मानव संसाधन प्रबंधन / Human Resource Management

मानव संसाधन विकास का क्षेत्र | मानव संसाधन प्रबन्धकों की भूमिका | मानव संसाधन विकास की विशेषताएँ

मानव संसाधन विकास का क्षेत्र | मानव संसाधन प्रबन्धकों की भूमिका | मानव संसाधन विकास की विशेषताएँ | Area of ​​Human Resource Development in Hindi | Role of HR Managers in Hindi | Features of Human Resource Development in Hindi

मानव संसाधन विकास का क्षेत्र

(Scope of Human Resource Development)

मानव संसाधन विकास के क्षेत्र के बारे में बताते समय अरस्तू का यह कथन काफी औचित्यपूर्ण है- “अपनी सम्पूर्ण सामर्थ्य को विकसित करने एवं प्राप्त करने हेतु मानव प्राणी के लिए यह वैसे ही स्वाभाविक है जैसे कि एक बंजूफल (acorn) का एक जादुई जैतून के पेड़ पर बढ़ना।” संगठनों के प्रतियोगी वातावरण में चुनौतियों का सामना करने तथा ऐसी प्रणालियों के विकास की आवश्यकता होने से जिनके द्वारा मानव संसाधन का विकास परिवर्तनीय संगठनात्मक आवश्यकताओं को पूरा कर सके अनुभव किया जाता है। मानव संसाधन विकास व्यक्तियों को अपनी विद्यमान क्षमताओं के मूल्याकंन पर जोर देता है।

मानव संसाधन विकास का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है क्योंकि इसके उद्देश्यों में निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-

  1. संगठन में मानव संसाधन विकास हेतु व्यापक रूपरेखा की व्यवस्था करना।
  2. कर्मचारियों में संगठन के प्रति पूर्ण क्षमता की खोज, विकास एवं उपयोग का वातावरण बनाना।
  3. प्रतिभावान कर्मचारियों को आकर्षित करना, बनाए रखना तथा प्रेरित करना ताकि संगठन की क्षमता बढ़े।
  4. मानव-शक्ति नियोजन, विकास, वृत्ति नियोजन आदि के बारे में मानवीय संसाधन पर सूचनाओं को उचित रूप से संग्रहित करना।

उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु मानव संसाधन विकास प्रणालियाँ विभिन्न कार्यों को शामिल करती है-

  1. मानव-शक्ति नियोजन, वृत्ति नियोजन एवं विकास प्रणालियाँ।
  2. कर्मचारियों की वर्तमान एवं भावी आवश्यकताओं हेतु प्रशिक्षण।
  3. कर्मचारियों की विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं के निर्धारण हेतु कर्मचारियों की क्षमता का निष्पादन मूल्याकंन एवं निर्धारण
  4. कार्य निष्पादन एवं सहयोग में उत्कृष्टता लाने हेतु पारिश्रमिक प्रणालियाँ।
  5. संगठन का विकास।

मानव संसाधन प्रबन्धकों की भूमिका

(Role from Human Resource Managers)

वर्तमान परिवर्तन परिवेश में मानव संसाधन प्रबन्धकों से निम्नलिखित भूमिका की अपेक्षा की जाती है-

