शिक्षाशास्त्र / Education

मूल्यांकन परीक्षण के प्रकार | Types of Tests Used in Evaluation in Hindi

मूल्यांकन परीक्षण के प्रकार | Types of Tests Used in Evaluation in Hindi

मूल्यांकन परीक्षण के प्रकार

(Types of Tests Used in Evaluation)-

परीक्षण मापन के उपकरण या साधन होते हैं तथा विभिन्न प्रकार की नापें मूल्यांकन में हमारा मार्ग-दर्शन करती है। अतः विभिन्न संदर्भों में शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति एवं अप्राप्ति का पता लगाने हेतु विभिन्न प्रकार के परीक्षणों के प्रयोग का प्रचलन है। इन सभी प्रकार के परीक्षणों को तीन तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) उद्देश्यों पर आधारित वर्गीकरण,

(ii) प्रयोग के ढंग पर आधातिर वर्गीकरण, अथवा

(iii) प्रक्रिया आधारित वर्गीकरण।

(i) परीक्षण प्रकारों का उद्देश्य आधारित वर्गीकरण

(Purpose Specific Categorisation of Test-Types)-

इस वर्ग में वे परीक्षण आते हैं जो मूल्यांकन के किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति हेतु निर्मित किये जाते हैं। इस वर्ग में निम्नांकित चार प्रकार के परीक्षणों को सम्मिलित किया जा सकता है-

  1. निष्पत्ति या उपलब्धि परीक्षण (Achievement Tests)- निष्पत्ति परीक्षण के द्वारा यह पता लगाया जाता है कि शिक्षार्थी ने कितना सीखा है अथवा उसकी शैक्षिक उपलब्धि कितनी है। इस प्रकार इन परीक्षणों से शैक्षिक उपलब्धि का मापन किया जाता है जिसके आधार पर शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति की पुष्टि की जाती है। अतः पाठ्यक्रम के उद्देश्यों को दृष्टि में रखते हुए इनका निर्माण किया जाता है तथा इसका क्षेत्र पाठ्यक्रम की पाठ्य-वस्तु तक ही सीमित होता है। ये परीक्षण मौखिक, लिखित एवं प्रायोगिक प्रकार के हो सकते हैं।
  2. अभियोग्यता या प्रवणता, परीक्षण (Aptitude Tests)- अभियोग्यता व्यक्ति की वर्तमान दशा होती है जो उसके भविष्य की क्षमताओं की ओर संकेत करती है। अतः अभियोग्यता परीक्षण के माध्यम से व्यक्ति की उन विशेषताओं या गुणों की पहचान की जाती है जो भविष्य में उसको प्रदान किये जाने वाले किसी कार्य विशेष को सम्पादित करने हेतु आवश्यक होते हैं । इन परीक्षणों में जिस प्रकार की अभियोग्यता की जाँच करनी होती है, उसी कार्य या व्यवसाय के कौशलों से सम्बन्धित पदों (प्रश्नों) का निर्माण किया जाता है। कार्य एवं उसके उद्देश्य के आधार पर तीन तरह के परीक्षण निर्मित किये जाते हैं- सामान्य अभियोग्यता परीक्षण, विशिष्ट अभियोग्यता परीक्षण तथा विभिन्नीकृत अभियोग्यता परीक्षण इन परीक्षणों/परीक्षाओं का प्रयोग किसी पाठ्यक्रम या व्यवसाय में व्यक्तियों के चयन हेतु किया जाता है।
  3. निदानात्मक परीक्षण (Diagnostic Tests) – निष्पत्ति परीक्षणों के द्वारा यह पता चलता है कि बालक ने कितना सीखा है किन्तु इन परीक्षणों से यह ज्ञात नहीं किया जा सकता है कि बालक जो कुछ नहीं सीख सका है उसके क्या कारण रहे हैं? इसके लिए निदानात्मक परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। निदानात्मक परीक्षणों से हमें यह जानने में सहायता मिलती है कि छात्र कितना जानता है तथा कितना नहीं समझ सका है एवं इस न समझ सकने के क्या कारण हो सकते हैं? इस प्रकार निदानात्मक परीक्षाएँ हरें उन अधिगम क्षेत्रों की पहचान करने में सहायता करती है। जिनम छात्र की उपचारात्मक शिक्षण की आवश्यकता होती है। निदानात्मक परीक्षण, इस प्रकार निष्पत्ति परीक्षण के पूरक होते हैं।
  4. दक्षता परीक्षण (Proficiency Tests)- ये परीक्षण किसी एक समय पर व्यक्ति की सामान्य योग्यता का आकलन करने के उद्देश्य से बनाये जाते हैं। दक्षता परीक्षण की अवधारणा यह है कि किसी एक निश्चित स्तर के छात्र से जिसे प्रकार की एवं जितनी योग्यताओं की अपेक्षा की जाती है, उतनी योग्यताएँ उसमें होनी चाहिए। उदाहरणार्थ- एक विज्ञान स्नातक चाहे किसी भी विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण हों, उसमें विज्ञान स्नातक की सामान्य योग्यताएं होनी चाहिए। इस प्रकार दक्षता परीक्षण किसी एक पाठ्यक्रम विशेष से पूर्णता: आच्छादित नहीं होता है अपितु उस पाठ्यक्रम तथा उससे मिलते-जुलते पाठ्यक्रमों की सामान्य विशेषताओं का समापित करने का प्रयास करता है जिससे अधिक से अधिक व्यक्तियों की जाँच करने में सुविधा हो। दक्षता परीक्षण भी एक तरह का निष्पत्ति परीक्षण ही है किन्तु इसका क्षेत्र बहुत व्यापक होता हैं कॉलेज या विश्वविद्यालय स्तर पर आयोजित की जाने वाली वार्षिक परीक्षाओं को हम निष्पति परीक्षण कह सकते हैं किन्तु राष्ट्रीय स्तर पर किसी चयन या प्रवेश हेतु आयोजित का जान वाली परीक्षाओं को दक्षता परीक्षण कहा जायेगा|।

