मानव संसाधन प्रबंधन / Human Resource Management

निष्पादन मूल्यांकन से आशय एवं परिभाषायें | निष्पादन मूल्यांकन की विधियाँ | निष्पादन मूल्यांकन विधियों की सीमायें

निष्पादन मूल्यांकन से आशय एवं परिभाषायें | निष्पादन मूल्यांकन की विधियाँ | निष्पादन मूल्यांकन विधियों की सीमायें | Meaning and definitions of performance appraisal in Hindi | Methods of Performance Appraisal in Hindi | Limitations of Performance Appraisal Methods in Hindi

निष्पादन मूल्यांकन से आशय एवं परिभाषायें

(Meaning and Definitions of Performance Appraisal)

निष्पादन मूल्यांकन शब्द दो शब्दों से बना है निष्पादन और द्वितीय मूल्यांकन निष्पादन कार्य या व्यवहार के परिणाम को बताता है या व्यवहार या कार्य जिसका मूल्यांकन किया जाना है, जबकि मूल्यांकन संगठनात्मक परिणामों से सम्बन्धित है, जिसके लिये व्यक्ति उत्तरदायी होता है। अतः सम्मिलित रूप में यह कहा जा सकता है कि किसी भी संगठन में कार्य कर रहे व्यक्तियों के निश्चित समयान्तर से मूल्यांकन की प्रक्रिया को ही निष्पादन मूल्यांकन कहा जाता है।

निष्पादन मूल्यांकन की विभिन्न प्रमुख परिभाषायें निम्नलिखित हैं-

(1) एल० पी० अल्फोड तथा एच. आर. बीटी के अनुसार, “निष्पादन मूल्यांकन एक व्यक्ति की अपने कार्य पर की जाने वाली सेवाओं का कम्पनी को होने वाले सापेक्षिक लाभ का मूल्यांकन है।”

(2) डेल एस. बीच के अनुसार, “निष्पादन मूल्यांकन व्यक्ति का उसके कार्य निष्पादन सन्दर्भ में तथा सामान्य विकास के सन्दर्भ में व्यवस्थित मूल्यांकन है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्पादन मूल्यांकन की एक सरल परिभाषा निम्नानुसार दी जा सकती है।

किसी संगठन में कार्यरत कर्मचारियों के गुणों का कार्य मापदण्डों के अनुरूप निष्पक्ष व सापेक्षिक मूल्यांकन ही निष्पादन मूल्यांकन कहलाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों की तुलनात्मक योग्यता का अंकन किया जाता है।

निष्पादन मूल्यांकन की विधियाँ

(Methods of Performance Appraisal)

कर्मचारियों के निष्पादन मूल्यांकन की अनेक विधियाँ चलन में है। कुछ प्रमुख विधियों का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है।

  1. बलात् वितरण विधि (Forced Distribution Method)- निष्पादन मूल्यांकन की इस विधि के अन्तर्गत मूल्यांकनकर्ता को एक श्रेणीकरण पूर्व निर्धारित करके दे दिया जाता है। मूल्यांकनकर्ता को इसमें से अपनी चयनित श्रेणी को ज्ञात करना पड़ता है।
  2. ग्राफिक रेटिंग विधि (Graphic Rating Scale Method) – निष्पादन मूल्यांकन की यह भी एक प्रचलित विधि है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति के लिये एक छपा हुआ फार्म मूल्यांकनकर्ता को दिया जाता है, जिसमें कई तथ्य होते हैं। यह विधि बहुत सरल है तथा सरलता से प्रयोग की जा सकती है, लेकिन इसका प्रमुख दोष यह है कि मूल्यांकन सर्वत्र एक-सा नहीं होता।
  3. क्षेत्र समीक्षा विधि (Field Review Method) – निष्पादन मूल्यांकन की इस विधि का प्रयोग प्रायः बड़े व्यावसायिक उपक्रमों में किया जाता है, जिसमें संस्था के सेविवर्गीय विभाग का प्रशिक्षित अधिकारी प्रत्येक पर्यवेक्षक को अपने अधीनस्थ कर्मचारियों के प्रति जानकारी देने के लिये पूछता है तथा कर्मचारियों के बारे में उसकी राय प्राप्त करता है कि कर्मचारी का कार्य निष्पादन कैसा है। इस विधि की सफलता मुख्यतः साक्षात्कारकर्त्ता की योग्यता पर निर्भर करती है।
  4. घटक तुलना विधि (Factor Comparison Method)- निष्पादन मूल्यांकन की यह एक लोकप्रिय विधि है, जिसे सभी व्यक्तियों पर लागू किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति का मूल्यांकन उसमें पाये जाने वाले विभिन्न घटकों या गुणों के आधार पर किया जाता है। ये तुलनात्मक घटक व्यक्ति के कार्य के लिये अपेक्षित मानसिक योग्यता, कौशल, उत्तरदायित्व, कार्य दशायें आदि से सम्बन्धित होते हैं, जिनके आधार पर कर्मचारियों को क्रम प्रदान किया जाता है और उनका मूल्यांकन किया जाता है।
  5. सीधी क्रम विधि (Straight Ranking Method) – निष्पादन मूल्यांकन की यह सबसे प्राचीन विधि है, जिसमें व्यक्ति तथा उसका निष्पादन मूल्यांकनकर्ता द्वारा एक ही माना जाता है अर्थात् व्यक्ति को उसके कार्य निष्पादन से पृथक् नहीं किया जाता है। इसके अन्तर्गत एक व्यक्ति की तुलना कुछ गुणों के आधार पर सीधी दूसरे व्यक्ति से की जाती है, जिसका प्रमुख कार्य, उद्देश्य, कुशलतम व्यक्ति को न्यूनतम कुशल व्यक्ति से पृथक् करना होता है।
  6. श्रेणीकरण (Grading) – निष्पादन मूल्यांकन की इस विधि के अन्तर्गत मूल्यांकनकर्ता कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखते हुये प्रमाप निश्चित करता है, जिनकी श्रेणियाँ बना दी जाती हैं तथा जिन्हें भली-भाँति परिभाषित किया जाता है। महत्त्वपूर्ण बातों में कार्य की मात्रा, सहनशक्ति, नेतृत्व क्षमता, निर्णयन क्षमता, स्वास्थ्य चातुर्य आदि को सम्मिलित किया जा सकता है।

