संगठनात्मक व्यवहार / Organisational Behaviour

अवबोधन के घटक | अवबोधन को प्रभावित करने वाले घटक | Factors of Perception in Hindi

अवबोधन के घटक | अवबोधन को प्रभावित करने वाले घटक | Factors of Perception in Hindi | Components of Perception in Hindi | Factors of Perception in Hindi in Hindi

अवबोधन के घटक

(Factors of Perception)

अवबोधन के घटकों को निम्न दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) आन्तरिक घटक।

(ii) बाहरी घटक ।

(I) आन्तरिक घटक (Internal Factors)-

अवबोधन के आन्तरिक घटक व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक संरचना से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति सामान्यतः पर्यावरण से उन उद्दीपकों अथवा स्थितियों का चयन करते हैं जो उनके व्यक्तित्व, ज्ञान, अभिप्रेरण एवं अन्य व्यक्तिगत घटकों के अनुकूल होती हैं। ऐसे अनेक घटक होते हैं, जैसे- स्व-धारणा, व्यक्तित्व, विश्वास, अपेक्षाएँ, आन्तरिक आवश्यकताएँ, सीखना, मनोभाव तथा अवबोधात्मक सुरक्षा। इनमें होकर वे उद्दीपक झड़ (निकल) जाते हैं जो व्यक्ति के लिए उपयभोगी नहीं होते हैं। आन्तरिक घटकों का संक्षिप्त विवचेन निम्न प्रकार है-

(1) स्व-धारणा (Self-concept) – एक व्यक्ति किस नजरिये से वस्तुओं अथवा अन्य व्यक्तियों को देखता है, यह बहुत कुछ सीमा तक स्व-धारणा अथवा छवि पर निर्भर करता है। स्व-धारणा अवबोधात्मक चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह अवधान का आन्तरिक प्रारूप है जोकि व्यक्ति की जटिल मनोविज्ञानता पर आधारित है। स्व-धारणा दूसरों का सही रूप में आंकलन करने की प्रक्रिया को सरल बना देती है। किसी व्यक्ति की स्वयं की विशेषताएँ दूसरों की विशेषताओं को प्रभावित करती है और वह उन्हीं का चयन करता है जोकि उसकी स्वयं की विशेषताओं से मेल खाती हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति ईमानदार एवं सामान्य प्रकृति का है। ऐसी स्थिति में वह उसी व्यक्ति का चयन करेगा जोकि उसकी दृष्टि में ईमानदार एवं सामान्य प्रकृति का हो। बेईमान एवं असाधारण प्रकृति के व्यक्ति से वह दूरी बनाये रखेगा।

(2) व्यक्तित्व (Personality) – किसी व्यक्ति के निजी गुण, ख्याति, व्यक्तित्व, दृष्टिकोण, अवधारणाएँ, मान्यताएँ आदि भी उसके अवबोधन को प्रभावित करते हैं। एक प्रभावी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति दूसरे प्रभावी व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को ही पसन्द करेगा। उदाहरण के लिए, भारत के स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्री जवाहर लाल नेहरू से सम्पर्क वही व्यक्ति कर सकता था जिसका प्रभावी व्यक्तित्व हो। इसका कारण यह था कि स्वयं जवाहर लाल नेहरू का व्यक्तित्व अत्यधिक प्रभावी था। उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त थी।

(3) विश्वास (Beliefs) – किसी व्यक्ति का विश्वास उसके अवबोधन पर प्रभावी ढंग से प्रभाव डालता है। हर व्यक्ति का विश्वास हर व्यक्ति में नहीं होता। उसका गिने-चुने व्यक्तियों अथवा वस्तुओं में ही विश्वास होता है। उदाहरण के लिए जब हम किसी वस्तु का निरन्तर उपयोग करते हैं और वह वस्तु हमें सन्तुष्टि प्रदान करती है तो हमारा स्वतः उस वस्तु में विश्वास जग जाता है। उदाहरण के लिए, भारत का आम नागरिक एवं स्कूल वाले छात्र बाटा शू कम्पनी के जूते अधिक पसन्द करते हैं क्योंकि वे देखने में आकर्षक तथा पहनने में आसान तथा मजबूत होते हैं।

(4) अपेक्षाएँ (Expectations)- अपेक्षाएँ भी अवबोधन को प्रभावित करती हैं। अपेक्षाएँ उस विशिष्ट व्यवहार से सम्बन्धित होती हैं जिनकी एक व्यक्ति दूसरों से अपेक्षा करता है। उदाहरण के लिए, एक अध्यापक से हम अच्छे व्यवहार की आशा करते हैं, जबकि श्रम संघ के नेता से हम खुदरे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं। हमारी अपेक्षाएँ स्थायी न रहकर बदलती रहती हैं। जब हम किसी व्यक्ति के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आते हैं और वह हमसे आशातीत व्यवहार नहीं करता है तो उसके प्रति हमारी अपेक्षाएँ भी बदल जाती हैं। उदाहरण के लिए, वर्षों के पश्चात् जब हम अपने किसी मित्र के निकटतम सम्पर्क में आते हैं और वह हमसे अपेक्षित व्यवहार नहीं करता है तो हमारी उसके प्रति अपेक्षाएँ बदल जाती हैं।