(ii) प्रयोग के ढंग पर आधारित परीक्षणों के प्रकार

(Mode-Specific (categorization of Tet- Types)-

प्रयोग के ढंग पर आधारित वर्गीकरण के अन्तर्गत छः आयामों से सम्बन्धित परीक्षण प्रकारों के छः जोडे सम्मिलित किये जा सकते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत है-

(a) औपचारिक बनाम अनौपचारिक परीक्षण (Formal Assessment Vs. Informa Assessment)- उब काई मान्यता प्राप्त एवं जिम्मेदार संस्था किसी चयन अथवा प्रमाण-पत्र प्रदान करने हेतु किसी परीक्षा का आयोजन एवं. संचालन करती है तब उसे औपचारिक परीक्षण की संज्ञा प्रदान की जाती है। इस प्रकार के परीक्षणों को अपनी वस्तुनिठता, विश्वसनीयता एवं सार्थकता सुनिश्चित करनी होती है। अतः इन परीक्षणों के निर्माण की प्रक्रिया, प्रशासन एवं व्याख्या हेतु निर्धारित मानकों का अनुसरण करना हाोता है। इससे भिन्न, जब कोई व्यक्ति अथवा स्वैच्छिक संस्था अपनी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु कुछ सूचनाओं की प्राप्त करने के उद्देश्य से किसी परीक्षा का आयोजन करता है, तब उसे अनौपचारिक परीक्षण कहा जाता है। अनौपचारिक परीक्षण भी वस्तुनिष्ठ एवं विश्वसनीय होने चाहिए किन्तु इसके बार में मूल्यांकनकत्ता को जन सामान्य को संतुष्ट करने की बाध्यता नहीं होती है। अतः इसके मूल्यांकन की प्रक्रिया में नि्धारित मानकों का अनुसरण बहुत कड़ाई के साथ नहीं किया जाता है।