निष्पादन मूल्यांकन विधियों की सीमायें

(Limitations of Performance Appraisal Methods)

(1) मूल्यांकन का निष्पादन मूल्यांकन के प्रति दृष्टिकोण (Attitude of Evaulator Towards Performance Appraisal) – कोई मूल्यांकक मूल्यांकन के कार्य को किस दृष्टिकोण से लेता है, यह बात निष्पादन मूल्यांकन की उपयोगिता को बड़ी सीमा तक प्रभावित करती है। अनेक मूल्यांकन के कार्य को एक अनावश्यक कार्य समझते हैं। उनके विचार में यह उन पर डाला गया एक अतिरिक्त भार है और उनके मूल्यवान समय को नष्ट करता है।

(2) परिवेश प्रभाव (Halo Effect) – ई० एल० थॉर्नडिक (E.L. Thorndike) ने परीक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि मूल्यांकक कर्मचारी में किसी एक विशेषता के अधिक या कम होने के आधार पर ही उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं कार्य का मूल्यांकन करता है। यह देखा जाता है कि जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की विशेषता से अत्यधिक प्रभावित हो जाता है तो वह उसके अन्य गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर प्रकट करता है। इस प्रकार मूल्यांकक एक विशेषता से प्रभावित होकर शेष विशेषताओं को भी समान अंक प्रदान करता है।

(3) विवेक का अभाव (Lack of Discrimination) – अनेक मूल्यांकक कर्मचारियों के कार्य मूल्यांकन में भेद करने में असमर्थ होते हैं और इसलिये वे ऐसा मार्ग चुनते हैं जिससे उनकी असमर्थता प्रकट न हो। बहुधा ऐसे मूल्यांककों द्वारा मध्यम मार्ग चुना जाता है और वे कर्मचारियों को कमोबेश समान स्तर पर मूल्यांकित कर देते हैं।

(4) मूल्यांकन में असमानता (Lack of Uniformity in Appraisal)- प्रत्येक व्यक्ति अनुभव से यह जानता है कि अनेक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण में बड़े कड़े और अनेक नरम होते हैं। ऐसी अवस्था में मूल्यांकन में भी भिन्नता होना स्वाभाविक है। परीक्षाओं में भी विद्यार्थियों के अंकों में असमानता प्रायः परीक्षकों के दृष्टिकोण का ही परिणाम होती है। अतः व्यावसायिक उपक्रमों में कुछ अधिकारी जो दृष्टिकोण से नरम है, अपने अधीनस्थों का मूल्यांकन नरमी से करते हैं। यदि किसी कर्मचारी को एक ही समय एक से अधिक ऐसे अधिकारियों के अधीन कार्य करना पड़े जो अलग-अलग प्रकृति के हैं, तो एक ही समय उसका मूल्यांकन भिन्न-भिन्न होगा।

(5) अन्य सीमायें (Other Limitations) – निष्पादन मूल्यांकन विधियों की अन्य सीमाओं में निम्न को भी सम्मिलित किया जा सकता है-

(1) कार्य निष्पादन के विभिन्न तत्त्वों को भार प्रदान करने की सामान्य विधियों का अभाव (Lack of Common Practices in Providing Weights to Different Traits) I

(2) मूल्यांकन की यथार्थता को नापने के मापदण्डों का अभाव (Lack of Standards to Measure the Objectivity in Appraisal) 

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About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

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