(5) आन्तरिक आवश्यकताएँ (Internal Needs) – आन्तरिक आवश्यकताएँ भी अवबोधन को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, जब किसी व्यक्ति को उसकी आवश्यकता की कोई वस्तु समय पर नहीं मिलती है तो उसके मन में तनाव उत्पन्न होता है। लोगों में भन्न समयों पर विभिन्न प्रकार की उत्तेजना उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, एक वीमार व्यक्ति को यदि सही समय पर सही दवा नहीं मिलती है तो उसके मन में कष्टदायक उत्तेजना एवं पीड़ा उत्पन्न होती है परिणामस्वरूप वह आपे से बाहर हो जाता है और मन में जो बात आती है, वही कहने लगता है। उसे इस बात की चिन्ता नहीं रहती कि उसकी सेवा करने वालों पर उसका कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

(6) सीखना (Learning)- सीखना भी अवबोधन को प्रभावित करता है। व्यक्ति जो देखता है, सुनता है एवं अनुभव करता है, उसी का सीधा सम्बन्ध उसके सीखने से होता है। जैसा वह सीखता है, वैसा ही वह अवबोधन करता है। व्यक्ति के अवबोधात्मक ढाँचे के विकास में उसके सीखने की मनोवृत्ति का गहरा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए जब हम किसी पढ़े-लिखे-विद्वान व्यक्ति के सम्पर्क में आते है तो उससे हमारे अवबोधन को सीख मिलती है। इसके विपरीत जब हम अनपढ़ एवं गँवार व्यक्ति के सम्पर्क में आते हैं तो उससे मिलने वाली सीख बिल्कुल भिन्न होती है। इसका सीधा प्रभाव हमारे अवबोधन पर पड़ता है।

(7) मनोभाव (Disposition)- मनोभाव भी हमारे अवबोधन को प्रभावित करता है। जिन उत्तेजकों से हम परिचित होते हैं, उनका हम सरलता से अवबोधन कर लेते हैं। इसके विपरीत, जिन उत्तेजकों से हम परिचित नहीं होते हैं, उनका अवबोधन या तो करते नहीं हैं अथवा कठिनाई से ही कर पाते हैं। उदाहरण के लिए, धार्मिक मनोभाव व्यक्ति एक पुजारी अथवा मुल्ला की सरलता से पहचान कर लेते हैं, जबकि एक सामान्य व्यक्ति की पहचान करने में काफी समय व्यतीत हो जाता है।.

(8) अवबोधात्मक सुरक्षा (Perceptual Defence)- अववोधात्मक सुरक्षा हमारे अवबोधन को प्रभावित करती है। अवबोधात्मक सुरक्षा से हमारा आशय उस सुरक्षात्मक घेरे से है जो एक व्यक्ति ऐसे उद्दीपकों अथवा प्रतिकूल परिस्थितयों के प्रति तैयार करता है जो उसमें तनाव उत्पन्न करती हैं अथवा उसे धमकाती हैं। वह उन्हें पहचानने से भी इनकार कर देता है। श्रम प्रबन्ध अथवा पर्यवेक्षक अधीनस्थ सम्बन्धों को समझने में बोधात्मक सुररक्षा की विचारधारा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बुनर एवं पोस्टमैन (Bruner and Postinan) तथा मैकगिनिज (McGinnies) द्वारा किये गये शोध-कार्यों से बोधात्मक सुरक्षा विचारधारा को मान्यता प्राप्त हुई है। हेयर एवं ग्रुन्स (Haire and Grunes) द्वारा किये गये अनुसन्धान से यह स्पष्ट हुआ है कि “व्यक्ति पर्यावरण या सन्दर्भ के कुछ मतभेद वाले, धमकाने वाले अथवा अस्वीकार्य पहलुओं के अवबोधन से बचने की प्रवृत्ति सीख सकते है।” इस अध्ययन एवं दूसरे सुसंगत प्रयोगों से यह पूर्णतः स्पष्ट हो गया है कि भावानात्मक रूप से व्याकुल कर देने वाली सूचनाओं का अवबोधन तुरन्त नहीं किया जाता है। इन अध्ययनों से यह भी प्रकट हुआ कि कुछ व्यक्ति विशेषकर पर्यवेक्षक एवं अधीनस्थ कुछ घटनाओं एवं स्थितियों को बिल्कुल ‘नहीं देखते है’ अथवा वे अविरोधी रूप से उनकी गलत व्याख्या करते हैं।