(b) रूपदेय परीक्षण बनाम योगदेय परीक्षण (Formative Tests Vs. summative Tests)- रूपदेय परीक्षाण विद्यार्थियों की कमजोरियों को जानने से सम्बन्धित होते हैं तथा इनके प्रयोग से विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को उन्हें दूर करने में सहायता मिलती है। इस प्रकार के परीक्षण पाठ्यक्रम के दौरान थोड़े-थोड़े अन्तराल पर नियमित रूप से प्रदान किये जाते हैं, किन्तु इनके आधार पर कोई श्रेणी या प्रमाण-पत्र नहीं प्रदान किये जाते हैं। ये परीक्षण पाठ्यक्रम के किसी छोटे अंश पर तथा अति सीमित उद्देश्य हेतु प्रदान किये जाते हैं।

योग्य परीक्षण पूरे पाठ्यक्रम या पाठ्यक्रम के एक बड़े भाग पर आधारित होते हैं, इनका उद्देश्य भी अपक्षाकृत व्यापक होता है तथा ये पाठ्यक्रम के अन्त में या छः महीने अथवा तीन महीने के अन्त में प्रदान किये जाते हैं। इनके प्राप्तांकों के आधार पर श्रेणी एवं प्रमाण-पत्र प्रद्धान किये जाते हैं। योगदेय परीक्षण के पद (प्रश्न) भी रूपदेय परीक्षण के पदों से व्यापक होते हैं किन्तु दोनों परीक्षणों का सम्बन्ध विद्यार्थी की प्रगति या अधिगम-उपलब्धि से ही होता है।

(c) सतत् परीक्षण बनाम अन्तिम या वार्षिक परीक्षण (Continuous Assessnat Vs. Terminal Assessment)- रूपदेय एवं योगदेय परीक्षणों का वास्तविक उद्देश्य छात्र की प्रगति का आंकलन करना होता है जबकि उसकी प्रगति या अधिगम-उपलब्धि क श्रेणी या ग्रेड प्रदान करना सतत् परीक्षण बनाम अन्तिम परीक्षण का कार्य एवं उद्देश्य होता है। यद्यपि समय-अन्तराल की दृष्टि से दोनों जोड़ों में कोई विशेष अन्तर नहीं होता है। किन्तु उद्देश्य में अन्तर होता है।

सतत् परीक्षण का उद्देश्य थोड़े-थोड़े अन्तराल पर विद्यार्थियों का आंकलन कर उन्हें ग्रेड या अंक प्रदान करना है जिससे अधिक परीक्षणों के अन्तर्गत अधिकतम अधिगम बिन्दुओं को सम्मिलित किया जा सके क्योंकि अन्तिम परीक्षा में सभी अधिगम बिन्दुओं को समाहित कर पाना सम्भव नहीं होता है। इस प्रकार सभी सतत् परीक्षणों के प्राप्तांकों को मिलाने से वे योगदेय परीक्षण का उद्देश्य पूर्ण हो सकता है। प्रशासन के स्तर पर सतत परीक्षण रूपदेय परीक्षण की तरह ही प्रयुक्त किया जा सकता है। इसी प्रकार अन्तिम परीक्षण भी आगे के पाठ्यक्रम क लिए योगदेय परीक्षण के रूप में प्रयुक्त किये जा सकते हैं।

(d) पाठ्यक्रम – कार्य बनाम परीक्षा (Course Work Vs. Examination) – शिक्षार्थी का मूल्यांकन पाठ्यक्रम के दौरान अथवा इसके समापन पर उसके द्वारा सम्पादित कार्यों के आधार पर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पाठ्यक्रम के दौरान अथवा उसके समापन पर परीक्षा के माध्यम से भी उसका मूल्यांकन किया जा सकता है। इस प्रकार विभिन्न समय पर सम्पादित पाठ्यक्रम कार्यों के मूल्यांकन अथवा परीक्षाओं के प्राप्तांकों को पाठ्यक्रम के अन्त में समेकित करके योगदेये मूल्यांकन के उद्देश्य को पूरा किया जा सकता है।

