परीक्षणों का वर्णन है। प्रारम्भ में अमेरिका में इन प्रमापीकृत परीक्षणों का काफी विरोध हुआ पर शीघ्र ही अनेक केन्द्रों, शिक्षा संस्थाओं एवं विश्वविद्यालयों में इनकी प्रगति तीव्रगति से होने लगी। सन् 1920 में (MeCall) मैकाल के प्रयासों में अध्यापकों द्वारा स्वयं परीक्षणों का निर्माण होने  लगा। तब से अमरीकी विद्यालयों में अध्यापक निर्मित औपचारिक परीक्षण व्यापक मात्रा में प्रयुक्त होते रहे हैं। सन् 1927 के पश्चात अनेक दैनिक परीक्षण भी बने हैं।

उसी प्रकार Intelligence Test. Specific Aptitude Tests. Personality Thesis आदि कई प्रकार के निकल गये हैं जिनके आधार पर बुद्धि अभियोग्यता तथा व्यक्तित्व को जाँच की जाती है। ये परीक्षाएं ज्ञानिक आधार रखती हैं और एक शिक्षक के लिए शिक्षण की दृष्टि से अत्यन्त सहायक सिद्ध हुई है।

मापन के क्षेत्र (Scope of measurement)-

मापन का जीवन में अत्यन्त महत्व है। सोते जागते, उठते पढ़ते, सभी समयों पर एवं अन्य अनेक अवसरों पर हम मापन का उपयोग करते हैं। मापन के अनेक क्षेत्र है। यहाँ हम केवल शिक्षा से सम्बन्धित मापन के क्षेत्रों का वर्णन करेंगे। शिक्षा से सम्बन्धित मापन के क्षेत्र निम्न प्रकार हैं- कला, साहित्य, संगीत, हॉकी आदि में योग्यता का मापन गणित, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, अंग्रेजी में ज्ञानोपार्जन, क्लैरीकल कार्य, इन्जीनियरिंग, चिकित्सा आदि में अभिरुचि, जनतन्त्र, अल्पसंख्यकों, स्कूल, राष्ट्र, किसी संस्था के प्रति अभिवृति खेल, पाटन में रुचि तथा व्यक्ति के अनेक गुण जैसे रचनात्मक प्रवृत्ति, अभियोजन और बुद्धि आदि सब मापन याग्य तथ्य हैं। स्कूल में परीक्षार्थियों को अंक देने में उनके, वर्गीकरण तथा तरक्की में अध्यापकों को शिक्षा योग्यता का निर्णय करने में, पाठ्यक्रम का मूल्यांकन करने मैं शिक्षा पर होने वाले कार्य को निश्चित करने में परीक्षण की रचना करने में अर्थात शिक्षा के हर क्षेत्र में मापन का प्रयोग करते हैं।

मापन के उद्देश्य-

मापन के उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. चयन (Selection) – विभिन्न स्कूलों, मेडिकल कॉलेजों, इन्जीनियरिंग कालेजों, सेना एवं उद्योग में विद्यार्थियों का चयन किया जाता है। परीक्षणों द्वारा अनेक व्यक्तियों में से कुछ को छींट लिया जाता है। यह उनकी बुद्धि, योग्यता, उपलब्धि आदि के मापन से किया जाता है। अनेक सेवाओं में कर्मचारियों का चयन करते समय साक्षात्कार एवं प्रक्षेपण विधियों का सहारा उनकी योग्यता, चरित्र, सहनशीलता आदि को मापने के लिए किया जाता है।
  2. पूर्वकथन (Prediction)- पूर्वकथन का अर्थ है-वर्तमान के आधार पर भविष्य के बारे में बताना। हम अपने जीवन में नित्य कोई न कोई निर्णय लेते हैं। एक व्यापारी यह निर्णय लेता है कि किस माल को कितना खरीदें, किस मूल्य से बेचें, कितने कर्मचारी रखें, किसको रखें। एक अध्यापक यह निर्णय लेता है कि उसके छात्र कैसे हैं और उन्हें किस स्तर का परीक्षण दिया जाय। एक चिकित्सक यह निर्णय लेता है कि रोगी को कैसे ठीक किया जाय, कौन-कौन सी दवाइयाँ दी जायें। इस प्रकार सभी निर्णयों में पूर्वकथन सन्निहित है। मनोविज्ञान तथा शिक्षा में ऐसे अनेक परीक्षण हैं जिनके आधार पर पूर्वकथन किया जा सकता है। जैसे उपलब्धि परीक्षण द्वारा किसी विशेष व्यक्ति की उपलब्धि का मापन कर पूर्वकथन किया जा सकता है कि इस व्यक्ति की भविष्य में उपलब्धि प्रकार की होगी।
  3. तुलना (Comparison) – ज्ञान, बुद्धि, व्यक्तित्व, उपलब्धि आदि सभी शील-गुणों में व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है। परीक्षणों का एक मुख्य उद्देश्य इन भिन्नताओं का तुलनात्मक’ अध्ययन करना है। तुलनात्मक अध्ययन के लिए पहल हमें इन गुणों का मापन करना पड़ता है तथा मापन के आधार पर फिर तुलना करते हैं।
  4. निदान (Diagnosis) – निदान का अर्थ है-लक्षणों के आधार पर रोगों को पहचानना। शैक्षणिक निदान में अनेक तकनीकी प्रविधियों का प्रयोग होता है जिनका उद्देश्य सीखने की मुख्य कठिनाइयों का पता लगाना है तथा फिर उसका कारण और निराकरण का भी पता लगाना है। शैक्षणिक निदान में अनेक परीक्षणों, सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग होता है। विभिन्न विषयों पर बनी नैदानिक परीक्षाएँ (Diagnostic test), नैदानिक चार्ट, मानचित्र आदि निदान में उपयोगी हैं। किसी विषय में नैदानिक परीक्षण से पहले तत्सम्बन्धी योग्यता की पहिचान जरूरी है। निदान की सफलता मापन पर निर्भर करती है।
  5. वर्गीकरण (Classification)- वर्गीकरण समानता तथा असमानता के आधार पर किया जाता है। विभिन्न स्कलां, मेडिकल कॉलेजों, इन्जीनियरिंग कॉलेजों उद्योगों तथा सेना आदि में वर्गीकरण का महत्व है। उदाहरणार्थ-स्कूल-कॉलेजों में छात्रों को उनकी योग्यता, उपलब्धि, अभिरुचि, बुद्धि के आधार पर वर्गीकृत किया जाती है। इसी प्रकार उद्योगों में तथा सेना में कर्मचारियों को उनकी अभिक्षमता (Aptitude), बुद्धि, योग्यता के आधार पर किया जाता है। वर्गीकरण के लिए आवश्यक है कि इन गुणों का मापन किया जाय और तब उस मापन के आधार पर उसे वर्गीकृत किया जाय।
  6. शोध (Research) — शोध में परीक्षणों का व्यापक प्रयोग किया जाता है। इसके लिए दो प्रकार के समूह लेते हैं। एक नियन्त्रित (controlled) तथा दूसरा प्रयोगात्मक (Practical) । प्रयोगात्मक समूह पर प्रयोग किये जाते हैं, और नियन्त्रित समूह को वास्तविक परिस्थितियों में रखा जाता है। दोनों का मापन करके प्रयोगात्मक तथा नियन्त्रित समूह के अन्तर का पता लगाते हैं कि व्यवहार में परिवर्तन हुआ या नहीं।
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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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