निजी क्षेत्र का अर्थ | भारत में निजी क्षेत्र का विकास | भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का योगदान

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निजी क्षेत्र का अर्थ | भारत में निजी क्षेत्र का विकास | भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का योगदान

निजी क्षेत्र का अर्थ (Private Sector)

निजी क्षेत्र का अर्थ

निजी क्षेत्र का एक अर्थ ऐसे स्वामित्व से है, जिसमें उद्योग, कृषि खनिज, व्यापार परिवहन आदि आर्थिक क्रिया-कलापों पर व्यक्ति विशेष का स्वामित्व नहीं होता है, बल्कि यह क्षेत्र उत्पादन एवं सेवाओं से जन सवा करता है।

भारत में निजी क्षेत्र का विकास-

आर्थिक विकास का प्रारम्भ ही निजी क्षेत्र में हुआ। प्राचीन काल में जब औद्योगिकरण का जन्म नहीं हुआ था, उस समय आखेट युग तो एक अवचेतन की अवस्था था, उसमें निजी क्षेत्र का अवलोकन व्यर्थ है। किन्तु चारागाह युग व कृषि युग में पशु-पालन कृषि कार्य व असंगठित लघु आर्थिक क्रियायें तो निजी क्षेत्र से ही विकसित हुई हैं। इसी प्रकार उद्योग युग में औद्योगिक क्रान्ति (Industrial Revolution) का नारा जो इंग्लैण्ड से प्रारम्भ हुआ, विशुद्ध निजी क्षेत्र का पर्याय है।

आधुनिक युग जिसे उत्पादन व नवीन तकनीक का युग कहते हैं, उसमें भी निजी क्षेत्र निरन्तर घोषित हो रहा है। कुल मिलाकर निजी क्षेत्र एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है, जिसमें निजी व्यक्तियों, परिवारों, फर्मों व कम्पनियों का पूर्ण स्वामित्व एवं नियंत्रण हमें प्राचीनकाल से अब तक दिखाई देता है। भारत में स्वतंत्रता से पूर्व रेल-डाकतार आदि कुछ प्रतिष्ठानों को छोड़कर शेष सभी अर्थव्यवस्था व औद्योगिक क्षेत्र पर निजी क्षेत्र का ही वर्चस्व था, क्योंकि उप-निवेशी शासन (ब्रिटिश शासन) का तो समग्र ढांचा ही निजी क्षेत्र पर निर्भर था। स्वतंत्रता के बाद में निजी क्षेत्र पर कुछ नियंत्रण व अंकुश लगाये गये। पं0 जवाहर लाल नेहरू का विचार था कि बड़े-बड़े पूँजीपतियों एवं बड़े जमींदारों के उपक्रम व भूमि की सीमा निर्धारित कर दी जाएगी, ताकि पूँजी का विकेन्द्रीकरण हो, इस दृष्टि से योजना आयोग (Planning Commission) 1959 में स्थापित हुआ और देश का योजनाबद्ध विकास प्रारम्भ हुआ। सरकार ने मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) का लक्ष्य निर्धारित किया। निजी क्षेत्र को नियंत्रित करने के लिए औद्योगिक नीति घोषित हुई।

भारत सरकार ने सुरक्षा सम्बन्धी उद्योग व आधारभूत उद्योगों को छोड़कर निजी क्षेत्र में उपभोग वस्तु उद्योग, जैसे- सूती वस्त्र, खाद्य तेल, लघु परिवहन के साथ-साथ विविध उद्योग, जैसे- रंग-रोगन, वार्निश, प्लास्टिक, कच्चा माल, विद्युत मशीनें, सीमेण्ट, रबड़, कागज, लौह व अलौह धातु उत्पादनों आदि को संचालित करने की छूट दी है। इसी प्रकार लघु एवं कुटीर उद्योगों, जिनके विकास की पूर्ण गुंजाइश है, को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ एवं छूट देकर स्थापित करने पर बल दिया। यद्यपि निजी क्षेत्र विश्व में समाजवादी तीन देश रूस, चीन व कोरिया को छोड़कर सर्वत्र व्याप्त हैं, किन्तु भारतवर्ष में इसकी विशालता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। वृहत पैमाने के उद्योगों, मध्यम एवं लघु उद्योग, व्यापार, सड़क परिवहन, रेस्टोरिन्ट आदि के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र का ही बोलबाला है। देश की कृषि में 97 प्रतिशत राष्ट्रीय उत्पादन निजी क्षेत्र से प्राप्त होता है, जबकि व्यापार होटल व रेस्टोरेन्ट का 94 प्रतिशत तक योगदान है। इस प्रकार कुल मिलाकर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में उद्योग एवं सेवाएँ आदि का 85 प्रतिशत योगदान है। इसके अलावा रोजगार की दृष्टि से भी निजी क्षेत्र को वरदान कहें, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र का योगदान-

  1. भारतीय उत्पादक क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ेगी।
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था की लाभ दर राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय दर बढ़ेगी।
  3. भारत की जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठेगा।
  4. कुशल तथा कार्य करने के इच्छुक एवं लायक- नवयुवक बेरोजगार युवकों को रोजगार मिलेगा।
  5. निजीकरण का अर्थ है देश के उद्यमी वर्ग को उत्पादक कार्य सौंपना, उसका सीधा प्रभाव भारतीय अर्थ व्यवस्था की क्षमता के पूर्ण उपभोग पर पड़ेगा। देश में वित्तीय संसाधन, प्राकृतिक संसाधन, भारतीय संसाधनों का राष्ट्रीय हित में उपयोग होगा। इससे विदेशों पर निर्भरता कम होगी तथा लाभ व आय के रूप में वित्तीय संसाधन देश में ही रहेगा।
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