(iii) प्रक्रिया-आधारित परीक्षणों वे प्रकार

(Process-Specific categorization of Test-Types) –

परीक्षणों का एक वर्गीकरण उनके निर्माण वा रचना की प्रक्रिया के आधार पर भी किया जाता है इस प्रकार के परीक्षणों के दो जोड़े इस प्रकार है

(a) शिक्षक-निर्मित परीक्षण बनाम प्रमाणीकृत परीक्षण (Teacher-Made Test Vs. Standardized Test) – शिक्षक निर्मित परीक्षण, शिक्षक द्वारा किसी कक्षा विशेष एवं पाठ्यक्रम विशेष हेतु उसके द्वारा निर्धारित उदेश्यों की प्राप्ति की जानकारी के लिए बनाय जाते हैं। इस प्रकार के परीक्षणों के निर्माण में कुछ सोपानों का अनुसरण अवश्य किया जाता है किन्तु उसकी प्रक्रिया पूर्णतः सुनिश्चित एवं दृढ़ नहीं होती है। अतः इन परीक्षणों का क्षत्र बहुत सीमित होता है तथा इनकी विश्वसनीयता एवं वैधता भी कम होती है। इन परीक्षणों के मानक भी विकसित नहीं किये जाते हैं।

प्रमाणीकृत परीक्षण एक निश्चित प्रक्रिया के अन्तर्गत वस्तुनिष्ठता एवं शुद्धता का सर्वाधिक महत्त्व देते हुए व्यापक स्तर पर निर्मित किये जाते हैं। इकी रचना परीक्षण निर्माण के निश्चित सोपानों नियोजन, पदों की तैयारी, पदों की जाँच एवं मूल्यांकन की दृढ़ता से अनुसरण करते हुए की जाती है। इन सोपानों के अन्तर्गत उद्देश्यों का निर्धारण, उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना, पदों की संख्या एवं प्रकार निश्चित करना, परीक्षण का ब्लू-प्रिन्टर तैयार करना, पदों की रचना करना, पदों का विश्लेषण करना एवं उनका चयन करना पदों को संशोधित करना तथा परीक्षण का मूल्यांकन आदि क्रियाएँ की जाती है। इन परीक्षणों के प्रशासन, अंकन एवं अधपित की प्रक्रिया भी पूर्व निर्धारित होती है तथा इसके लिए उपयुक्त निर्देश दिये जाते हैं। इनका क्षेत्र अधिक व्यापक होता है। इनकी विश्वसनीयता एवं वैधता भी प्रमाणित होती है तथा प्राप्तांकों के अधपित हेतु मानक भी विकसित किये जाते हैं। अतः प्रमाणीकृत परीक्षण विभिन्न स्थानों एवं अलग-अलग समय पर प्रदान किये जा सकते हैं। इसीलिए इनका निर्माण व्यावसायिक स्तर पर किया जाता है।

(b) मानक संदर्भित परीक्षण बनाम मानदण्ड संदर्भित परीक्षण (Norm- Referenced Tests Vs. Criteria Referenced Tests)- मानक संदर्भित परीक्षण का उद्देश्य अधिक निष्पत्ति एवं कम निष्पति वाले शिक्षार्थियों में विभेद करना होता है अर्थात उनकी सापेक्षिक स्थिति का पता लगाना होता है। अतः यह परीक्षण इस बात पर विशेष बल नहीं देता है कि शिक्षार्थी ने क्या और कितना सीखा है बल्कि इसका मुख्य झुकाव इस तथ्य का पता लगाना होता है कि एक शिक्षार्थी की योग्यता एवं क्षमता अपने दूसरे साथियों की तुलना में किस प्रकार की है। इस प्रकार मानक संदर्भित परीक्षण किसी विद्यार्थी की याग्यता का मूल्यांकन, उसी समूह के दूसरे शिक्षार्थियों की उपलब्धि के किसी निर्धारित मानक के आधार पर करता है। इस प्रकार के परीक्षण से छात्रों के वर्गीकरण एवं चयन में सहायता मिलती है।

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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