(II) बाहरी घटक (External Factors)-

बाहरी घटक पर्यावरणीय प्रभावों से जुड़े होते हैं। वे अवबोधात्मक प्रदायों अथवा उत्तेजकों के लक्षणों के रूप में होते हैं। ये लक्षण एक ही समूह के विशिष्ट उद्दीपन से अन्य उद्दीपकों में अन्तर करते हैं। वे अवबोधात्मक चयनात्मकता को निम्न रूप से प्रभावित करते हैं।

(1) आकार (Size) – आकार के सिद्धान्त के अनुसार किसी वस्तु का आकार जितना बड़ा होगा, उसके अवबोधन की सम्भावना उतनी ही अधिक होगी। उदाहरण के लिए, एक सम्पूर्ण पृष्ठ का मोटे अक्षरों वाला विज्ञापन छोटे अक्षरों वाले वर्गीकृत विज्ञापन की तुलना में अधिक प्रभावी एवं आकर्षक होता है। इस प्रकार बड़ा आकार हमारे मन में प्रभुत्व की स्थापना करता है तथा अवबोधात्मक चयनात्मकता में वृद्धि करता है।

(2) तीव्रता (Intensity)- तीव्रता का आकार से निकटतम सम्बन्ध होता है। बाहरी उद्दीपक जितना अधिक तीव्र अथवा प्रबल होगा, अवबोधन उतना ही अधिक प्रगाढ़ होगा। उदाहरण के लिए, विज्ञापनदाता उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करने के लिए तीव्रता के सिद्धान्त का उपयोग करते हैं। इसी प्रकार पर्यवेक्षक अथवा नेता अधीनस्थों अथवा जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए उच्च स्वर से बोलते हैं।

(3) विषमता (Contrast)- यह सिद्धान्त बताता है किसी वस्तु का प्रभाव या आकर्षण उसकी पृष्ठभूमि (Background) या नैषम्य स्थिति (Contrast) से उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए, जब संयन्त्र सुरक्षा के चिन्ह पीले रंग की पृष्ठभूमि में काले अक्षरों से अथवा लाल पृष्ठभूमि पर सफेद रंग के अक्षरों से अंकित किये जाते हैं तो वे विषय पृष्ठभूमि के कारण अधिक प्रभावी होते हैं।

(4) पुनरावृत्ति (Repetition)- पुनरावृति सिद्धान्त के अनुसार बार-बार दोहराये गये उद्दीपक एकाकी उद्दीपक की तुलना में हमारा ध्यान अधिक आकर्षित करते हैं। इसका कारण यह है कि पुनरावृत्ति से उद्दीपक के प्रति हमारी संचेतना बढ़ जाती है तथा जब भी हमारे ध्यान में कमी आने लगती है, पुनरावृत्ति से ध्यान वापस लौट आता है। यही कारण है कि विज्ञापनदाता अपने उत्पाद संदेश को बार-बार दोहराते हैं, पर्यवेक्षक अपने श्रमिकों को बार-बार कार्य निर्देश दोहराते हैं।

(5) गति (Motion) – यह सिद्धान्त बताता है कि गतिमान अथवा घूमती हुई वस्तु रुकी हुई वस्तु की तुलना में हमारा ध्यान अधिक आकर्षित करती है। उदाहरण के लिए, लोग एक प्लेटफार्म पर खड़ी रेलगाड़ी की तुलना में एक चलती हुई रेलगाड़ी की ओर अधिक आकर्षित होते हैं। इसी प्रकार एक स्थायी मशीन की तुलना में श्रमिक कनवेयर बेल्ट पर चलती सामग्री की ओर अधिक ध्यान देते हैं।

(6) अनूठापन एवं सुपरिचितता (Novelty and Familiarity) – कोई भी नवीन अनूठी या सुपरिचित बाहरी स्थिति भी व्यक्ति का ध्यान आकर्षित करती है। परिचित पर्यावरण में नई वस्तुएँ अथवा नये पर्यावरण में सुपरिचित वस्तुएँ अवबोधक का शीघ्र ही ध्यान आकर्षित कर लेती है। नवीय कार्य दशायें, प्रशिक्षण योजना, कार्य आवर्तन आदि उनके अनूठेपन एवं नवीनता के कारण ध्यान आकर्षित करते हैं।

(7) स्थिति (Status)- किसी व्यक्ति द्वारा ग्रहण की गई स्थिति वस्तुओं अथवा घटनाओं के प्रति उसके अवबोधन को प्रभावित करती है। इस सम्बन्ध में किये गये अनुसन्धानों से यह प्रकट होता है कि उच्च पदो पर पदासीन व्यक्तियों का निम्न पदों पर पदासीन व्यक्तियों की तुलना में एकाकी व्यक्ति के अवबोधन पर अधिक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, किसी उपक्रम में उच्च पद पर पदासीन व्यक्ति (जैसे-प्रबन्धक) द्वारा दिये गये आदेश-निर्देश का निम्न पद पर पदासीन व्यक्ति (जैसे- पर्यवेक्षक) के द्वारा दिये गये आदेश-निर्देश की तुलना में अधीनस्थ अधिक सख्ती एवं ध्यान से पालन करते हैं।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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