  1. कार्मिक विकास- मानव संसाधन प्रबन्धकों से अपेक्षा की जाती है कि वे कर्मचारियों के विकास हेतु प्रयास करें तथा इनके विकास में व्यक्तिगत रूप से भागीदारी लें। मानव संसाधन प्रबन्धकों को अपने अधीनस्थों से सम्बद्ध होना चाहिए। कर्मचारी यह चाहते हैं कि मानव संसाधन प्रबन्धक उन्हें ऐसे विकास के अवसर तथा सहायता दें जो उनके विकास निष्पादन में सुधार हेतु आवश्यक हो।
  2. नीति निर्माण- मानव संसाधन प्रबन्धक को संगठन के प्रबन्ध वर्ग की वेतन एवं मजदूरी, प्रशासन, कल्याणकारी कार्यों, कार्मिक अभिलेख बनाने एवं रखने, अच्छा कार्य वातावरण सृजित करने में सहायता करनी चाहिए।
  3. परामर्शदायी भूमिका- मानव संसाधन प्रबन्धक महत्वपूर्ण सुझाव व सलाह दे सकते हैं क्योंकि रेखा प्रवन्धक विभिन्न नैत्यिक प्रकृति की समस्याओं में फंसे रहते हैं। मानव संसाधन प्रवन्धक की समस्याओं के समाधान में मदद हो सकती है। मानव संसाधन प्रबन्धक द्वारा अधिसमय कार्य, वेतन वृद्धि, हस्तान्तरण, पदोन्नति, अनुशासन कार्यवाही आदि के बारे में समाधान हेतु महत्वपूर्ण सलाह दी जाती है।
  4. मध्यस्थ की भूमिका- मानव संसाधन प्रबन्धक से उस समय मध्यस्थ की भूमिका की अपेक्षा की जाती है जब कर्मचारियों, कर्मचारियों के समूह, उच्चस्थ एवं अधीनस्थ, प्रवन्धक व कर्मचारियों में विवाद हो।
  5. समस्या समाधानकर्ता के रूप में भूमिका- मानव संसाधन प्रबन्धक से रेखा प्रबन्धकों की कमियों को जानने एवं उनकी समस्याओं को दूर करने की अपेक्षा की जाती है। इसलिए मानव संसाधन प्रबन्धक को उनके दोषों को कम करने में मार्गदर्शन करना चाहिए।
  6. प्रतिनिधि भूमिका- सामान्यतया मानव संसाधन प्रबन्धक कम्पनी का प्रवक्ता या प्रतिनिधि होता है। वह कभी-कभी प्रबन्धकों के समक्ष श्रमिक का भी प्रतिनिधित्व करता है।
  7. निर्णयन में भूमिका- मानव संसाधन प्रबन्धक से अपेक्षा की जाती है कि वह मानव संसाधन सम्बन्धी मुद्दों पर निर्णयन में प्रभावी भूमिका अदा करे तथा मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्य, नीतियाँ एवं कार्यक्रम तय करे।
  8. शोध करना- वर्तमान परिवर्तनीय वातावरण में शोध एवं विकास अत्यन्त महत्वपूर्ण है। मानव संसाधन प्रबन्धक समस्याओं एवं मुददों को जानने हेतु शोध करता है ताकि कर्मचारियों से सम्बन्धित मामलों पर बेहतर निर्णय लिये जा सकें।
  9. प्रबन्ध एवं प्रशिक्षण- मानव संसाधन प्रबन्धक से अपेक्षा की जाती है कि वह वर्तमान दशाओं के अनुरूप शिक्षण एवं प्रशिक्षण की व्यवस्था संगठन के सदस्यों हेतु करे ताकि उनकी कौशल एवं क्षमता बढ़ सके। इसलिए उनके पास विशिष्ट ज्ञान एवं कौशल का होना आवश्यक है।

अब मानव संसाधन प्रबन्धकों का कार्य अत्यन्त चुनौतीपूर्ण हो गया है। मानव संसाधन प्रबन्धकों को संगठन में उचित सम्प्रेषण की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि कर्मचारियों एवं प्रबन्धकों में मधुर सम्बन्धों का विकास हो।

मानव संसाधन विकास की विशेषताएँ

(Characteristics of H.R.D.)

मानवसंसाधन विकास की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. मानव संसाधन विकास सामान्य प्रबन्ध का विशेष भाग होता है।
  2. इसमें मानवीय संसाधन का विकास होता है।
  3. इसमें सामान्य प्रबन्ध के सिद्धान्तों को अपनाया जाता है।
  4. यह विभागीय उत्तरदायित्व होते हैं।
  5. यह श्रम संघ के साथ सम्बन्ध में व्यवहार होता है।
  6. संगठन के मानवीय तथा अन्य संसाधनों के बीच मधुर सम्बन्ध स्थापित करने पर बल दिया जाता है।
  7. यह कार्मिक समस्याओं का समाधान करता है।
  8. यह सतत् प्रकृति का होता है।
  9. इसका उद्देश्य सर्वोत्तम सम्भावित विधि से कार्मिक उद्देश्यों को प्राप्त करना होता है।
  10. यह कार्मिक समूह न कि व्यक्तिगत कर्मचारी पर बल देता है।
  11. यह विभागीय उत्तरदायित्वों को पूर्ण करता है।
  12. यह कतिपय सिद्धान्तों एवं व्यवहारों को अपनाता है।
  13. यह उच्च प्रबन्ध को महत्वपूर्ण सुझाव देता है।
  14. इसमें श्रमशक्ति का नियोजन, संगठन, नियंत्रण तथा निर्देशन शामिल किया जाता है।
मानव संसाधन प्रबंधन  महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: sarkariguider.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- sarkariguider@gmail.com

About the author

Kumud Singh

M.A., B.Ed.

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!